बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

ऊपरवाला

 

जब भी घटती है कोई घटना,बुरी आ अच्छी

लोग कहते हैं'ऊपरवाले की मर्जी'
कभी कोई अच्छा या बुरा करता है
हम कहते 'ऊपरवाला सब देखता है'
लोग कहते है'जब ऊपरवाला देता है'
'तो वो पूरा छप्पर फाड़ कर देता है'
एक प्रश्न अक्सर मेरे मन में उठता रहता है
'ये ऊपरवाला कौन है और कहाँ रहता है?'
ब्रह्मा ,विष्णु और महेश,जो भगवान कहाते है
जो सृष्टि का निर्माण,पालन और संहार कराते है
विष्णु भगवान का निवास क्षीर सागर है
ब्रह्मा जी का निवास ब्रह्म सरोवर है
और शिवजी का वास है पर्वत कैलाश
ये सब स्थान तो नीचे ही है,हमारे आसपास
तो फिर वो कौन है जो ऊपरवाला कहलाता है
हर अच्छे बुरे का
श्रेयजिसको जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रास्ता मंजिल का



तुममे भी जोश था और हम मे भी जोश था,

                        अनजान रास्तों पर ,जब हम सफ़र थे दोनों
ये कर लें,वो भी पालें,सारे मज़े उठा लें,
                         कर लें सभी कुछ हासिल,बस बे सबर थे दोनों
कांटे बिछे है पत्थर,दर दर पे लगे ठोकर,
                             रस्ते की मुश्किलों से,कुछ बे खबर थे दोनों
 खोये थे हम गुमां में,देखा तो इस जहाँ में,
                             कितने भरे समंदर,बस बूँद भर थे दोनों        
एसा जो हमने पाया, धीरज नहीं गमाया,
                            सोये थे अब तलक हम, अच्छा हुआ जो जागे
बेगानी सी दुनिया में,एक दूसरे को थामे,
                              भर कर के जोश दूना,बढ़ने लगे हम आगे
मन में हो लगन तो फिर,कुछ भी नहीं है मुश्किल,
                               थोड़े जुझारू बनके, कर  लोगे  लक्ष्य हासिल
अनुकूल होंगे मौसम,हो साथ सच्चा हमदम,
                                हारो न हौंसला तुम, तुमको  मिलेगी मजिल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वरदान चाहिये



हे भगवान्!

द्रौपदी ने माँगा था वरदान,
उसे एसा पति चाहिये,
जो सत्यनिष्ठ हो,
प्रवीण धनुर्धर हो,
हाथियों सा बलवान हो,
सुन्दरता की प्रतिमूर्ति हो,
और परम वीर हो,
 आप एक पुरुष में ,ये सारे गुण,
समाहित न कर सके,इसलिये
आपने द्रौपदी को ,इन गुणों वाले,
पांच अलग अलग पति दिलवा दिये
हे प्रभो,
मुझे ऐसी पत्नी चाहिये,
जो पढ़ी लिखी विदुषी हो,
धनवान की बेटी हो,
सुन्दरता की मूर्ति हो,
पाकशास्त्र में प्रवीण हो ,
और सहनशील हो,
हे दीनानाथ,
आपको यदि ये सब गुण,
एक कन्या में न मिल पायें एक साथ
तो कुछ वैसा ही करदो जैसा,
आपने द्रौपदी के साथ था किया
मुझे भी दिला सकते हो इन गुणों वाली
पांच  अलग अलग  पत्निया
या फिर हे विधाता !
सुना है कुंती को था एसा मन्त्र आता ,
जिसको पढ़ कर,
वो जिसका करती थी स्मरण
वो प्यार करने ,उसके सामने,
हाज़िर हो जाता था फ़ौरन
मुझे भी वो ही मन्त्र दिलवा दो,
ताकि मेरी जिंदगी ही बदल जाये
मन्त्र पढ़ कर,मै जिसका भी करूं स्मरण,
वो प्यार करने मेरे सामने आ जाये
फिर तो फिल्म जगत की,
 सारी सुंदरियाँ होगी मेरे दायें बायें
हे भगवान!
मुझे दे दो एसा कोई भी वरदान   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

संपर्क

 

बहुत जरूरी,इस दुनिया में,है सबसे संपर्क बनाना

संपर्कों से आसां होता है हर मुश्किल काम बनाना
फूलों से संपर्क बनाती मधुमख्खी तब मधु मिलता है
भोर सूर्य की किरण छुए तन,फूल कमल का तब खिलता है
तीली जब संपर्क बनाती  माचिस से तो आग लगाती
स्विच से है संपर्क तार का,तब ही बिजली ,आती जाती
प्रीत,प्रेम का प्रथम चरण है,नयनों से संपर्क नयन का
ये संपर्क बड़ा प्यारा है,मेल करा देता तन मन का
नर नारी के सम्पकों से,जग में आता है नवजीवन
खिलते पुष्प,फलित होते तरु,और महकते सारे  उपवन
सूर्य ताप संपर्क करे जब,सागर जल से,बनते बादल
बादल से जल,जल से जीवन,संपर्कों से ,जगती है चल
काम पड़े दफ्तर में कोई,तो संपर्क काम मे  आते
बरसों से लंबित मसला भी,है मिनटों में हल होजाते
तट भूमि ,उपजाऊ बनती,जब संपर्क बनाती नदिया
मोबाईल पर,बातें करना,संपर्कों का ही ,तो है जरिया
पूजा,पाठ, कीर्तन,साधन,प्रभु संपर्क अगर है पाना
बहुत जरूरी,इस दुनिया में,है सबसे ,संपर्क बनाना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

परिकल्पना की आगामी परियोजनाएं ....

जैसा कि आप सभी को विदित है कि प्रत्येक वर्ष परिकल्पना द्वारा बहुआयामी वार्षिक ब्लॉग विश्लेषण माह नवंबर-दिसंबर मे प्रकाशित किए जाते  है।  इस वर्ष ये विश्लेषण केवल अंतर्जाल पर हीं प्रस्तुत  नहीं किए जाएँगे अपितु विश्लेषण की संपूर्ण सामाग्री वटवृक्ष पत्रिका के आगामी अंक मेँ प्रकाशित भी की जाएगी, ताकि उसका दस्तावेजीकरण हो सके ।  

इस वर्ष मेरी कोशिश यह है कि विश्लेषण मे ज्यादा से ज्यादा हिन्दी के नए ब्लोगस और ब्लोगर्स शामिल किए जाएँ और इसी विश्लेषण के आधार पर निर्णायक मण्डल के द्वारा परिकल्पना सम्मान-2012 हेतु सम्मानधारकों का चुनाव हो ।


परिकल्पना द्वारा अबतक दो अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन का आयोजन क्रमश: नयी दिल्ली और लखनऊ में किया जा चुका है, जिसमें सौ से ज्यादा ब्लोगर्स  का सारस्वत सम्मान किया जा चुका है । ऐसी संभावना बन रही है कि तृतीय अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन का आयोजन अगले वर्ष भारत से बाहर होगा । परिकल्पना ब्लॉग विश्लेषण के आधार पर निर्णाययकों द्वारा चयनित ब्लोगर्स को उस सम्मेलन में पूरी भव्यता के साथ सम्मानित किए जाने की योजना है ।

इसके लिए मुझे आपका सहयोग चाहिए । कृपया आप अपने से जुड़े उन ब्लोगस या ब्लोगर्स की जानकारी देवे जिनका आगमन हिन्दी ब्लोगजगत मेँ इस वर्ष यानि 2012 मेँ हुआ है और उनके द्वारा अपनी पोस्ट प्रस्तुति से आपका मन मोह लिया गया हो .........!

इसके अलावा .......यदि आपको लगता है  कि आपके ब्लॉग की अबतक चर्चा नहीं हुयी है, जबकि चर्चा होनी चाहिए थी तो आप भी अपने ब्लॉग की जानकारी भेज सकते हैं ।

जानकारी 10 नवंबर 2012 तक यहाँ भेजें :  parikalpanaa@gmail.com

नोट : आप चाहें तो जानकारी टिप्पणी बॉक्स में भी अंकित कर सकते हैं ।

गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

कानजीलाल वर्सेस कजरीवाल ? O.M.G..!


