सोमवार, 28 नवंबर 2011

नेता है, तो समझो देशभक्त है !


चौबे जी की चौपाल 

नेता है, तो समझो देशभक्त है !  

आज चौबे जी कुछ खपा-खपा हैं। कई टन खपा। चुहुल के बीच चौपाल में चौबे जी ने कहा कि " राजनैतिक निजाम भी ससुरी सिनेमा की तरह ग्लैमरस हो गया है आजकल। किसी को कह दो कि तुम्हरा करेक्टर ढीला है तs ऊ अपना के सलमान खान बूझे लागत हैं। दबंग कहो तो फुलि के कुप्पा होई जात हैं। रावण कहो तो शाहरूख समझ के प्रसन्न होई जात हैं अब ऊ ज़माना गया जब नेता लोगन के बार-बार देशभक्त होए के प्रमाण देवे के पडत रहे। सीता मईया की तरह प्रतीकात्मक तौर पर ही सही अग्नि परीक्षा देवे के पडत रहे अब तो नेता का मतलब ही देशभक्त हो गया है भईया। वईसहीं जईसे दुष्ट कs मतलब वी.आई.पी. होत हैं नेता कs मतलब अपनेआप होई जात हैं देशभक्त। नेता हैं तो समझो देशभक्त हैं नेता नाही तो देशभक्त कईसा ? का कहें रामभरोसे चिदंबरम साहब को ही लो रजनीकांत टाईप मंत्री बने बैठे हैं,ऊ भी बिना मूंछ के । उनके मामले में कोर्ट तय नाही करत कि ऊ जेल कब जईहें बल्कि ऊ खुद और उनके आका तय करत हैं  "

"एकदम्म सही कहत हौ महाराज जवन नेता के भीतर आदमियत नाही होत ऊ नेता के डिमांड बहुत होत हैं ।जईसे करेला बगैर रस्सी के नीम के आगा-पीछा परिक्रमा करत-करत फुनगी पर विराजमान होई जात हैं वईसहीं खुरपेंचिया जी टाईप नेता करत हैं । सत्ता पक्ष के नेता में सांप कs गुण होत हैं आऊर विपक्ष के नेता में नेवला के गुण। दोनों में यदि मित्रता हो गई महाराज तो समझिये चहूँ ओर सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय....नेता-अफसर-ठेकेदार-बाबू के साथ-साथ परधान जी तक के खानदानी फुक्कड़पन  ख़तम होई जात है बाकी तो फिर ऊपर वाला सबका मालिक है हीं महाराज" बोला राम भरोसे

इतना सुनकर रमजानी मियाँ से रहा नही गयाअपनी लंबी दाढ़ी सहलाई और मुंह के पान पर हल्का सा चुना तेज़ करके फरमाया "कहाँ नेता गप्पू,कहाँ जनता पप्पू । ेता विशिष्ट नही होंगे तो हममे-उनमें अंतर का रह जाएगा बरखुरदार। कहने का मतलब ई है  कि नेता को नाही जनता को आदर्शवादी होना चाहिए। हवा खाईए ,पानी पीजिए, मस्त रहिए मियाँ । नेता-जनता में कुछ तो बुनियादी फर्क बनाए रखिए आप हवा खाईए उनको हवा में उड़ने दीजिए।आप कॉपरेटिव बैंक मा खाता खोलिए उनको स्विश बैंक जाने दीजिए आप  पेट खुजलाईए,उन्हें दाढ़ी खुजलाने दीजिए। इस असलियत को गाँठ बाँध लीजिए जनाब कि जनता खनिज है तो नेता खान है जनता जमीन है तो नेता आसमान है ।इस पर दुष्यंत साहब का एक शेर अर्ज़ है कि तुझे कसम है खुदी को बहुत हालाक न कर,तू इस मशीन का पुर्जा है, तू मशीन नही  का गलत कहत हईं गजोधर ?"

"अरे नाही रमजानी भैयातू और गलत कबो नाही हो सकत" बोला गजोधर  

मगर तिरजुगिया की माई से ना रहल गईल  कहली कि "रामाजानी मियाँ ई बताओकि जब हम्म मशीन का पुर्जा हैं मशीन नाही हैं, दो घूँट पानी पिए से पहिले हमार रूह काँप जात है ऊ देश मा लोकतंत्र का मतलब का है ?" 

