बुधवार, 13 जनवरी 2010

वह शब्दों से ऐसे खेलता है,जैसे कोई भोला सा बच्चा अपनी माँ से खेलता हो ...

                            
 कहा जाता है कि समुद्र में जितनी गहराई तक डूबेंगे मोती मिलने की संभावना उतनी ही ज्यादा होगी .उसीप्रकार भाषा की गहराई में आप जितना ज्यादा डूबेंगे शब्दों से आपका लगाव उतना ही ज्यादा होता चला जाएगा . शब्दों के साथ खेलने की आदत यदि एक बार पर गयी तो समझ लीजिये भाषा आपकी चेरी हो जायेगी . शब्दों के साथ उसीप्रकार खेलिए जिसप्रकार कोई भोला सा बच्चा अपनी माँ के साथ खेलता है .यह एक साहित्यकार अथवा चिट्ठाकार के लिए बहुत ही आवश्यक है . क्योंकि आपके लेखन से आपकी भाषा का व्यापक विस्तार होता है .कुछ लोग कहते हैं कि हिन्दी बहुत कठिन भाषा है . वस्तुत: भाषा क्लिष्ट नहीं होती , भाषा में प्रयुक्त होने वाले शब्द परिचित या अपरिचित होते हैं । शब्द क्लिष्ट नहीं होता , यदि हमें किसी भाषा के किसी शब्द का अर्थ मालूम नहीं है , तो हमें उस शब्द से परिचय प्राप्त करना चाहिए ।

    कल अचानक  मेरी नज़र  गूंजअनुगूंज / GUNJANUGUNJ  पर प्रकाशित पोस्ट    भाषा की क्लिष्टता  पर पडी . आध्यात्मिक विषयों पर केंद्रित यह ब्लॉग सत्य,अस्तित्व और वैश्विक सत्ता को समर्पित एक प्रयास है : जीवन को इसके विस्तार में समझने और इसके आनंद को बांटने के इस अनूठे ब्लॉग में बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित बातें यदा-कदा पढ़ने को मिलती रहती है .
    इस  वर्ष जनवरी माह में अब तक इस अनूठे ब्लॉग पर तीन पोस्ट प्रकाशित हुए हैं . पहला पोस्ट दफ्तर की ज़िन्दगी  - दफ़्तर की जिंदगी कितनी निरस और उबाऊ होती है, इसका अहसास कराता है . दूसरा पोस्ट - वर्ष २००९ में प्रसिद्ध हस्तियों ने क्या पढ़ा ?  है, जिसमें बताया गया है कि हर वर्ष कुछ अच्छा लिखा जा रहा है । कुछ पुराना नए कलेवर और साज़-सज्जा के साथ पुन: प्रकाशित होता है । वर्ष २००९ में प्रसिद्ध हस्तियों ने इनमें से क्या पढ़ा, जो उन्हें पसंद आया ... इस पोस्ट में विभिन्न माध्यमों से संकलित सामग्री प्रस्तुत की गयी  है और तीसरा पोस्ट है भाषा की क्लिष्टता  जिसकी चर्चा आज परिकल्पना पर की जा रही है .

.इस पोस्ट में बताया गया है कि - "शब्दों की उत्पत्ति होती है और शब्द मर भी जाते हैं । किसी शब्द की व्युत्पत्ति का अध्ययन इटायमोलॉजी में किया जाता है । शब्द तब तक जिंदा रहता है, जब तक वह व्यवहार में लाया जाता रहता है । आज शहरों में बहुत से देशज शब्द विलुप्त प्राय: हो गए हैं; क्योंकि उनका शहरों में प्रचलन बंद सा हो गया है ."


