बचपन में दो पंक्तियाँ पढ़ी थी, कि - " लीक-लीक गाडी चले, लीक ही चले कपूत ! लीक छोड़ तीनों चले, शायर, सिंह, सपूत !!"
हर व्यक्ति का जीवन अपने आप में स्वतंत्र है, चिंतन स्वतंत्र है, लक्ष्य भी स्वतंत्र होता है ! यह आवश्यक नहीं कि जिस प्रकार का जीवन पिछली पीढ़ी ने जिया, अगली पीढ़ी भी उसका अनुसरण करे ही ! करे भी क्यों ? एक पिता ने दु:ख सुख पाकर अपने बच्चे को अच्छा पढ़ा लिखा दिया तो वह पिता से अच्छा जीवन क्यों न व्यतीत करे ? अनुभव उसके पास है ! पिता ने जहां जिस उद्यम को पहुंचाया, वह तो पुत्र के लिए शुरुआत ही हुयी न ! उसे विकसित तो होना ही है !
ऐसा कहना है लखनऊ से प्रकाशित हिंदी दैनिक जन सन्देश टाईम्स के मुख्य संपादक डा. सुभाष राय जी का जिन्होंने वर्षों से चली आ रही पत्रकारिता के मिथक को नए-नए प्रयोग करके केवल तोड़ा ही नहीं है, अपितु ब्लॉग की महत्ता को अपने अखबार के माध्यम से प्रतिष्ठापित करने का साहस भी किया है !
इस सन्दर्भ में मैंने साहस शब्द का प्रयोग इसलिए किया कि ऐसे समय में जब ब्लॉग पर रचित साहित्य की प्रासंगिकता पर व्यापक विमर्श हो रहे हों और परस्पर विवादित टिप्पणियाँ आ रही हो एक राष्ट्रीय स्तर के अखबार पर ब्लोगर्स का दब दबा यह साबित कर रहा है कि हमारी अहमियत पांचवें स्तंभ के रूप में बनती जा रही है या यूँ कहें बन चुकी है तो शायद न कोई अतिश्योक्ति होगी और न शक की गुंजाईश ही !
यह अखबार अपने प्रारंभिक काल से ही प्रत्येक बुधवार को " ब्लोगवाणी" स्तंभ दे रहा है, जिसके अंतर्गत श्री जाकिर अली रजनीश के द्वारा हिंदी के वेहतर ब्लॉग को सामने लाया जाता है ! "उलटवांसी" स्तंभ के अंतर्गत हिंदी के लोकप्रिय ब्लॉग व्यंग्यकार की समसामयिक व्यंग्य रचनाओं को प्रमुखता के साथ प्रत्येक दिन प्रकाशित किया जाता है, इस स्तंभ के अंतर्गत अब तक श्री प्रेम जन्मेजय, अविनाश वाचस्पति, प्रमोद तांबट और मुझे स्थान दिया जा चुका है !
ज्ञान दत्त पाण्डेय के ब्लॉग "मानसिक हलचल " से "पहाड़ों-पठारों की नहीं सरपट वनों की सैर" पी. सी. रामपुरिया के ब्लॉग "ताऊ डोट इन" से " मिस समीरा रेड्डी की स्लिम एवं जीरो साईज उपन्यासिका "तथा श्री दिनेश राय द्विवेदी के ब्लॉग "अनवरत" से " वेहतर लेखन के सूत्रों की तलाश " को स्थान दिया गया है जो ब्लॉग के प्रति इस अखबार और अखबार के संपादक मंडल की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित कर रहा है !
पिछले रविवार से इस अखबार में मेरा एक नियमित साप्ताहिक स्तंभ " चौबे जी की चौपाल" शुरू हुआ है, जिसके अंतर्गत आप मुझे समसामयिक विषयों पर प्रत्येक रविवार को अलग-अलग रूप में पायेंगे !
क्यों है न यह ब्लोगिंग के सृजन को महसूसता एक अखबार ?
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