हम्म तोके बतावत हईं चाचीइतना कहके बीच में कूद पडा गुलटेनवा । बोला "बात ई हs चाची कि एगो सार्थक शब्द बोले में हमरे नेता लोगन के घंटों प्रवचन करे के पडत हैं अपने विशिष्ट और फेंक अंदाज़ मा उनके रोज जनता के शब्द-वाण से पंजा लडावे के पडत हैं कभी जनता के लुहकारे वाला शब्द तो कभी कनैठी-गर्दनिया देवे वाला शब्द से उनके पाला पडत हैं तो कभी कारपोरेट घराने के मीठे-कुरकुरे और ताज़ा आसंगों वाले शब्द के आत्मसात करे के पडत हैं । कभी हमरे नेता जी ऊ शब्दन के गिलौरी बना के अपने मुंह मा दबा लेत हैं तो कबो कृपालु-श्रद्धालु जनता के ऊपर थूक देत हैं पीकदान समझके।हमरे ई महान नेता लोगन के खातिर सत्ता की सवारी उनके इन्हीं कुछ विग्रही और भड़काऊ शब्दों की सवारी है चाची  यही कारण है सत्ता रूपी भैंस भी उन्हीं के आगे पास खड़ी पगुराती है चाची   अब जेकरे भीतर इतना गुण होगा ऊ विशिष्ट तो होगा हीं  इसी मौजू पर अदम गोंडवी साहब का एक शेर हम भी सुनाए देते हैं, अदम साहब का कहना है कि जितने हरामखोर थे कुर्बो-जबार में,परधान बनके आ गए अगली कतार में ।"     

एकदम्म ठीक कहत हौ गुलटेन, शुभानल्लाह !हमरे मन की बात ठोकी है हमरे ऊपर भैया गुलटेन । ईहे मौजू पर दुष्यंत साहेब का एक शेर और अर्ज है कि " हम इतिहास नही रच पाए इस पीड़ा में दहते हैं,अब जो धाराएं पकड़ेंगे इसी मुहाने आएंगे ...!" रमजानी मियाँ ने फरमाया 

बाह-बाह क्या बात है रमजानी मियाँ ! एकदम्म सही कहे हो यानी सोलह आने सच बचवा । देश के साथ-साथ उत्तरप्रदेश की हालत किसी से छिपी नही है । हर मूलभूत जरूरत के मामले में हम्म पिछली पायदान पर हैं । हर हाथ को काम,हर पेट को रोटी,हर सिर को छत के अलावा प्रदेश मा बिजली,पानी और सड़क की व्यवस्था करना आसान काम नाही । इसे विक्सित राज्य की श्रेणी मा खडा करे में बहुत समय लागी बचवा । काहे कि जवन प्रदेश मा जनता से बढ़कर नेता खातिर आपन मूंछ हो ऊ प्रदेश मा हम्म आर्थिक क्रान्ति की उम्मीद कईसे कर सकत हईं ? इतना कहके चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया 

रवीन्द्र प्रभात 

सोमवार, 21 नवंबर 2011

वेशर्मी न हो तो नेता कईसन


चौबे जी की चौपाल 


फूलपुर में राहुल की सभा में दबंग के चुलबुल पांडे टाईप मंत्रियों के द्वारा शांतिपूर्वक विरोध करने वाले लड़कों की  पिटाई की बात सुनि के रामभरोसे एकदम सेंटिमेंटल हो गया और मुड़ि पीटत सनकाह के जैसा  चौबे जी के चौपाल में आ गया  चौबे जी से बोला कि  – "महाराज चमचई की हद हो गई  आपन कृत्य से देश की कमर तोड़े से संतोष ना भईल मंत्री लोगन के तचल अईलें उत्तर प्रदेश मा जनता के पीटे-पटके  माना कि अवोध लईकन सब ई कहके विरोध कईलें कि मंहगाई और भ्रष्टाचार से निजात काहे नाही दिलवाती है आपकी सरकार, तो युवराज केवल इतना कह देते कि क्यों पैर पर कुल्हाड़ी चलाने को कह रहे हो ? ये तो चुनावी मुद्दे हैं भला इससे कैसे निजात मिल सकता है ? उत्तर प्रदेश की जनता वेबकूफ थोड़े न है जे उनकी बतकही नही समझती खैर युवराज तो अभी ४२ बरस के बच्चा हैंजब साठा होईहें तब पाठा मारिहेंमगर तिवारी जी के का भईल रहे कि उतर गईलें पीटे-पटके ?"

