कुछ खुली आँखों के रास्ते 
चलते चलते हर बार ठिठक जाती हूँ 
'कुछ छूट गया' सा एहसास 
पूरे दिल दिमाग को शून्य कर जाता है 
एक खाली कमरे की तरह 
जिसमें ध्वनि प्रतिध्वनित होती है 
तेज तेज  .... शोर की तरह ! .................... रश्मि प्रभा 
दोराहे
ज़िन्दगी की राहों में
हर कदम पर दोराहे मिले
चुनना मुश्किल होता है
की कौन सा रास्ता सही है ।
एक राह चुन कर जब
कदम गर बढ़ा दिया
दूसरी राह को फिर
भूल जाना सही है ।
कुछ कदम के फासले पर
हर बार ठिठक जाती हूँ
कि कौन सी राह मुझे
मंजिल भी है तो कौन सी
जिसका कुछ पता ही नही है
राह पर चलते चलते
सोचती हूँ ये अक्सर
कि ये राहें भी तो मुझे
कब - कहाँ ले जायेंगी ?
राहों में मिलते हैं
लोग बहुत से
कब किसको थामा
ये पता ही नही है ।
मालूम है तो बस
एक बात कि-
जिसको भी लिया साथ
इस ज़िन्दगी में
किसी मोड़ पर भी मैंने
उसे कभी छोड़ा नही है ।
गर छूट गया साथ
कभी मुझसे किसी का
तो जान लेना की अब
मुझमे कोई ज़िन्दगी बाकी नही है।
संगीता स्वरुप
http://geet7553.blogspot.in/
तुम्हारा नाम
तुम्हारा नाम
पैदा करता है
नजरों में ठहराव
किसी भी गणित से परे
बार-बार तुम्हारा नाम
क्यूँ टकराता है मुझसे ?
कभी गली के किसी मोड़ पर
चौराहे की चहल-पहल
या राह चलते किसी घर पर
ठिठक जाती हैं नजरें
विमुग्ध हो जाती हूँ मैं,
लिखती हूँ तुम्हे
छू लेती हूँ हौले से
भर लेती हूँ ऊर्जा,
अक्सर किताबों में 
लिख देती हूँ तुम्हे 
घर की दीवारों पर 
बिना लिखे ही दिखता है 
तुम्हारा नाम 
तुम्हारे नाम के नीचे 
लिख देती हूँ अपना नाम 
और मेरी संवेदना पा लेती है 
सामीप्य का एहसास,
तुम्हारा नाम लिख कर 
सुंदर अल्पना में छुपा देती हूँ 
और तुम्हारी उपस्थिति 
भर देती है प्राणों में उल्लास,
तुम्हारा नाम 
मानो पूरी परिधि वाला कवच 
मैं बड़ी निश्चिंत हूँ उसके भीतर. 
समय है एक विराम का, मिलती हूँ एक छोटे से विराम के बाद .....
 



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उम्दा रचनाऐं ।
जवाब देंहटाएंदोनों रचनाएँ जीवन के करीब लगी
जवाब देंहटाएं'कुछ छूट गया' सा एहसास
जवाब देंहटाएं..... हर कदम के साथ-साथ चलता रहता है यूँ ही मन से एहसासों की बातें करते हुए
अनुपम प्रस्तुति
ब्लोगोत्सव में संगीता स्वरुप जी और सुशीला पुरी जी की सुन्दर रचना प्रस्तुति हेतु आभार
जवाब देंहटाएंरश्मि जी ,
जवाब देंहटाएंयहाँ अपनी रचना देख फिर एकबार ठिठक गयी ।आभार
जीवन की दिशा और दशा को बयां करती
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