गुरुवार, 25 जून 2015

परिकल्पना - कुछ नए चेहरे नए सवाल




हर दिन कुछ नया होता है 
नए ख्याल 
नए विकल्प 
नए संकल्प 
नए चेहरे  .... 
सोचने को सोचते कई लोग हैं 
पर समय पर कह देना बड़ी बात होती है 
है न ?

रश्मि प्रभा 


अनुराधा 
http://no-dimension.blogspot.in/

आवाज उठाई आपने?


बड़ा आसान होता है दुसरो को सलाह देना।  दुसरो को सीख देके हममे से अधिकतर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। गरीब को बोलते हैं अमीरों के अत्याचारो के खिलाफ आवाज उठाओ। औरतो को बोलते हैं जुलम मत सहो, आवाज उठाओ। अल्पसंख्यको को बोलते हैं अपने हक के लिए लड़ो, आवाज उठाओ। योन हिंसा का शिकार हुई लड़की को बोलते हैं मत छुपाओ, आवाज उठाओ। घरेलु हिंसा का शिकार औरतो को बोलते हैं, हम तुम्हारे साथ हैं, बस तुम आवाज उठाओ।  और जाने कितनी आवाजों को उठाने का जज्बा देते हैं। बस तुम आवाज उठाओ हम तुम्हारे पीछे खड़े हो जाएँगे। 

बहुत बढ़िया बात है, साथ देना चाहिय, पीछे खड़े होना चाहिए। लेकिन कभी ये सोचा के आवाज उठाना कितना मुश्किल है? कितनी हिम्मत जुटानी पड़ती है? घर परिवार को ताक पे रख देना होता है। नौकरी, रोजी-रोटी को ताक पर रखना होता है। आराम चैन नींद सब को को ताक पे रखना होता है। समाज से लड़ना होता है, सिस्टम से लड़ना होता है, सब तीज त्यौहार भूल एक लड़ाई मैं जुट जाना होता है। और मजेदार बात ये के हक की लड़ाई जीतने की कोई गारंटी नहीं होती। और हमारे देश की नाय व्यवस्था को ना नजरंदाज करते हुए देखे तो कुछ लोगो की पूरी उम्र भी कम पड़ जाती है अपने हक कि लड़ाई लड़ते लड़ते।  

लेकिन जो त्याग है, ये जो लड़ाई है, ये सिर्फ उसकी है जिसने आवाज उठाई, पीछे खड़े होने वाले जन्मदिन भी मनाएंगे, शादी मैं भी जायेंगे, छुट्टी भी मनाएंगे, सिर्फ जब मन किया तुम्हारे पीछे खड़े हो जाएंगे। जब बोर हो जायेंगे ऑफिस मैं तो तुम्हारे लिए स्टेटस अपडेट करेंगे। नहीं नहीं ये मत समझना के मैं पीछे खड़े होने वालो के खिलाफ हूँ, या उनको घटिया मानती हूँ, कतई नहीं। मैं भी पीछे खड़े होने वालो मैं से हूँ। पीछे खड़े होना बहुत जरुरी है, बल्कि साथ मैं खड़े होईये, लड़िये जब तक बन पड़े। 

लेकिन हममे से कितने लोगो ने अपने लिए आवाज उठाई है? आपके साथ ऑफिस मैं हो रहे  भेद भाव के खिलाफ आवाज उठाई है? अपने लाइन मारते, हर असाइनमेंट के बदले काफी को पूछते मेनेजर के खिलाफ आवाज उठाई है? हर प्रमोशन के बदले बिस्तर पे बुलावे (चाहे आपने ठुकरा दिया) पे आवाज उठाई है? अपने हिंसक बॉयफ्रेंड के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई है? क्या अपनी बहन के दहेज लोभी सुसुराल वालो के खिलाफ आवाज उठाई है? अपनी काम वाली के लाल-नीले निशानों के खिलाफ आवाज उठाई है? आपकी प्रॉपर्टी का हिस्सा मार जाने वाले भाई के खिलाफ आवाज उठाई है? आपके बचपन को डराने कुचलने वाले मामा/चाचा/अंकल/नौकर/पडोसी जिसका आज भी आपके परिवार में आना जाना है, आवाज उठाई है? और भी जाने कितनी आवाजे …. क्या कोई रिपोर्ट दर्ज कराई है?  


शुरुआत
                          

हाँ, मैं वीक-एन्ड प्रोटेस्टर हूँ,
पर मैं जागा हूँ, सोया था सदियों आज जगा हूँ,
हाँ मैं बस एक काला बिंदु हूँ,
पर मैं एक शुरुआत हूँ।

हाँ, मैं पांच दिन ऑफिस जाऊँगा,
और दो दिन इंडिया गेट पे बैठूँगा,
हाँ मैं कूल हूँ, हाँ मैं प्रोटेस्टर हूँ,
मैं शुरुआत हूँ नए कल की।

हाँ, मैं फेसबुक प्रोटेस्टर हूँ,
कुछ दिनों से मैं एक नया आदमी हूँ, 
मैं सोचता हूँ महिलाओं के बारे मैं,
उनकी आज़ादी और सुरक्षा के सवाल पर मैं विचार करता हूँ,
मैं शुरुआत हूँ नए भारत की।

एक नयी सोच का जन्म हुआ है,
हाँ मेरा दिमाग भन्ना गया है,
हाँ मैं स्पीच्लेस हूँ, मैं चुप हूँ,
पर सोया नहीं हूँ, सतर्क हूँ, जगा हूँ,
मैं शुरुआत हूँ एक नए समाज की।

हाँ मैं मुझे डर लगता है,
मुझे पुलिस से डर लगता है, डंडो से भी डर लगता है,
मैं सरकारी मुलाजिम हूँ, डरा तो हूँ   
पर मैं बेहोंश नहीं हूँ, मैं जगा हूँ,
मैं शुरुआत हूँ एक बराबर समाज की।

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