कानजीलाल  वर्सेस  कजरीवाल ? O.M.G..!





प्यारे दोस्तों,

आपने  फिल्म `ऑ..ह  माय  गॉड` देखी  है?  इस  फिल्म में  भगवान की  सत्ता को  ललकारने वाले  `कानजी  लालजी  मेहता` नामक  एक आम आदमी का  किरदार (श्री परेश  रावलजी) आपको  याद  है? हाँ, तब  तो   फिर, ये  कानजीलाल के  सारे  संवाद भी  याद  होंगे..! पता  नहीं  क्यों, मुझे  आम  आदमी  कजरीवाल के  (MENGO PEOPLE ) मन  की  पीड़ा  और  ये कानजीलाल के  मन  की  पीड़ा,  एक  जैसी  लग  रही  है, आईए  देख ही  लेते  हैं..!

(नोट- यह  व्यंग आलेख  सिर्फ  मनोरंजन के  उद्देश्य  से  लिखा  गया  है, किसी  व्यक्ति-धर्म-पक्ष-परिवार-समाज से  इसका  कोई  लेनादेना  नहीं  है  - मार्कण्ड दवे ।)

=======

१. (वारासणी में   चोर बाज़ार  की  अपनी  दुकान के  लिए  होलसेल  मूर्तियाँ  ख़रीदते हुए ।)

कानजीलाल- " एक  बड़े  पेट वाले  गणपति  देना, एक  ढाईसो वाले  क्रिश्ना  देना और आठ  वो  बोड़ी-बिल्डर  हनुमान  देना..! कितना  हो  गया? अब  इतना  लिया है तो  फिर  तीन  सांईबाबा  तो  बोनस  मिलेगा  ना?"

/वर्सेस/

कजरीवाल- " एक  राष्ट्रीय  दामाद  लपेट  में  लिया, एक  कानून  मंत्री  भी  निपटा लिया  और   विरोधी  पार्टी  का  एक  चिल्लर  भी  ढ़ेर  हो  गया..! टोटल  तीन  हो  गया ? अब  इतनी सारी  मेहनत  के  बाद,  हिलस्टेशन  लवासा जाकर  बोनस  में   और  ग़हराई से  तफ़तीश  तो  करनी  पडेगी  ना..!"

२. ( भगवान का  अपमान  करने  पर  अपनी  पत्नी की  आस्था का  मज़ाक  उड़ाते हुए ।)

कानजीलाल- "मुझे  एक  बात  बता,  पत्नी  के  उपवास  रख़ने  से  पति  के  पाप  कैसे  धूल  सकते  हैं?"

/वर्सेस/

कजरीवाल- " मुझे  एक  बात  बता, अन्ना-रामदेव  के  उपवास  रखने  से,  इन  बेईमानों  का  ह्यदय  परिवर्तन  कैसे  हो  सकता  है?"

३. ( दहीं-हांडी कार्यक्रम में गोविंदा बने अपने  बेटे से  नाराज़ होकर ।)

कानजीलाल- "अ..रे..! मेरा  बेटा  ना  गोविंदा  बनेगा,  ना  चंकी  पांडे  बनेगा, बेवकूफ़..! मेरा  बेटा  बड़ा  होकर  क्रिकेटर  बनेगा  क्रिकेटर..समझी?"

/वर्सेस/

कजरीवाल- " मेरी  पार्टी  का  कोई  भी सदस्य  ना  लुच्चा  बनेगा, ना  लफ़ंगा  बनेगा, ठग्गीजी.! मेरा   हरेक  साथी  चुनाव  जीत  कर, देश  के  लिए   एक मिसाल  बनेगा  मिसाल..समझे?"

४. (राजस्थानी  ग्राहक  को  ठगने  के  आशय से ।)

कानजीलाल- " बद्रीनाथ  में  जब  मंदिर  बन  रहा  था  ना  तब  ज़मीन  फाड़कर  ये  मूर्ति  प्रगट  हुई  थी..! द्वारिका  के  बहुत  बड़े  साधु  जब  पदयात्रा  पर  निकले  थे तब  मैंने  उन्हें  एक  लोटा  पानी  पिलाया था  बस,  बदले  में  प्रसन्न  हो  कर  उन्होंने  मुझे  ये  मूर्ति  दी  और  ये  मूर्ति  आते  ही  मेरा  नसीब  पलट  गया ..!" 

/वर्सेस/

कजरीवाल- " दिल्ली  में  जब  भ्रष्टाचार  विरोधी  आंदोलन  चल  रहा  था   तब  अन्नाजी  के  साथ  मैं  भी  उसमें  शामिल  हुआ था  बस, बदले  में   उनसे  मतभेद  के  चलते  मुझे  ये  प्रेरणा  मिली (?) फिर,  उन्होंने  प्रसन्न  हो  कर  मुझे  आशिर्वाद  दिया  और  उनसे  अलग  होते  ही, इन   भ्रष्ट  मंत्रीओं  का  नसीब  चौपट   हुआ..!

५. (दहीं-हाँडी  कार्यक्रम  को  रूकवाने  के  आशय से  ।) 

कानजीलाल- " सुनिए, सुनिए, सुनिए, शांत  हो  जाईए..शांत  हो  जाईए..! अभी-अभी  धर्मधुरंधर  सिद्धेश्वर  महाराज ने  ये  बताया  है  कि, जगह-जगह  दहीं-हांडी  के  कार्यक्रम  में  उमड़ी  भीड़  को  देख  कर  किशन-कन्हैया  बहुत  प्रसन्न  हुए  हैं  और  आज  वो  अपने  भक्तों  के  हाथों से  दूध  और  मक्खन  खायेंगें..!"

/वर्सेस/

कजरीवाल- " सुनिए, सुनिए, सुनिए, शांत  हो  जाईए..शांत  हो  जाईए..! अभी-अभी अधर्म  धुरंधर  बे-असरकारी  सूत्रों ने  बताया  है  कि, जगह-जगह  नाना  प्रकार  की  समस्याओं  के विरुद्ध  चल  रहे  आंदोलनों  में  उमड़ी  दुःखी  भारी  भीड़  को  देख  कर  मनमोहन  भगवान  बहुत  आहत  हुए  हैं  और  आज  वो  सभी  भ्रष्ट मंत्रीओं  को  अपने हाथों  से  हथकड़ीयाँ  पहना  कर  उन्हें  जेल  भेजेगें..!"

६. ( दहीं-हाँडी  कार्यक्रम  का कबाड़ा  करने के  बाद ।)

कानजीलाल- " भगवान  का  ड़र  किसी  ओर  को  दिखाना  महाराज..! देखता  हूँ,  क्या  करेगा  भगवान..!"

/वर्सेस/

कजरीवाल- " मरने-मरवाने  का  ड़र  किसी  ओर  को  दिखाना  न्यायमंत्रीजी..! देखता  हूँ,  आपके  निर्वाचन  क्षेत्र  में  जाने-आने  पर  क्या  करेगें  बलवान..!


७. (इन्श्योरेन्सवालों  का  क्लॅम  पास  करने से  मना  करने के  बाद ।)

कानजीलाल- " हाँ,  मेरे  जैसे  पचास  कानजी के  केस  तो  चल  रहे  होंगें, मगर तुम्हारे  इस  किशन  पर  तो  किसीने  केस  नहीं  किया  होगा  ना..!  मैं   तुम्हारे  भगवान  पर  ही  केस  करूँगा..!  

/वर्सेस/

कजरीवाल- " हाँ, मेरे  जैसे  पचासों  NGO`S  के  केस  भ्रष्ट मंत्रीओं  पर  चल  रहे होंगे, मगर  आजतक  उनके  दामादों  पर  तो  किसीने  ऊँगली  नहीं  उठाई  होगी  ना.!  मैं   इस  देश के  सब से  बड़े  दामाद  पर  ही  ऊँगली  उठाऊँगा..!"