देखो राम भरोसे पीटने-पटकने में जो मजा है ऊ चूमने में कहाँ राजनीति का पहिला पाठ है कि जनता का दिल-दिमाग-हाथ-पैर टूटे तो टूटेमुद्दे नही टूटने चाहिए । जब इहे बात का अनुसरण किये हैं हमरे मंत्री जी,तो कवन गुनाह कर दिए ?  ई अलग बात है कि सार्वजनिक रूप से पीटो-पटको तो इन्डियन पैनल कोड के तहत धारा ३२३ लगा देत  है हमरी लोकल पुलिस गाली दो तो ५०४ लगा देत है  मगर धारा बनाने वालों पर ससुरी कैसी धारा भाई देखजे बनावत हएं ओही के बिगारे के अधिकार होत हैं नs ? हमरी सरकार के मंत्री क़ानून बानावत हएं तबिगारिहें के,ऊहे बिगारिहें नs ? अब गैर जमानती वारंट जारी हो चाहे जमानती का फर्क पडत है ? नेता हैं कवनो अभिनेता नाही जे डर जयिहें  हमका बुझात है राम भरोसे कि बिना दस-बीस धारा लगे सही मायनों में कोई नेता नाही बन सकत । उनके खातिर पहचान कसबसे बड़ा संकट उत्पन्न होई जात हैं । मन के भीतर अन्हरिया रहे तो रहेमगर युवराज के सामने कोई करिया कपड़ा दिखाए ई बर्दास्त करे वाली बात ना है । धारा लगे तो लगे युवराज की  नज़र मा इज्जत ना धोआये के चाहीं  अरे सार्वजनिक रूप से बिना अंजाम की परवाह किये बगैर पीटना-पटकना कवनो आसान काम है का हमको तो लगता है तिवारी जी,जतिन जी आऊर फलाना जी,चिलाना जी आदि-आदि जे भी जी शामिल रहे ऊ चटकन-पटकन जइसन सत्संग मेंसबके -सब सोनिया चाची के विशेष इनाम के हकदार हैं “ चौबे जी ने कहा  

एकदम्म सही कहत हौ चौबे जीहम तोहरे बात कऽ समर्थन करत हईं एगो कहावत  है कि  बड़ जीव बतियवलेछोट जीव लतियवले पहिले के ज़माना में बड जीव सवर्ण के कहल जात रहे और छोट जीव अवर्ण के  मगर  ज़माना बदल गवा है महाराज  अब बड जीव का मतलब नेता होत है और छोट जीव का मतलब जनता   यानी कि ये भी बड़े,वे भी बड़े, छोटी बस जनता। ऐसे में जनता लातियावल ना जाई तो का पूजा पूजल जाई वैसे भी आजकल  वेशर्मी बुरी आदत की श्रेणी मा नाही आवत सम्मान की श्रेणी मा आवत हैं  अगर वेशर्मी नाही तो नेता कैसा चौबे जी गुल्टेनवा ने कहा 

उ सब तो ठीके है  गुलटेन भईया लेकिन कहीं ई देश के छोट जीव यानी शर्मीली जनता मिस्र और लीबिया के नाहिन वेशर्म हो गइल तो ? गजोधर कहले 

