मैं यदि तुम्हें बड़ा न बना सका तो तुम्हारे अपनों के सपने अधूरे रह जायेंगे , सबकी अपनी राहें हैं , किसी को खुद बड़ा होना पड़ता है मेरी गोद में , कोई ऊँगली थामकर चलता है , बड़ा होना तो अच्छी बात है ....
"वक्त ने मुझे बड़ा बना दिया पापा"
अपने सभी अरमानों को दबा लिया दिल में ही कही और किसी से ना कुछ कहा।कई ख्बाव जो पलते थे आपकी आँखों में दिन रात उसे आपने मेरी आँखों को सौंप दिया।क्यों किया ऐसा आपने,बस मेरे लिए ना पापा!आप हरदम बस सोचते रहे हमारी खुशी के लिए और मै कुछ ना समझा आपके प्यार को।वो आपका प्यार ही तो था जो मुझसे बार बार बातें कर मेरे बारे में पूछना और कुछ ज्यादा ना कह पाना।मेरे उज्जवल भविष्य के लिए दिन रात यहाँ से वहाँ आपका भाग दौड़,कुछ ना समझ पाया मै।
बचपन से किताबों में पढ़ता आया माँ की ममता के बारे में।माँ की ममतामयी छाया में भूल गया शायद कि एक ऐसा दिल भी है,जो बहुत प्यार करता है मुझसे।आज जीवन के मायने बदल रहे है शायद अब मै बड़ा हो गया हूँ।उतना बड़ा की अब अपने जीवन के बारे में गम्भीरता से सोच सकूँ।मेरे लिए जीवन के कई रुप है परिवार,दोस्त,प्यार और कैरियर बहुत कुछ है।पर एक शख्स जिसकी हर आहट में मेरे कदमों का ही चिन्ह झलक जाता है,वो शख्स बस आप है पापा।जो बस मेरे लिए सोचते है,मुझसे बहुत प्यार करते है।पर शायद मै आपके इस प्यार की छतरी ओढ़े खुद को न जाने क्या समझ बैठता हूँ।अपने अस्तित्व की पहचान को ही गुमनाम कर बैठता हूँ।
आपका बार बार कहना बेटा इस बार घर आना ऐसा प्रोग्राम है और मै तो अकड़ कर ही रह जाता।शायद क्या सोच लेता मै।समझ ना पाता क्यों जब बस एक हफ्ते ही हुये होते मेरे घर से आये आप मुझे फिर उसी उत्साह के साथ बुलाते।और इस अनोखे प्यार को तो मै अपनी सफलता का अवरोध मान लेता।शायद उस रोज जब मै सफलता की ऊँचाईयों को छू रहा होउँगा,यह निमंत्रण और प्यार फिर से पाने की इक अधूरी ख्वाहिश दिल में जगेगी।पर शायद समय कुछ बदल सा गया होगा उस वक्त।
कहा गया है कि "चीजों की कीमत मिलने से पहले और इंसान की कीमत खोने के बाद पता चलती है"।आँसू भी बरबस आँखों में तब आते है,जब आँसू पोंछने वाला बड़ी दूर जा चुका होता है।इंसान सोचता है समय को पकड़ लूँ अपने तो संग है ही पर शायद ये समय ही सभी अपनों को भी किसी भोर के सपने सा बना देता है।जिसके टुटने पर दिल को बहुत दुख होता है,क्योंकि भोर का सपना शायद भविष्य का सच होने वाला होता है।नहीं पता मुझे ये क्या है जिसके कारण जब आप सामने होते है तो कुछ ना कह पाता हूँ और ना दिखला पाता हूँ।पर एहसास बाद में कचोटने लगते है मन को और ऐसे ही जब बिल्कुल अकेला हो जाता हूँ,तो अपने उस परिवार की याद आ जाती है,जहाँ सब को मेरी चिंता रहती है,बस मेरी।
पूरी दुनिया में शायद बहुत कम लोग ही ऐसे है जो सोचते है मेरे बारे में।मेरी खुशियों में मेरे साथ होते है और मेरे दुख में छुप छुप कर आँसू बहाते है।शायद समय उस दहलीज पे भी लाकर खड़ा कर दे एक दिन जब कोई गुमान ना हो खुद पे।वो जिद ना हो,वो चाहत ना हो और ना हो वो फरमाईश।जो मै अक्सर करता था आपसे और आप झट से पुरा कर देते थे उसे।कभी ये ना सोचते थे क्या गलत है और क्या सही,बस मेरे लाडले की खुशी है,सब ठीक है।