८. (कॉर्ट  रूम  में अपना केस  ख़ुद  लड़ते  हुए ।)

कानजीलाल-" दूसरा  कोई  रास्ता  ही  नहीं  है..! मि. लॉर्ड,  सारे  के  सारे  वकील  भगवान से  ड़रे  हुए  हैं  तो,  मज़बूरी  में  ये  केस  अब  मुझे  ही  लड़ना  पड़ेगा..!" 

/वर्सेस/

कजरीवाल- " दूसरा  कोई  रास्ता  ही  नहीं  है, मि. जनता,  सारे  के  सारे  पक्ष-सांसद  एक  दूसरे से  मिले  हुए  हैं  तो  फिर,   मज़बूरी  में  सरकार  की  अक्ल  अब  मुझे  ही  ठिकाने  लानी  पड़ेगी  ना..!

९. (कॉर्ट  रूम ।) 

कानजीलाल-" ये  तो  इन्स्योरन्सवालों  ने  कहा  कि,  भगवानने  तुम्हारी  दुकान गिराई  है, भगवान  से  पैसा  ले  लो, इसीलिए  मैंने  ये  केस  किया  है  वर्ना  हम  तो धंधेवाले  गुजराती  लोग  है, हमें  इस  झंझट में  पड़ना  ही  नहीं  है..!"

 /वर्सेस/

कजरीवाल- " ये  तो  सरकार  के  सारे  मंत्रीओ ने  हमें  बारबार उकसाया  कि, सरकार  की  ख़ामीयाँ   निकालना  आसान  है, एक  बार  राजनीति में  आकर  देखो, इसीलिए  हम ने  राजनीतिक  दल  बनाया  है  वर्ना,  हम तो  आम  आदमी  है, हमें  इस  झंझट में  पड़ना  ही  नहीं  है..!"

१०. (कॉर्ट रूम-"आई  ऑब्जेक्ट मि.लॉर्ड, भगवान के  सेवा कार्य  को  धंधा  कह  रहे हैं, मि.कानजी?)

कानजीलाल-" ये  धंधा  ही  है  मि.लॉर्ड..! जैसे  म्यूज़ियम में  मोम का  पुतला  दिखा कर  पैसे  लिए  जाते  हैं  बस, वैसे  ही  ये  लोग  मंदिर  में  पत्थर  का  पुतला  दिखा  कर  पैसे  ले  लेते  हैं..!  और,  पुजारीओं  की  तो  सैलरी  भी  होती  है..! इनके  धंधे  में तो  कभी   रिशेसन (Recession = मूल्यपतन)  भी  नहीं  आता..!"

 /वर्सेस/

कजरीवाल- " ये  सारे नेता लोग  इसे  धंधा  ही  मानते  है..!  पांच साल के  बाद  जैसे  ही नया चुनाव  आता  है  तुरंत, ये लोग  जनता के  सामने  बड़े-बड़े   झूठे  वायदे  दोहरा  कर  चुनाव  जीत  जाते  हैं  ..! और, सरकार से  सैलेरी, जनता से  रिश्वत, उद्योगपतिओं  के  साथ  धंधा  जमा  कर, सब कुछ  एक साथ  लूटते  हैं..! फिर, राजनीति  के  धंधे  में  तो  कभी  रिशेसन भी  (मंदी)  नहीं  आता..!""

११.(कॉर्ट रूम- "लेकिन, मंदिर वाले  आपको  पैसा  क्यूँ  दे?")

कानजीलाल-" क्यों  कि, मैंने  मंदिरो में  भी  लाखों के  प्रिमीयम  भरे  हैं..!  ये  देखिए, ये  सारी  रिसीप्ट,  उस  प्रिमीयम की  है,  जो  मैं  पिछले  अठ्ठारह  सालों से  भरता  आया  हूँ..! मि.लॉर्ड, ये  मस्जिद का  चंदा, ये  दरगाह की चद्दर, चर्च की  कैंडल, फ़क़ीर की  झोली, बाबा की  अगरबत्ती, माँ  की  चूंदड़ी (चूनरी), टोटल  दस-साढ़े दस लाख रूपया  मैं  सारी  दुकानो  में  भर  चुका  हूँ..! मेरी  सासुमाँ  बीमार  रहती  थी  तो  मंदिर वालों ने  कहा, ग्यारह  हज़ार  दो, पूजा  कराओ..फिर देखो, पूजा  कराई  और  सासुमाँ  टपक  गई..! चलो, वो  तो  अच्छा  हुआ  पर, ग्यारह  हज़ार  भी  गए? ये  लोग  तो  रिफंड भी  नहीं  देते..!"

 /वर्सेस/

कजरीवाल- " उनको  जवाब तो  देना  पड़ेगा क्यों कि, सरकार  ने  जनता से  टैक्स  वसूल  किया  है..! देखिये, आयकर, वेल्थ  टैक्स, कैपिटल  गेईन  टैक्स, सेल्स टैक्स, सर्विस  टैक्स, रोड  टैक्स, वगैरह, वगैरह..! टोटल, आज़ादी से  आजतक, इतने  सालों  में  जनता ने   करोड़ो-अरबों  रूपया  सरकारी  दुकानों में (दफ़्तरों में) भरे  हैं..! सरकार ने  कहा  था  कि, इस  टैक्स के  बदले में  आपके  लिए  आरामदायक  सुख-सुविधा  मुहैया  कराई  जाएगी  पर, ये तो  भ्रष्टाचार  कर  के  सारे  पैसे  हज़म  कर  गये  और  पूछने  पर जवाब  देने के  बजाय, हम पर  लाठीयाँ  बरसाते  है?"

१२. ( कॉर्ट रूम- छोटी-छोटी बातों के लिए भगवान पर केस नहीं किया जाता । )

कानजीलाल-"मि.लॉर्ड, ये  छोटी  बात  नहीं  है ।  मुझे  अगर  न्याय  नहीं  मिला  तो,  मैं  और  मेरा  परिवार  रास्ते  पर  आ  जायेंगें..! ये मंदिर वाले  कहते  हैं, श्रद्धा से  दान दो,  आप का  कभी  बुरा  नहीं  होगा  और  इन्स्योरन्स वाले  कहते  हैं, टाईम  पर प्रिमीयम  भरो, बुरा  हुआ  तो  हम  है  ना..! तो  मैंने तो  दान भी  दिया  है  और प्रिमीयम  भी  भरे  हैं..! और  आज  दोनों के  दोनों ने  हाथ  उपर  कर  लिए  हैं ?"

/वर्सेस/

कजरीवाल- " ये  छोटी-मोटी  लूट  नहीं  है..! जनता  को  अगर  न्याय  नहीं  मिलेगा तो  सब के सब  रास्ते  पर  उतर  आयेगें..! चुनाव के  वक़्त  इन्हों ने   ही   कहा  था कि, आप  हमें  वोट  दो  हम  आप  का  कल्याण  कर  देगें..! अब  भ्रष्टाचार  करने  के  बाद  कहते  हैं  कि, हमने  कुछ ग़लत  या  बुरा  काम  किया  है  तो  कॉर्ट  में  जाओ..! महँगाई  और सरकारी  टैक्स  भरते-भरते   हमारी  जेबें  ख़ाली  हो  गई  है  और  इन्होंने  हाथ  उपर  कर  दिए  है , हम  कॉर्ट  कैसे  जाएं?"

१३.(कॉर्ट रूम के बाहर- एक्ट ऑफ गॉड  के  ४००  करोड़ के  मुकद्दमे  दायर  होने के  बाद ।)

कानजीभाई-" महाराज, ये तो  सरकारी  जगह है, यहाँ से  तो  सुरक्षित  निकल जाओगे  लेकिन, इन  लोगों से  मंदिरो में, मस्जिदों मे, गिरिजाघरों में, किस-किस से  बचोगे?"

/वर्सेस/

कजरीवाल-" नेताजी, जब तक सरकारी गाड़ी और सुरक्षा साथ है, सुरक्षित रहोगे लेकिन, अगला  चुनाव  हार कर  जब  सारे  देश में  घूमोगे  तब  किस-किस से बचोगे?"

