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गर्व है की हम हिन्दुस्तानी है! इस गर्व के साथ ही बहुत सारे प्रश्न है!एक आज़ादी के बहुत सारे पहलूं है! हर किसी के लिए आज़ादी का मतलब अलग-अलग है!किसी के लिए यह केवल आज़ादी है!आज़ादीमज़ा करने की,अपने मान का करने की,घूमने की,बोलने की और ना जाने किस-किस की! आज के समय मे स्वतंत्रता से जुड़े मेरे मान मे अनेक सवाल है!जो एक आम आदमी के मान के सवाल है,जिनके उत्तर खोजने को मेरा मान करता है!
आज़ादी कैसी? कौन सी? किस की? किस के लिए? कितनी आज़ादी? आज़ादी कहाँ तक? कब तक? इस आज़ादी को बचाए रखने के लिए हमे अभी और भी लड़ईयाँ लड़नी है!
वो लड़ईयाँ है गंदी राजनीति से, आतंक से,भ्रष्टाचार से, आर्थिक कमज़ोरी से,बेरोज़गारी से,ग़रीबी से,भुकमरी से,समाज़ मे फैली बुराईयों से,सबसे महत्वपूर्ण अपने आप से,
अपनी सोच से,अपनी हरकतों सेक्योंकि आज हम आज़ादी का सदूपयोग नही वरण केवल भोग कर रहे है! भटके हुए हैआज़ादी का ग़लत इस्तेमाल कर रहे है!जिसे मिली है और जो उपयोग का सकते है,वो मान चाहा उपयोग कर रहे है,नेता,राजनेता,पुलिस,अधिकारी,उचे पद मे बैठे लोग,अब तो मीडिया भी जिसे जनता की आवाज़ माना जाता था! सब आज़ादी का अपनी तरह से उपभोग कर रहे है!कैसे?तो कुछ प्रश्नों पर ज़रा गौर कीजिए -
वादी को जलता देखने की आज़ादी - पिछले माह से धरती का स्वर्ग कहे जाने वाली वादी को जलता,देखने की आज़ादी!हमारी आज की स्वतंत्रता समारोह की खुशियों पर सबसे बड़ा सवाल है, जिसके लिए आज़ादी,अमन,शांति की बात करते है,अपना कहाले है उसे ही सुलगा रहे है!
मंहगाई की आज़ादी -
पिछले नौ माह से माहगाई लगातार बढ़ रही है!पिछले लगातार दो हफ्तों से वा अपने चरम पर याने १२% के ऊपर चल रही है!यह मंहगाई की आज़ादी है! आम जनता का क्या? वो भूक की और लाचारी की आज़ादी मनाएँगे!
वेतन बड़ाने की आज़ादी - चुनावों के मद्देनज़र केंद्रीय कर्मचारियों का वेतन बड़ाने की आज़ादीआम आदमी और देश को अन्ना देने वाला किसान भले ही भूकों मारे,उसकी चिंता
कहाँ किसी को!वोट बॅंक के लिए ग़रीब,मज़बूर किसान कहाँ कम आएगा?
सैनिकों को कोई रियायत ना देने की आज़ादी - छठे वेतन मान मे उच्च अधिकारियों का वेतन तो बड़ा दिया गया है,पर सीने मे गोली खाने वेल सैनिक को जो वेतन मान दिया गया है, वह चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के बराबर है!हमारे और देश के लिए जान पर खेलने वेल की कीमत इतनी ही है?
राष्ट्रीय सम्मान ना देने की आज़ादी - जब मानेक शौ की तरह के महान इंसान को राष्ट्रीय सम्मान देने का फ़ैसला उनके संस्कार के बाद किया गया तब एक अड़ना सा सैनिक
अपने लिए क्या अपेक्षा रख सकता है?देश के लिए इससे बड़े शर्म की बात और क्या होगी?
आयुषी को आज़ादी -
आयुषी के नन्हे से जीवन को तार-तार होता देखने की आज़ादी!ये है मीडिया की आज़ादी जो काबी किसी को अपने सामने जला देती है,तो कभी किसी
को चैन से बँधा देखकर फोटो लेने की आज़ादी का जशन मानती है!
डाक्टर्स को आज़ादी -
कही किसी डाक्टर को आज़ादी है की वो किसी की भी किडनी, खून निकाल ले!तो कही ८०% गावों मे डाकटर्स को कम ना करने की आज़ादी है,तो
कही ९०% गावों मे दवाईयाँ ना बताने की आज़ादी है!
