गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

हिंदी ब्‍लॉगिंग पर पहली पुस्‍तक की १५० प्रतियां प्रकाशन/लोकार्पण से पहले ही बिक गई हैं


आपके सहयोग से आप स्‍वयं एक नए कीर्तिमान की ओर अग्रसर हैं, यह हिंदी ब्लॉगिंग में ही नहीं, हिंदी साहित्य में भी पहली घटना है कि प्रकाशन में जाने से पूर्व ही एक हिंदी किताब की १५० प्रतियां बिक गयी हैं.....बुकिंग का यह क्रम लगातार जारी है............. पढ़ने में नए पैदा होते  इस रुझान  से अब आप देखते रहिए, पाठकों का ही भला होता रहेगा ... जल्दी कीजिए एक और सुनहरा ऑफर आपके समक्ष है ....

मैं बड़ी हूँ पहले आऊंगी ......................मैं छोटी हूँ बाद में गाऊंगी
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विगत दिनों "हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास" पुस्तक में नाम को लेकर हिंदी ब्लॉग जगत में अनेकानेक  स्‍थलों पर भय-भ्रम और भ्रान्ति की स्थिति देखी गयी, कई लोगों ने फेसबुक/ट्विटर और ब्लॉग इत्‍यादि स्‍थलो पर परस्पर पक्ष और विपक्ष में काफी टिप्पणियाँ कीं, आप पहले मुख्य बिन्दुओं ध्‍यान दीजिएगा :

(१) पैसे लेकर इतिहास में नाम दर्ज नहीं किया गया है, वर्तमान में लगभग 30000 ब्लॉगर हैं और सबके नाम का अलग से उल्लेख संभव नहीं है, क्योंकि प्रकाशन की अपनी एक लक्ष्‍मण रेखा होती है और लक्ष्मण  रेखा के भीतर रहकर ही लेखक और प्रकाशक को अपने दायित्व का निर्वहन करना होता है ! क्‍योंकि हिंदी का लेखक राम की सीता है।

(२) किताबें प्रकाशित होती है बेचने के लिए, न कि मुफ्त में बांटकर घर फूंक तमाशा देखने के लिए.... किताबें बेचने के लिए दुकानदार को कमीशन देना होता है ....यदि वह कमीशन रूपी  मलाई  पाठकों को मिल जाए तो इसे हिंदी का सौभाग्‍य समझने में कोई बुराई नहीं है। छूट रूपी  मलाई मिल रही है, देश भर में  सभी हिंदी  पाठकों को।  इसी का सुखद परिणाम है कि  ( ७४५/- मूल्य की किताबें ४५०/- में बेचकर ) हम तो गुनाह कर रहे हैं ? पर सभी चाहेंगे  कि यह गुनाह बार बार हर बार लगातार हो।

(३) आपको  आश्चर्य होगा कि प्रतिक्रिया स्वरूप हिंदी ब्‍लॉगिंग के जिन सेनानियों द्वारा इस आलाप का सस्‍वर पाठ किया जा रहा था। उन्ही लोगों ने किताब भी बुक कराई है ताकि उनके नाम किताब में अंकित हो सकें और हुआ भी है.....? जब आप पुस्‍तक की वह सूची देखेंगे जो विवादास्‍पद हो गई है, वही संवाद बनाने में भी कामयाब होगी।

(४) हालांकि यह छूट लोकार्पण तक यानी ३० अप्रैल तक जारी है, किन्तु अवधि बीत जाने के कारण केवल 17 अप्रैल २०११ तक बुक कराये गए ब्लॉगरों के ही नाम ही "हिंदी ब्लॉगिंग : अभिव्यक्ति की नई क्रान्ति "  में दर्ज हो सके हैं और ऐसे ब्लॉगरों  की संख्या को जानने के लिए एक प्रति आप भी आज ही बुक कर लीजिए। 

जो इस मलाई के जायके का अनुभव करने से चूक गए हैं, वे यहां पर तो चौहान नहीं रहेंगे क्‍योंकि हम फिर हाजि़र हैं एक और स्‍वर्णिम अवसर के साथ   : 

(५) स्वाभाविक है 17 अप्रैल के बाद किताब बुक करने के बावजूद भी कई क्रांतिकारियों के नाम सूची में शामिल न हो पाए  हों, इसलिए बीच का रास्ता निकालते हुए " हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास" पुस्तक का प्रकाशन कुछ दिनों के लिए टाल दिया गया है ताकि  १५ अप्रैल  से ३० अप्रैल तक बुक कराने वाले ब्लॉगरों की सूची दूसरी किताब में दर्ज हो सके ! पूरी सूची फाईनल होने के पश्चात ही दूसरी किताब आपको प्रेषित की जायेगी !

(६)  तो देर किस बात की ३० अप्रैल को हिंदी भवन, विष्णु दिगंबर मार्ग, नयी दिल्ली  में आयें और अपना नाम दर्ज करा जाएँ, जो नहीं आ सकते ४५०/- प्रकाशक को  निम्नलिखित तीन विकल्पों का चयन करते हुए भेजें :

1. आप मनीआर्डर से सीधे हिंदी साहित्य निकेतन, 16, साहित्‍य विहार, बिजनौर (ऊ.प्र.) 246701 के पते पर राशि भेज सकते हैं परंतु मनीआर्डर के पीछे संदेश में अपना पूरा पता, फोन नंबर ई मेल आई डी के साथ अवश्‍य लिखें।

2. तकनीक का लाभ उठाते हुए आप बैंक ऑफ बड़ौदा, बिजनौर के नाम हिन्‍दी साहित्‍य निकेतन के खाता संख्‍या 27090100001455 में नकद जमा करवा सकते हैं। इस सुविधा का लाभ उठाने के बाद जमा पर्ची का स्‍कैन चित्र मेल पर अपनी पूरी जानकारी के साथ अवश्‍य भिजवायें।

3. आप यह राशि हिन्‍दी साहित्‍य निकेतन के नाम ड्राफ्ट के द्वारा भी डाक अथवा कूरियर के जरिए भेज सकते हैं। चैक सिर्फ सी बी एस शाखाओं के ही स्‍वीकार्य होंगे।