१४.( टीवी  इंटरव्यू  में ।)

कानजीलाल- " जिस तरह वो  माफ़िया वाले  गन  दिखा  कर  ड़राते  हैं,  ये लोग भगवान  दिखा  कर  ड़राते  हैं..! आप के  बच्चे की  कुंडली  मांगलिक  है, उसे  कालसर्प  योग है, वगैरह..वगैरह..! क्या  है  ये, उसे  साँस  तो  लेने  दो ?

/वर्सेस/

कजरीवाल-" जिस तरह  वो  माफ़िया वाले  गन  दिखा कर  ड़राते  है, ये  नेता  लोग देशी-विदेशी  विरोधीओं  को  दिखा कर  हमें  ड़राते  हैं..! आप को  आतंक  से  ख़तरा  है, आप को  विरोधी  पार्टीओं की  नीतिओं  से  ख़तरा  है,  वगैरह..वगैरह..! क्या  है  ये, हमें  किसे  वोट  देना  है, ख़ुद  ही  तय  करने  दो?"

१५.(टीवी  इंटरव्यू  में- आप के हिसाब से धर्म की परिभाषा क्या है, धर्म या मज़हब एक इन्सान की  ज़िंदगी में  क्या  काम  करता  है ?)

कानजीलाल- " मैं  समझता हूँ  जहाँ  धर्म  है,  वहाँ  सत्य के  लिए  जगह  नहीं  है  और  जहाँ  सत्य  है, वहाँ  धर्म  की  ज़रूरत ही  नहीं  है? मेरे  हिसाब से  तो  धर्म  एक ही  काम  करता  है, या तो  वो  इन्सान को  बेबस  बनाता  है  या  आतंकवादी..!"

/वर्सेस/

कजरीवाल-" मैं  समझता  हूँ,  जहाँ  किसी  पद प्राप्ति की लालसा  है,  वहाँ  देश  की सेवा  के लिए  जगह  नहीं  है  और  जहाँ  देश  सेवा की  भावना  हैं,  वहाँ  सत्ता-लालसा की  ज़रूरत ही  नहीं  है..! मेरे  हिसाब से  तो  सत्ता-लालसा  एक ही  काम  करती  है, या तो  वो  लीडर  को  भ्रष्ट  बनाती  है  या  फिर,  किसी  पक्ष, परिवार  या मंत्रीजी  का  चापलूस..!"

====

ANY  COMMENT,  SIR?

मार्कण्ड दवे । दिनांकः२५--१०-२०१२.

--
MARKAND DAVE
http://mktvfilms.blogspot.com   (Hindi Articles)

पैसा कमाऊं -पर गुरु किसको बनाऊं ?

   पैसा कमाऊं -पर  गुरु किसको बनाऊं ?

इस दुनिया में ,देखा  ऐसा

सारे काम बनाता पैसा
पैसेवाला  पूजा जाता
मेरे मन में भी है आता
मै भी पैसा खूब  कमाऊं
लेकिन किस को गुरु बनाऊँ ?
टाटा,बिरला और अम्बानी
सभी हस्तियाँ,जानी,मानी
सब के सब है खूब  कमाते
पर ये है उद्योग   चलाते
पर यदि है उद्योग  चलाना
पहले पूँजी पड़े  लगाना
मेरे पास नहीं है पैसे
तो उद्योग लगेगा कैसे?
एसा कोई सोचें रस्ता
जो हो अच्छा,सुन्दर,सस्ता
पैसा खूब,नाम भी फ्री  का
धंधा अच्छा,नेतागिरी  का
बन कर भारत  भाग्य विधाता
हर नेता है खूब कमाता
राजा हो या हो कलमाड़ी
सबने करी कमाई गाढ़ी
पर थे कच्चे,नये खेल में
इसीलिये ये गये जेल में
पर कुछ नेता समझदार है
जैसे गडकरी और पंवार है
या कि बहनजी मायावती है
क्वांरी,मगर करोडपति  है
ये सब नेता,मंजे हुए  है
लूट रहे ,पर बचे हुए  है
रख कर पाक साफ़ निज दामन
आता इन्हें कमाई का फन
इन तीनो को गुरु बना लूं
मै इनकी तस्वीर लगा लूं
एकलव्य सा ,शिक्षा  पाऊं
धीरे धीरे खूब  कमाऊं
गुरु दक्षिणा में क्या दूंगा
उन्हें अंगूठा दिखला दूंगा
सीखे कितने ही गुर उनसे
 काम करूंगा  सच्चे मन से
बेनामी कुछ फर्म बनालूँ
रिश्वत का सब पैसा डालूँ
इनका इन्वेस्टमेंट दिखा कर
काला पैसा,श्वेत  बनाकर
बड़ा खिलाड़ी मै बन जाऊं
जगह जगह उद्योग  लगाऊं
या फिर एन. जी .ओ बनवा कर
इनके नाम अलाट करा कर
अच्छी सी सरकारी भूमि
करूं तरक्की,दिन दिन दूनी
रिश्तेदारों के नामो  पर
कोल खदान अलाट करा  कर
कोडी दाम,माल लाखों का
नहीं हाथ से छोडूं मौका
लूट रहे सब,मै भी लूटूं
मै काहे को पीछे छूटूं ?
या फिर जन्म दिवस मनवाऊँ
भेंट  करोड़ों की मै पाऊँ
काले पैसे को उजला कर
अपने नाम ड्राफ्ट  बनवा कर
कई नाम से,छोटे छोटे
करूं जमा मै पैसे  मोटे
या हज़ार के नोटों वाली
माला पहनूं , मै मतवाली
ले शिक्षा,गुरु घंटालों से
बचूं टेक्स के जंजालों से
केग रिपोर्ट में यदि कुछ आया
जनता ने जो शोर मचाया
उनका मुंह  बंद कर दूंगा
जांच कमेटी बैठा  दूंगा
बरसों बाद रिपोर्ट आएगी
भोली जनता ,भूल जायेगी
नेतागिरी है बढ़िया धंधा
कभी नहीं जो पड़ता  मंदा
हींग ,फिटकरी कुछ न लगाना
फिर भी आये रंग सुहाना
नाम और धन ,दोनों पाओ
सत्ता का आनंद  उठाओ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

मोतीचूर,गुलाब जामुन,और जलेबी-क्यों?



मोतीचूर,

बून्दियों का है वो संगठित रूप,
जो सहकारिता का प्रतीक है,जिसमे,
सैकड़ों बूंदिया,हाथ में दे हाथ
बिना अपना व्यक्तित्व खोये,
जुडी रहती है आपस में,
अन्य बून्दियों के साथ
मोती स्वरुप,
बून्दियों का ये संयुक्त रूप,
जिसे बनाने में,
इन मोती सी बून्दियों को चूरा नहीं है जाता
मोतीचूर है क्यों कहलाता?
दुग्ध को जब हम करते है गरम,
तो वो उबलता है,उफनता है
मानव स्वभाव से,दूध का स्वभाव,
कितना मिलता जुलता है
पर यदि धीरज के खोंचे से,
दूध को हिलाते रहो,
तो उफान रुक जाता है
और दुग्ध,धीरज वान होकर,
धीरे धीरे बंध जाता है
दूध,जब इस तरह,अपने स्वभाव से,
करता है उफान या गुस्सा खोया
दूध का यह बंधा रूप,कहलाता है खोया
पर जब इस खोये की,
छोटी छोटी गोलियों को,घी में तल कर,
किया जाता है रस में लीन
तो उन्हें कहते है 'गुलाब  जामुन'
विचारणीय बात ये है,
कि ये रसासिक्त गोलियां,
न तो रखती है गुलाब कि खुशबू,
न जामुन कि रंगत,या स्वाद आता है
तो यह गुलाब जामुन क्यों कहलाता है?
मैदे का घोल,
गर्मी से एक दो दिवस बाद,
लगता है उफनने,और खमीर बना ये पदार्थ,
जिसे जब,एक छिद्र के माध्यम से,
अग्नि तपित घी में डाल कर,
विभिन्न स्वरुप में तल कर,
जब प्यार कि चासनी में डुबोया जाता है
तो उसका यह रसमय व्यक्तित्व,सभी को भाता है
पर जब टेड़े मेडे आकारों की ये  रसासिक्त कृतियाँ,
नहीं होती है जली कहीं भी
क्यों कहलाती है जलेबी?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 

सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

सर्दियों का आगाज़



आ गया कुछ  ऋतू में बदलाव सा है

सूर्य भी अब देर से उगने लगा  है
है बड़ा कमजोर सा और पस्त भी है
इसलिए ये शीध्र होता   अस्त भी है
फ़ैल जाता है सुबह से ही धुंधलका
हो रहा है धूप का सब तेज  हल्का
रात लम्बी,रह गया है दिन सिकुड़ कर
बोझ वस्त्रों का गया है बढ़ बदन पर
नींद इतनी आँख में घुलने लगी है
आँख थोड़ी देर से खुलने लगी  है
सपन इतने आँख में जुटने लगे है
आजकल हम देर से उठने  लगे है
हो गया कुछ इस तरह का सिलसिला है
रजाई में दुबकना लगता भला  है
चाय,कोफ़ी,या जलेबी गर्म खाना
आजकल लगता सभी को ये सुहाना
भूख भी लगने लगी,ज्यादा,उदर में
जी करे,बिस्तर में घुस कर,रहो घर में
पिय मिलन का चाव मन में जग रहा है
सर्दियां आ गयी,एसा   लग रहा  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 21 अक्तूबर 2012

गुलाबी ठंडक-गुलाबी मौसम



बदलने मौसम लगा है आजकल,,

                          शामो-सुबह ,ठण्ड थोड़ी बढ़ रही
दे रही है रोज दस्तक सर्दियाँ,
                          लोग कहते ठण्ड गुलाबी  पड़ रही
रूप उनका है गुलाबी फूल सा,
                           पंखुड़ियों से अंग खुशबू से भरे
देख कर मन का भ्रमर चचल हुआ,
                           लगा मंडराने,करे तो क्या करे
हमने उनको जरा छेड़ा प्यार से,
                            रंग गालों का गुलाबी हो गया
नशा महका यूं गुलाबी सांस का,
                           सारा मौसम ही शराबी हो  गया
आँख में डोरे गुलाबी प्रिया के,
                           तो समझलो चाह है अभिसार की
लब गुलाबी जब लरजते,मदमदा ,
                           चौगुनी  होती है लज्जत प्यार की
मन रहे अब हर दिवस त्योंहार है,
                           रास,गरबा,दिवाली  और दशहरा
हो गुलाबी ठण्ड समझो आ गया,
                            प्यार का मौसम सुहाना ,मदभरा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

चलित-फलित



स्थिर यह आकाश शून्य है,लेकिन सूर्य चलायमान है

कितनो को दे रहा रोशनी,कितनो में भर रहा  प्राण है
चलना गति है,चलना जीवन,चलने से मंजिल मिलती है
वृक्ष खड़ा ,स्थिर रहता है,किन्तु हवाएं जब चलती है
शाखें हिलती,पत्ते हिलते,वृक्ष अचल,चल हो जाता  है
कभी पुष्प की बारिश करता है,और कभी फल बरसाता है
नदिया का जल,होता चंचल,जब वो चलती,कल कल करती
उदगम से लेकर सागर तक,अपना नीर,बांटती ,चलती
पाती है संपर्क धरा जो,हो जाती,उपजाऊ,सिंचित
स्थिर ,कूप,सरोवर,इनका,सीमा क्षेत्र,बड़ा ही सीमित
सूर्य ताप से ,वाष्पित होकर,हो जाते है,शुष्क सरोवर
लहरे बहा,तरंगित रहता,पूरित जल से,हरदम सागर
चंदा चलित,चांदनी देता,बादल चलित ,नीर बरसाते
धरा चलित ,अपनी धुरी पर,दिन और रात तभी है आते
यह ऋतुओं का चक्र चल रहा,वर्षा,गर्मी या फिर  सरदी
हम मे सब मे,तब तक जीवन,जब तक सांस,हमारी चलती
चलित फलित है,चलना ऊर्जा ,जड़ता लाती है स्थिरता
चलने से ही गति मिलती है,गति से ही है प्रगति,सफलता
चंचल चपल,बाल्यपन होता,होती चंचलता यौवन में
होती बड़ी चंचला  लक्ष्मी, जो सुख सरसाती जीवन में
नारी नयन बड़े चंचल है,सबसे ज्यादा चंचल मन है
स्थिरता,स्थूल बनाती,चलते रहना  ही जीवन है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

हे भगवान्!ये क्या हो रहा है?



हे भगवान्! ये क्या हो रहा है

शासन करने वाले माल लूट रहे है,
और बेचारा आम आदमी रो रहा है
सत्ता से जुड़े लोग,और जो उनके सगे है
सब अपनी अपनी तिजोरियां भरने में लगे है
कोई करोड़ों की रिश्वतें खा रहा है
कोई अपने दामाद को फायदा पहुंचा रहा है
 सत्ता में हो या विपक्ष
सब का है एक ही लक्ष्य
जितना हो सके देश को लूट लें
पता नहीं बाद में ये मौका मिले ,ना मिले
तुम करो मेरे चार काम
मै करूं तुम्हारे चार काम
'ओपोजिशन ' तो दिखने का है
हमारा मुख्य ध्येय तो पैसा कमाने का है
देश की जमीन है,
थोड़ी मै अपने नाम करवालूँ
थोड़ी तुम अपने नाम करवालो
आधी मै खालूं,आधी तुम खालो
मिलजुल कर जमाने में गुजारा करलो
और अपनी अपनी तिजोरियां भरलो
एक मंत्री ,विकलांगों के नाम पर,
झूंठे दस्तावेजों से,लाखों रूपये उठाता है
और कोई जब ये तथ्य सामने लाता है
तो देश का कानून मंत्री,
कानून को ताक पर रख कर,उसे धमकाता है
मेरे विरुद्ध यदि कुछ बताओगे
और मेरे क्षेत्र में आओगे
तो देखते है कैसे वापस जा पाओगे
कानून का मंत्री खुले आम,
 कानून की धज्जियाँ उड़ा देता  है
और इस पर देश का दूसरा मंत्री ,
(जो कोयले की दलाली में खुद काला है)
ये प्रतिक्रिया देता है
केन्द्रीय मंत्री सिर्फ लाखों में करे  घोटाला ,
इस बात पर विश्वास नहीं कर,सकता कोई समझवाला
अरे केन्द्रीय मंत्रियों का स्टेंडर्ड तो है,
करने का करोड़ों का घोटाला
मंहगाई का दंश गरीब झेल रहे है
और राजनेता करोड़ों में खेल रहे है
 अब तो तेरे अवतार लेने का सही टाईम आगया है ,
और तू सो रहा है
हे भगवान!ये क्या हो रहा है?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

कमबख्त यार



बड़ा कमबख्त यार है मेरा

गुले गुलज़ार प्यार है मेरा
        बहुत वो मुझसे  प्यार करता है
         मस्तियाँ और धमाल करता है
         ख्याल रखता है वो मेरा हरदम,
         जान मुझ पर निसार  करता है
मेरी साँसों की मधुर सरगम है,
मुझपे अनुरक्त यार है मेरा
 बड़ा कमबख्त यार है मेरा
         देखता तिरछी जब निगाहों से
          रिझाता है नयी  अदाओं  से
           कभी खुद आके लिपट जाता है,
          कभी  जाता है छिटक बाहों से
सताता मुझको अपने जलवों से,
वक़्त,बेवक्त  यार है मेरा 
बड़ा कमबख्त  यार है मेरा
             कभी सावन सा वो बरसता है
              कभी बिजली सा वो कड़कता है
             कभी बहता है नदी सा ,कल कल,
             कभी वो बाढ़ सा   उमड़ता  है
कभी मख्खन सा वो मुलायम है,
तो कभी सख्त  यार है मेरा
बड़ा कमबख्त  यार है मेरा       
               जब भी हँसता है,मुस्कराता है
               आग सी दिल में वो  लगाता है
               रोशनी बन के झाड़ फानूस की,
                मेरे   घर को वो  जगमगाता है
मेरे जीवन को जिसने महकाया,
ऐसा जाने बहार है मेरा
बड़ा कमबख्त यार है मेरा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हम पंछी एक डाल के