नोट उड़ाने की आज़ादी -
संसद जैसे गरिमामय स्थान मे,आम ग़रीब जनता के खून पसीने की कमाई को सरेआम उडकी आज़ादी!क्या इतने रुपयों से देश के ग़रीब को भोजन
मिल पता!हमारे देश की जनता जहाँ दिन की न्यूनतम मज़दूरी नही कमा पाती,वाहा यू रुपये उड़ाने की आज़ादी?
धमाके करने की आज़ादी -
अपनी आज़ादी को बरकरार रखने के लिए,हम जगह -जगह धमाकों को होने की आज़ादी देते है!फिर उन्ही नेताऊ को,उसी पद मे पुनः बैठते है, ताकि वो बार - बार इस तरह से आज़ादी का मज़ाक उड़ाए और मनमानी करे.!
जनता को न्याय की आज़ादी -
आज़ फिर से सदियों पूरना,न्याय करने का तरीका वापस आ गया है,जहाँ लोग आँख के बदले आँख,खून के बदले खून लेने को तैयार है और पुलिस-प्रशशणहाथ बाँध कर देखता है!ये न्याय की आज़ादी है!वर्दी वालों को आराम करने की आज़ादी!
प्रतिमा लगाने की आज़ादी
दिवस के शुभ अवसर पर संसद मे भगत सींग प्रतिमा लगाने की सुधा बसठवे साल मे आई,वो भी शायद इसलिए की उन पर फ़िल्मे बन गयी है!
पर उनके साथ उनके जीतने ही महान,देश के लिए शहीद हुए,सुखदेव और राजगुरु को याद नही किया गयावही दूसरी ओर दंगों और धमाको के प्रदेश मे,स्वतन्त्र का जश्न मनाने,अमर शहीदों के नही वरण,मुख्य मंत्री जी के काट-औटलगाए गये!शहीदों से इन्हे क्या मतलब?देश तो इन्होने ही आज़ाद करवाया है,और आज जो शांति का माहौल है,प्रदेश मे,उसकेज़िम्मेदार भी तो यही है!इसलिए इनके पोस्टर ही लगाने चाहिए आज़ादी के दिनदूसरी ओर अपने जीते जी,अपने को महान और ईश्वर तुलया बटाने वाली मुख्यमंत्री ने जगह-जगहआपनी मूर्तियाँ लगवान दी और इस हेतु उस आदमी के नाम की दलील दी जा रही है जो अब इस दुनिया मे ही नही है!तो क्या इन्हे ये भी भरोसा नही है की जनता इन्हे,इनके कामोसे याद रखेगी?शायद नही इसलिए तो अपनी प्रतिमा लगवा रहीं है! दूसरी ओर हमारे देश मे चापलूसों की इतनी बड़ी लाईन है की,वो नेताओ को देवी-देवताओ का रूप बनाकर,धामिकता का मज़ाक उड़ा रहे है!ये हमारे नेताओ और चापलूसों की आज़ादी है!
आधुनिकता की आँधी दौड़ मे शामिल होने की आज़ादी-
ये दौड़ हम पर ऐसी सवर है की आज हर आदमी आखन बंद किए अंधानुकरण कर रहा है!जिन चीज़ों से कोई लेना -देना नही,जिनकी समझ नही उन्हे केवल अपनी पहचान बनाने के लिए कुच्छ भी कर रहा है!
चारों और आज़ादी ही आज़ादी
कम कपड़े हो,दोस्ती के नाम पर चिपकाना हो,किसी की भी निज़ी जिंदगी को,किसी भी हद तक सार्वजनिक करना हो,मित्रों के साथ ग़लत
तस्वीरे लेना हो,अधिक जानकारी के चलते,ग़लत बातों को सफाई देते हुए,आसानी से करना हो,टी.वी मे चने या नाम कमाने के लिए कुछ भी करना हो!कुछ भी करने के लिए हम आज़ाद है!
कुछ मज़ेदार आज़डियान भी है जो मुझे यूँ लगती है -
कुछ भी सीरियल्स बनाने की आज़ादी-
हम किस तरह के सीरियल्स आजकल देख रहे है,चाहे कॉमेडी के नाम हो, जिनमे दे अर्थों की गंदी कॉमेडी की जाती है!सास-बहू ये सीरियल्स हो,इन्हे देख -देख कर घर मे बैठी औरतें अपने को,खुद से जुड़ा समझकर,कहीं ना कहीं इन्ही की नकल करके,अपने रिश्तों को शक की आग मे झोक कर बर्बाद कर रहीहै!ये उनकी आज़ादी है,झूती दुनिया को सच मानने की! माता-पिता की चाहत मे छोटे छोटे बच्चों को कड़ी मेहनत करा कर, मंच मे बड़ों की तरह हरकतें करने की और कॉमेंट्स सुनने की आज़ादी!
