मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

परिकल्पना फगुनाहट सम्मान- 2010 : सभी साथियों का आभार !

परिकल्पना फगुनाहट सम्मान- 2010 हेतु मत देने की समय-सीमा समाप्त हो चुकी है, कृपया अब आप अपना मत न दें ..... बहुमूल्य मत देने वाले सभी साथियों का आभार !

 परिणाम की घोषणा होली की पूर्व संध्या पर की जाएगी .तब तक आज से साढ़े आठ दशक पूर्व " मतबाला" में प्रकाशित इस फागुनी कविता का रसपान करें और आनंद लें फागुनाहट की मस्ती का -


















लंबा-टीका हाथ सुमिरनी गेरुआ कफनी धार !
पर नारी पर डीठ लगावें फैलावे व्यभिचार !

           भले जी बगुला भगत बने फिरते !!1!!
 
नया ब्याह बूढ़ों का भैया कहीं अगर रुक जाए !
सच मानो तो युवक पड़ोसी बिना मौत मर जाए !

              हाय बाबा का ब्याह करा दो राम !!2!!
 
कोट बूट पतलून डाटकार सिर पर रखते हैट !
समझे हमी मनुष्यजगत में, बाकी सब है "रॅट" !

                  भले तुम फ़ैट बने हो ये मामू !!3!!
 
दुराचार दूरी जाए देश से, चाहे नेता लोग !
तो बस एक-एक वेश्या से, कर लें शीघ्र नियोग !

                बाँस जब रहे न वंशी कहाँ बजे ?!!4!!
 
चेतगंज काशी में देखो ‘मण्डल’ एक महान।
भांति-भांति के भूषण बिकते, जहां खुले मैदान।

                    टका दे इच्छा पूरी कर लीजै।।5!!


ज्ञानी ध्यानी दास पहनते हैं तन पर कोपीन।
खडे+ घाट पर नजर लड़ाते उनके सुत शौकीन।

                     अजब है भोला बाबा की काशी।।6!!


कलकत्ते के धरमतला में अधरामृत की आस -
रखकर धरमधका खाते हैं कितने लक्ष्मी दास।

                   नई बीबी धर में ‘ग्वाला’ संग है।।7!!


पर्दा-‘सिस्टम’ बहुत बुरा है, इसको करके दूर।
संग लिए लेडी को घूमें नकली बने हुजूर।

                  भले दिन-रात फिरें चपलूसी में।।8!!
  • गौरी शंकर शर्मा


[ मतवाला, वर्ष-1, अंक-30, 15 मार्च, 1924 से साभार ]

साहित्य समय की सीमाओं में कभी नही बंधता। वह तो शाश्वत होता है। 1924 की इस साहित्यिक रचना को आज के परिवेश में  देखें। क्या 86 वर्ष पूर्व की धड़कनें आज आपके चतुर्दिक फैले  परिवेश में नही धड़क रही है ? आज की बात को साढ़े आठ दशक पहले ही रचनाकार ने जिस अन्त:दृष्टि से देख लिया था, वही अन्त:दृष्टि शाश्वत साहित्व की ‘‘संजय-दृष्टि’’ है ........!

10 comments:

  1. ऐसा महसूस हो रहा है की यह कविता आज के परिवेश की हो ....आपने सही ब्लॉग पर फगुनाहट ला दी है, आपका आभार !

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  2. नया ब्याह बूढ़ों का भैया कहीं अगर रुक जाए !
    सच मानो तो युवक पड़ोसी बिना मौत मर जाए !
    हाय बाबा का ब्याह करा दो राम !

    यह है फागुनाहट की सही मस्ती,आपका आभार !

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  3. बेहद महत्वपूर्ण प्रविष्टि ! स्थायी महत्व की रचना !
    अभिलेखागार से निकली ! आभार ।

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  4. '24' ki rachana lage, jyo likhkhi ho aaj,
    'gauri ji' ke daur ka, saabut abh samaaj..
    vahi fitarat bedhangee

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  5. गौरी शंकर शर्मा जी की फागुनी रचना पढ़कर आनन्द आ गया...

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  6. ये फागुनी कालजयी रचनायें पढ कर आनन्द आ गया । धन्यवाद

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  7. बहुत अच्छी जानकारी। धन्यवाद।

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  8. सच है, कुछ रचनाओं की प्रासंगिकता समय बदलने पर भी बनी रहती है.

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