समझदार चिड़ियायें,
सुबह जल्दी से उठ कर,
बिजली के खम्बों के नीचे,
पा जाती ढेर सारे कीड़े
       जैसे 'सेल' लगने पर,
       समझदार  महिलायें,
       सुबह सुबह जल्दी जा,
      चुन लेती अच्छे कपडे
सुबह सूर्य उगने पर,
बिजली के तारों पर,
पंक्तिबद्ध होकर के,
चहचहाती चिड़ियायें
        काम काज निपटाकर ,
        सर्दी के मौसम में,
        धूप भरे  आँगन में,
        गपियाती   महिलायें
आसमां में कुछ पंछी,
पंखों को फैलाये,
चुहुलबाजियाँ करते,
बस यूं ही उड़ते है
          रिटायर्मेंट होने पर,
          समय काटने को ज्यों,
          कुछ बूढ़े  संग बैठ,
           गप्प  मारा करते है
कुछ पंछी,सुबह सुबह,
नीड़ छोड़ उड़ जाते,
चुगने को दाना और,
शाम ढले आते है
          जैसे हम सुबह सुबह,
          दफ्तर को जाते है,
          नौकरी कर दिन भर,
          शाम को आते है
 पंछी के जीवन सा,
हम सबका है जीवन
सपनो के पंख लगा,
हम उड़ते है हर क्षण

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

पत्नी,प्रियतमा और प्यार

 

पत्नी को प्रियतमा बना कर  प्यार कीजिये

महका कर इस जीवन को  गुलजार कीजिये
                  घर की मुर्गी दाल बराबर  नहीं समझिये
                  बल्कि बराबर दिल के उसे सजा कर रखिये
                  मान तुम्हे परमेश्वर ,जान लुटा वो देगी
                   तुम मानोगे एक बात वो दस   मानेगी
                  इधर  उधर  ना फिर तुम्हारा मन भटकेगा
                  हर पल तुमको जीने का आनंद   मिलेगा
                  बन कर एक दूजे का संबल जीओ  जीवन
                  और कहीं भी नहीं मिलेगा  ये अपनापन
                  सदा रहोगे जवां,बुढ़ापा  भाग जाएगा
                  तुमको सचमुच में ,जीने का स्वाद आएगा
खुशियाँ भरिये,और सुखमय संसार कीजिये
पत्नी को प्रियतमा बनाकर  प्यार  कीजिये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'                        

शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

मरने पर ........



जीते जी तीर्थ  न करवाये,

                       मरने पर संगम जाओगे
भर पेट खिलाया कभी नहीं,
                      पंडित को श्राद्ध खिलाओगे      
बस एक काम ही एसा है,
                      जो तब भी किया और अब भी किया,
जीते जी बहुत जलाया था,
                      मरने पर भी तो जलाओगे 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

बहू तो आखिर बहू है



क्या हुआ जो नहीं तुमसे,ठीक से वो बात करती

क्या हुआ घर पर न टिकती,करती रहती मटरगश्ती
क्या हुआ जो उसे खाना बनाने से बहुत चिढ  है
क्या हुआ जो छोटी  छोटी बात पे वो जाती भिड़ है
क्या हुआ कर बंद कमरा,देखती रहती है टी.वी.
अपने बेटे की बना कर ,लाये हो तुम उसे बीबी
इसलिए ये उसे हक है,जी में आये,वो करे  वो
तुम्हारी करके बुराई,कान निज पति के भरे वो
पति जो भी कमाता है,उस पे अपना हक जमाये
सास,ननदों की न पूछे,मौज मइके में  उडाये
तुम्हारा  ही पुत्र तुमसे,छीन यदि उसने लिया है
 बढाया है वंश तुम्हारा,तुम्हे  पोता दिया  है
है पराये घर की बेटी,था पराया  खून पर अब
इतने दिन से ,चूस करके,खून तुम्हारा ,मगर सब
तुम्हारे ही लहू जैसा, हो गया उसका लहू  है
बहू तो आखिर बहू  है

मदन मोहन बाहेत'घोटू'

विचारणीय प्रश्न



कभी,कहीं,किसी पार्टी में,

या फिर और कहीं,
आप अपने किसी परिचित से मिलते है
और उनके मुख से,
अपने बारे में कमेन्ट सुनते है
"आज आप स्मार्ट लग रहे है या,
 आज आप बड़ी सुन्दर लग रही हो "
तो आप खुश होकर उन्हें धन्यवाद देते  है
पर क्या आपने कभी ये सोचा है
कि उनकी इस तारीफ़ में थोडा लोचा है
उनका ये कहना कि आज,
 आप लग रहे है सुन्दर या स्मार्ट
शायद बतलाता है ये बात
कि ये तारीफ़ है आज भर की
अन्य दिनों,आप उनको,सुन्दर,
या स्मार्ट नहीं लगते कभी
और उनका आज आपकी तारीफ़ करना,
कहीं आपको दुशाले में लपेट कर मारना तो नहीं है
और आप खुश हो या नाराज,
आपको विचारना यही है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कभी हम पास होते है,कभी हम फ़ैल होते है



हमारी जिंदगानी में,बहुत से खेल होते है

कभी हम पास होते है,कभी हम फ़ैल होते है
हरेक पल में परीक्षा है,हरेक पल में समीक्षा है
मगर धीरज नहीं खोना,बुजुर्गों की ये शिक्षा है
भले भी लोग मिलते है,बुरे भी लोग मिलते है
कहीं पर कांटे चुभते है,कहीं पर फूल खिलते है
कभी तन्हाई का आलम,कभी है भीड़  यारों की
कभी सूखी पड़ी फसलें,कभी मस्ती बहारों की
इस दुनिया के समंदर में,हमारी तैरती किश्ती
कभी ये डगमगाती है,कभी तूफां में जा फसती
कभी है ज्वार या भाटा ,कभी सुन्दर फिजायें है
कभी सूरज की गर्मी hai,कभी शीतल हवायें है
अगर तकदीर अच्छी है,भला हमराह मिलता है
हरेक  मुश्किल में तुम्हारी,जो थामे बांह मिलता है
न कोई आस कोई से,न कोई से अपेक्षा है
न कोई से गिले शिकवे, न कोई की उपेक्षा है
दुआ है दोस्तों की और नहीं हो खोट नीयत में
मिलेगा तारने वाला,तुम्हे हर एक मुसीबत में
लगन हो,कोशिशें होऔर अगर हो हौंसला हासिल
चले जाओ,चले जाओ,बड़ी आसान है मंजिल
किसी से अनबनी होती,किसी से मेल होते है
कभी हम पास होते हैं,कभी हम फ़ैल होते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'




कभी सोलह की लगती हो, कभी सत्रह की लगती हो



मुझे  जब कनखियों से देखती ,तिरछी नज़र से तुम

बड़ी हलचल मचा  देती हो     मेरे इस जिगर में तुम
दिखा कर दांत सोने का,    कभी जब मुस्कराती हो
तो इस दिल पर अभी भी सेकड़ों ,बिजली गिराती हो
हुआ है आरथेराइटिस, तुम्हे  तकलीफ   घुटने की
मगर है चाल में अब भी ,अदायें वो, ठुमकने  की
वही है शोखियाँ तुम में,वही लज्जत, दीवानापन
नजाकत भी वही,थोडा,भले ही  ढल गया है तन
बदन अब भी मुलायम पर,मलाईदार  लगती हो
महकती हो तो तुम अब भी,गुले गुलजार लगती हो
तुम्हारा संग अब भी रंग ,भर देता है जीवन में
जवानी जोश फिर से लौटता है तन के आँगन में
सवेरे उठ के जब तुम ,कसमसा ,अंगडाई भरती हो
कभी सोलह की लगती हो,कभी सत्रह की लगती हो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आंसू