जिससे आम-ग़रीब बच्चे इसी चाहत मे पदाई-लिखाई छोड़कर नाच-गाना शुरू कर देते है दिन-रात उन्ही ४,५ सितारों की,ज़िंदगी की कहानियाँ सुनते रहना, जैसे देश मे बस यही परिवार है,इन्ही से सारे संस्कार है,इन्ही को लोग आदर्श मान लेते है! वे ये भूल जाते है की ये सितारे,ये सब केवल अपनी कमाई के लिए ही कर रहे है!क्या इनकी हरकतों से आपको कोई फ़ायदा हो रहा है?
क्या ये अपनी कमाई आपको दे रहे है?क्या उनकी करतूतों से आपका भला हो रहा है?नही ना फिर भी इनको अपना आदर्श मानना आपकी आज़ादी है! अगर ह्म चाहे तो,अगर सब कोशिश करे तो इस ”शायद“को हम ”ज़रूर” मे बदल सकते है! आवश्यकता है तो मिलकर कम करने की और सोच को परिष्करत करने की!
तो आज़ादी ऐसी है आज!हम इन बासठ सालों मे कहाँ से कहाँ आ गये है?जब तक हम इन बातों पर गौर नही करेंगे और आने वाली नयी पीडी को नही समझाएँगे, हम आज़ादी का इसी तरह उपभोग करते रहेंगे!सोचने वाली बात है,
चीन जैसा देश जो अपनी आबादी के बावजूद,अपनी सन्स्क्रति को बचाते हुए,द्रन आर्थिक इस्थिति मे मज़बूती के साथ खड़ा है
और पूरी दुनिया से ये मनवा ही लिया की वो कितना आगे है! क्या हम भी अपनी सन्स्क्रति को धरोहर के रूप मे,आने वाली पीडियों को देकर,आर्थिक और वैचारिक रूप से मज़बूत नही हो सकते?क्या आज़ादी को हम यू ही ख़तरे मे दल देंगे?क्या आज़ड़ी के बदते सालों मे हमारे भारत का गौरावमय इतिहास मिटाता जाएगा शायद नही,
“जब हम बदलेंगे तो हिन्दुस्तान बदलेगा,हम चाहेंगे तो नया सूरज चमकेगा“
()Nidhi KM
http://nidhitrivedi28.wordpress.com/
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जारी है परिचर्चा, मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद........
आज़ादी कैसी? कौन सी? किस की? किस के लिए? कितनी आज़ादी? आज़ादी कहाँ तक? कब तक? इस आज़ादी को बचाए रखने के लिए हमे अभी और भी लड़ईयाँ लड़नी है!
वो लड़ईयाँ है गंदी राजनीति से, आतंक से,भ्रष्टाचार से, आर्थिक कमज़ोरी से,बेरोज़गारी से,ग़रीबी से,भुकमरी से,समाज़ मे फैली बुराईयों से,सबसे महत्वपूर्ण अपने आप से,
अपनी सोच से,अपनी हरकतों सेक्योंकि आज हम आज़ादी का सदूपयोग नही वरण केवल भोग कर रहे है! भटके हुए हैआज़ादी का ग़लत इस्तेमाल कर रहे है!जिसे मिली है और जो उपयोग का सकते है,वो मान चाहा उपयोग कर रहे है,नेता,राजनेता,पुलिस,अधिकारी,उचे पद मे बैठे लोग,अब तो मीडिया भी जिसे जनता की आवाज़ माना जाता था! सब आज़ादी का अपनी तरह से उपभोग कर रहे है!कैसे?तो कुछ प्रश्नों पर ज़रा गौर कीजिए -
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjqEiaTVjWmrQ-jibZKW66fYzHkvS_dxWVKOpgjNtd_0mrGXhW5pLM7RH5RDvpGJDtruO5ecrzI7I1D_08G-IgSD2EntVXmwxU8FAZUMvEWWMyAgD28sI7XsCceN00mEdiS-gKl34ljQEA/s400/09.jpg)
मंहगाई की आज़ादी -
पिछले नौ माह से माहगाई लगातार बढ़ रही है!पिछले लगातार दो हफ्तों से वा अपने चरम पर याने १२% के ऊपर चल रही है!यह मंहगाई की आज़ादी है! आम जनता का क्या? वो भूक की और लाचारी की आज़ादी मनाएँगे!
