सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

जब फागुन में रचाई मंत्री जी ने शादी...





"परिकल्पना फगुनाहट सम्मान-2010 "  हेतु नामित रचनाकारों क्रमश: श्री ललित शर्मा, अनुराग शर्मा और वसंत आर्य की रचनाओं की प्रस्तुति के अंतिम चरण में  हम आज प्रस्तुत कर रहे है मुम्बई, महाराष्ट्र से प्रेषित श्री बसंत आर्य की ---



















फागुन में मंत्री जी ने शादी रचाई
शादी के मंडप में
कमाल किया
और वधू के बजाय
मंगल सूत्र कुर्सी के गले में डाल दिया

अपनी धोती के छोर कुर्सी की टाँग से बाँध दिये

और उसके सात फेरे लिये
फिर बोले - मेरा एक्शन एकदम सही है
इसीके सपने मुझे रात दिन आते थे
मेरी असली प्रेमिका तो यही है

पंडित से बोले- आपका बहुत बहुत धन्यवाद

तहे दिल से शुक्रिया
जिनकी कुशल निगरानी मे
ये निष्पक्ष विवाह सम्पन्न हुआ
और ये जो आप मंत्र पढवा रहे थे
कसम से मुझे तो लगा
राष्ट्रपति मुझे स्वयं शपथ ग्रहण करवा रहे थे

तभी कोई बोला- मंत्रीजी

बराती भूख से बिलबिला रहे है
और खाने के लिए
बच्चों की तरह चिल्ला रहे हैं

मंत्री बोले-

आपका भी अजीब किस्सा है
अरे बराती कौन है यहाँ
ये तो हमारी महारैली मे आये
जुलूस का हिस्सा है
रैली खत्म हुई
अब सब अपने अपने घर जायें
और आप भी मेरा दिमाग न खायें

तभी दुल्हन बोली -मेरा क्या होगा?

मंत्रीजी बोले -
तू तो हमारे मेनीफेस्टो मे ही नही थी
तू किसी और पार्टी से टिकट ले ले
यानी किसी अन्य विवाह क्षेत्र से
नामांकन पत्र दाखिल कर दे
क्योंकि क्या पता
कौन तेरी माँग भर दे

करना पड़े तो

एड्वांस मे पेमेंट कर
और अपने विवाह प्रचार के लिए
किसी मैरेज ब्यूरो से काँटेक्ट कर

इन सबके बावजूद तुम्हे

बहुमत न मिले तो चिंता न कर
हम तुम्हारी जिन्दगी की नैया
अपनी पतवार से खेते रहेंगे
और तुमहे बाहरी समर्थन देते रहेंगे

यह सुन दुल्हन गुस्से से फूल गई

और आस पड़ोस सब भूल गई
बोली - अबे बाहरी समर्थन की औलाद
तू क्या बाहरी समर्थन से ही पैदा हुआ था
और हुआ था तो हुआ था
पर कुछ कर क्यों नही जाता
और नहीं कुछ कर सकत
तो शर्म से मर क्यों नहीं जाता

तो एक चमचा बोला-लड़की

मंत्रीजी का भला मान कि
इनके दिल में तेरे लिए
थोड़ा ही सही मगर प्यार है
और बाहर से ही सही
ये तेरी तकदीर बदलने को तैयार हैं
तो लड़की बोली- चमचे
हमारी तकदीर का क्या है
इसे तो हम अपने आप ही बदल लेंगे
लेकिन इस दो टके के नेता का क्या भरोसा
कुर्सी के लिए तो ये
अपने बाप तक को बदल देंगे.
  • बसंत आर्य
ध्यान दें -

