सोमवार, 12 जनवरी 2009

वर्ष-2008 : हिन्दी चिट्ठा हलचल (भाग- 8)

आज मैं जिन चिट्ठों की चर्चा करने जा रहा हूँ, वह चिट्ठा है तो विषय आधारित हीं, मगर मुझे उन चिट्ठों की सबसे ख़ास बात जो समझ में आयी वह है ब्लोगर के विचारों की दृढ़ता और पूरी साफगोई के साथ अपनी बात रखने की कला । ब्लॉग चाहे छोटा हो अथवा बड़ा , उसकी किसी भी पोस्ट ने मेरे मन-मस्तिस्क झकझोरने का प्रयास किया उसकी चर्चा करना आज मैं अपना धर्म समझ रहा हूँ । हो सकता है आप मेरे विचारों से सहमत न हों , मगर जो मुझे अच्छा लगा , वह आपके सामने है ।


आज सबसे पहले हम चर्चा करेंगे विचारों की दृढ़ता को वयां करता एक ब्लॉग “समतावादी जन परिषद् “ का । इस ब्लॉग पर कनाडा के माड वार्लो का एक लेख प्रकाशित है। वार्लो कनाडा में पानी के निजीकरण के ख़िलाफ़ आन्दोलन चलाती है। उस आलेख में यह उल्लेख है की वर्ष- २०२५ में विश्व की आवादी आज से २.६ अरब अधिक हो जायेगी । इस आवादी के दो-तिहाई लोगों के समक्ष पानी का गंभीर संकट होगा तथा एक-तिहाई के समक्ष पूर्ण अभाव की स्थिति होगी ।

ब्लॉग की सबसे बड़ी विशेषता यह है ,कि वर्ष-२००८ में यह ब्लॉग विचारों और पूर्वानुमान की सार्थकता को आयामित करता रहा । वैसे यह ब्लॉग समतावादी जन परिषद् भारत के चुनाव आयोग में पंजीकृत है और आम-जन की आवाज़ परिलक्षित होता है। इन्हें राजनीतिक विचारधारा से कुछ भी लेना देना नही है, वे भी इस ब्लॉग से मिली जानकारियों का मजा ले सकते हैं ।