               आंसू

नहीं अश्कों पे जाओ तुम,ये आंसू बरगलाते है
ख़ुशी हो या हो गम ,आँखों में आंसू आ ही जाते है
जो पानी आँख से बहता, सदा आंसू नहीं  होता
ये तो चेहरा बताता है,कोई हँसता है या  रोता
कोई जब दूर जाता है ,तो आँखें डबडबाती  है
कोई मुद्दत से मिलता है,तो आँखें भीग जाती है
 कभी जब भावनाओं में,जो विव्हल होता है ये मन
तो अपने आप होते नम,हमारी  आँख के चिलमन
निकल जाते है आंसूं ,आँख में कचरा अगर पड़ता
दवाई सुरमा डालो तो भी पानी आँख से   बहता
रसोई में जो काटो प्याज, आंसू आ ही जाते है
मिर्च झन्नाट खा लो तेज,आंसू डबडबाते   है
बहुत ज्यादा हंसी भी आँख में पानी है ले आती
करुण कोई कहानी सुन के आँखें नीर भर लाती
बहुत गुस्से में बरसा करते आंसूं बन के अंगारे
कभी भी,किस तरह के हों,ये आंसू होते है खारे
मगरमच्छी है कुछ आंसूं,जो होते है दिखाने को
किसी की सहानुभूति या किसी का प्यार पाने को
अपनी जिद्द मनवाते है बच्चे,अस्त्र  है आंसू
त्रिया हाथ पूरी करवाने को तो ब्रह्मास्त्र है आंसू
हसीनो के कपोलों पर ये मोती बन ढलकते है
तो हो कितने ही पत्थर दिल,सभी के दिल पिघलते है
बड़े कमबख्त है आंसू,यूं ही आ जाते है जब तब
बहे गौरी के गालों पर,बिगाड़े चेहरे का मेक अप
ह्रदय की भावनायें,वाष्पीकृत हो जो उठती है
तो हो कंडेंस,आँखों से,वो बन आंसूं ,निकलती है
आदमी आता है रोता,वो जाता ,हर कोई रोता
मगर भंडार आंसूं का,कभी खाली  नहीं  होता
हंसाते है, रुलाते है, मनाते है, सताते   है
ख़ुशी हो या हो गम,आँखों में आंसूं आ ही जाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

श्रद्धा और श्राद्ध

             श्रद्धा और श्राद्ध

हम अपने पुरखों को,पुरखों के पुरखों को,

                  साल में पंद्रह दिन ,याद किया करते है
ब्रह्मण को हम प्रतीक,मान कर के,पितरों का,
                 पितृ पक्ष में उनको ,तृप्त  किया  करते है
श्राद्ध कर श्रद्धा से,तर्पण कर पितरों का,
                 मातृ शक्ति का वंदन, नौ  दिन तक करते है
यह उनकी आशीषों का ही तो प्रतिफल है,
                  दसवें दिन रावण  को,मार   दिया करते  है
विदेशी कल्चर की ,दीवानी नव पीढ़ी,
                     मात पिता   के खातिर,करती है इतना बस
एक बरस में केवल,एक कार्ड दे देती ,
                        एक दिवस मातृदिवस,एक दिवस पितृ दिवस   
इक दिन वेलेंटाइन,लाल पुष्प भेंट करो,
                         बाकि दिन जी भर के,मुंह मारो इधर  उधर
पूजती है पति को,भारत की महिलाएं,
                          मानती है परमेश्वर,रखती है व्रत   दिन भर
हमारे संस्कार,बतलाते बार बार,
                          होता है सुखदायी,परम्परा का पालन
बहुत पुण्य देता है,मात पिता का पूजन,
                           श्रद्धा से पूजो तो, पत्थर भी है भगवन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

   

बुधवार, 10 अक्तूबर 2012

Re: जमाई जी,आप तो देश के दामाद है

This poem seems to be for Robert Vadra. Pls find under given facts about him.

Hidden Truths

 


THIS IS JUST AMAZING ! IT HAPPENS ONLY IN INDIA !




Please read and then forward to as many people as possible...

1. TATAs took 100 years to become billionaire, Ambanis took 50 years(after utilizing all its resources), where as Robert Vadra took less than 10 years to become fastest multi billionaire.


2. All newspapers are scared to discuss the story of Robert Vadra because of severe threat from Sonia Gandhi and Congress govt.


3. After Robert Vadra got married with Priyanka Gandhi, Robert's father committed suicide under mysterious circumstances, his brother found dead in his Delhi residence and his sister found dead in mysterious car accident. These reports were not published in any Indian media.


4. He is having stakes in Malls in premier locations of India, he is having stakes in DLF IPL, and DLF itself. He was involved in CWG corruption - DLF was responsible for development of Commonwealth games, and Kalmadi gave favoritism to DLS because of Robert Vadra's direct interest and business partnership with DLF.


5. Robert Vadra owns many Hilton Hotels including Hilton Gardens New Delhi


6. Robert Vadra's association with Kolkata Knight Ryders has never been reported by Indian media


7.
Hehas 20% ownership in Unitech, Biggest beneficiaryownership of 2G Scam. Because of Robert's involvement in this scam, there are concerns that investigationwould never reach decisive conclusion
8. He owns prime property in India specially commercial hubs, and taxi business but for Air Taxi. He owns few private planes as well.

9.
He has direct link with Italian businessman Quatrochi.
10.The Bureau of Civil Aviation Security has created a record of sorts by according special privilege to Robert Vadra, which entails him to walk in and out of any Indian airports without being subject to any security check. Only the President of India , Vice-President and a handful of other top dignitaries were accorded this rare distinction.
As a concerned citizen, I would like to know from the Government as to what was the special quality in Mr. Vadra that merited this rare honor. The government has no right to go in for such largesse that concerns with the security of the general public just for pleasing the son-in-law of Sonia Gandhi.
WAKE UP FELLOW INDIANS ! FIGHT AGAINST CORRUPTION !!!!!!!



   




 

Regards
Rakesh Sharda
Sent from my I Pad


On 10-Oct-2012, at 19:04, madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com> wrote:

जमाई जी,आप तो देश के दामाद है

राजाजी के दामाद जी पर किसीने आरोप लगाया

कि  उनने अपने संबंधों का अनुचित लाभ उठाया
और जनता को जब इस बारे में समाचार मिलगया
तो सारा राजदरबार हिल गया
दरबार के नवरतन
करने लगे जी तोड़ जतन
इसके पहले कि विरोधी चिल्लाये
दामादजी को इस कलंक से बचाये
और इस प्रयत्न में,
राजाजी की नज़र में भी चढ़ जायें
बयान पर बयान आने लगे
दामाद जी को बचने लगे
राज दरबार के कई मंत्रियों ने अरबों खाया है
दामादजी ने तो थोडा सा कमाया है
दामादों से कहीं लोग पैसे लेते है
लाखों का माल,कोडियों में दे देते है
इतना तो दामादजी का हक बनता है,
इसमें क्या अपराध है
क्योंकि राजाजी का दामाद,
पूरेदेश का दामाद है

घोटू

जमाई जी,आप तो देश के दामाद है



राजाजी के दामाद जी पर किसीने आरोप लगाया

कि  उनने अपने संबंधों का अनुचित लाभ उठाया
और जनता को जब इस बारे में समाचार मिलगया
तो सारा राजदरबार हिल गया
दरबार के नवरतन
करने लगे जी तोड़ जतन
इसके पहले कि विरोधी चिल्लाये
दामादजी को इस कलंक से बचाये
और इस प्रयत्न में,
राजाजी की नज़र में भी चढ़ जायें
बयान पर बयान आने लगे
दामाद जी को बचने लगे
राज दरबार के कई मंत्रियों ने अरबों खाया है
दामादजी ने तो थोडा सा कमाया है
दामादों से कहीं लोग पैसे लेते है
लाखों का माल,कोडियों में दे देते है
इतना तो दामादजी का हक बनता है,
इसमें क्या अपराध है
क्योंकि राजाजी का दामाद,
पूरेदेश का दामाद है

घोटू

राष्ट्रीय दामाद से पंगा? (व्यंग गीत)





(Google Images)

In practice, a banana republic is a country operated as a commercial enterprise for private profit, effected by the collusion (मिलीभगत) between the State and favoured monopolies, whereby the profits derived from private exploitation of public lands is private property, and the debts incurred are public responsibility.




