सोमवार, 14 नवंबर 2011

हुजूर दाग अच्छे हैं !

चौबे जी की चौपाल 

आज चौबे जी की चौपाल लगी है राम भरोसे की मडई में । चटकी हुई है चौपाल । चुहुल भी खुबई है । खुले बरामदे में पालथी मार के बैठे हैं चौबे जी महाराज और कह रहे हैं कि "दामन पर कवनो दाग ना होना हमरी नज़र मा पहचान का सबसे बड़ा संकट है राम भरोसे । अगर नेताओं के दामन पर कोई दाग नाही है तो समझो भैया उसका नेता होना ही बेकार है। काहे कि अति विशिष्ट होत है दागदार नेताओं की पहचान । सफलता और प्रसिद्धि कs फार्मूला हs दामन पर बेतरतीब दाग । जे दाग से स्नेह करत हैं उनके मिलत हैं कुर्सी और जे दाग से नफ़रत करत हैं उनके मिलत हैं औपचारिकता और खानापूर्ति । जे सफल नेता होत हैं ऊ हरकत अईसन करत हैं कि दाग लगे। दाग लगिहें तो प्रसिद्धि मिलिहें। देश और इलाके के अलावा बाहर के वोटर भी उनके जनिहें। चुनाव के दौरान अपने चरित्र के विषय मा बताबे में कवनो मशक्कत ना करे के पडी उनके। दामन पर दाग बनल रही तो हचक के वोट भी मिलिहें और नोट भी। हमके तs ई बात की बहुत प्रसन्नता है कि हमरे देश के नेता अपने दागों के प्रति बहुत सहज और सजग रहत हैं। लेकिन का बताएं राम भरोसे, हमार करेजा फुन्काएल है इहे कुफुत से कि 'दाग ढूँढते रह जाओगे' के तर्ज पर आजकल एक से एक उपाय करे में लागल है हमरी सरकार। मगर मजबूर प्रधान मंत्री के कुछ मजबूत और समझदार सिपहसलार बार-बार इहे दुहारावत हैं कि हुजूर दाग अच्छे हैं । अरे कलमुंहे, जब दाग अच्छे हैं तो मिटावे खातिर जनता जनार्दन का सब साबुन,सोडा,सर्फ़ काहे खपा रहे हो। हमको तो अब बुझा रहा है कि कहीं दाग धोअत-धोअत ससुरी इज्जतो न धोआ जाए।"


अरे नाही चौबे जी, ई कलमुंही सत्ता बड़ी पावरफूल चीज होत हैं। सरकार बनते ही सत्ता का डिटर्जेट सारे दाग आसानी से धो देत है। काहे कि राजनीति मा दाग से कवनो परहेज नहीं होत । मगर घबराये के कवनो जरूरत नाही। सुने में आईल हs कि घर आऊर दूकान के अन्दर तक का नज़ारा दिखाएगा अब गूगल । फिर तो दाग छुपाते रह जायेंगे। अब तो बाथरूम में भी दिल खोलकर नही नहा पायेंगे अपने खुरपेंचिया जी। बोला राम भरोसे।

इतना सुनके रमजानी मियाँ ने अपनी लंबी दाढ़ी सहलाई और पान की गुलगुली दबाये कत्थई दांतों पर चुना मारते हुए कहा कि "लाहौल विला कूबत ,गूगल वालों का हो गया है दिमाग खराब। इतने दाग कम थे जो और दिखाएँगे। आपका खेत नs हरा-भरा है, जिसका खेत सूखा है ऊ तो खाद-पानी देगा हीं ? इसी मौजू पर एक शेर फेंक रहा हूँ मियाँ लपक सकते हो तो लपक लो, अर्ज़ किया है कि खुद पर न इतना सितम ढाया करो, दाग अच्छे हैं डिटर्जेंट के पैसे बचाया करो ...!''

रमजानी मियां का शेर सुनकर उछल पडा गुलटेनवा। करतल ध्वनि करते हुए बोला "वाह-वाह रमजानी मियाँ वाह, का तुकबंदी मिलाये हो मियाँ ! एकदम्म सोलह आने सच बातें कही है तुमने। ई विषय पर अपने खुरपेंचिया जी भी कहते हैं कि राजनीति मा दागों का बुरापन कवनो मायने नाही रखत। दाग अच्छे हैं के दर्शन और सिद्धांत जे नेता भांप लेत हैं ऊ दाग पर दाग चढ़ावत चलत हैं । उनके दाग पर इतने दाग चढ़ जात हैं कि मूल दाग अपने आप मिट जात हैं ससुर । हमरे समझ से दाग बुरे नाही होत, नजर बुरी होत है। दाग हैं तो अच्छे हैं।"