जाये द गजोधरएकर उत्तर देबे में हमरा के शर्म महसूस होत है,बोली तिरजुगिया की माई 

इतना सुनकर रमजानी मियाँ झुंझलाया और अपनी लंबी दाढ़ी सहलाते हुए फरमाया कि बरखुरदार  ई उत्तर प्रदेश है कवनो लाल बुझक्कर का देश नाही है । जनता के छोट जीव समझेवाला बड जीव यानी खुरपेंचिया जी टाईप नेता के शायद नाही मालूम कि जनता शब्द से आभास है ताक़त काएकजुटता का । उस  एकता का जे नाईंसाफी पर राज बदले में देर नाही करत । तख्तो-ताज बदल देत हैं पान मा चुना लगा के । माहौल बदल देत हैं झटके में । यहाँ तक कि नयी इबारत लिख देत हैं । उत्तरप्रदेश की जनता कबो केहू से कम नाही रही है । हमार इतिहास ई बात कसाक्षी है मियाँ ।कलयुग है तो जाहिर है उतने सत्यवादी हरिश्चंद्र पैदा ना होईहें जेतना अपराधी जन्म लिहें ।मगर इसका मतलब ये तो नही होना चाहिए कि वे वेशर्मी से सिर उठाये और हम्म शरमा जाएँ । मंत्री-संत्री के टोके केरोके केशांतिपूर्वक प्रदर्शन करे के भी हक नाही है का हमके क्या ये आज़ादी हमने हलवा-पूरी खाकर पायी थी नाही उस समय भी हम्म नंगे वदन भूखे पेट रहकर गोरों को यहाँ से विदा किये थे । जब हम्म अंग्रेजन के विदा कर सकत हईं तो का आपन राज्य मा  अपना हाथ से तकदीर नाही लिख सकत मंहगाई से अभी चावल-दाल का भाव जनता के पता चलत हैं चुनाव के बाद नून-तेल का भाव जब खुरपेंचिया जी टाईप नेता के पता चली तब समझ मा आई सार्वजनिक सभा में जनता के लातियाबे का मतलब । फिर गंभीर होते हुए उसने अपने कत्थई दांतों पर चुना मारा और सलाहियत के साथ कहा कि लो, इसी मौजू पर दुष्यंत साहब ने अर्ज़ किया है कि - नज़रों में आ रहे हैं नज़ारे बहुत बुरे,होठों में आ रही है जुबान और भी खराब 

विल्कुल सही कहत हौ रमजानी मियाँ, मगर ई सच्चाई के भी खारिज ना कएल जा सकत हैं कि आदमी थोड़े प्रयास के बाद नेता बन सकत हैमगर नेता लाख कोशिश कर ले आदमी नहीं बन सकत  आदमी की आँखों में पानी होत है , मगर नेता कीआँखों में पानी नहीं होत। आदमी गलती करने के बाद शर्म से झुक जात है , मगर  नेता फर्श से अर्श पर पहुँच जात है। आदमी जागे के बखत जाग जात हैमगर नेता कुछ भी हो जाए पांच साल के बाद ही जागत है जब टिकट के जरूरत महसूस होत हैं ।आदमी खातिर स्व से उंचा चरित्र होत है,मगर नेता के चरित्र के ऊपर मैं हावी होत है ।आदमी रिश्तों में सराबोर होत है , नेताओं में केवल गठजोड़ होत है ।इहे हs विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की सच्चाई । इतना कहकर चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया।

रवीन्द्र प्रभात   
जनसंदेश टाईम्स/२०.११.२०११  

सोमवार, 14 नवंबर 2011

हुजूर दाग अच्छे हैं !