आप जिस भी विकल्‍प का चयन करें, उसका उपयोग करने के बाद इन ई मेल पर सूचना भी अवश्‍य भेजने का कष्‍ट कीजिएगा। और पुस्‍तक पढ़ने के बाद मलाई के स्‍वाद का सफर अपने ब्‍लॉग पर सबसे बांटना जारी रखिएगा। जो मलाई आपको स्‍वादिष्‍ट लग रही है, निश्चित ही वो अन्‍यों को भी लगेगी क्‍योंकि यह मलाई जिस दूध से बनाई गई है, वो दूध सिंथेटिक नहीं है। मलाई के लिए दूध खरीदते समय इन मानकों का पूरी ईमानदारी से निर्वाह किया गया है। फिर भी आपको लगता है कि मलाई में वो स्‍वाद नहीं आ पाया है तो अगली बार गाय को दिए जाने वाले चारे की गुणवत्‍ता पर विशेष ध्‍यान रखा जाएगा और एक गाय निरीक्षक की नियुक्ति आप सबकी सलाह से की जाएगी।

& nukkadh@gmail.com  पर अपनी राय पुस्‍तक की बुकिंग राशि के साथ  जरूर भेजिएगा।

रविवार, 24 अप्रैल 2011

ऊपर सब टांके- टांका है और अन्दर से सरक गया समूचा तंत्र


चौबे जी की चौपाल

  
ऊपर सब टांके- टांका है और अन्दर से सरक गया समूचा तंत्र
  
                                             
आज चौबे जी बहुत परेशान हैं, कह रहे हैं कि हमको भी ठग दिया ससुरा, छ: महीना पाहिले जूता ख़रीदे थे साहू सिनेमा के पास वाली गली में , सोंचे कि साल-दुई साल तो चल ही जाएगा मगर हाई री बेईमानी, सरकारी दफ्तर की तरह तल्ला के ऊपर सब टांके- टांका है और अन्दर से सरक गया समूचा तंत्र . जब हम इसको खरीदे थे तो भ्रष्ट बाबू की तरह दांत निपोर के बोला था रामबदनवा कि चच्चा इसको लेई लो, चमकाए के रक्खो बस पानी से बचाना, खूब  चलेगा ....बताओ राम भरोसे ई सरासर धोखा है कि नाही ?
  
जूते की का गारंटी महाराज ?...जब पहनेंगे तो मचरै मचर करबे करेगा ...तल्ला है तो घिसबे करेगा और पहिन के नाचेंगे तो बगली से फटेगा नहीं का ? हर जूता की गारंटी अलग-अलग होती है ...जहां तक हमरे जानकारी में है जूता कई प्रकार का होता है , एक होता है चट्टी-चमरौधा दूसरे चमड़े वाली चटपटिया,एक होता है पंप जूता और एक बूट, एक मलेटरी वाला जूता भी होता है अऊर एक होता है जनाना जूती, लईकन के कपडहवा जूता की वेराईटी अलग होती है अऊर सेंडिल की वेराईटी अलग मगर जो मजा चांदी के जूते में है वह किसी जूते में नहीं , आज  पूरा का पूरा देश छुछमाछर होके एक दूसरे को चाँदी के जूते मार रहे है और जूता खाने वाला फुलि के कुप्पा हो रहा है  अईसे में  रामबदनवा अगर बहती गंगा में हाथ  धो ही लिया तो कवन गुनाह कर दिया महाराज.....? बोला राम भरोसे !
  
चांदी के जूते इतने पवित्र माने गए हैं का ? तपाक से पूछा धनेसरा
  
अरे बहुत पवित्र धनेसर ....बहुत पवित्र....सुन ई संबंध में एगो प्राचीन कहानी सुनाते हैं तुमको ....एक बार एक साहूकार का पुत्र  व्यापार करने  के लिए गांव से नगर  जाने लगा। जाने से पहले  वह अपने पिता  के पास आशीर्वाद के लिए गया। पिता ने पुत्र  को अपने कलेजे से लगाया और खटिया  के नीचे रक्खे बक्से  का ताला खोलकर एगो जूता निकाल कर दिया। जूता ईसा- वईसा नहीं चांदी का था। पिता ने कहा-बेटा! ई  रख लेयो । तुम्हरे  काम आएगा। तुम जब किसी परेशानी में पड़ो, तब इस चांदी के जूते का इस्तेमाल करना। तुम्हारे ही तरह जब हम्म  भी जब नगर जाने लगे थे तो हमरे बाबूजी ने ई जूता हमको दिया था । हमने तो  इसका भरपूर इस्तेमाल किया है और इस चांदी के जूते की मेहरबानी से मेरा काम कभी नहीं अटका बेटा, क्योंकि नगर के लोग  सिर्फ चांदी की चरण पादुका की जुबान ही समझते हैं। साहूकार की बात सुन उसके बेटे ने चांदी का जूता लिया और नगर के लिए प्रस्थान कर गया । नगर तक पहुंचते-पहुंचते उसे सांझ हो गई। नगर प्रहरियों ने नगर द्वार बंद कर दिए। साहूकार पुत्र का सारा कारवां बाहर ही रह गया। अब पुत्र को चोर-डाकुओं का डर सताने लगा। तभी उसे अपने पिता के दिए चांदी के जूते का खयाल आया। उसने अपने थैले से चांदी का जूता निकाला और सरकारी प्रहरियों को दिखा कर हवा में लहराया। साहूकार-पुत्र को अंदाज ही नहीं था कि चांदी का जूता ऎसा करिश्मा करेगा। प्रहरियों ने तुरन्त द्वार खोल दिए और साहूकार का कारवां नगर में प्रवेश कर गया। उस जमाने की परम्परा आज तक चली आ रही है। वही चांदी का जूता सात पीढियों से साहूकार के वंशजों के पास है। चांदी का जूता राजकाज में ही नहीं, राजनीति में भी खुबई चल रहा है आजकल, आज जेकरे पास है चांदी का जूता वोकरे पास  पद, पईसा, प्रतिष्ठा,प्रशंसा, कार, मोटर, कुर्सी सब..यानी ई बहुतई कारगर अस्त्र है, का समझे ?
  
एक दम्मै सही कह रहे हो बरखुरदार, चांदी के जूते की खनक से अच्छे-अच्छे हिल जाते हैं, जिसे चांदी के जूते खाने की आदत पड़ जाती है, उसे बढ़िया से बढ़िया पकवान भी नहीं भाता ...अब देखो न अपना ललूआ रबडी  भी खाता है तो  चारा में मिलाकर, राजा ने तो देश का बैंड ही बजा डाला चांदी के जूते खाने के चक्कर में, पवार की बात छोडिये उसके पास तो खाने के लाईसेंस मिले हुए हैं अऊर कलमाडी को तो चांदी के जूते खाने का ऐसा चस्का लग गया है भईया कि का कहें,अब तो उसी खेल-खेल में भी चाहिए चूँ-चूँ का मुरब्बा, कपिल सिब्बल के मंत्रालय में ही भांग घुली है ..पूरा मंत्रालय ही नशे में है ... चांदी के जूते के चक्कर में अन्ना के साथ-साथ पूरे देश को टोपी पहना रहे हैं आजकल .....अपनी दाढ़ी सहलाते हुए बोला रमजानी !
  
