
इस उत्सव के दौरान जितनी परिक्रमा मैं ब्लॉग्स की करता हूँ , उतनी  ही गहराई नापता  हूँ , एक नहीं अनेक मोती मेरे पास इकट्ठे हो गए हैं .... वो तो अवकाश का मामला आ जाता है, वरना मैं बताता कि शब्दों के इस सागर में सिर्फ खारापन नहीं, अदभुत मिठास अदभुत ज्ञान अनुभवों के असीमित भण्डार हैं ---- विषय एक , दृष्टिकोण अनेक . 
आज मैं लाया हूँ अतुल प्रकाश त्रिवेदी जी को .... उनके ब्लॉग कम ही टिप्पणियाँ मिलीं , तो आप मानेंगे कि मेरी पहुँच कहाँ तक है और आप कितने वंचित थे ! 
अतुल जी कहते हैं - 
बहुत बार अक्सर ऐसा होता है की हमारे आसपास कुछ घटता है पर वो हम पर असर नहीं डालता . पर कहीं सुदूर कुछ घटता है और हमें उद्वेलित कर जाता है . कुछ बहुत बड़ा घटता है , और हम पर उसका कुछ असर नहीं होता . पर एक छोटी सी बात हमारे मानस पटल पर एक छाप छोड़ जाती है . ऐसा होता है हमारे सरोकारों की वजह से .ऐसे ही सरोकारों का ब्लॉग है - शब्द और अर्थ . हर शब्द हमारे लिए कुछ अर्थ या मायने रखते हैं . मैं शब्दों में उन्ही अर्थो की तलाश में हूँ .
शब्दों को लेकर थोड़ी उधेड़बुन रहती है . शब्दों से चीजों को छूना चाहता हूँ . और परतें उतार कर देखना चेहरा ....
!!रोजनामचा !!
रोजनामचा - यानि दिनचर्या , यानि वह कहानी जो रोज लिखी जाये 
जमा की , खर्च की , हिसाब की
कोई रोज जन्मता है 
कोई रोज मरता है 
और कोई बस एक रोज जीता है 
बस उसी का चर्चा है .
जरूरी नहीं की गुजरना हो 
हर सोने को तपना हो 
किसी को आग की भट्टी 
जला के राख कर दे .
कलम के जौहर लड़े जायेंगे 
कुछ मसविदे तैय्यार होंगे 
कुछ शब्द हथियार होंगे 
कुछ अर्थ विस्तार होंगे 
अपनी अपनी सहूलियतें देखी होंगी 
सबकी वसीयतें होंगी .
हम सब एक घने जंगल से गुजरतें हैं 
हम सब अँधेरे से डरते हैं 
शाम होते ही घर याद आता है 
कभी हंसी आती है 
बस वहीं होना तरोताजा है 
और डर भगाना है .
कितनी भी ताकीदें हों 
अजीब वाकयात हों 
डरावनी तस्वीरें हों 
आईना हमारे चेहरे रोज पढता है 
सामने खड़ा शख्स बहुत संवरता है 
अन्दर कोई भूत छुपा है 
जो आँखों में ढल जाता है
लाल लाल जलता है 
मुखौटा बदल जाता है
किसी मेले में ख़रीदा था 
राजा का वजीफा था .
अपनी परछाईं पहचान नहीं पाता
आदमी अपने साये से डरता है 
कभी बादल डराता है 
कभी रस्सी 
कभी किसी आहट पर 
सांस गले में अटकी 
अपने ही घर में 
एक कोने से दूसरे भागता 
किससे पीछा छुड़ाता?
चाशनी में भीगो कर परसे हुए शब्द 
में छुपा सारा विष बह निकला 
अर्थ होमिओपैथी के छोटे छोटे दाने निकले 
छुपे हुए रोग को उजागर कर दिया 
सुन्दर सा चेहरा , अचानक बिखरा 
मुख म्लान हो गया 
मौसम की तरह बदला .
सड़क पर बदहवास भागता 
शहर , जंगल की तरह फैलता है 
फिर उसी की तरह जलता है 
हर सुबह का अखबार 
अंदेशों से भरा , आता है बालकनी में 
रोज वही क़त्ल , हत्या , झगड़े ,फसाद , खून खराबा 
रोज वही झूठ , वही प्रहसन , दिखावा 
प्रसंग बदलते हैं
किरदार बदलते हैं 
रोजनामचा नया नहीं होता .
जीवन जीवन है 
नाटक विकल्प नहीं 
मत बनो 
किसी निदेशक के हाथ की कठपुतली
क्यों न हों कितने भी जानदार 
मत दोहराओ संवाद ऊधार के 
शब्दों को खोखला होने से पहले बचा लो 
तुम्हारी जिन्दगी का पन्ना है 
थाने की डायरी नहीं 
जो झूठ का पुलिंदा हो .
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ईश्वर है या नहीं
कर रहा हूँ
तलाश ईश्वर की .
उसने स्वर्ग को नकार कहा -
वह है परी - कथा .
नहीं, यह नहीं है मेरी व्यथा .
कुछ ने कहा -
ईश्वर का अस्तित्व नहीं है 
मैं नहीं तलाश रहा
ईश्वर को
किसी प्रमाण के लिए .
ना मुझे करनी है प्रार्थना
न चाहिए कोई वर
मुझे उससे कोई शिकायत नहीं करनी
न दूसरों की न अपनी
मैंने चढ़ावे के लिए नहीं रखी है चवन्नी
वो तो मैं लंगड़े भिखारी को दे चुका.
आकार और निराकार का फर्क नहीं देखना , दिखाना 