 हिंदी ब्लॉगिंग का सदुपयोग करने वाले गिने-चुने लेखकों में से एक चिट्ठाकार श्री रवीश कुमार  का भाषा और शब्द की क्लिष्टता के सन्दर्भ में मानना है कि " शब्दों के प्रति लापरवाही भरे इस दौर में हर शब्द को अर्थ हीन बनाने का चलन आम  हो गया है . इस्तेमाल किये जाने भर के लिए ही शब्दों का वाक्यों के बीच में आना-जाना हो रहा है , खासकर पत्रकारिता ने सरल शब्दों के चुनाव के क्रम में कई सारे शब्दों को हमेशा-हमेशा के लिए स्मृति से बहार कर दिया है ."

हि‍न्‍दी के 'ई लेखकों' की चुनौति‍यां विषय पर कोलकाता वि‍श्‍ववि‍द्यालय के हि‍न्‍दी वि‍भाग में प्रोफेसर जगदीश्‍वर चतुर्वेदी का मानना है कि "हि‍न्‍दी 'ई' लेखकों की बहुत बडी तादाद है। इतनी बडी संख्‍या में कभी हि‍न्‍दी में लेखक नहीं थे। तकरीबन 11 हजार से ज्‍यादा ब्‍लॉग लेखकों के कई लाख सुंदर लेख नेट पर देखे जा सकते हैं। ये जल्‍दी पढ़ते हैं और तुरंत प्रति‍क्रि‍या व्‍यक्‍त करते हैं। हि‍न्‍दी गद्य के वैवि‍ध्‍य का यह सुंदर नमूना है। मैंने अपने एक लेख में हि‍न्‍दी के ई लेखन की तरफ कुछ आलोचनात्‍मक बातें लि‍खीं तो अनेक 'ई' लेखक नाराज हो गए। मैं उनकी नाराजगी से सहमत हूँ। उनके पास अपनी बात के पक्ष में सुंदर तर्क हैं। उनके सुंदर तर्कों से असहमत होना असंभव है। लेकि‍न 'ई' लेखन की कमि‍यों को हम यदि‍ आलोचनात्‍मक ढ़ंग से नहीं देखेंगे तो कैसे आगे अपना वि‍कास करेंगे ?"

माँ और बेटे की मानिंद निष्कपट शब्दों से खेलने वाले एक और ब्लोगर हैं अपने इस चिटठा संसार में नाम है अजित बडनेरकर .कहते हैं - उत्पत्ति की तलाश में निकलें तो शब्दों का बहुत दिलचस्प सफर सामने आता है। लाखों सालों में जैसे इन्सान ने धीरे -धीरे अपनी शक्ल बदली, सभ्यता के विकास के बाद से शब्दों ने धीरे-धीरे अपने व्यवहार बदले। एक भाषा का शब्द दूसरी भाषा में गया और अरसे बाद एक तीसरी ही शक्ल में सामने आया।


दि‍ल्‍ली वि‍श्‍ववि‍द्यालय की एसोसि‍एट प्रोफेसर सुधा सिंह के तेवर इस दिशा में कुछ ज्यादा आक्रामक दिखाई देते हैं . सुधा कहती हैं कि कोई भी अखबार या चैनल हिंदी  में आने से हिन्दी का भला नहीं करता . इन माध्यमों के लिए तो हिंदी एक उपरी आभूषण है .

हिन्दी वेबसाइट पर प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार -हिन्दी भाषा को संसार भर में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं मे से एक होने का सम्मान प्राप्त है और यह विश्व के 56 करोड़ लोगों की भाषा है। आँकड़े बताते हैं कि भारत में 54 करोड़ तथा विश्व के अन्य देशों में 2 करोड़ लोग हिंदीभाषी हैं। नेपाल में 80 लाख, दक्षिण अफ्रीका में 8.90 लाख, मारीशस में 6.85 लाख, संयुक्त राज्य अमेरिका में 3.17 लाख, येमन में 2.33 लाख, युगांडा में 1.47 लाख, जर्मनी में 0.30 लाख, न्यूजीलैंड में 0.20 लाख तथा सिंगापुर में 0.05 लाख लोग हिंदीभाषी हैं। इसके अलावा यू.के. तथा यू.ए.ई. में भी बड़ी संख्या में हिंदीभाषी लोग निवास करते हैं। विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में हिंदी का स्थान दूसरा है।