कभी कभी जो आपका दिल दुखा देता हूँ पापा बहुत अच्छा लगता है।खुश होता हूँ मै ये सोचकर कि आपको तो मेरी भावनाओं की कद्र ही नहीं।पर अब तक असमर्थ हूँ आपके भावनाओं को देख पाने में जिसमें कुछ नहीं है,कोई चाहत नहीं जीवन के उड़ानों का उसमें तो बस मेरी तस्वीर है बचपन से अब तक की।यादें है वो जो शायद अब याद नहीं आते।मेरी हर एक फरमाईश और ख्वाहिश से भरी हुई है आपकी भावनायें।जिसे मैने अपने जीवन में स्नेह का अभाव मान लिया था,वो तो बस मेरे प्रति स्नेह के अगाध पुष्पों से सजा हुआ है।आपकी वो बात "बेटे,मेरे जाने के बाद मेरी बहुत याद आयेगी तुम्हें देखना!"आज आपकी कोई कही हुई बात नहीं बस एहसास है जो अब भी उस काँधे को तरसता है जहाँ से देखता था मै सारी दुनिया।अब भी उन ऊँगलियों को पकड़ना चाहता है,जिसे थाम कर खुद को सबसे खुशनसीब समझता था।वो डाँट आपकी जिसे सुन बहुत बुरा लगता था,फिर सुनना चाहता हूँ।
जिन्दगी में जिस छावँ के तले पलता हुआ बचपन से अपनी जवानी गुजार दी वो छावँ ही अब मुझे जलन देता है,तपाता है मुझे और मेरे शरीर को और उसे छोड़ काफी दूर निकल जाता हूँ मै।वक्त के पहियों पर दिन ब दिन गुजरता रहता है हर पल और अपनी सभी ईच्छाओं को दफन करता जाता हूँ दिल में कही।वो बातें जो बिना आपसे कहे सार्थकता नहीं पाते थे,अब तो बस जुबान से दिल में ही दबे दबे रह जाते है।शायद अब जरुरत नहीं मुझे उस काँधे की,उन ऊँगलियों की जो अब भी बुलाते है मुझे रोज।अब तो मै खुद ही खड़ा खड़ा देख लेता हूँ सारी दुनिया।
ऐसा लगता है "वक्त ने मुझे बड़ा बना दिया है पापा"।शायद उतना बड़ा जहाँ से बस लम्बी लम्बी ईमारते दिखती है।बस सितारों की रौनक दिखती है,पर वो दिल की चाहत नहीं दिखती जो अब भी गले से लगाने को बेकरार है मुझे।जो इतना बड़ा होने पर भी मुझे आज उतना ही छोटा समझता है जितना मै था कल तक।अब भी भीड़ में मै ढ़ुँढ़ता हूँ उस शख्स को जिसकी आँखों में मेरे लिए बस प्यार ही प्यार है।यकीनन वो मेरे पापा ही है,जो आज भी मेरी आँखों से देखते है मुझे और कभी कभी जो ठोकर लगती है,गिरने को होता हूँ तो थाम लेते है मुझको।और मै कितना भी बड़ा होकर फिर से छोटा बहुत छोटा हो जाता हूँ आपके सामने.....।
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इस महत्वपूर्ण और सारगर्भित रचना के बाद आइये आपको कार्यक्रम के दूसरे चरण की प्रस्तुति से अवगत करा दें :
भारत सरकार या खूंखार आतंकवादी..?
चाँद के पार …
कुंवर कुसुमेश की दो गज़लें
”बदलते दौर में साहित्य के सरोकार” विषय पर संगोष्ठी
पूनम श्रीवास्तव की दो कविताएँ
इसी के साथ हम आज के कार्यक्रम को संपन्न करते हैं, कल ब्लॉगोत्सव में अवकाश का दिन होगा, मिलते हैं परसों यानी ०१ जुलाई को परिकल्पना पर सुबह ११ बजे .....तबतक के लिए शुभ विदा !