मुझे उसके अवतारों और दूतों का पता नहीं लगाना
मैं किसी सत्य और असत्य के विवाद में नहीं पड़ा
किसी इंसान या शैतान का नहीं झगडा
मैंने किसी गुरु की नहीं लेनी शरण
मुझे नहीं चाहिए धर्मग्रंथों के निर्देशों का प्रमाणीकरण
मैं नहीं किसी लिंग , जाति, देश , भाषा, संस्कृति का प्रचारक
किसी की संस्तुति में लिप्त या वाचक .
मैं तलाश रहा हूँ ईश्वर को
सिर्फ पूछना है -
अगर वह सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी ,अन्तर्यामी है
तो बताये
सृष्टी - जिसकी भी बनाई हो
उसमे कोई और जगह तो है
धरती के अलावा .
जहाँ जाकर रह लेंगे
अज्ञानी , ज्ञानी , विज्ञानी ;
धर्मांध , आस्तिक , नास्तिक ;
नेता , अभिनेता , राजा, प्रजा ;
वैज्ञानिक , कलाकार , ज्योतिष ;
व्यवसायी , उद्योगपति , भूखा , भिखारी ;
कर्महीन , मेहनती , लेखक , कवि;
जिस तरह से रौंदी जा रही है प्रकृति
उजड़ी जा रही है धरा
धुंए में सिसकती हैं सांसे
सुलगते हैं आच्छादित वन
सूखती जा रही हैं नदियाँ , तालाब, जलाशय
विलुप्त हो रही हैं जातियाँ-प्रजातियाँ
पिघलते जा रहे हैं हिमनद
फैलते जा रहे हैं रेगिस्तान
और बढ़ता जा रहा है तापमान
अगर नहीं है ऐसी कोई जगह 
तो क्या फर्क पड़ता है
की मैं आस्तिक हूँ या नास्तिक
ईश्वर है या नहीं
और इस प्रश्न का उत्तर
उसके पास भी है या नहीं
वो मुझे मिले या नहीं !
क्या फर्क पड़ता है ?
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सच कहाँ खड़ा है
सच कितना बड़ा है 
सच कहाँ खड़ा है || 
वो मेरा पड़ोसी है ? 
दुनिया क्या इतनी छोटी है ? 
किसके मुंह की बोटी है 
वो क्या सिर्फ रोजी – रोटी है ? 
दादी माँ माला के मनकों में पिरोती है 
माँ इसे आसुओं में बहाती है 
दुनिया गंगा में नहाती है 
वो क्या इतना पक्षपाती है ? 
वो क्या हमारे जजबातों में है 
वो क्या बही-खातों में है 
वो क्या मोमबत्ती की रोशनी में है 
जो इंडिया गेट पर हाथों में है 
वो काले लबादो में छुपा है 
वो क्या बारीकियों-बातों में है 
वो क्या इबारतो आयतों में है 
वो क्या हमारी रवायतो में है 
वो मुझसे कहाँ बिछड़ा था
क्या अब भी किसी मोड़ पर खड़ा था || 
वो क्या किसी मॉल में बिकाऊ है 
वो क्या भाषणों में उबाऊ है 
वो हमारे अखबारों में छपा है 
वो किस लिफाफे का पता है 
वो किसके चेहरे का हिजाब है 
वो कैसा मुखौटा है 
वो किसका नकाब है 
वो क्या चेहरे पर फेंका तेजाब है 
मेरी निगाहों नें जिसे ढूंढा है 
वो जवान है या बूढ़ा है 
सच कितना बड़ा है 
सच कहाँ  खड़ा है || 
बुद्ध के निर्वाण का पड़ाव 
गांव के चौबारे का अलाव 
वो क्या अदालतों के अहातो में बिक गया 
वो सभाओ , नारों, भाषणों में छिप गया 
वो सड़ा गेहूँ  चावल था 
या गरीब का निवाला था 
वो किसकी गाढ़ी कमाई थी 
किसकी नौकरी के लिए हवाला था 
कला क्या सृजनात्मक अभिव्यक्ति है 
या सिर्फ हमारी संवेदनाएं रीतीं हैं 
भेडियो के लिए भेड़ की एक खाल है 
या दोहरी चरित्रता की नयी कोई चाल है 
अमरनाथ की यात्रा की कठिनाई 
या एवरेस्ट की ऊँची चढाई 
चेतना की सामूहिक अभिव्यक्ति 
या अवनति की अंधेरी खाई 
जब सारा जगत बिकाऊ है 
वो क्यों इतना अकड़ा-अकड़ा है 
सच कितना बड़ा है 
सच कहाँ खड़ा है || 
किसी के समर्थन में लिखा अपरोक्ष संपादकीय / विश्लेषण
या किसी विषय का निरपेक्ष अंकेक्षण
सत्ता के गलियारे में सत्य की खोज 
या सुविधाभोगी की तैयार उपजाऊ संपर्कों की फौज 
सत्य की खोज में जुटी निर्भीक पत्रकारिता 
या अपने राजनैतिक विश्वासों की छदम-चरित्रता 
किसी औद्योगिकी घराने की सुविधाओं का प्रतिदेय 
या किसी भौगोलिक सत्ता की प्रतिश्रुति का उपादेय 
अगर हमाम में सब नंगे हैं 
तो क्यों कपड़ों का झगड़ा है || 
सच कितना बड़ा है 
सच कहाँ खड़ा है ??
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आईये अब आपको ले चलते हैं कार्यक्रम के दूसरे चरण में इन रचनाओं के मध्य :