यह सब सुनकर चौबे जी से रहा नहीं गया, बोलै कि वो तो ठीक है रमजानी मियाँ की चांदी के जूते में बहुत पावर है मगर जब ओवरडोज हो जाता है तो फाक्काकसी निकल जाती है झटके में.....! अब देखो न sss चांदी के जूते खाने के चक्कर में मधु कोड़ा  की हालत अपने खलील मियाँ की तरह हो गयी है, वो ज़माना  लद गया जब खलील मियाँ फ़ाक्ता उड़ाया करते थे ...! का गलत कहत हाई रमजानी ?
एक दम्म सही s  s  s  s  s  s .......!
ई त s सही कहत हौ चौबे जी, मगर ई बताओ कि अपने देश में जूते खाने की लत पहिले नेता को पडी कि अफसर को ? गजोधर ने पूछा
नेता को ...!
ऊ कईसे ?
देख हम सबको चाहिए एकता अऊर नेतवन को चाहिए अनेकता .....हम सबको चाहिए रोटी अऊर नेतवन को चाहिए बोटी .....हम सबको चाहिए लत्ता अऊर नेतवन को चाहिए सत्ता .....हम सबको चाहिए मकान अऊर नेतवन को चाहिए आन-बान-शान........हमको चाहिए रोजगार अऊर नेतवन को चाहिए मौज-बहार ....इसी लिए हम छले जाते हैं अऊर नेतवन के  सर पे अफसर आसानी से चांदी के जूते मले  जाते हैं....नेता मान गए तो अफसर की भी चांदी ....भले ही देश की हो जाए बरबादी ....इसलिए गजोधर हमारा मानना है कि जूता खाने की लत पहिले नेतवन को पडी फिर अफसर को, क्योंकि पानी हमेशा ऊपर से नीचे की ओर गिरता है भईया .....यानी बाप बड़ा न भईया सबसे बड़ा रुपईया .....का समझे गजोधर ?
  
समझ गया चौबे बाबा ......जय हो भ्रष्टाचारी छुटभईये की....दिल खोलकर चांदी के जूते खाओ और चोर-चोर एक हो जाओ फिर तेरा कुछ भी नहीं बिगार पायेगा अन्ना, क्योंकि ८० प्रतिशत ईमानदार के पास नहीं है पावर.......अऊर २० प्रतिशत भ्रष्ट बना हुआ है सुपर पावर हमरे देश मा.....! गजोधर ने कहा
  
 इसी चर्चा के साथ चौबे जी ने चौपाल को अगले ईतबार तक के लिए स्थगित कर दिया ....!
 
रवीन्द्र प्रभात

शनिवार, 23 अप्रैल 2011

अखबारों में आयोजन/ सम्मान की चर्चा


कादम्बिनी में कई ब्लॉगरों के उल्लेख सहित वेबकास्टिंग आधारित आलेखकादंबनी के अप्रैल अंक में  दी गयी ३० अप्रैल के हिंदी साहित्य निकेतन परिकल्पना सम्मान समारोह  की सूचना, फिर ऑनलाईन पत्रिका हमारीवाणी ने दी इसकी विस्तृत जानकारी

आज दिनांक २३ .४ २०११ के प्रभात खबर दैनिक,पटना संस्करण में आयोजन/ सम्मान  की चर्चा प्रथम पन्ने पर है..विस्तृत सूचना तस्वीर सहित ३० के बाद आएगी...

परिकल्पना-ब्लॉगोत्सव   तथा  नुक्कड़ समूह से जुड़े सभी लेखक/सहयोगी गण का हम आह्वाहन करते हैं की वे भी अपने स्तर से स्थानीय अखबारों में विज्ञप्ति देकर इस कार्यक्रम को ऊँचाई प्रदान करे .....कार्यक्रम से संबंधित सारी सूचना यहाँ है-



बुधवार, 20 अप्रैल 2011

एक ऐसी पहल जो देगी हिंदी चिट्ठाकारों को नई पहचान

जी हाँ, ऐसी ही  एक पहल की जानकारी दे रहे हैं लोकसंघर्ष वाले सुमन जी ......लीजिये आप भी पढ़िए : 

हर ब्लॉगर की अपनी एक अलग पहचान है, कोई साहित्यकार है तो कोई पत्रकार, कोई समाजसेवी है तो कोई संस्कृतिकर्मी , कोई कार्टूनिस्ट है तो कोई कलाकार । हर ब्लॉगर के सोचने का अपना एक अलग अंदाज़ है, एक अलग ढंग है प्रस्तुत करने का । अलग-अलग नियम है, अलग-अलग चलन किन्तु फिर भी एक सद्भाव है जो आपस में सभी को जोड़ता है । नि:संदेह इसकी जड़ों में सहिष्णुता की भारतीय मर्यादा है, जो हमें सद्भावना की शिक्षा देती है । इन्हीं उद्देश्यों के दृष्टिगत.......




सोमवार, 18 अप्रैल 2011

आप भी आईये और अपने परिजनों को भी साथ लाईये

हिंदी चिट्ठाकारों का महासम्मलेन 


सम्मानित चिट्ठाकार वन्धुओं,

     जैसा की आप सभी को विदित है की आगामी ३० अप्रैल को हिंदी भवन, विष्णु दिगंबर मार्ग, नयी दिल्ली में हिंदी ब्लॉग जगत का वहु प्रतीक्षित परिकल्पना सम्मान-२०१० का महत्वपूर्ण आयोजन है,साथ ही इस अवसर पर  हिंदी चिट्ठाकारिता से संदर्भित  एक वृहद् और वहु आयामी पुस्तक (हिंदी ब्लॉगिंग : अभिव्यक्ति की नयी क्रान्ति)का लोकार्पण भी सुनिश्चित है, परिकल्पना समूह की नयी त्रैमासिक पत्रिका  वटवृक्ष तथा  मेरा नया उपन्यास ताकि बचा रहे लोकतंत्र का भी लोकार्पण होना है .......पहली बार इस महा आयोजन में समाज के प्रत्येक क्षेत्र के विशिष्ट अतिथियों का समागम हो रहा है .....