चौबे जी की चौपाल 

आज चौबे जी की चौपाल लगी है राम भरोसे की मडई में । चटकी हुई है चौपाल । चुहुल भी खुबई है । खुले बरामदे में पालथी मार के बैठे हैं चौबे जी महाराज और कह रहे हैं कि "दामन पर कवनो दाग ना होना हमरी नज़र मा पहचान का सबसे बड़ा संकट है राम भरोसे । अगर नेताओं के दामन पर कोई दाग नाही है तो समझो भैया उसका नेता होना ही बेकार है। काहे कि अति विशिष्ट होत है दागदार नेताओं की पहचान । सफलता और प्रसिद्धि कs फार्मूला हs दामन पर बेतरतीब दाग । जे दाग से स्नेह करत हैं उनके मिलत हैं कुर्सी और जे दाग से नफ़रत करत हैं उनके मिलत हैं औपचारिकता और खानापूर्ति । जे सफल नेता होत हैं ऊ हरकत अईसन करत हैं कि दाग लगे। दाग लगिहें तो प्रसिद्धि मिलिहें। देश और इलाके के अलावा बाहर के वोटर भी उनके जनिहें। चुनाव के दौरान अपने चरित्र के विषय मा बताबे में कवनो मशक्कत ना करे के पडी उनके। दामन पर दाग बनल रही तो हचक के वोट भी मिलिहें और नोट भी। हमके तs ई बात की बहुत प्रसन्नता है कि हमरे देश के नेता अपने दागों के प्रति बहुत सहज और सजग रहत हैं। लेकिन का बताएं राम भरोसे, हमार करेजा फुन्काएल है इहे कुफुत से कि 'दाग ढूँढते रह जाओगे' के तर्ज पर आजकल एक से एक उपाय करे में लागल है हमरी सरकार। मगर मजबूर प्रधान मंत्री के कुछ मजबूत और समझदार सिपहसलार बार-बार इहे दुहारावत हैं कि हुजूर दाग अच्छे हैं । अरे कलमुंहे, जब दाग अच्छे हैं तो मिटावे खातिर जनता जनार्दन का सब साबुन,सोडा,सर्फ़ काहे खपा रहे हो। हमको तो अब बुझा रहा है कि कहीं दाग धोअत-धोअत ससुरी इज्जतो न धोआ जाए।"


अरे नाही चौबे जी, ई कलमुंही सत्ता बड़ी पावरफूल चीज होत हैं। सरकार बनते ही सत्ता का डिटर्जेट सारे दाग आसानी से धो देत है। काहे कि राजनीति मा दाग से कवनो परहेज नहीं होत । मगर घबराये के कवनो जरूरत नाही। सुने में आईल हs कि घर आऊर दूकान के अन्दर तक का नज़ारा दिखाएगा अब गूगल । फिर तो दाग छुपाते रह जायेंगे। अब तो बाथरूम में भी दिल खोलकर नही नहा पायेंगे अपने खुरपेंचिया जी। बोला राम भरोसे।

इतना सुनके रमजानी मियाँ ने अपनी लंबी दाढ़ी सहलाई और पान की गुलगुली दबाये कत्थई दांतों पर चुना मारते हुए कहा कि "लाहौल विला कूबत ,गूगल वालों का हो गया है दिमाग खराब। इतने दाग कम थे जो और दिखाएँगे। आपका खेत नs हरा-भरा है, जिसका खेत सूखा है ऊ तो खाद-पानी देगा हीं ? इसी मौजू पर एक शेर फेंक रहा हूँ मियाँ लपक सकते हो तो लपक लो, अर्ज़ किया है कि खुद पर न इतना सितम ढाया करो, दाग अच्छे हैं डिटर्जेंट के पैसे बचाया करो ...!''

रमजानी मियां का शेर सुनकर उछल पडा गुलटेनवा। करतल ध्वनि करते हुए बोला "वाह-वाह रमजानी मियाँ वाह, का तुकबंदी मिलाये हो मियाँ ! एकदम्म सोलह आने सच बातें कही है तुमने। ई विषय पर अपने खुरपेंचिया जी भी कहते हैं कि राजनीति मा दागों का बुरापन कवनो मायने नाही रखत। दाग अच्छे हैं के दर्शन और सिद्धांत जे नेता भांप लेत हैं ऊ दाग पर दाग चढ़ावत चलत हैं । उनके दाग पर इतने दाग चढ़ जात हैं कि मूल दाग अपने आप मिट जात हैं ससुर । हमरे समझ से दाग बुरे नाही होत, नजर बुरी होत है। दाग हैं तो अच्छे हैं।"

लेओ रमजानी भईया के शेर पर एक सवा शेर हमरे तरफ से भी सुन लेयो। अर्ज़ किया है कि 'दाग नही तो पथराई है आँखें फीका-फीका सा चेहरा है,दागे सियासत है जिसके पास उसका भविष्य सुनहरा है' ....अछैबर बोले ।

