मंगलवार, 8 नवंबर 2011

झूठ कहे सो लड्डू खाय, सांच कहे सो मारा जाय ।

चौबे जी की चौपाल

चांडाल चौकरी के शब्द-वाण से आहत अन्ना के मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए चौबे जी ने कहा कि " का जरूरत थी अन्ना बुढऊ को सांप के बिल मा हाथ डालने की,जब बिच्छू के काटे का मन्त्र नाही पता रहा। चार्वाक के ई देश मा और 'यावत् जीवेत सुखं जीवेत' वाले युग मा जब भ्रष्टाचार फैशन का रूप ले चुका है तो वहां ई कहके अनशन पर बैठने की का जरूरत थी कि 'मैया मैं तो जन लोकपाल लायिहौं '। अब जब अन्ना और अन्ना के ग्वाल-वाल पर माखन चुराने का आरोप लग रहा है तो तिलमिला के काहे कह रहे हैं कि 'मैया, मैं नाही माखन खायो' ज़रा सोचो राम भरोसे कि जवन अन्ना के ऊपर बीस साल से समाजसेवा का भूत सवार है ऊ इतना भी नाही समझ सका कि जुआरियों का अड्डा होत हैं ससुरी राजनीति,जहां वातावरण की पवित्रता कोई मायने नाही रखत । उहाँ झूठ के भी अलग ईमान होत हैं। और तो और उहाँ स्व से ऊंचा चरित्र नाही होत। उहाँ नाप-तौल विभाग के ठेंगा दिखाके सब धन बाईस पसेरी कर दिहल जात है । फिर चोर-चोर मौसेरे भाई एक होई जात हैं । राजनीति बड़ी घाघ चीज होत हैं राम भरोसे,जो समझा नेता और जो नाही समझा ऊ जनता के कैटोगरी में रख दिहल जात हैं । का समझें ?

एकदम्म सही कहत हौ चौबे जी, हम्म तोहरी बात कs समर्थन करत हईं ।जब शंकराचार्य जईसन विद्वान् जगत के मिथ्या कहके चल गईलें तs ऐसे में मिथ्या जगत की सारी चीजें मिथ्या ही हुई नs ! फिर भी पता नाही क्यों, अन्ना और अन्ना की टीम चाहती है कि नेताओं के भाषण और कथन सत्य हों । तुलसीदास के अनुसार जगत सपना है तो सपना मा का झूठ और का सच ? बोला राम भरोसे

इतना सुनके रमजानी मियाँ ने अपनी लंबी दाढ़ी सहलाई और पान की गुलगुली दबाये कत्थई दांतों पर चुना मारते हुए कहा कि "बरखुरदार, अपना तो बस एक ही फंडा है कि जब जैसा,तब तैसा। ससुरी सच्चाई के अहंकार मा जकडे रहने में कवन बडाई है भईया ! कवन चतुराई है लकीर के फ़कीर बने रहने में ! इसी लकीर के फकीर बने रहने के चक्कर मा महात्मा गांधी मारल गईलें । इसामशीह के सूली पर चढ़ा दिहल गईल बगैरह-बगैरह।हम्म तो बस इतना जानते हैं राम भरोसे भैया कि भारत हो चाहे पाकिस्तान,अमेरिका हो चाहे अफगानिस्तान, सब जगह इहे खिस्सा मशहूर है भैया कि झूठ कहे सो लड्डू खाए, सांच कहे सो मारल जाए । 

वाह-वाह रमजानी मियाँ वाह, का तुकबंदी मिलाये हो मियाँ ! एकदम्म सोलह आने सच बातें कही है तुमने। ई विषय पर अपने खुरपेंचिया जी भी कहते हैं कि समाजसेवियों की निगाह मा जे झूठ है ऊ झूठ राजनीतिज्ञों की नज़र मा डिप्लोमेसी होई जात है ससुरी । काहे कि राजनीति मा झूठ रस से भरे होत हैं -रस की चासनी में सराबोर,मीठे-मीठे,मधुर-मधुर। साक्षात मधुराष्टकम होत हैं । कुछ सिद्धमुख झूठों के झूठ मा हर बार नवलता होत है - क्षणे-क्षणे यन्नवतामुपैती...। यानी कि इनके झूठ रमणीय होत हैं, जेकरा के कोई 'लेम एक्सक्यूज' या थोथा बहाना नाही कह सकत। यानी राजनीति मा झूठ 'असत्यं,शिवं,सुन्दरम' होत हैं, कहलें गजोधर 