परिकल्पना परिवार की और से यह खुला आमंत्रण हिंदी के समस्त चिट्ठाकारों के लिए है...किन्तु दिल्ली के आसपास के ब्लॉगर गण के लिए विशेष है क्योंकि दिन है शनिवार और दूसरे दिन भी अवकाश , इसलिए कोई बहाना नहीं ....आप भी आईये और अपने परिजनों को भी साथ लाईये .....आप आयेंगे तो आयोजन से जुड़े समस्त सदस्यों का  उत्साह वर्द्धन होगा !  

कार्यक्रम से संवंधित विशेष जानकारी निम्नवत है :



  

रविवार, 17 अप्रैल 2011

अनशन पर अन्ना,सूख के काँटा हुए सिब्बल


चौबे जी की चौपाल 

अनशन पर अन्ना,सूख के काँटा हुए सिब्बल 

आज चौबे जी बहुत खुश हैं, कह रहे हैं कि  "राम भरोसे देखा ....अन्ना ने पिला दिया न पन्ना भ्रष्टाचारियों को ....इसको कहते हैं पहनई सब कोई, झमकई  कोई-कोई !"
सही कहत हौ महाराज " अनशन पर बईठे अन्ना अऊर सूख के काँटा हो गए सिब्बल....नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे घूम रहे हैं अन्ना के उलटवांसी से आहत होकर, बड़ा हेकड़ी बग्घार रहे थे पहिला दिन, अब हमरे अन्ना से कोई टेढ़िया के अऊर रेरियाके बतियायेगा तो यही हस्र होगा न s s s ....!" का गलत कहत हईं चौबे जी 
एक दम सही, डरता ऊ है न s s ...जिसको कुछ खोने का डर होता है, अब अन्ना के पास का है जो ऊ खो देगा ? जांगर चौक वाले बाबा जी कह रहे थे कि बेचारा मंदिर की एक कोठारिया में पडा रहता है दिन भर , एक ठे बक्सा है , जिसमें कपड़ा-लात्ता अऊर पीढिया  बगैरह  मडई के किनारे पडा रहता है, कमरा में एक ठे झिलंगा खटिया है और कुछ कसकूट के थरिया ....बाबा कहते हैं कि रतिया को सब खटिया के नीचे अंडसा दिया जाता है ....इसको कहते हैं असली संत ! बोला धनेसरा
तो इसका मतलब ई हुआ धनेसर कि अन्ना का जुत्ता भ्रष्टाचार के मुंह पर सटीक पडा है ?
हाँ चौबे बाबा, एमें  कौनो शक-सुबहा नाही....आज क अखबार देखो न s  s  बिक्लिक्सबो बोल दिया है कि सरकार कंठ तक भ्रष्टाचार में डूबी है ....घोर कलिकाल आ गया है बाबा ! जहां जाओ भ्रष्टाचारी डायन पीछा ही नहीं छोड़ती, काल्ह राशन कार्ड बनबाने के लिए हम गए रहे हाकिम के पास तो ऊ बोलै बड़ा बाबू से मिल लेओ काम हो जाएगा. जब हम गए बड़ा बाबू के पास अऊर कहै कि हमारा राशन कार्ड बनबाओ....तो जानते हो का कहा ससुरा ?"
का कहा धनेसर ?
पाहिले चाय पिलाओ ....!  घोर कलिकाल आ गया है बाबा !घोर कलिकाल आ गया है ....!
का करोगे  धनेसर सबका अपना-अपना रोना है ...केवल हम ही परेशान नहीं हैं आज भ्रष्ट भी ईमानदार  से परेशान है .......चनरिका ठेकेदार कह रहा  था कि बड़ा गंदा अधिकारी आ गया गुलटेन भाई कि का बताएं , पाप का घडा भर रहा है पता नहीं जनता इसके खिलाफ आन्दोलन क्यों नहीं करती, रोड टुडबा कर देख रहा है कि सही बनी है कि नहीं तब पेमेंट करा रहा है ! अब इसको का कहोगे ?  बहुत देर से चुप गुलटेनवा ने मुंह खोला
अरे ऊ छोडो, अपने गाँव के कॉलेजवा में सुना है कि का हो रहा है ?
का हो रहा है ?
अपना अकलुआ कह रह था कि " फ्लाईंग स्क्वायर पईसा-वईसा लेके खर्राटे ले रहे थे ५०/- रुपया में नक़ल हो जा रहा था, जब से अन्ना का प्रकरण आया है प्रोफ़ेसर साहब कह रहे हैं कि अब नक़ल में रिश्क बढ़ गया है इसलिए दुई सौ से कम में काम नहीं चलेगा, बोला बोला धनेसरा !
सबकी अपनी-अपनी प्रॉब्लम है ,  भारत की गरीबी को सबसे बड़ी प्रॉब्लम बताने वाला एक डाकू टाईप बन्दा कल बता रहा था कि मैं और मेरे साथियों ने बड़ी मुश्किल से एक बस को लूटा , मगर हाय री हिन्दुस्तान की गरीबी पूरी बस से केवल अड़तीस हजार ही जुट पाए,  अब थानेदार को लूटने के एवज में पचास हजार कौन दे इसलिए मैंने सारे पैसे यात्रियों को लौटा दिए ...क्या करोगे धनेसर, सबकी अपने-अपनी प्रॉब्लम है !वैसे  नेतबन की नींद उचट गयी है जन लोकपाल के नाम पर ...कह रहे हैं ससुर कि संसदीय कार्यों में ई जनता की दखलन्दाजी ठीक नाही, अब ई बताईये कि जनता अगर फाईनल रिपोर्ट लगा दी... तब का होगा ?
वही होगा जो मंजूरे खुदा होगा .....अपनी दाढ़ी सहलाते हुए बोला रमजानी
चौपाल ठहाकों में तब्दील हो गया और चौबे जी ने चौपाल को अगले  ईतवार  तक के लिए स्थगित कर दिया !

रवीन्द्र प्रभात
(दैनिक जनसंदेश टाईम्स / १७ अप्रैल२०११ )  

मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

जल्दी कीजिये एक दिन शेष फिर आप बन जायेंगे विशेष




(१) पुस्तक का नाम : हिंदी ब्लॉगिंग : अभिव्यक्ति की नयी क्रान्ति
यह पुस्तक अविनाश वाचस्पति और रवीन्द्र प्रभात के द्वारा संपादित है
 मूल्य : 495/- ( डाक खर्च अलग से )
प्रकाशक : हिंदी साहित्य निकेतन, 16, साहित्‍य विहार, बिजनौर (ऊ.प्र.) 246701

(२) पुस्तक का नाम : हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास
लेखक का नाम : रवीन्द्र प्रभात
मूल्य : 250 /-( डाक खर्च अलग से)
प्रकाशक : हिंदी साहित्य निकेतन, 16, साहित्‍य विहार, बिजनौर (ऊ.प्र.) 246701

राम नवमी के अवकाश के कारण इन दोनों पुस्तकों पर विशेष छूट का लाभ प्राप्त करने का एक और मौक़ा दिया गया है  प्रकाशक के द्वारा .......अब १२ नहीं १३ अप्रैल तक आप बुक करा सकते हैं .....!