ब्लॉग अपने हर आलेख में जीवन का कर्कश उद्घोष करता दिखाई देता है , वह भी पूरी निर्भीकता के साथ । यही इस ब्लॉग की विशेषता
दूसरा ब्लॉग जिसकी चर्चा मैं आज करने जा रहा हूँ , वह है – “ इंडियन बाईस्कोप डॉट कॉम “ ब्लोगर दिनेश का बाईस्कोप देखिये और महसूस कीजिये हिन्दी सिनेमा की सुनहरी स्मृतियाँ ! सिनेमा के शूक्ष्म पहलुओं से रू-ब-रू कराता है यह ब्लॉग। ब्लोगर दिनेश का कहना है, की –“ सिनेमा के प्रति सबसे पहले अनुराग कब जन्मा , नही कह सकता , पर जितनी स्मृतियाँ वास्तविक जीवन की है , उतनी ही सिनेमाई छवियों की भी है । बरेली के दिनेश बेंगलूरू में काम करते बक्त भी इस ब्लॉग के माध्यम से अपने शहर, समाज और सिनेमा के रिश्तों में गूंथे हैं। "
दिनेश अपने एक लेख में यह लिखते हैं, की “ कई बार मन में यह सवाल कौंधता है की भीतर और बाहर की अराजकता को एक सिस्टम दे सकूं , एक दिशा दे सकूं- वह कौन सा रास्ता है . मन ही मन बुद्ध से लेकर चग्वेरा तक को खंगाल डालता हूँ ……!”
सबसे बड़ी बात है इस ब्लॉग की पठनीयता और संप्रेशानियता जो इस ब्लॉग को एक अलग मुकाम देती है । सिनेमाई वार्तालाप के क्रम में ब्लोगर की आंचलिक छवि और संस्मरण की छौंक उत्कृष्टता का एहसास कराती है। निष्पक्ष और दृढ़ता के साथ अपनी सुंदर प्रस्तुति और अच्छी तस्वीरों के माध्यम से यह ब्लॉग पाठकों से आँख- मिचौली करता दिखाई देता है।
वर्ष-२००८ में एक अत्यन्त महत्वपूर्ण ब्लॉग से मैं मुखातिब हुआ । भीखू महात्रे, मुम्बई का किंग अर्थात मनोज बाजपेयी भी पधार चुके हैं ब्लॉग की दुनिया में । मनोज बाजपेयी के बारे में मैं क्या कहूं आप से , इस प्रयोगधर्मी अभिनेता को कौन नही जानता , पूरा विश्व जानता है , मगर एक राज की बात आज मैं बताने जा रहा हूँ वह है, की मनोज बाजपेयी जहाँ के रहने वाले हैं वहाँ मेरी ससुराल है । यानी की वे बिहार के पश्चिम चंपारण जनपद के बेलवा गाँव के हैं और मेरी ससुराल है पश्चिम चंपारण का जिला मुख्यालय बेतिया ।
मनोज ने अपने ब्लॉग पर जो भी आलेख लिखे हैं , वह जीवन का कड़वा सच दिखाई देता है। मनोज अपने बारे में लिखते हैं, की “ मुझे याद है एक नाटक- जो मैंने कई साल पहले दिल्ली रंगमंच पर किया था . इसमें मैं अकेला अभिनेता था . इस नाटक में मैं इक रिटायर्ड स्टेशन मास्टर की भुमिका की थी , जो अपने बेटे और बहू द्वारा प्रताडितहै ….!” ऐसे बहुत सारे अविस्मरनीय क्षण महसूस कराने को मिलेंगे आपको इस ब्लॉग पर ।
मनोज ने अपने पहले ही आलेख में बड़ी दिल चस्प संस्मरण सुनाते हैं की कैसे बिहार के सीमावर्ती क्षेत्र के रहने वाले एक अभिनेता के घर पहली बार टेप आया। मनोज कहते हैं, की बाबूजी बीर गंज से पानासोनिक का टेप रिकॉर्डर ले आए थे । ब्लोगर कहते हैं की बिहार के कई लोगों के घर टेप रिकॉर्डर नेपाल के बीरगंज से ही आया। इस संस्मरण को जब मनोज सुनाते हैं तो जिस्म में अजीब सी सिहरन महसूस होती है।
और भी कई मार्मिक और दिलचस्प संस्मरण आपको पढ़ने को मिलेंगे इस ब्लॉग पर। बस एक वार क्लिक कीजिये और चले जाईये मनोज के संग विचारों और संस्मरणों की दुनिया में।
आज की इस चर्चा में जिस चौथे ब्लॉग की मैं चर्चा करने जा रहा हूँ , वह है-कबाड़खाना “
किसी विचारक ने कहा है, कि जो बस्तुओं के पीछे भागता है, वह अकेला होता है और जो व्यक्तियों के पीछे भागता है उसके साथ पूरी दुनिया होती है.इस बात को जब हम महसूस करना छोड़ देते है , वही से कबाड़वाद पृष्ठभूमि बनने लगती है. बस इसी को महसूस कराता हुआ यह ब्लॉग है कबाड़खाना ।
अशोक पांडे का यह ब्लॉग भारत का आम उपभोक्ता को आईना दिखाने का काम करता है और यही ब्लॉग की सबसे बड़ी विशेषता है। प्रकृति को उत्पादन और उपभोग की मार से बचाने का माध्यम है यह कबाड़खाना ।
रवीश कुमार इस ब्लॉग के बारे में कहते हैं, कि –“ पेप्पोर रद्दी पेप्पोर चिल्लाते- चिल्लाते अशोक पांडे का यह ब्लॉग कबाड़वाद फैला रहा है। इस ब्लॉग पर जो भी आता है , उसका कबाड़ीवाला कहकर स्वागत किया जाता है। विरेन डंगवाल हों या उदय प्रकाश, ये सब कबाड़ीवाले हैं। “ इस कबाड़ में आपको मिलेंगे रागयमन में गंगा स्तुति सुनाते हुए पंडित छन्नू लाल मिश्रा , वहीं बेरोजगारी पर कविता लिखते सुंदर चंद ठाकुर ……और भी बहुत कुछ …आईये और देखिये इस कबाड़ में आपके लायक क्या है ?

मेरा दावा है, की आप जो चाहेंगे मिलेगा इस कबाड़खाने में ।


…..अभी जारी है …./

8 comments:

  1. अकल्पनीय विश्लेषण , आपको साधुवाद !

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  2. इसे जारी रखें , हम जैसे नए ब्लोगर के लिए इतने सारे ब्लॉग के बारे में जानना अच्छा लग रहा है ..../

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  3. बहुत अच्‍छा विश्‍लेषण है .... अगली कडी का इंतजार रहेगा।

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  4. बहुत सुंदर चित्रण है

    सीखने को और

    जानने को मिल रहा है

    इसे मानना होगा।

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  5. आपका सहयोग चाहूँगा कि मेरे नये ब्लाग के बारे में आपके मित्र भी जाने,

    ब्लागिंग या अंतरजाल तकनीक से सम्बंधित कोई प्रश्न है अवश्य अवगत करायें
    तकनीक दृष्टा/Tech Prevue

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  6. बहुत सुन्दर विश्लेषण. काफ़ी ईमानदारी से किया जाने वाला काम काफ़ी ईमानदारी से निभा रहे हैं आप.

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  7. रोज पांच सात चिट्ठों की चर्चा करते हुए सभी को समेट लेना।
    आप तो एक निर्देशिका बनाते जा रहे हैं।
    हाँ आप ने प्रवीण त्रिवेदी जी को द्विवेदी कर दिया है।

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आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

 
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