इसका मतलब ई हुआ अछैबर कि पैसा कमाना कवनो गुनाह नाही है ....पैसा है तो पावर है, इज्जत है, पैसा है तो प्रशंसा है, प्रसिद्धि है। पैसा है तो ससुरा जेल भी फाईव स्टार होटल से कम नाही । पैसा नाही है तो अच्छे-अच्छों के गाल पिचक जात हैं,चौक-चौराहा पर ऊ तमाशा बन जात हैं। ज़रा सोचो दाल में काला होना गुनाह के संकेत मानल जात हैं, दाल पिली हो या काली दाल तो दाल हीं है न,जब कलमुंही पूरी की पूरी दाल हीं काली है तो गुनाह कैसा ? और जब गुनाह, गुनाह हीं नही है तो डर काहे का ? बोला गजोधर ।

इतना सुनके तिरजुगिया की माई से ना रहल गईल, कहली कि -"वुद्धिभ्रष्ट हो गई है तुम सब की। ज़रा सोचs लोगन कि जवन देश की दो तिहाई आवादी मंहगाई रूपी सुरसा के मुंह मा जबरन घुस के आत्महत्या करे पर उतारू हो, ऊ देश मा चुनाव के नाम पर करोड़ों फूंक दिहल जात है । जवन देश की आधी आवादी वेरोजगार हो उहाँ नेताओं को रोजगार देवे के नाम पर अरवों कुर्वान कर दिहल जात है । लोकतंत्र का ऐसा बड़ा और मंहगा मजाक और का होई कि जवन धन से ई देश मा बिजली जले के चाही उहे धन से राजनीति की लौ जलत हैं। इसके वाबजूद अगर यह कहा जाए कि राजनेताओं को जनता की चिंता है तो इससे बड़ा सफ़ेद झूठ और का हो सकत है ? खुद करे तो इमानदारी और दूसरा करे तो चोरी ?"

तिरजुगिया की माई की बतकही सुनके चौबे जी गंभीर हो गए और उन्होंने कहा कि "तोहरी बात मा दम है तिरजुगिया की माई, मगर कबीर का ज़माना बीत गया है अब।उस समय जनसेवकों की समस्या थी कि मैली चादर ओढ़कर कैसे जाया जाए? जाया ही नहीं बल्कि मुँह कैसे दिखाया जाए? बड़ी परेशानी थी दाग को लेकर। इसीलिए कबीर जैसे लोग जिंदगी भर एक ही चादर को ओढ़ा और बिना दाग लगाए जस की तस धर गये। बिता दिए पूरा जीवन फकीरी में । लेकिन आज का युग जनसेवकों का नही चतुर नायकों का युग है जिसमें कहीं जाना हो तो मैली चादर ओढ़कर जाने का रिवाज़ है । स्वच्छ चादर के खतरे अधिक हैं। मैली चादर को कोई खतरा नहीं। दाग भी लगने से पहले बीस बार सोचेगा, लगूँ कि ना लगूँ। इसलिए सत्ता चलाने वाले राजनेताओं पर तो विज्ञापन की यह पंच लाइन एकदम फिट है .....कि दाग अच्छे हैं...।। इतना कहके चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया ।

रवीन्द्र प्रभात

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

झूठ कहे सो लड्डू खाय, सांच कहे सो मारा जाय ।

चौबे जी की चौपाल

चांडाल चौकरी के शब्द-वाण से आहत अन्ना के मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए चौबे जी ने कहा कि " का जरूरत थी अन्ना बुढऊ को सांप के बिल मा हाथ डालने की,जब बिच्छू के काटे का मन्त्र नाही पता रहा। चार्वाक के ई देश मा और 'यावत् जीवेत सुखं जीवेत' वाले युग मा जब भ्रष्टाचार फैशन का रूप ले चुका है तो वहां ई कहके अनशन पर बैठने की का जरूरत थी कि 'मैया मैं तो जन लोकपाल लायिहौं '। अब जब अन्ना और अन्ना के ग्वाल-वाल पर माखन चुराने का आरोप लग रहा है तो तिलमिला के काहे कह रहे हैं कि 'मैया, मैं नाही माखन खायो' ज़रा सोचो राम भरोसे कि जवन अन्ना के ऊपर बीस साल से समाजसेवा का भूत सवार है ऊ इतना भी नाही समझ सका कि जुआरियों का अड्डा होत हैं ससुरी राजनीति,जहां वातावरण की पवित्रता कोई मायने नाही रखत । उहाँ झूठ के भी अलग ईमान होत हैं। और तो और उहाँ स्व से ऊंचा चरित्र नाही होत। उहाँ नाप-तौल विभाग के ठेंगा दिखाके सब धन बाईस पसेरी कर दिहल जात है । फिर चोर-चोर मौसेरे भाई एक होई जात हैं । राजनीति बड़ी घाघ चीज होत हैं राम भरोसे,जो समझा नेता और जो नाही समझा ऊ जनता के कैटोगरी में रख दिहल जात हैं । का समझें ?