विशेष सूचना : 13 अप्रैल 2011 तक बुकिंग करवाने वाले ब्‍लॉगरों के नाम, ब्‍लॉग पते और ई मेल पते पुस्‍तक में बिना किसी अतिरिक्‍त भुगतान के शामिल/ प्रकाशित किए जायेंगे। 


रुपये 450/- केवल भेजने के लिए आप अपनी सुविधानुसार निम्‍नलिखित तीन विकल्‍पों में किसी एक का चयन कर सकते हैं
1. आप मनीआर्डर से सीधे हिंदी साहित्य निकेतन, 16, साहित्‍य विहार, बिजनौर (ऊ.प्र.) 246701 के पते पर राशि भेज सकते हैं परंतु मनीआर्डर के पीछे संदेश में अपना पूरा पता, फोन नंबर ई मेल आई डी के साथ अवश्‍य  लिखें।
2. तकनीक का लाभ उठाते हुए आप बैंक ऑफ बड़ौदा, बिजनौर के नाम हिन्‍दी साहित्‍य निकेतन के खाता संख्‍या 27090100001455 में नकद जमा करवा सकते हैं। इस सुविधा का लाभ उठाने के बाद जमा पर्ची का स्‍कैन चित्र मेल पर अपनी पूरी जानकारी के साथ अवश्‍य भिजवायें।
3. आप यह राशि हिन्‍दी साहित्‍य निकेतन के नाम ड्राफ्ट के द्वारा भी डाक अथवा कूरियर के जरिए भेज सकते हैं। चैक सिर्फ सी बी एस शाखाओं के ही स्‍वीकार्य होंगे।
आप जिस भी विकल्‍प का चयन करें, उसका उपयोग करने के बाद इन ई मेल पर सूचना भी अवश्‍य भेजने का कष्‍ट कीजिएगा
giriraj3100@gmail.com, ravindra.prabhat@gmail.com & nukkadh@gmail.com पर जरूर भेजिएगा।


ज्ञातव्‍य हो कि उपरोक्त दोनों पुस्तकों का सम्मिलित मूल्य है रुपये. 745/- किन्तु  लोकार्पण से पूर्व यानी दिनांक २५.०४.२०११ तक संयुक्त रूप से दोनों पुस्तकों की खरीद पर डाक खर्च सहित रू. 450/- ही देने होंगे !

ऑर्डर सीधे प्रकाशक : हिंदी साहित्य निकेतन, 16, साहित्‍य विहार, बिजनौर (ऊ.प्र.) 246701 के नाम भेजना है !

किसी प्रकार की शंका होने पर ई मेल भेजने अथवा फोन से बात करने पर हिचकिचाएं मत।

विशेष सूचना : 13 अप्रैल 2011 तक बुकिंग करवाने वाले ब्‍लॉगरों के नाम, ब्‍लॉग पते और ई मेल पते पुस्‍तक में बिना किसी अतिरिक्‍त भुगतान के शामिल/ प्रकाशित किए जायेंगे। 

इस सूचना को ब्‍लॉगहित में सबके साथ साझा कीजिए।

रविवार, 10 अप्रैल 2011

है मुखर माफिया, प्रखर चोर भी



व्यंग्य


चौबे जी की चौपाल में 
( दैनिक जनसंदेश टाईम्स / १०.०४ .२०११ ) 

है मुखर माफिया,प्रखर चोर भी 

आज चौबे जी सुबह से ही बैठे हैं पिन्डोगी बाबा के चबूतरा पर , एक दिन के उपवास पर जो हैं । इसलिए नहीं कि भगवान से उनका कोई नाता है या फिर वे परलोक सुधारने के चक्कर में हैं। कहते हैं चौबे जी कि ये लोक तो चमची मार कर मजे से कट गया। अगले लोक में भी कोई न कोई चमचा प्रेमी मिल ही जाएगा। भगवान के नाम पर तो सब उपवास रखते हैं कभी कुकर्मियों के नाम पर उपवास रखते सुना है ? देश के रखवालों ने ऐसी भरी तिजोरी के हिल गया पूरा हिन्दुस्तान, ससुर खाए तो खाए स्विश बैंक में भी ले जाकर भर आये ...नेता भगवान से भी ज्यादा ताक़तबर हो गया है राबनवा की तरह , भाई पूजा उसी की होती है जो ताक़तबर होता है .... नेता प्रगति का मार्ग प्रशस्त करता है। तरक्की के दरवाजे खोलता है। धन कमाने के नये.नये तरीके अपनाता है। रिश्वत के रेट बढ़ा देता है या कमीशन का परसेंटेज बढ़ा देता है। गबन करने की जुगाड़ लगाता या कोई बड़ा घोटाला करने की फिराक में रहता है। इससे व्यवस्था में गति बनी रहती है। इसी को पढ़े लिखे लोगों की भाषा में विकास कहते हैं। इतना कहकर चौबे जी ने हवन कुंड में घी डालते हुए कहा -

ओम श्री कुर्सिये नमः।।

माफ़ करना भगवान् ...यह हवन आज अन्याय और कुकर्म करने वाले देश के नेताओं को समर्पित है , सो तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं यहाँ । चौबे जी ने मन ही मन कहा

कलयुग के भगवान तुम्हारी जय हो ! तुम्हारे पास चमचमाती कार है, आलीशान बंगला है ढेर सारा रूपया है ... लजीज व्यंजन खाते हो ... विदेशी शराब और अर्द्धनगन सुन्दरियां तुम्हारी शाम को हसीन बनाती है।तुम्हारी कावलियत तुम्हारे पुरषार्थ की पृष्ठभूमि है ....कौन है इस जग में भूप जो तुम्हारी नंगई को नगा कर दे , जो तुम्हें नंगा करने की सोचेगा खुद नंगा हो जाएगा । आदमी सादा जीवन की विचारधारा का पैरोकार होता है इसलिए तुम्हें जी खोलकर लूटने का अधिकार होता है , तुम्हारी महिमा अपरंपार है नेताओं ।इतना कहकर चौबे जी ने हवन कुंड में दुबारा फिर घी डालते हुए कहा -

ओम श्री मुद्राय नमः।।

तभी धनेसरा ने चुप्पी तोड़ी और बोला कि महाराज, अण्णा ने देश की राजधानी में आमरण अनशन पर बईठ के देश के गद्दारों को ललकारा है , आज़ादी की दूसरी लड़ाई शुरू हो चुकी है इसीलिए हम भी रख लिए उपवास एक दिन के लिए !