 हिंदी को समृद्ध कैसे किया जाये इस विषय पर कभी अनुनाद सिंह जी  ने प्रतिभास पर कहा था कि -" विकिपिडिया को संवारो, हिन्दी का भविष्य संवरेगा ." उनका मानना है कि   " दूसरे भी उसी की मदद करते हैं जो स्वयं अपनी मदद करता है। गूगल हिन्दी का अनुवादक नहीं ले आता यदि उसे हिन्दी में कोई क्रियाकलाप नहीं दिखता। इसी तरह आने वाले दिनों में (और आज भी) भाषा की शक्ति उसके विकिपीडिया पर स्थिति से नापी जायेगी। हिन्दी विकिपीडिया पर इस समय उन्नीस हजार से अधिक लेख लिखे जा चुके हैं। यह काफी तेजी से बहुत से भाषाओं को पीछे छोड़ते हुए आगे निकल गयी है। किन्तु अभी भी यह लगभग पचास भाषाओं से पीछे है। हिन्दी के बोलने और समझने वालों की संख्या को देखते हुए इसका स्थान प्रथम दस भाषाओं में होना ही चाहिये।"

     शब्दों को सहेजने की दिशा में एक विनम्र प्रयास मैंने भी  किया है शब्द शब्द अनमोल  के माध्यम से , किन्तु समयाभाव के कारण ब्लॉग पर ज्यादा पोस्ट नहीं दे पा रहा हूँ .मेरी पूरी कोशिश रहेगी की वर्ष-२०१० में कुछ सार्थक और महत्वपूर्ण शब्दों को लेकर आप  सभी के बीच आऊँ .


 
तो आइये! हिंदी के विकास में हम सभी पूरी सामूहिकता के साथ अपना अमूल्य योगदान देते हैं   और इसे अन्तर्जाल की प्रमुख भाषाओं में से एक बनने  की दिशा में अग्रणी भूमिका निभाते हैं ....

11 comments:

  1. "तो आइये! हिंदी के विकास में हम सभी पूरी सामूहिकता के साथ अपना अमूल्य योगदान देते हैं और इसे अन्तर्जाल की प्रमुख भाषाओं में से एक बनने की दिशा में अग्रणी भूमिका निभाते हैं ...."

    बिल्कुल सही आह्वान किया है आपने!

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  2. यह जानकर बहुत अच्छा लगा की हमारी हिंदी को संसार भर में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं मे से एक होने का सम्मान प्राप्त है और यह विश्व के 56 करोड़ लोगों की भाषा है।

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  3. जगदीश्वर चतुर्वेदी जी का सही कहना है कि'ई' लेखन की कमि‍यों को हम यदि‍ आलोचनात्‍मक ढ़ंग से नहीं देखेंगे तो कैसे आगे अपना वि‍कास करेंगे ?"

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  4. बिल्कुल सही,,
    मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामना . भगवान सूर्य की पहली किरण आपके जीवन में उमंग और नई उर्जा प्रदान करे...

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  5. अच्छी ज्ञानवर्धक और प्रेरक पोस्ट।

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  6. सचमुच प्रेरक है यह पोस्ट .../

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  7. प्रेरणा देती यह पोस्ट बहुत पसंद आई ..शुक्रिया

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  8. गूँजअनुगूँज का संदर्भ लेने के लिए धन्यवाद । हिंदी ब्लागों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ उसके भाषा अनुशासन को संयत करना होगा और ब्लाग पर हिंदी भाषा में हर प्रकार के विषयों को समेटना, संजोना होगा ताकि ब्लाग-लेखन मात्र उथला और मन-बहलाव का साधन मात्र बन कर न रह जाए ।

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  9. बहुत अच्छी पोस्ट है बहुत कुछ जाना और बहुत से लिन्क मिले।भाशा को सही करने की प्रेरना देती हुई पोस्ट के लिये धन्यवाद

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