एकदम्म सही कहत हौ चौबे जी, हम्म तोहरी बात कs समर्थन करत हईं ।जब शंकराचार्य जईसन विद्वान् जगत के मिथ्या कहके चल गईलें तs ऐसे में मिथ्या जगत की सारी चीजें मिथ्या ही हुई नs ! फिर भी पता नाही क्यों, अन्ना और अन्ना की टीम चाहती है कि नेताओं के भाषण और कथन सत्य हों । तुलसीदास के अनुसार जगत सपना है तो सपना मा का झूठ और का सच ? बोला राम भरोसे

इतना सुनके रमजानी मियाँ ने अपनी लंबी दाढ़ी सहलाई और पान की गुलगुली दबाये कत्थई दांतों पर चुना मारते हुए कहा कि "बरखुरदार, अपना तो बस एक ही फंडा है कि जब जैसा,तब तैसा। ससुरी सच्चाई के अहंकार मा जकडे रहने में कवन बडाई है भईया ! कवन चतुराई है लकीर के फ़कीर बने रहने में ! इसी लकीर के फकीर बने रहने के चक्कर मा महात्मा गांधी मारल गईलें । इसामशीह के सूली पर चढ़ा दिहल गईल बगैरह-बगैरह।हम्म तो बस इतना जानते हैं राम भरोसे भैया कि भारत हो चाहे पाकिस्तान,अमेरिका हो चाहे अफगानिस्तान, सब जगह इहे खिस्सा मशहूर है भैया कि झूठ कहे सो लड्डू खाए, सांच कहे सो मारल जाए । 

वाह-वाह रमजानी मियाँ वाह, का तुकबंदी मिलाये हो मियाँ ! एकदम्म सोलह आने सच बातें कही है तुमने। ई विषय पर अपने खुरपेंचिया जी भी कहते हैं कि समाजसेवियों की निगाह मा जे झूठ है ऊ झूठ राजनीतिज्ञों की नज़र मा डिप्लोमेसी होई जात है ससुरी । काहे कि राजनीति मा झूठ रस से भरे होत हैं -रस की चासनी में सराबोर,मीठे-मीठे,मधुर-मधुर। साक्षात मधुराष्टकम होत हैं । कुछ सिद्धमुख झूठों के झूठ मा हर बार नवलता होत है - क्षणे-क्षणे यन्नवतामुपैती...। यानी कि इनके झूठ रमणीय होत हैं, जेकरा के कोई 'लेम एक्सक्यूज' या थोथा बहाना नाही कह सकत। यानी राजनीति मा झूठ 'असत्यं,शिवं,सुन्दरम' होत हैं, कहलें गजोधर 

इतना सुनके तिरजुगिया की माई चिल्लाई -"अरे सत्यानाश हो तू सबका । झूठ कs महिमा मंडित करत हौअs लोगन । इतना भी नाही जानत हौअs कि सत्य परेशान होई सकत हैं,पराजित नाही 

तोहरी बात मा दम्म है चाची,मगर अब ज़माना बदल गवा है । जईसे डायविटिज के पेशेंट चीनी खाय से डरत हैं,वईसहीं धर्मभीरु लोग अब झूठ के सेवन से कतरात हैं । झूठ मा जे मिठास है ऊ सच मा कहाँ चाची ! विश्वास ना हो तो जाके अपने डिक्की राजा और कपिल मुनि से पूछ लो, बोला गुलटेनवा

गुलटेनवा की बतकही सुनके चौबे जी गंभीर हो गए और इतना कहके चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया कि "बिन पानी के नदी होई सकत हैं,लेकिन बिना झूठ के राजनीति नाही चल सकत ।"



रवीन्द्र प्रभात
(दैनिक जनसंदेश टाइम्स/०६.११.२०११ )
 
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