बहुत अच्छा किया भाई, मगर ये तो बता कि ये अण्णा कौन है ? तपाक से बोला बटेसर

गाँधी की विरासत उनकी थाथी है। कद-काठी में वह साधारण ही हैं। सिर पर गाँधी टोपी और बदन पर खादी है। आंखों पर मोटा चश्मा है, लेकिन उनको दूर तक दिखता है। इरादे फौलादी और अटल हैं। भारत-पाक युद्ध के दौरान उन्होंने मौत को भी धता दे दी थी। उनकी प्लाटून के सारे सदस्य मारे गए थे। ऐसी शख्सियत है किसन बाबूराव हजारे की। प्यार से लोग उन्हें अन्ना हजारे बुलाते हैं। उन्हें छोटा गाँधी भी कहा जा सकता है।चौबे जी ने कहा

वे आजकल क्यों बईठे हैं अनशन पर ? पूछा गजोधर

अन्ना आजकल भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं। वह गुस्से में हैं। उनकी चेतावनी से फिलहाल केंद्र सरकार हिल गई है। पहले भी वह महाराष्ट्र सरकार के पांच मंत्रियों की बलि ले चुके हैं। प्रधानमंत्री ने अन्ना से इस बारे में बातचीत की है। आश्वासन भी दिया है, लेकिन अन्ना तो अन्ना हैं, नेता तो है नहीं जो अपनी बातों से मुकर जायेंगे । उन्होंने कहा है कि ठोस कुछ नहीं हुआ तो वह दिल्ली को हिला देंगे। अन्ना ने आज तक जो सोचा है, उसे कर दिखाया है। उन्होंने शराब में डूबे अपने पथरीले गाँव रालेगन सिद्धि को दुनिया के सामने एक मॉडल बनाकर पेश किया। रामराज के दर्शन करने हैं तो उसे देखा जा सकता है। इस काम के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से भी सम्मानित किया। सूचना के अधिकार की लड़ाई में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चौबे जी ने कहा

तभी अपनी जिज्ञासा को शांत करने के उद्देश्य से पूछ बैठे पिन्डोगी बाबा कि ई बताओ चौबे जी -"रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा ....?"

फ़ायदा है महाराज...अगर यही सोच गांधी जी की होती तो आज हम आज़ाद नहीं होते ....फर्क सिर्फ इतना है कि उस समय हम विदेशियों से लडे थे आज अपने देश के कुकर्मियों से लड़ने जा रहे हैं यानी आज़ादी के दूसरी लड़ाई है यह ....! चौबे जी ने कहा

फिर राम भरोसे से मुखातिव होते हुए बोले कि कुछ भजन-कीर्तन भी हो जाए ?

हाँ-हाँ भजन-कीर्तन के लिए हारमोनियम, ढोलक, झाल-मजीरा सब लाए हैं हम अपने साथ और पूरी मंडली भी ....पान के गुलगुली मुंह में दबाये पिच्च से फेंकते हुए बोला राम भरोसे ।

सभी मिलकर गाने लगे -

" दाल काली भयो, कोष खाली भयो .....जल गयो नोट के होलियाँ .....

कुछ तुम्हारी लगी बोलियाँ, कुछ हमारी लगी बोलियाँ !

है मुखर माफिया और प्रखर चोर भी....सबकी चांदी हुयी हर तरफ शोर भी

हो गया फिर से सत्ता का द्रौपदीकारण.....और दुर्योधन से कान्हा का गठजोड़ भी

नेता की जय कहो......आओ पूजा करो

पाँव उनके धरो देवियाँ ....कुछ तुम्हारी लगी बोलियाँ, कुछ हमारी लगी बोलियाँ !"

रवीन्द्र प्रभात  

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

यह क्षण मेरे लिए अत्यंत पीड़ादायक है !

उत्तर छायावाद के प्रवर्तक कवि और मेरे गुरुदेव कविबर आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री बृहस्पतिवार की देर रात  अंतिम सांस लेते हुए सदा-सदा के लिए चिरनिद्रा  में सो गए। गुरुदेव लगभग दो माह से बीमार चल रहे थे  !  दो सप्ताह पूर्व ही यहां के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एसकेएमसीएच) में स्वास्थ्य लाभ लेने के बाद वापस अपने घर 'निराला निकेतन' लौटे थे। यह क्षण मेरे लिए अत्यंत पीड़ादायक है !

आचार्य जी के निधन के साथ ही उत्तर छायावादी साहित्य और कविता की लगभग साढ़े नौ दशक से निरंतर कायम एक अध्याय का आज अंत हो गया। 1916 में गया जिले के मैग्राउर्फ मायाग्राम गांव मे एक साधारण ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने वाले आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री वर्ष 1939 में मुजफ्फरपुर संस्कृत महाविद्यालय में संस्कृत शिक्षक के रूप में आये और मुजफ्फरपुर के ही होकर रह गए थे। 5 जनवरी 1953 को संस्कृत महाविद्यालय से अवकाश ग्रहण कर शास्त्री जी ने राम दयालु सिंह महाविद्यालय में हिन्दी और संस्कृत विभागाध्यक्ष के रूप में अपना योगदान दिया और 1978 में यहां से अवकाश ग्रहण किया। अपने 96 वर्ष के उम्र तक पहुंचने के बाद भी आचार्य शास्त्री जी ने अपनी लेखनी को जारी रखा था। आचार्य शास्त्री ने 1938 में 'काकली' नामक संस्कृत काव्य संग्रह की रचना कर साहित्य जगत में अपनी अलग पहचान बनाई। लगभग 90 हिन्दी और संस्कृत में कविता, गीति नाटय़ महाकाव्य आदि पुस्तकों की रचना कर वे एक मूर्धन्य साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हो गए थे।