राष्ट्रीय  दामाद  से  पंगा? (व्यंग गीत) 




अरे    मूर्ख,   राष्ट्रीय   दामाद  से   क्यूँ   लिया   तुने   पंगा..!

लगता  है, `बनाना   रिपब्लिक` अनादि  से   है  भिखमंगा..!

(अनादि= अनंत )


१.


मंत्रीजी   उवाच,   `पुरानी   पत्नी   वो   मज़ा   नहीं   देती ?`

सच  होगा  शायद, साबित  हो गया  शौहर   घोर  लफंगा ?

अरे    मूर्ख,  राष्ट्रीय   दामाद  से  क्यूँ   लिया    तुने  पंगा..!


२.


मंत्रीजी  उवाच,`उनके   लिए  हमारी   जान भी   हाज़िर   है ?` 

सच    कहा,  सारा   देश   मरता  है  तो   मरे,  भूखा-नंगा..!

अरे    मूर्ख,  राष्ट्रीय   दामाद  से  क्यूँ   लिया    तुने  पंगा..!


३.


यहाँ   कौन   करेगा   जांच,  राष्ट्रीय    रद्दी   दामादों   की ?  

सुना  है, उनके  मन-मंदिर से  ज़्यादा  शौचालय  है  चंगा ?

अरे    मूर्ख,  राष्ट्रीय   दामाद  से  क्यूँ   लिया    तुने  पंगा..!

(रद्दी=  अनुपयोगी)


४.


देश  की   बरबादी   का   दूसरा  नाम  रख   दो `इतालिया` ?

फिर, बिना  शरम  कहो,  मेरे  अलावा  पूरा   देश   है  नंगा..! 

अरे    मूर्ख,  राष्ट्रीय   दामाद  से  क्यूँ   लिया    तुने  पंगा..!

(इतालिया= चारागाह= वह भूमि जो पशुओं के चरने के लिए खाली छोड़ दी गई हो । http://goo.gl/GkvaE )


नोट-  अ..रे.., बुरा  मत  मानना, आप  मज़ाक  भी  नहीं  समझते  क्या? 


मार्कण्ड दवे । दिनांकः ०९-०९-२०१२.


--
MARKAND DAVE
http://mktvfilms.blogspot.com   (Hindi Articles)

मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

आओ, देश को लूटें


   
आओ ,देश को लूटें
लेकिन कुछ ऐसे कि,
सांप  भी  मर जाए,लाठी भी ना टूटे
सत्ता में रह कर के ,रिश्वत ना खाना है
पैसा भी कमाना है,भरना खजाना है
तो एसा तरीका अपनाये
किसी कि नज़र भी ना लगे,
काम भी बन जाये
हम अपना जन्म दिन मनायें
पहने हज़ार रुपयों के ,
नोटों से बनाया गया हार
और लाखों लोगो से लें,
बेंक के ड्राफ्ट से ,अपने नाम उपहार
सारी काली कमाई,एक नंबर में आएगी
आलोचकों कि बाट लग जायेगी
सारा पैसा व्हाइट है
आप एक दम राइट है
पैसा भी कमा लिया ,
और आयकर वालों के ,कहर से भी छूटे
आओ,देश को लूटें
हमें अच्छी तरह याद है
दहेज़ लेना या देना,कानूनी अपराध है
वैसे हमारे पास,धन कि क्या कोई कमी है?
पर हम सत्ता में है और बेटी ब्याहनी है
बेटी की शादी में ज्यादा दिखावा न करें
शोर शराबा न करें
सबको दहेजमुक्त शादी दिखलायें
पर दामाद जी और उनके घरवालों को ,
दूसरी तरह से फायदा पहुंचायें
अपने पावर और पहुँच से,
किसी बिजनेस मेन को ओब्लायिज़ करें
और वो बिजनेस मेन,
करोड़ों का माल,कोडियों के दाम में बेच,
बेटी के ससुराल वालों को ओब्लायिज  करे
एसा कुछ सिलसिला जमा लें
की कैसे भी दामाद जी ,
फटाफट करोड़ों कमालें
ऐसे या वैसे,दहेज़ तो पहुँच ही गया,
और दहेज़ देने के आरोप से भी छूटे
सांप भी मर जाये,लाठी भी ना टूटे
आओ, देश को लूटें

मदन मोहन बाहेती'घोटू;

सोमवार, 8 अक्तूबर 2012

पके हुए फल है हम



रोज रोज शुगर  की,

हाई ब्लड प्रेशर  की
मुसली पावर  की,  केप्सूल खाते है
पीड़ा है घुटने की,
मन ही मन घुटने की
फिर भी खुश रहने की,कोशिश कर गाते है
सुबह सुबह है  वाकिंग
फिर दिन भर है टाकिंग,
लाफिंग क्लब में लाफिंग ,करने को जाते है
ख़बरें दुनिया भर की
अन्दर की,बाहर की
सुबह  न्यूज़ पेपर की ,सारी पढ़ जाते है
टी वी के सिरिअल,
देखें हम रेग्युलर,
कभी हंसें या रोकर ,आंसू छलकाते  है
कभी चाट चटकाते,
कभी पकोड़े  खाते,
कभी फोन खटकाते,पीज़ा मंगवाते  है
बचा खुचा ये जीवन,
बोनस में जीते हम,
जब तक है दम में दम,हरदम मुस्काते है
पके हुए है हम फल,
गिर जाए कब किस पल,
यही सोच  हर पल का,मज़ा  हम  उठाते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 

रविवार, 7 अक्तूबर 2012

हाथ की लकीरें । (गीत)



हाथ  की   लकीरें । (गीत)




सरगोशी   कर    रही    है,   हाथ   की   लकीरें, 

लगता   है,   तुम     यहीँ  कहीँ    आसपास   हो..!

मुस्कुरा     रही    है,  मेरे   दिल   की   धड़कन,

कहती   है,   तुम    मेरे   बहुत   खास-खास   हो..!

(सरगोशी = कानाफूसी )


अंतरा-१.


अटक  गया था   हलक़ में, जुदाई  का  वो  सबब,

आस  है  अब  कि  शाद,   दिल  का  आवास   हो..!

लगता    है,   तुम     यहीँ  कहीँ   आसपास   हो..!


( हलक़= कंठ; शाद =भरापूरा )


अंतरा-२.


इतने  क़रीब   कभी  न  थे, जब  हम  क़रीब  थे,

फिर  क्यूँ   लगा  ऐसा,  तुम  अब भी   उदास  हो..!

लगता   है,   तुम    यहीँ   कहीँ   आसपास   हो..! 


अंतरा-३.


मसल  दो,  चाहो  तो  दिल  की  मुराद  को, पर, 

चुभेगा    दग़ा    जैसे,   कोई   अगम   फाँस   हो..!

लगता   है,   तुम     यहीँ  कहीँ   आसपास   हो..!


(अगम= समझ से परे । )


अंतरा-४.


अपत   होता   है   दिल,  जब   मिलता   हूँ   तुम्हें,

सुकून  इतना  है  कि, तुम  दिल के  लिबास  हो..!

लगता   है,   तुम     यहीँ  कहीँ    आसपास   हो..!

(अपत =वस्त्रहीन; लिबास= पोशाक)


मार्कण्ड दवे । दिनांकः ०६-०९-२०१२.

-- 
MARKAND DAVE
http://mktvfilms.blogspot.com   (Hindi Articles)

 
Top