
मैं समय हूँ तो क्या ? 
किसी से कुछ छिनने का ख्याल 
या यूँ हीं चलते हुए ले लेने ख्याल 
कभी नहीं आया . 
दिया  तो पूरे मन से दिया 
मीठे को मीठा ही रहने दिया 
कड़वे को कड़वा ....
लेने में पूरा विश्वास रहा 
सुनने में पूरा विश्वास रहा 
मानने में पूरा विश्वास रहा 
कुछ चेहरों को मैंने झूठ से परे जाना 
पर वे देखते देखते सच से परे हो गए 
और .......
कुछ बेचैनियाँ शब्दों की गिरफ्त से 
बाहर होती हैं 
लाख दर्द हो 
आलोचनाओं का शिकार होती हैं 
और ....
काश छाछ को फूंककर ही पीया होता !........
मेरा अंत   ?
आज वो घर कहाँ जहाँ 
इंसान बसते थे 
आज वो दिल कहाँ जहाँ 
प्यार रिसता था 
हर घर की दीवार  
पत्थर हो गई   
दिल में सिर्फ 
गद्दारी का बसेरा है 
मासूम सी सूरत में कोई 
कहाँ शैतान छिपा है 
भगवान को भूला 
अब हम 
शैतान को अपना 
बना बैठे है 
मानो ...ना मानो 
जिस  बारूद के ढेर 
पर अपने दिल के 
अरमान सज़ा बैठे है
जिसके लिए हम 
विरोध का शंखनाद  
बजा बैठे थे 
ना मिली धरा 
मिला ना गगन 
अपनी की उम्र बनी 
अपने पर ही व्यंग ......
हर तरफ थी  ख़ामोशी 
दूर तक था सन्नाटा 
आज उसकी वजह से 
बनकर अनाथ पड़े ,
नहीं कहीं कोई छावं
ना धूप का बसेरा है ... 
रीती झोली ,
रिसते जख्म 
बिखर गए हम   
चारो ओर अब 
नफरत का ही डेरा है 
कब तक सहूँ 
मेमने  सा ही
अपना अंत ?

अनु 
  यूँ तो कुछ भी जरुरी नहीं 
यूँ तो कुछ भी जरुरी नहीं 
कि  जुबां से कुछ कहो मेरे लिए ,
मगर सुनना अच्छा लगता है ना
कुछ तो कहो मेरे लिए..
कुछ तो कहो मेरे लिए..
पता नहीं क्यूँ....
अजीब चुप सी लगी है दोनों तरफ,
अहसास बोलते तो हैं मगर..
खामोश क्यूँ हैं ये लब,
लेकिन...
मैंने सुना,
तुमने कहा....
में यहीं हूँ तुम्हारे पास,
पास नहीं हूँ तो क्या हुआ,
तुम रहती हो हर पल मेरे साथ,
कभी आसमान में उडती चिड़िया सी ,
तो कभी ओस की बूंदों सी,
हर पल महसूस होती हूँ ना में तुम्हे...
ये अहसास ही तो हैं हमारे जीवन में,
जो दूर होते हुए भी बेहद्द करीब ले आते हैं ,
बिलकुल वैसे ...
जैसे...
जैसे चाँद धरती के करीब महसूस होता है...
चाँदनी रातों में,
जैसे सूरज की किरणें  रोज आती हैं मेरे आँगन में,
तुम भी आते हो उसी तरह मेरी आँखों में ,
कभी ख्वाब  बनकर ,
कभी ख़याल बनकर,
और यूँ ही हम दोनों मिल लेते हैं,
जी लेते हैं अपने लिए कुछ लम्हें 
एक साथ ,
मैं रहूंगी हमेशा तुम्हारे साथ ,
तुम भी रहना यूँ ही ,
हमेशा मेरे साथ.
 