1935-1945 के बीच आचार्य शास्त्री ने 55 कहानियां भी लिखीं। इनके साथ ही उन्होंने कई पुस्तकों और पत्रिकाओं का संपादन भी किया। उन्होंने संस्कृत और हिन्दी की दर्जनों पुस्तकों की रचना की थी। इसके लिए उन्हें दयावती पुरस्कार, सवरेच्य प्रथम राजभाषा सम्मान, राजेन्द्र शिखर सम्मान, भारत-भारती सम्मान आदि पुरस्कारों से भी नवाजा गया। अचार्य शास्त्रीजी के निधन की खबर से साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई। उनके अंतिम दर्शन के लिए मुजफ्फरपुर के साहित्य प्रेमियों की भीड़ उनके आवास 'निराला निकेतन' में उमड़ पड़ी। जिनको कछु नहीं.. झा आजाद के मुख्यमंत्रित्व काल का है। शास्त्री जी को बिहार रत्न से सम्मानित किया गया था, एक लाख रुपये की सम्मान राशि के साथ। सम्मान समारोह में कही गयीं शास्त्री जी की दो पंक्तियां उनकी ईमानदार अभिव्यक्ति की साखी की नाई आज भी साहित्यप्रेमियों के बीच बारम्बार उद्धृत होती हैं- मैं आया नहीं हूं लाया गया हूं, खिलौने देकर बहलाया गया हूं। और तमाम पल्रोभनों को एक झटके-से नकारने की यह अदा जानकी जी की मौलिक अदा थी, इसे उन्होंने साबित किया बाद के दिनों में पद्मश्री सम्मान को ठुकराकर। साफ-साफ कहा कि मुझे इसकी जरूरत नहीं, नयी पीढ़ी को इसकी ज्यादा दरकार है। बेवजह नहीं कि जानकी बल्लभ शास्त्री से मिलने वालों को अचानक कबीर याद हो आते- चाह गई चिन्ता गई मनुवा बेपरवाह, जिनको कछु नहीं चाहिए वो ही शहंशाह। हिंदी साहित्य में छायावाद के अवसान के बाद जो रिक्तता आई थी उसकी भरपाई करनेवालों में बच्चन, नरेंद्र शर्मा, अंचल, दिनकर और नेपाली के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण नाम जानकी बल्लभ शास्त्री का भी था। शास्त्री जी का जाना इस मायने में हिंदी की एक गौरवशाली काव्य परंपरा के आखिरी स्तंभ का ढहना भी है। शास्त्री जी के साहित्यिक अवदान पर बहुत र्चचा हो चुकी है, बहुत अभी बाकी है। एक गद्यकार के रूप में उनके उपन्यास 'कालिदास' को और उनके संस्मरण 'एक असाहित्यिक की डायरी' को हिन्दी साहित्य का इतिहास सम्मान और श्रद्धा के साथ रेखांकित करता रहेगा। हिंदी समाज अगर आज हिंदी को साठ से ज्यादा उत्कृष्ट कृतियों का तोहफा देनेवाले जानकी बल्लभ शास्त्री का अनुग्रह जानता और मानता है तो यह सर्वथा स्वाभाविक है। मगर शास्त्री जी को अमरता प्रदान करते हैं उनके गीत जो सामान्य जन की जुबान पर लोकगीतों की तरह काबिज देखे जा सकते हैं। मेघगीत की इन पंक्तियों के जरिए उनके संपूर्ण काव्य-व्यक्तित्व की अनुगूंज हिंदी पट्टी में पाश्र्व संगीत की तरह लगातार बजती रही है और अनंत काल तक बजती रहेगी- 'ऊपर ऊपर पी जाते हैं जो पीने वाले हैं, कहते ऐसे ही जीते हैं जो जीनेवाले हैं'।

उनके निधन से हिंदी साहित्य की अपूरणीय क्षति हुयी है जो शायद कभी भी भरपाई न हो पाए ! गुरुबर को परिकल्पना परिवार की विनम्र श्रद्धांजलि !

मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

सामूहिकता के साथ इस पहल का समर्थन अवश्य करें


'' हो गयी हर घाट पर पूरी व्यवस्था , शौक़ से डूबें जिसे भी डूबना है '' दुष्यंत ने आपातकाल के दौरान ये पंक्तियाँ कही थी , तब शायद उन्हें भी यह एहसास नहीं रहा होगा कि आनेवाला समय और ज्यादा भयावह होगा भारतीयों के लिए ......!

 भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रसिद्द सामाजिक कार्यकर्त्ता अन्ना का आज  से  आमरण  अनशन  शुरू  हो  चुका  है  .......आज़ादी के बाद पहली बार भ्रष्टाचार को लेकर इतने बड़े स्तर पर कोई प्रयास किया जा रहा है. इस पवित्र सामूहिक महा अभियान में  मैं भी पूरी भावनात्मकता के साथ शामिल हूँ ....!


 आज एक दिन का उपवास रखकर मैं भी समर्थन कर रहा हूँ इस पहल का  ... यदि आप दिल्ली में हैं तो अवश्य शामिल हों (जंतर मंतर )अनशन स्थल पर अन्ना हजारे के साथ और यदि आप दिल्ली के बाहर हैं तो कम से कम एक दिन का उपवास रखकर  पूरी सामूहिकता के साथ इस पहल का समर्थन अवश्य करें !  

......ये रात सन्नाटा बुनेगी इसलिए -
कुछ  सुबह, कुछ दोपहर की बात हो !

रविवार, 3 अप्रैल 2011

पीटने-पटकने में माहिर हैं हम


चौबे जी की चौपाल
( दैनिक जनसंदेश टाईम्स / ०३ अप्रैल २०११  / रविवार )

पीटने-पटकने में माहिर हैं हम

आज चौबे जी की चौपाल लगी है राम भरोसे की मरई में, चुहुल भी खुबई है आज .

बात ई है महाराज,कि पटकने-पटकने में फर्क होता है , सार्वजनिक रूप से किसी को पटको तो इन्डियन पैनल कोड के तहत धारा ३२३ लगा देती है हमरी लोकल पुलिस , गाली दो तो ५०४ लगा देती है , मगर मोहाली के मैदान में धारा-उपधारा की परवाह किये बगैर पुलिस भी खुबई गरिया रही थी पाकिस्तानी प्लेयर को और जहां तक पीटने का प्रश्न है तो मैदानमा में भारत के ११ खिलाड़ी एक साथ मिलकर पीट रहे थे ससुर एक-एक करके पाकिस्तानियों को और किसकी मजाल जो हमरे प्लेयर पे धारा लगाए ...फिल्डवा के बाहर सटोरिये वसूल रहे थे फीस और फिल्डवा के भीतर शाहिद अफारिदिया के छुपाये छुप नहीं रही थी खीस.....का गलत कहत हईं बटेसर ?

एक दम्मै सही बात बतिया रहे हो गुलटेन, हम तो बस इतना जानते है कि पीटने-पटकने में हम हिन्दुस्तानियों का जवाब नहीं , दिया घुमाके बाहे-बाहे....जियो खिलाड़ी बाहे-बाहे !