इतना सुनके तिरजुगिया की माई चिल्लाई -"अरे सत्यानाश हो तू सबका । झूठ कs महिमा मंडित करत हौअs लोगन । इतना भी नाही जानत हौअs कि सत्य परेशान होई सकत हैं,पराजित नाही 

तोहरी बात मा दम्म है चाची,मगर अब ज़माना बदल गवा है । जईसे डायविटिज के पेशेंट चीनी खाय से डरत हैं,वईसहीं धर्मभीरु लोग अब झूठ के सेवन से कतरात हैं । झूठ मा जे मिठास है ऊ सच मा कहाँ चाची ! विश्वास ना हो तो जाके अपने डिक्की राजा और कपिल मुनि से पूछ लो, बोला गुलटेनवा

गुलटेनवा की बतकही सुनके चौबे जी गंभीर हो गए और इतना कहके चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया कि "बिन पानी के नदी होई सकत हैं,लेकिन बिना झूठ के राजनीति नाही चल सकत ।"



रवीन्द्र प्रभात
(दैनिक जनसंदेश टाइम्स/०६.११.२०११ )

14 comments:

  1. अब ज़माना बदल गवा है । जईसे डायविटिज के पेशेंट चीनी खाय से डरत हैं,वईसहीं धर्मभीरु लोग अब झूठ के सेवन से कतरात हैं । झूठ मा जे मिठास है ऊ सच मा कहाँ ?

    क्या बात है हुजूर !

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  2. बहुत बढ़िया व्यंग्य,पढ़ने के बाद यही महसूस होत हैं चौबे जी महाराज की हम्म गाँव में बैठके देश-दुनिया की चिंता और चिंतन मा निमग्न हईं !

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  3. "बरखुरदार, अपना तो बस एक ही फंडा है कि जब जैसा,तब तैसा। ससुरी सच्चाई के अहंकार मा जकडे रहने में कवन बडाई है भईया ! कवन चतुराई है लकीर के फ़कीर बने रहने में ! इसी लकीर के फकीर बने रहने के चक्कर मा महात्मा गांधी मारल गईलें । इसामशीह के सूली पर चढ़ा दिहल गईल बगैरह-बगैरह।हम्म तो बस इतना जानते हैं राम भरोसे भैया कि भारत हो चाहे पाकिस्तान,अमेरिका हो चाहे अफगानिस्तान, सब जगह इहे खिस्सा मशहूर है भैया कि झूठ कहे सो लड्डू खाए, सांच कहे सो मारल जाए ।


    सार्थक और सामयिक व्यंग्य !

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  4. आपको नमन प्रभात जी, आपने तो चौपाल के माध्यम से आमजन की आज की पीड़ा को लोगों के सामने ला दिया है, वह भी व्यंग्य की चाशनी में सराबोर करके !

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  5. सार्थक व्यंग बहुत शानदार प्रस्तुति सब से अच्छा लगा भाषा का प्रयोग... कभी समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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  6. बिना झूठ के राजनीति नहीं ...
    एकदम सच !

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  7. झूठ मा जे मिठास है ऊ सच मा कहाँ ?

    शानदार ....

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  8. एकदम्म सही कहत हौ चौबे जी, हम्म तोहरी बात कs समर्थन करत हईं ।

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  9. बिल्‍कुल सहमत हूँ लेख में प्रस्‍तुत किये गये विचारों से। चुटीला व्‍यंग्‍य किया है आपने।

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  10. "बिन पानी के नदी होई सकत हैं,लेकिन बिना झूठ के राजनीति नाही चल सकत ।"
    ...एकदम सच !
    बहुत बढ़िया व्यंग्य !

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  11. जमाना तो झूठ का हि है|

    सुन्दर व्यंग

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  12. वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ..आभार ।

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