वेतन बड़ाने की आज़ादी - चुनावों के मद्देनज़र केंद्रीय कर्मचारियों का वेतन बड़ाने की आज़ादीआम आदमी और देश को अन्ना देने वाला किसान भले ही भूकों मारे,उसकी चिंता
कहाँ किसी को!वोट बॅंक के लिए ग़रीब,मज़बूर किसान कहाँ कम आएगा?
सैनिकों को कोई रियायत ना देने की आज़ादी - छठे वेतन मान मे उच्च अधिकारियों का वेतन तो बड़ा दिया गया है,पर सीने मे गोली खाने वेल सैनिक को जो वेतन मान दिया गया है, वह चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के बराबर है!हमारे और देश के लिए जान पर खेलने वेल की कीमत इतनी ही है?
राष्ट्रीय सम्मान ना देने की आज़ादी - जब मानेक शौ की तरह के महान इंसान को राष्ट्रीय सम्मान देने का फ़ैसला उनके संस्कार के बाद किया गया तब एक अड़ना सा सैनिक
अपने लिए क्या अपेक्षा रख सकता है?देश के लिए इससे बड़े शर्म की बात और क्या होगी?
आयुषी को आज़ादी -
आयुषी के नन्हे से जीवन को तार-तार होता देखने की आज़ादी!ये है मीडिया की आज़ादी जो काबी किसी को अपने सामने जला देती है,तो कभी किसी
को चैन से बँधा देखकर फोटो लेने की आज़ादी का जशन मानती है!
डाक्टर्स को आज़ादी -
कही किसी डाक्टर को आज़ादी है की वो किसी की भी किडनी, खून निकाल ले!तो कही ८०% गावों मे डाकटर्स को कम ना करने की आज़ादी है,तो
कही ९०% गावों मे दवाईयाँ ना बताने की आज़ादी है!
नोट उड़ाने की आज़ादी -
संसद जैसे गरिमामय स्थान मे,आम ग़रीब जनता के खून पसीने की कमाई को सरेआम उडकी आज़ादी!क्या इतने रुपयों से देश के ग़रीब को भोजन
मिल पता!हमारे देश की जनता जहाँ दिन की न्यूनतम मज़दूरी नही कमा पाती,वाहा यू रुपये उड़ाने की आज़ादी?
धमाके करने की आज़ादी -
अपनी आज़ादी को बरकरार रखने के लिए,हम जगह -जगह धमाकों को होने की आज़ादी देते है!फिर उन्ही नेताऊ को,उसी पद मे पुनः बैठते है, ताकि वो बार - बार इस तरह से आज़ादी का मज़ाक उड़ाए और मनमानी करे.!
जनता को न्याय की आज़ादी -
आज़ फिर से सदियों पूरना,न्याय करने का तरीका वापस आ गया है,जहाँ लोग आँख के बदले आँख,खून के बदले खून लेने को तैयार है और पुलिस-प्रशशणहाथ बाँध कर देखता है!ये न्याय की आज़ादी है!वर्दी वालों को आराम करने की आज़ादी!
प्रतिमा लगाने की आज़ादी
दिवस के शुभ अवसर पर संसद मे भगत सींग प्रतिमा लगाने की सुधा बसठवे साल मे आई,वो भी शायद इसलिए की उन पर फ़िल्मे बन गयी है!
पर उनके साथ उनके जीतने ही महान,देश के लिए शहीद हुए,सुखदेव और राजगुरु को याद नही किया गयावही दूसरी ओर दंगों और धमाको के प्रदेश मे,स्वतन्त्र का जश्न मनाने,अमर शहीदों के नही वरण,मुख्य मंत्री जी के काट-औटलगाए गये!शहीदों से इन्हे क्या मतलब?देश तो इन्होने ही आज़ाद करवाया है,और आज जो शांति का माहौल है,प्रदेश मे,उसकेज़िम्मेदार भी तो यही है!इसलिए इनके पोस्टर ही लगाने चाहिए आज़ादी के दिनदूसरी ओर अपने जीते जी,अपने को महान और ईश्वर तुलया बटाने वाली मुख्यमंत्री ने जगह-जगहआपनी मूर्तियाँ लगवान दी और इस हेतु उस आदमी के नाम की दलील दी जा रही है जो अब इस दुनिया मे ही नही है!तो क्या इन्हे ये भी भरोसा नही है की जनता इन्हे,इनके कामोसे याद रखेगी?शायद नही इसलिए तो अपनी प्रतिमा लगवा रहीं है! दूसरी ओर हमारे देश मे चापलूसों की इतनी बड़ी लाईन है की,वो नेताओ को देवी-देवताओ का रूप बनाकर,धामिकता का मज़ाक उड़ा रहे है!ये हमारे नेताओ और चापलूसों की आज़ादी है!