आईये अब आपको ले चलते हैं कार्यक्रम के दूसरे चरण में इन रचनाओं के मध्य :

गुरु का अभिप्राय
आज गुरुपूर्णिमा है और हम सब के लिए ये सबसे बड़ा पर्व है .क्योंकि गुरु और शिष्य के मध्य का रिश्ता...

कौम कंगाल,जनसेवक मालामाल
चौबे जी की चौपाल से भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपनी बात आगे बढाते हुए चौबे जी बोले, कि देख बचवा ,...

मेरे साथ चले आइए
देखते  हो आसमां को क्यूँ ज़नाब, ख्वाहिश है उड़ने की  अगर रंजिश  है आसमां से मगर कर कबूल दोस्ती...

वो देते रहे दर्द, हम सहते रहे
कुछ क्षणिकाएँ………… (१) मैं ओस की बूंदें बन पत्तों पर लुढ़कता रहा और वो भंवरा बन फूलों पर मंडराते...

कबीर और मैं
कबीर कवि और समाज सुधारक थे – निर्भीक कवि , निर्भीक सुधारक . मैं लिख लेता हूँ , समाज में गुरु से...

और वे सत्संग में चली गयीं ……
लघुकथा वे बेचैनी से कमरे में टहल रहीं थी. अभी तक फोन क्यों नहीं आया? पता नहीं प्रबन्ध हुआ कि नहीं....
पढ़ते रहिये परिकल्पना, कल फिर मिलते हैं सुबह ११ बजे कुछ और उत्सव से जुडी रचनाओं के साथ ...
 


 
 
परिकल्पना के माध्यम से अतुल प्रकाश जी की उत्कृष्ट रचनाओं को पढ़ने का अवसर मिला ...इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार के साथ्ा शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंअतुल प्रकाश त्रिवेदी जी की रचनाओं में गज़ब का सम्मोहन है, बधाईयाँ !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना, अच्छी प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंउत्सव की वैसे तो सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक है, किन्तु इन रचनाओं में गांभीर्य उच्च कोटि की है !
जवाब देंहटाएंअच्छी और सच्ची प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंउत्सव का हर दिन अपने आप में गरिमामय होता है, आज भी देख रही हूँ इन रचनाओं से गुजरकर !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब,बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंबढिया कविताएं और अभूतपूर्व जानकारी। आभारी॥
जवाब देंहटाएंहर दिन एक नयी शख्सियत से वाकिफ़ हो रहे हैं………आभार इस आयोजन का।
जवाब देंहटाएंगहन चिंतन.... अद्भुत रचनाएं...
जवाब देंहटाएंअतुल जी का आभार...
सादर...
अद्भुत रचनाएँ.
जवाब देंहटाएंअतुल जी की पहचान पाठकों से कराने का धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंकमाल की पंक्तियां और और बहुत ही प्रभावशाली भी । पढ के आनंद आ गया ।
जवाब देंहटाएंरविंद्र भाई , परिकल्पना महोत्सव एक बार पुन: अपनी मंज़िल की ओर अग्रसर है
behtareen.
जवाब देंहटाएंपरिकल्पना की इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार के साथ शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंलाजबाब प्रस्तुति .....बहुत खूब
जवाब देंहटाएंutsav theekthak chal raha hai.badhai, shubhkamanaye.
जवाब देंहटाएंअतुल जी की गहन अभिव्यक्तियाँ ...बहुत बढ़िया ..
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