लेओ रमजानी भईया के शेर पर एक सवा शेर हमरे तरफ से भी सुन लेयो। अर्ज़ किया है कि 'दाग नही तो पथराई है आँखें फीका-फीका सा चेहरा है,दागे सियासत है जिसके पास उसका भविष्य सुनहरा है' ....अछैबर बोले ।

इसका मतलब ई हुआ अछैबर कि पैसा कमाना कवनो गुनाह नाही है ....पैसा है तो पावर है, इज्जत है, पैसा है तो प्रशंसा है, प्रसिद्धि है। पैसा है तो ससुरा जेल भी फाईव स्टार होटल से कम नाही । पैसा नाही है तो अच्छे-अच्छों के गाल पिचक जात हैं,चौक-चौराहा पर ऊ तमाशा बन जात हैं। ज़रा सोचो दाल में काला होना गुनाह के संकेत मानल जात हैं, दाल पिली हो या काली दाल तो दाल हीं है न,जब कलमुंही पूरी की पूरी दाल हीं काली है तो गुनाह कैसा ? और जब गुनाह, गुनाह हीं नही है तो डर काहे का ? बोला गजोधर ।

इतना सुनके तिरजुगिया की माई से ना रहल गईल, कहली कि -"वुद्धिभ्रष्ट हो गई है तुम सब की। ज़रा सोचs लोगन कि जवन देश की दो तिहाई आवादी मंहगाई रूपी सुरसा के मुंह मा जबरन घुस के आत्महत्या करे पर उतारू हो, ऊ देश मा चुनाव के नाम पर करोड़ों फूंक दिहल जात है । जवन देश की आधी आवादी वेरोजगार हो उहाँ नेताओं को रोजगार देवे के नाम पर अरवों कुर्वान कर दिहल जात है । लोकतंत्र का ऐसा बड़ा और मंहगा मजाक और का होई कि जवन धन से ई देश मा बिजली जले के चाही उहे धन से राजनीति की लौ जलत हैं। इसके वाबजूद अगर यह कहा जाए कि राजनेताओं को जनता की चिंता है तो इससे बड़ा सफ़ेद झूठ और का हो सकत है ? खुद करे तो इमानदारी और दूसरा करे तो चोरी ?"

तिरजुगिया की माई की बतकही सुनके चौबे जी गंभीर हो गए और उन्होंने कहा कि "तोहरी बात मा दम है तिरजुगिया की माई, मगर कबीर का ज़माना बीत गया है अब।उस समय जनसेवकों की समस्या थी कि मैली चादर ओढ़कर कैसे जाया जाए? जाया ही नहीं बल्कि मुँह कैसे दिखाया जाए? बड़ी परेशानी थी दाग को लेकर। इसीलिए कबीर जैसे लोग जिंदगी भर एक ही चादर को ओढ़ा और बिना दाग लगाए जस की तस धर गये। बिता दिए पूरा जीवन फकीरी में । लेकिन आज का युग जनसेवकों का नही चतुर नायकों का युग है जिसमें कहीं जाना हो तो मैली चादर ओढ़कर जाने का रिवाज़ है । स्वच्छ चादर के खतरे अधिक हैं। मैली चादर को कोई खतरा नहीं। दाग भी लगने से पहले बीस बार सोचेगा, लगूँ कि ना लगूँ। इसलिए सत्ता चलाने वाले राजनेताओं पर तो विज्ञापन की यह पंच लाइन एकदम फिट है .....कि दाग अच्छे हैं...।। इतना कहके चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया ।

रवीन्द्र प्रभात

8 comments:

  1. बिल्कुल सही कह रहे हैं. और यदि एक नई दागी पार्टी बनाई जाए तो न् जाने कितने दल उसमें खुशी खुशी विलीन हो जाएँगे.
    घुघूतीबासूती

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  2. अक्षरश: सही कहा है आपने ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  3. बहुत सुन्दर और सारगर्भित चौपाल है यह. अपने आप में अनूठा है . पात्र संयोजन और भाषा शैली आकर्षक है .

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  4. सच कहा आपने दाग अच्छे होते हैं राजनेताओं के लिए. यदि ऐसा नहीं होता तो गुंडे-मबाली राजनीति की शोभा नहीं बढाते !

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  5. अब तो दागदार नेताओं की संख्या इतनी बढ़ गयी है की ढूँढने की कोशिश की जाए तो बेदाग़ नेताओं को लोग ढूँढते रह जायेंगे !

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  6. आपने आंचलिक शब्दों का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है वह भी गुदगुदाते हुए !

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  7. सोचता हूँ,जब वे बेदाग़ होंगे ,तो उनका होना भी गैरज़रूरी होगा !

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