 आपको यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि श्री ललित शर्मा जी की रचनाओं के प्रकाशन के बाद से ही चिट्ठाकारों के वोट प्राप्त होने शुरू हो गए थे, लेकिन वोटिंग लाईन अब शुरू की जा रही है यह चौबीस घंटे तक चलेगी . हालांकि  पूर्व में भेजे गए मतों  को भी इसमें शामिल कर लिया गया है इसलिए वे चिट्ठाकार अब वोट न दें जो पूर्व में दे चुके हैं . आप से विनम्र अनुरोध है कि २४ घंटे के भीतर हमें अपने सुझाव ravindra.prabhat@gmail.com पर भेजें या मोबाईल न. +919415272608 पर S.M.S. करें,  क्योंकि अंतिम निर्णय ले लेने के पश्चात किसी भी प्रकार के सुझावों पर विचार करना संभव नहीं होगा !

अब निर्णय आपको लेना है कि तीनों रचनाकारों की रचनाओं में सर्वश्रेष्ठ रचना कौन सी है ? जारी है वसंतोत्सव , मिलते हैं एक छोटे से विराम के बाद ..!

21 comments:

  1. सचमुच यही है नेताओं की सच्चाई, बसंत आर्य का यह व्यंग्य अत्यंत धारदार है !

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  2. बहुत ही सुंदर।
    मेरा वोट बसंत जी को।

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  3. Basant ji, wakai kamal likhte hain. Hamara vote buhi inhi ko jata hai.

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  4. मजेदार एवं धारदार रचना। काश, हमको भी इस शादी में जाने का मौका मिलता।
    बाकी दोनों रचना तो मैंने नहीं पढी, पर इस रचना पर तो अपना दिल आ गया है।

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  5. बहुत ही सुंदर व्यंग्य है यह !मेरा भी वोट बसंत जी को...

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  6. कविता और गीत पर नि:संदेह भारी पड़ रहा है यह व्यंग्य, मैं भी अपना वोट वसंत जी को देता हूँ

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  7. बिलकुल सही सवाल , ये सभी बाहरी समर्थन से ही पैदा होते है, तभी तो बिन पैंदे के होते है :)

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  8. हा हा हा होली पर आर्य जी का एक्शन भी एक दम सही है्रंगों के बहाने मन्त्रियों के चेहरों के रंगों को बाखूबी दिखाया है । बसंत जी की रचना सच ही होली की फुगुनाहट है । शुभकामनायें और धन्यवाद

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  9. वाह भाई , बसंत जी ने तो सही रूप निखारा है हमारे नेताओं का. उन्हें ही नहीं आपको भी बहतु बहुत बधाई क्योंकि आपने उनसे इतनी अच्छी रचना जो लिखवा ली

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  10. ये रचना भाई बसंत आर्य से हमने कवि सम्मेलनों में भी सुनी है. पर इसमे कविता कम उनका अभिनय ज्यादा होता है ? नेताओ को गाली देना ही हास्य है क्या ? मंच के सारे कवि नेताओ को टार्गेट करते हैं. कभी उन्हें कुछ और भी देखना और लिखना चाहिए

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  11. हास्य और व्यंग्य दोनो का सुंदर संयोग। फागुन के लिए एकदम फिट।

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  12. ''fagun me shadee rachai'' likh dene bhar se koi rachana faaguni nahi ho jati, isaka bhi dhyan rakhe. fagun me aane valee rachanaa ka adyopaant kaleval faguni hona chaahiye..

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  13. फागुन का जिक्र कविता की हेडिंग के अलावा फागुनी कंटेंट का अभाव ?
    भाई अच्छी कविता में हल्की सी कमी है कोई बात नहीं कोशिश जारी रहे भाई जी

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  14. कविता बहुत शानदार लगी.... हम वोट करेंगे....

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  15. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  16. हालाँकि हास्य व्यंग्य मेरा पसन्दीदा रस नही है, परंतु फिर भी ये रचना ऐसी नही है कि नजरअन्दाज की जा सके

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  17. ललित शर्मा जी को पुरस्कार जीतने के लिये हार्दिक बधाई... अग्रिम बधाई................

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