 नीलम पूरी
समय होकर मैं हतप्रभ रहता हूँ , जब एक से भाव हर तरफ से सुनता हूँ
कैसे कर लेते हो .....??
तुम में एक खूबी है................
पूछोगे  नहीं,क्या?
या  आश्चर्य से कहोगे नहीं.............कि केवल एक?!
एक बात पूछूँ ,तुमसे..........
कि
तुम यह कैसे कर पाते हो कि ..
जब  तुमसे गलती हो जाती है
तब  इतनी ढिठाई से .....
तर्क  पे तर्क करते रहते हो
बिना शर्मसार हुए .
तुम तब तक यह सब करते हो
जब  तक मुझे एहसास नहीं करा देते
कि
जो गलती तुमने करी
उसका कारण भी मैं ही हूँ .
जबकि ,मुझसे  कभी कोई भूल हो जाती है
तो , कई दिन तक मुझे
अपराध बोध सालता रहता है .
मैं,
अपनी-तुम्हारी गलतियों का
बोझ ढो-ढो कर............
थक  गयी हूँ .
अपनी  भूल की पीड़ा ,
तुम्हारी गलती का दंश ,
दोनों,अकेले झेलती हूँ .
कभी तुम्हारा फूला हुआ मुंह ,
कभी तुम्हारा रूखा व्यवहार ,
तो  कभी तुम्हारा अबोला सहकर.
बताओ ना.....................
कैसे कर लेते हो तुम यह सब .
 
 डॉ .निधि टंडन
http://zindaginaamaa.blogspot.com
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अब आइए आपको लिए चलते है कार्यक्रम स्थल की ओर, जहां ब्लॉगोत्सव के चौथे दिन का आगाज़ होने जा रहा लता मंगेशकर जी की आवाज़ में एक खुबसूरत गीत से : बरखा बहार आई ....
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अब आइए आपको लिए चलते है कार्यक्रम स्थल की ओर, जहां ब्लॉगोत्सव के चौथे दिन का आगाज़ होने जा रहा लता मंगेशकर जी की आवाज़ में एक खुबसूरत गीत से : बरखा बहार आई ....
इसके अलावा उत्सव से संवंधित अपनी बात कहेंगे रवीन्द्र प्रभात जी 
ई पंडित श्रीश शर्मा आपको सुनाएंगे  : अथ श्री पॉडकास्टिंग महापुराण
और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर सुमंत का विमर्श : यह ‘न्याय’ नहीं न्याय का ढकोसला है श्रीमान ओबामा!
कहीं जाइएगा मत हम फिर उपस्थित होंगे  कुछ और महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के साथ एक अल्प विराम के बाद 
 

ये तीनों ही कवितायेँ बहुत अच्छी लगीं.
जवाब देंहटाएंसादर
अहसास बोलते तो हैं मगर..
जवाब देंहटाएंखामोश क्यूँ हैं ये लब,
लेकिन...
मैंने सुना,
तुमने कहा....
में यहीं हूँ तुम्हारे पास,
पास नहीं हूँ तो क्या हुआ,
तुम रहती हो हर पल मेरे साथ,
वाह ...बहुत खूब कहा है इन पंक्तियों में ..बेहतरीन प्रस्तुति ।
अंतरजाल पर अपने आप की यह अनूठी परिकल्पना है , इसे मेरी ढेरों शुभकामना है !
जवाब देंहटाएं।
यह उत्सव अपने आप में गरिमामय है , बधाइयाँ !
जवाब देंहटाएंक्या बात है, इसको कहते हैं उत्सव मनाना !
जवाब देंहटाएंउम्दा हैं यह उत्सव,अनूठी परिकल्पना है,बधाइयाँ ! आभार !
जवाब देंहटाएंएक ही विषय पर तीन कवितायें.. तीनो ही कवितायेँ बेहद सुन्दर और प्रभावशाली...फिर भी अनु जी की कविता बेहतर... मेमने सा अंत... से जब वे कविता का अंत करती हैं को ह्रदय स्तब्ध सा रह जाता है.. समय की कठोरता का एहसास होता है...
जवाब देंहटाएंतीनों रचनाएँ बहुत संवेदनशील ... अच्छी प्रस्तुति
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