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 - सरस्वती प्रसाद | 
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 ज़िन्दगी के दर्द ह्रदय से निकलकर बन जाते हैं कभी गीत, कभी कहानी, कोई नज़्म, कोई याद ......जो चलते हैं हमारे
 ज़िन्दगी के दर्द ह्रदय से निकलकर बन जाते हैं कभी गीत, कभी कहानी, कोई नज़्म, कोई याद ......जो चलते हैं हमारे
साथ, ....... वक़्त निकालकर बैठते हैं वटवृक्ष के नीचे , सुनाते हैं अपनी दास्ताँ उसकी छाया में. 

लगाते हैं एक पौधा उम्मीदों की ज़मीन पर और उसकी जड़ों को मजबूती देते हैं ,करते हैं भावनाओं का सिंचन उर्वर शब्दों की क्यारी में और हमारी बौद्धिक यात्रा का आरम्भ करते हैं.... 

अनुरोध है, .... इस यात्रा में शामिल हों, स्वागत है आपकी आहटों का .... जिसे 'वटवृक्ष' सुन रहा है .................... 

प्रविष्टियाँ निम्न ई-मेल पते पर प्रेषित करें -
ravindra.prabhat@gmail.com 
| कई मित्रों ने इसे और स्पस्ट करने को कहा है , इसलिए इसे थोड़ा और स्पस्ट कर रहा हूँ - आप अपनी स्मृतियों को टटोलें , वह कुछ भी हो सकती है या तो बचपन की यादें हो अथवा माता-पिता और बच्चों से संदर्भित यादें . यादें जो प्रेरणाप्रद हों ...यादें जो सकारात्मक हों......यादें जो आपको आंदोलित कर गयी हों ......यादें कोई भी जो सुखद हो ....उसे नज़्म, गीत, कहानी या फिर शब्दों का गुलदस्ता बनाते हुए प्रेषित कर सकते हैं ....या फिर ऐसी प्रेरणाप्रद बातें जो एक सुखद और सांस्कारिक वातावरण तैयार करने की दिशा में सार्थक हों उसे पद्य या गद्य का रूप देकर भेज सकते हैं .....रचना प्रकाशित हो अथवा अप्रकाशित कोई फर्क नहीं पड़ता किन्तु मौलिक अवश्य हो ....और हाँ इसमें शामिल होने के लिए ब्लोगर होना आवश्यक नहीं है , कोई भी शामिल हो सकता है जो सृजन से जुडा हो ! | 
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nice
जवाब देंहटाएंसूचना देने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!!यादों के झरोखो में झाँकने का मौका देने के लिए ....
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जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तूति-आभार
पढिए एक कहानी
आपके ब्लॉग की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर-स्वागत है।
बहुत सुन्दर लगा! उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएं........:)
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रयास ।
जवाब देंहटाएंsarahniye prayas.
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