गुरुवार, 27 नवंबर 2008

विचारों पर कार्यों का प्रभुत्व ज्यादा प्रासंगिक !

कहा गया है कि कार्यों पर विचारों का प्रभुत्व प्रासंगिक नही होता , प्रासंगिक होता है कि विचारों पर कार्यों का प्रभुत्व बनाया जाए । किसी भी कार्य की सफलता में परस्पर विचारों के आदान-प्रदान का विशेष महत्त्व होता है । पिछले वर्ष -२००७ में "परिकल्पना" पर "हिन्दी चिट्ठाकार विश्लेषण " की काव्यात्मक प्रस्तुति की गयी थी , कतपय लोगों को वह बेहद पसंद आयी । इसबार भी मेरी ईच्छा हुयी कि नए- पुराने सुंदर और सार्थक ब्लॉग का चुनाव किया जाए और उसकी प्रस्तुति कुछ नए अंदाज़ में की जाए । उसके लिए जनवरी माह के प्रथम सप्ताह का समय सुनिश्चित हुआ । आपके सुझाव आमंत्रित किए गए और कल के पोस्ट में केवल उल्लेख किया गया न कि विश्लेषण किया गया ।
कल के पोस्ट " आपके पसंदीदा २५ चिट्ठे " पर तमाम लोगों की सकारात्मक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं । उद्देश्य था कि आपको इस चर्चा-परिचर्चा में शामिल किया जाए , ताकिअगले माह किया जाने वाला विश्लेषण आसान हो सके ।
इसी क्रम मेंकुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ की गयी है , शुरुआत Suresh Chiplunkar जी ने कई मुद्दे उठाते हुए की , कि - "25 में से ज्ञानदत्त पांडे जी के दो ब्लॉग इसमें हैं,इसी प्रकार दीपक भारतदीप जी के भी दो ब्लॉग़ हैं, अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले दो-दो ज्योतिष ब्लॉग भी हैं, बिन्दु क्रमांक 4 के अनुसार "भाषा का अनुशासन" के आधार पर "भड़ास" और "मोहल्ला" का चयन भी समझ में नहीं आया…। "परमजीत बाली जी ,Ratan Singh जी ,sareetha जी और भाई कुश ने इस पर पुन: विचार करने की बात कही । रचना जी ने इसे बेकार की बात कहकर खारिज कर दिया । नरेश सिह राठोङ झुन्झुनूँ राजस्थान ने इसमें तकनीकी चिट्ठा शामिल न किए जाने की बात कीआदि।

पिछले पोस्ट पर आप सभी के महत्वपूर्ण सुझाव के लिए आभार ! भाई कुश ने एक और सुझाव दिया कि शीर्षक में "आपके " की जगह "कुछ लोगों के .....!" देना उचित होगा । मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ , कि आगे से ऐसा ही होगा । विश्लेषण के समय आप सभी के विचार प्राथमिकताओं की श्रेणी में रखे जायेंगे । आप सभी का पुन: आभार !

बुधवार, 26 नवंबर 2008

आपके पसंदीदा 25 चिट्ठे





तुलसी का पत्ता क्या बड़ा क्या छोटा ? आज जिसप्रकार हिन्दी के चिट्ठाकार अपने लघु प्रयास से प्रभामंडल बनाने में सफल हो रहे हैं, वह भी साधन और सूचना की न्यूनता के बावजूद , कम संतोष की बात नही है । हिन्दी को अंतर्राष्ट्रीय स्वरुप देने में हर उस ब्लोगर की महत्वपूर्ण भुमिका है जो बेहतर प्रस्तुतीकरण, गंभीर चिंतन, सम सामयिक विषयों पर शुक्ष्म दृष्टि, सृजनात्मकता, समाज की कु संगतियों पर प्रहार और साहित्यिक- सांसकृतिक गतिविधियों के माध्यम से अपनी बात रखने में सफल हो रहे हैं। निश्चित रूप से अब हिन्दी में बेहतर ब्लॉग लेखन की शुरुआत हो चुकी है और यह हिन्दी के उत्थान की दिशा में शुभ संकेत का द्योतक है ।




इसमें कोई संदेह नही, कि आज कल हिन्दी ब्लॉग लेखन अति सम्बेदनात्मक दौर में है , लेकिन इसकी जड़ें अभी भी ठोस जमीन में होने के बजाय अतिशय भावुकता के धरातल पर टिकी है। इस केंचुल से बाहर निकलने की आवश्यकता है। हिन्दी ब्लॉग लेखन पर गंभीर वहस की भी आवश्यकता महसूस हो रही है । इसके लिए जरूरी है, की बिना किसी पूर्वाग्रह के चिट्ठाकार आपस में चर्चा- परिचर्चा करें और हिन्दी के माध्यम से सुंदर सह- अस्तित्व की परिकल्पना को मूर्त रूप देने हेतु पहल करें । मेरे समझ से यही ब्लॉग लेखन की सार्थकता होगी ।




