रविवार, 31 अक्टूबर 2010
हिम्मत बुलंद है तो मिलेगी तुम्हें मंजिल....
(ग़ज़ल )
जीना है एक-एक पल टटोलकर जियो
जब तक जियो प्रभात जिगर खोलकर जियो ।
हिम्मत बुलंद है तो मिलेगी तुम्हें मंजिल-
कदमों को मगर नापकर व तोलकर जियो ।
रह जायेगी बस याद तेरी इस जहान में -
कोयल की तरह मीठे बोल बोलकर जियो ।
दिल में खुलूश है तो शिकवे-गिले है क्या -
आँखों की लाज आंसूओं में घोलकर जियो ।
सच कहूं तो कामयाबी का वसूल है-
कानों के साथ-साथ नयन खोलकर जियो ।
() रवीन्द्र प्रभात
बहुत अच्छी गज़ल ..प्रेरणा देती हुई
जवाब देंहटाएंisi himmat per chale hain aaj tak
जवाब देंहटाएंhimmat ke rang hi aakashh ko pate hain
zindgi jine kaa aek bhtrin flsfaa mzaa aa gyaa . akhtar khan akela kota rajsthna
जवाब देंहटाएंअच्छी,सार्थक और सराहनीय प्रस्तुती...
जवाब देंहटाएंपूरी गज़ल सार्थक सन्देश देती हुयी। बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा गज़ल !
जवाब देंहटाएंप्रेरणा देती हुई अच्छी गज़ल,बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी गज़ल, बधाई।
जवाब देंहटाएंअच्छी गजल के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
अच्छी गज़ल
जवाब देंहटाएंमैं महा मिलन के क़रीब हूं
आपके ब्लॉग की चर्चा यहां भी है
जवाब देंहटाएंवाह, मतला व मक्ता एक ही शेर में---बहुत खूब....
जवाब देंहटाएंbahut sundar hai yah gazal, aabhaar !
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