आधुनिकता की आँधी दौड़ मे शामिल होने की आज़ादी-
ये दौड़ हम पर ऐसी सवर है की आज हर आदमी आखन बंद किए अंधानुकरण कर रहा है!जिन चीज़ों से कोई लेना -देना नही,जिनकी समझ नही उन्हे केवल अपनी पहचान बनाने के लिए कुच्छ भी कर रहा है!
चारों और आज़ादी ही आज़ादी
कम कपड़े हो,दोस्ती के नाम पर चिपकाना हो,किसी की भी निज़ी जिंदगी को,किसी भी हद तक सार्वजनिक करना हो,मित्रों के साथ ग़लत
तस्वीरे लेना हो,अधिक जानकारी के चलते,ग़लत बातों को सफाई देते हुए,आसानी से करना हो,टी.वी मे चने या नाम कमाने के लिए कुछ भी करना हो!कुछ भी करने के लिए हम आज़ाद है!
कुछ मज़ेदार आज़डियान भी है जो मुझे यूँ लगती है -
कुछ भी सीरियल्स बनाने की आज़ादी-
हम किस तरह के सीरियल्स आजकल देख रहे है,चाहे कॉमेडी के नाम हो, जिनमे दे अर्थों की गंदी कॉमेडी की जाती है!सास-बहू ये सीरियल्स हो,इन्हे देख -देख कर घर मे बैठी औरतें अपने को,खुद से जुड़ा समझकर,कहीं ना कहीं इन्ही की नकल करके,अपने रिश्तों को शक की आग मे झोक कर बर्बाद कर रहीहै!ये उनकी आज़ादी है,झूती दुनिया को सच मानने की! माता-पिता की चाहत मे छोटे छोटे बच्चों को कड़ी मेहनत करा कर, मंच मे बड़ों की तरह हरकतें करने की और कॉमेंट्स सुनने की आज़ादी!
जिससे आम-ग़रीब बच्चे इसी चाहत मे पदाई-लिखाई छोड़कर नाच-गाना शुरू कर देते है दिन-रात उन्ही ४,५ सितारों की,ज़िंदगी की कहानियाँ सुनते रहना, जैसे देश मे बस यही परिवार है,इन्ही से सारे संस्कार है,इन्ही को लोग आदर्श मान लेते है! वे ये भूल जाते है की ये सितारे,ये सब केवल अपनी कमाई के लिए ही कर रहे है!क्या इनकी हरकतों से आपको कोई फ़ायदा हो रहा है?
क्या ये अपनी कमाई आपको दे रहे है?क्या उनकी करतूतों से आपका भला हो रहा है?नही ना फिर भी इनको अपना आदर्श मानना आपकी आज़ादी है! अगर ह्म चाहे तो,अगर सब कोशिश करे तो इस ”शायद“को हम ”ज़रूर” मे बदल सकते है! आवश्यकता है तो मिलकर कम करने की और सोच को परिष्करत करने की!
तो आज़ादी ऐसी है आज!हम इन बासठ सालों मे कहाँ से कहाँ आ गये है?जब तक हम इन बातों पर गौर नही करेंगे और आने वाली नयी पीडी को नही समझाएँगे, हम आज़ादी का इसी तरह उपभोग करते रहेंगे!सोचने वाली बात है,
चीन जैसा देश जो अपनी आबादी के बावजूद,अपनी सन्स्क्रति को बचाते हुए,द्रन आर्थिक इस्थिति मे मज़बूती के साथ खड़ा है
और पूरी दुनिया से ये मनवा ही लिया की वो कितना आगे है! क्या हम भी अपनी सन्स्क्रति को धरोहर के रूप मे,आने वाली पीडियों को देकर,आर्थिक और वैचारिक रूप से मज़बूत नही हो सकते?क्या आज़ादी को हम यू ही ख़तरे मे दल देंगे?क्या आज़ड़ी के बदते सालों मे हमारे भारत का गौरावमय इतिहास मिटाता जाएगा शायद नही,
“जब हम बदलेंगे तो हिन्दुस्तान बदलेगा,हम चाहेंगे तो नया सूरज चमकेगा“
()Nidhi KM
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जारी है परिचर्चा, मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद........
badhiyaa
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