यह सब बातें मैं नही कर रहा हूँ , आप सभी के बीच के कुछ ब्लोगर की राय है , जिसे मैंने यहाँ प्रस्तुत करना उपयुक्त समझा । दर असल बात यह है, कि विगत दिनों "परिकल्पना" पर " हिन्दी चिट्ठाकार विश्लेषण- २००८" से संम्बंध में मैंने सुझाव आमंत्रित किए थे । कई चिट्ठाकार बंधुओं के सुझाव मेल तथा एस एम् एस के माध्यम से प्राप्त हुए । बहुत सारे ब्लॉग के नाम सुझाए गए, जिनका विश्लेषण किया जाना उचित होगा , क्योंकि ब्लॉग के विश्लेषण से पाठकों में यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि कौन से ब्लॉग का वाचन उनके लिए उपयुक्त है और वे अपनी मानसिकता के हिसाब से भावनात्मक रूप से उस ब्लॉग से जुड़कर ज्ञानार्जन कर सके


अब तक के प्राप्त सुझाव के आधार पर ऐसे हीं २५ चिट्ठों का नाम हमारे सामने आया है , जिनके विश्लेषण हेतु पेशकश की गयी है , वह इसप्रकार है-


ज्ञान दत्त पांडे का मानसिक हलचल /


उड़न तस्तरी /


सारथी /


रवि रतलामी का ब्लॉग/


दीपक भारतदीप की हिन्दी /


हिंद युग्म /


शिव कुमार मिश्रा और ज्ञान दत्त पांडे का ब्लॉग /


तीसरा खंभा /


आवाज़ /


गत्यात्मक ज्योतिष /


चक्रधर का चकल्लस /


अनंत शब्द योग /


नव दो ग्यारह /


मेरी कठपुतलियाँ /


चिट्ठा चर्चा /


आरंभ आरंभ /


शब्दों का सफर /


भडास /


रचनाकार/


मोहल्ला /


ह्रदय गवाक्ष /


ज्योतिष परिचय /


झकाझक टाईम्स /


निर्मल आनंद /


सत्यार्थ मित्र /




यहाँ मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि ये २५ चिट्ठे जिनके नाम का उल्लेख किया गया है वह आपके सुझाव पर आधारित है , न कि मेरी राय में ! यहाँ मैं यह भी स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि "परिकल्पना" पर अगले महीने कुल ५० चिट्ठों की चर्चा होगी कि क्यों ये चिट्ठे आपके पसंदीदा हैं ? विश्लेषण का आधार होगा- -(1) बेहतर प्रस्तुतीकरण (2) ब्लॉग लेखन का उद्देश्य (3) विश्व बंधुत्व की भावना (4) भाषा का अनुशासन (5) चिंतन में शिष्टाचार (6) रचनात्मकता (7) सक्रियता (8)जागरूकता (9) आशावादिता (10) विचारों की प्रासंगिकता आदि !




अब आप कहेंगे कि मैं ऐसा क्यों कर रहा हूँ , तो लीजिये निम्न पंक्तोयों के माध्यम से आपका यह भी भ्रम दूर हो जायेगा -




" फासला हो लाख पर चाहत बचाए रखना ,


रिश्तों के दरमियाँ हरारत बचाए रखना !




मुझसे न करो प्यार की बातें मुझे कबूल-


औरों के लिए दिल में मोहब्बत बचाए रखना !




धड़कनों में हर किसी के हर कोई आता नहीं-


मुसकुराने की मगर आदत बचाए रखना !




सैकड़ों सपने हैं इन आंखों में देखो झांककर -


जीवन में कुछ करने की ताकत बचाए रखना !"




आज बस इतना हीं , आप अपना सुझाव भेजना जारी रखें,आपके सुझाव की पोटली लेकर पुन: आऊँगा आपके बीच...!