ये हुई न बात.......! पीटने-पटकने में जो हारता है वह बन्दर होता है और जो जीतता है वही सिकंदर होता है , अपनी चुप्पी तोड़ते हुए बोला राम भरोसे कि काल्ह इन्डियन टीम ने जैसे ही पटका पाकिस्तान को दर्शक दीर्घा में उकडू बैठे मनमोहन मुस्कुराए और बेचारा गिलानी मुरझा गए छुईमुई की तरह, सोचै कि का जबाब देंगे अब पाकिस्तानी सेना के चीफ को , कैसे कहेंगे कि हिन्दुस्तानियों ने हमें रगेद-रगेद के पीटा है ...! ई रहमान मल्लिक ने सट्टे की बात उछाल कर अच्छा नहीं किया अब तो हम अपने देश में जाकर मुंह दिखाने के काबिल ही नाहे रहे , अफारिदिया ने कटबा दिया हमरी नाक .... गजोधर ने कहा !

अब खिशियानी बिल्ली खंबा तो नोचेगी ही , जरूर कहेंगे पाकिस्तानी कि बिक गए होंगे ससुर सटोरिये के हाँथ...सट्टा खेलना तो उनका पुराना धंधा है ... दाऊदवा से  बरहन कोई सट्टेबाज होगा दुनिया में ? बटेसर ने उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा !

तभी गुलटेनवा को रहा नहीं गया बोला- ई सट्टा का होता है, हमरे कछु समझ में नाही आई रहा ?

अरे, इतना भी नहीं जानते हो कि हाई टेक जुआ को सट्टा कहा जाता है हमरे देश मा, जैसे-जसे दुनिया की चौदह क्रिकेट टीमें अपना बोरिया बिस्तर बाँध के रफूचक्कर हो रही है , वैसे-वैसे सटोरियों का मुनाफ़ा उफान पर है । क्रिकेट खिलाड़ी उधर मैदान में अपने बैट-बल्ले सम्हालने में लगें हैं और इधर सटोरिये दे रहे हैं गच्चा हमरी तोहरी अंखिया में । बटेसर ने कहा !

राम भरोसे से रहा नहीं गया बोला - तब तो क्रिकेट और सट्टे दोनों हैं एक ही थैले के चट्टे-बट्टे ! दोनों हो गए हैं चोर-चोर मौसेरे भाई, एक को छींक आती होगी तो दूसरा बीमार पड़ जाता होगा ...?

हाँ राम भरोसे , अब तो फर्क करना भी मुश्किल हो गया है कि आजकल क्रिकेट में सट्टा है या सट्टा में क्रिकेट.......... अब कौन समझाये रहमान मल्लिक को कि पाकिस्तान में जब हर तरफ घुसी पडी है बेईमानी,नेता,आतंकी एक साथ मिलकर कर रहे हैं मनमानी तो क्रिकेटरों पर बंदिश क्यों भईया ? बेचारा नहीं कमाएगा तो खायेगा का ? आखिर वर्ल्डकप चार साल के बाद जो आता है। बोला बटेसर - अपने हफीज भाई कह रहे थे कि पूरे विश्व की क्रिकेट के खेल पर सट्टा एशियाई देशों में अधिक लगता है और अपने देश में इसके स्त्रोत अधिक हैं। मतलब समझे कि फिर से समझाएं और महाराज आपको कुछ और बातें बताएं ?


हाँ-हाँ बताओ बचवा, बहुत पते की बात बता रहे हो ! चौबे जी ने कहा

बात ऐसी है महाराज कि अब सट्टे के धंधे में पहले बाला रिश्क भी नहीं है कि पुलिस दौडाए तो खिड़कियों से कूद कर टांग टूडवा लो ...अब तो भैया पुलिस भी अन्य सम्मानित खेलों की तरह देने लगा है सट्टे को संरक्षण ! पूर्ण संरक्षण में किसी भी गुप्त स्थान पर बैठकर आधुनिक गजेट्स के सहारे सटोरिये दुनिया का अपना कोई भी टुर्नामेंट सम्पन्न कर ले सकते हैं।


ई बात है ? बोला गुलटेनवा,यानी जय बोलो सटोरियों की !


एक दम सही ....... आजकल ई देश में दोनों वर्ल्डकप एक साथ चल रहे है, जैसे-जैसे वर्ल्डकप के शेष मैच परवान चढ़ेंगे, सटोरियों की बल्ले-बल्ले होती चली जायेगी ! बहुत देर से चुप गजोधर ने अपनी चुप्पी तोड़ी और कहा कि इसका मतलब है क्रिकेट से ज्यादा ताकतबर है सट्टा ?


हाँ गज़ोधर भईया, क्रिकेट में कोई मैच बिना फिक्सिंग के भी हो सकता है यह मानना अब कठिन लगता है। सच तो यह है कि यह खेल अब खेल नहीं रहा बल्कि व्यापार हो गया है। व्यापार में जिस तरह वस्तु बेचने के लिये तमाम तरह का प्रचार किया जाता है वैसा ही क्रिकेट के खिलाड़ियों का हो रहा है आजकल । हीरा-पन्ना-सोना के दाम फेल है खिलाड़ियों के आगे !

इतना सुनते ही गुलटेनवा के चहरे पर लालिमा दौर गयी, बोला चौबे बाबा ....हम भी सोच रहे हैं कि पैरबी-सिफारिश करके अपने अकलुआ को इंडियन टीम में घुसा ही दें, बाद में फिर खेले या न खेले सट्टे में तो करोड़ों कमा ही लेगा ससुरा !

इतना सुनते ही चौपाल ठहाकों में तब्दील हो गया, ई क्रिकेट है भईया..... हारोगे तो गाली खाओगे और जीतोगे तो ताली पाओगे, अब देखो न साऊथ अफ्रिका से जब इन्डियन टीम हारी थी तो ई देश में किसी के पास टाईम पास करने के लिए नेहरा को गाली देने के सिवा कोई काम था, नहीं न ? आज देखो नेहरा के नाम पर खुबई ताली पड़ रही है , इसी को कहते हैं इमोशनल अत्याचार,तो बोलो ॐ शान्ति ॐ .........इतना कहकर चौबे जी ने अगली तिथि तक के लिए चौपाल स्थगित कर दिया .....!

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नोट: चौपाल-कथा  लिखे जाने तक भारतीय टीम  विश्व कप से एक कदम दूर थी ........२८ साल बाद धोनी के रणबांकुरों ने जीत लिया मैदान ......बधाईयाँ  हिन्दुस्तान  !
() रवीन्द्र प्रभात
 
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