गुरुवार, 20 नवंबर 2008

नेता शिरोमणी श्री राम लाल जी का चुनावी घोषणा - पत्र

आया हूँ तेरे द्वारे,
तू दे-दे मुझको प्यारे,
वोटों की झोली दे-दे,
या खोखा-खोली दे-दे,
मेरा ईमान ले-ले ,
अपना ईनाम दे-दे,
अल्लाह के नाम दे या-
ईश्वर के नाम दे-दे...!
वादा है मेरा वादा बन जाऊंगा मिनिस्टर
अन्तर नही रखूंगा कुत्ता हो या कलक्टर
इंगलिश की तोडूं टाँगे, करूं पूरी सबकी मांगें-
चाहूँगा भाई मेरे मैट्रिक हो फेल ऑफिसर ।
मैं हूँ तुम्हारे लायक,
मुझको बना विधायक,
कुछ गोला-गोली दे-दे,
या अपनी बोली दे-दे,
मेरा सलाम ले- ले,
अपना पयाम दे-दे,
अल्लाह के नाम दे या,
ईश्वर के नाम दे-दे...!
अस्पताल में भरूंगा मैं झोला छाप डॉक्टर
विभाग हेड होंगे सब वार्ड बोयाय- कम्पाउन्दर
गुंडों की चांदी होगी, हिजडों की शादी होगी-
खुलकर के अब दलाली पायेंगे नेता - अफसर ।
कीमत को लात मारूं,
करूं टके सेर दारू ,
खुशियों की होली दे-दे,
अपनी रंगोली दे-दे,
सस्ता है जाम ले-ले,
अपना खुमार दे-दे,
अल्ला के नाम दे या-
ईश्वर के नाम दे-दे...!
ऐसी बनेगी टायर होगी कभी न पंचर
मंहगे मिलेंगे राशन सस्ते मिलेंगे खंजर
हर छात्र को मिलेंगे रियायत में तमंचे-
चाहेंगे जैसा जीवन जियेंगे सारे खुलकर !
चन्दा दे या दुआ दे ,
चाहे तू बद दुआ दे,
मेरी जनता भोली दे-दे,
विजय तिलक की रोली दे-दे,
कट्टा के बल पे दे या-
तू अपने आप दे-दे ,
अल्लाह के नाम दे या -
ईश्वर के नाम दे-दे ...!
लाकर के लोकतंत्र तू पहले ही गलती कर दी
हम जैसे माफियाओं की ऐसे हीं झोली भर दी
मुझसे न रख अपेक्षा , भगवान देगा पैसा
तेरा भी वो हरेगा जैसे मेरी गरीबी हर दी ।
सत्ता मैं तुझसे लूंगा,
भत्ता मैं तुझको दूंगा,
तू चोरी-चोरी दे-दे
या सीनाजोरी दे-दे,
तू दंड-भेद दे , या -
फ़िर साम-दाम दे-दे,
अल्लाह के नाम दे या-
ईश्वर के नाम दे-दे....!
आपका-
अपना राम लाल !

( ऐसा केवल मनोरंजन के उद्देश्य से दिया जा रहा है, ऐसी ओछी सोच वाले नेताओं के फरेबी बातों में न आयें और अपना मत सोच-विचार कर दें , ताकि आपका कीमती वोट सही और सार्थक दिशा मेंप्रयुक्त हो )
कार्टून साभार: हिन्दुस्तान .

रविवार, 16 नवंबर 2008

चुनाव जब भी आता है दोस्त !

चुनाव जब भी आता है दोस्त !
सजते हैं वन्दनवार हमारे भी द्वार पर
और हम-
माटी के लोथडे की मानिंद
खड़े हो जाते हैं भावुकता की चाक पर
करते हैं बसब्री से इंतज़ार
किसी के आने का .....!
कोई न कोई अवश्य आता है मेरे दोस्त
और ढाल जाता है हमें -
अपनी इच्छाओं के अनुरूप
अपना मतलब साधते हुए
शब्जबाग दिखाकर .....!
उसके जाने के बाद -
टूटते चले जाते हैं हम
अन्दर हीं अन्दर
और फूटते चले जाते हैं थाप-दर-थाप
अनहद ढोल की तरह .....
यह सोचते हुए , कि-
" वो आयेंगे वेशक किसी न किसी दिन , अभी जिंदगी की तमन्ना है बाकी ......!"
()रवीन्द्र प्रभात


कार्टून: इंडियन कार्टून से साभार

शनिवार, 8 नवंबर 2008

लौटा है शीत जब से गाँव

प्रीति भई बावरी ,


देख घटा सांवरी ,


है धरती पे उसके न पाँव ,


लौटा है शीत जब से गाँव ।




सुरमई उजालों में चुम्बन ले घासों को ,


बेंध रही हौले से गर्म-गर्म साँसों को ,


बहकी है पुरवाई, ले-ले के अंगडाई -


गेहूं की बालियों से छुए कुहासों को ,




चाँद की चांदनी ,


खो गयी रागिनी ,


आयी प्राची से सिंदूरी छाँव ,


लौटा है शीत जबसे गाँव ।




बांसों के झुरमुट से किरणें सजी-संवरी ,


निकली है स्वागत में गाती हुयी ठुमरी,


देहरी के भीतर से झाँक रही दुल्हनियां -


साजन की यादों में खोयी हुयी गहरी ,




शीत की भोर से,


धुप की डोर से ,


सात फेरे लिए हैं अलाव ,


लौटा है शीत जबसे गाँव ।




मौसम की आँखों में महुए सी ताजगी ,


दिखती है खुल करके धुप की नाराजगी ,


गुड की डाली खाके सोया है देर तक -


मतवाला सूरज है अलसाया आज भी ,




गा रही गीत री ,


बांटती प्रीत री ,


बंजारन गली-गली-ठांव ,


लौटा है शीत जबसे गाँव ।

() रवीन्द्र प्रभात


(सर्वाधिकार सुरक्षित )

 
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