रविवार, 31 अक्टूबर 2010

हिम्मत बुलंद है तो मिलेगी तुम्हें मंजिल....



(ग़ज़ल )
जीना है एक-एक पल टटोलकर जियो
जब तक जियो प्रभात जिगर खोलकर जियो ।

हिम्मत बुलंद है तो मिलेगी तुम्हें मंजिल-
कदमों को मगर नापकर व तोलकर जियो ।

रह जायेगी बस याद तेरी इस जहान में -
कोयल की तरह मीठे बोल बोलकर जियो ।

दिल में खुलूश है तो शिकवे-गिले है क्या -
आँखों की लाज आंसूओं में घोलकर जियो ।

सच कहूं तो कामयाबी का वसूल है-
कानों के साथ-साथ नयन खोलकर जियो ।

() रवीन्द्र प्रभात

गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010

शर्म की पोशाक को वह छोड़ करके आ गया



(ग़ज़ल )

शर्म की पोशाक को वह छोड़ करके आ गया
वेबसी की एक चादर ओढ़ करके आ गया ।

रक्त पीकर वह मनुज का कह रहा है शान से-
रहगुजर में दो दिलों को जोड़ करके आ गया ।


गा रहे हैं गीत फिर भी साज से हैं बेखबर-
राग दरवारी शहर में शोर करके आ गया।

लोग कहते हैं मुकम्मल आज वह इंसान जो-
आईना से पत्थरों को तोड़ करके आ गया ।

कह रहा प्रभात से खुद को चमन का रहनुमा-
बाग़ से कच्ची कली जो तोड़ करके आ गया ।

() रवीन्द्र प्रभात

बुधवार, 27 अक्टूबर 2010

दिल तो बच्चा है जी .....

हर व्यक्ति के भीतर एक बच्चा होता है, जो हमेशा नए-नए खुराफात हेतु उसे उकसाता रहता है । व्यक्ति जब मन की बातों को महसूस करता है और उसे ऐसा प्रतीत होता है कि अमुक काम करने से सृजन का सुख प्राप्त होगा तब वह उस दिशा में उन्मुख हो जाता है , ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ -

वर्ष के प्रारंभिक दिनों में मेरे मन में यह ख्याल आया कि क्यों न अंतरजाल पर
ब्लोगोत्सव मनाया जाए । मित्रों से सलाह-मशविरा किया और १५ अप्रैल से १५ जून तक चले इस ब्लोगोत्सव -२०१० ने अनेक कीर्तिमान बनाए । ब्लोगोत्सव पर महज दो महीनों में २०० से ज्यादा प्रतिभागी शामिल हुए , २००० से ज्यादा टिप्पणियाँ प्राप्त हुई, १०० से ज्यादा प्रशंसक बने और प्रतिदिन इस उत्सव में ८०० से ज्यादा पाठक पहुंचते रहे । ब्लोगोत्सव में ५० सृजनकर्मियों को सम्मानित भी किया गया जो अपने आप में एक कीर्तिमान है । ब्लोगोत्सव के समापन के पश्चात दो नए पन्ने हम आपके लिए लेकर आये ।


वटवृक्ष , जिसमें नज़्म, गीत, कविता, ग़ज़ल आदि का मनमोहक सफ़र शुरू किया गया अंतरजाल की लोकप्रिय कवियित्री रश्मि प्रभा के द्वारा ।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि वटवृक्ष पर ५४ दिनों में ५४ कवियों / कवियित्रियों/लेखकों की रचनाओं पर ८४७ पाठकों की प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई और ५९ प्रशंसक बने यानी औसत एक रचना, १५ से ज्यादा टिप्पणियाँ और ०१ प्रशंसक प्रतिदिन । साथ ही प्रतिदिन इस पन्ने पर औसत २०० पाठक पहुंचते हैं जो इसकी लोकप्रियता को दर्शाता है । इसकी नवीनतम पोस्ट पढ़ें -मरने से पहले

आने वाले दिनों में वटवृक्ष पर प्रकाशित रचनाकारों को पारिश्रमिक देने की भी योजना बनायी जा रही है ,साथ ही वटवृक्ष की रचनाओं को सहेजकर त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन करने की भी योजना बन रही है । इसलिए यदि आप रचनाकार हैं और अभीतक वटवृक्ष का हिस्सा नहीं बने हैं तो अपनी रचनाएँ वटवृक्ष को अवश्य भेजें , निम्न ई मेल आई डी पर- ravindra.prabhat@gmail.com



ब्लॉग परिक्रमा , जिसपर अभी क्रमवार हिंदी ब्लोगिंग के शैशव काल से अबतक की गतिविधियों पर मेरे द्वारा प्रकाश डाला जा रहा है ।
आगे इसपर ब्लोगिंग से संवंधित कई अजीबो-गरीब बातें आपसे शेयर की जायेंगी । इसकी नवीनतम पोस्ट पढ़ें -हिंदी ब्लोगिंग का शैशव काल




शब्द सभागार , जिसपर साहित्य/संस्कृत और ब्लॉग जगत की महत्वपूर्ण गतिविधियों अथवा कार्यक्रम की रपट प्रकाशित की जाती है ।




कल से परिकल्पना का एक और पन्ना शुरू हुआ है साहित्यांजलि , जो साहित्यिक कृतियों पर केन्द्रित परिकल्पना की अनोखी प्रस्तुति है ।
फिलहाल इस पर मेरे उपन्यास ...ताकि बचा रहे गणतंत्र की कड़ियाँ प्रकाशित की जा रही हैं ....आप भी पढ़ें यहाँ
इस सन्दर्भ में अपने सुझाव और -
अपनी प्रतिक्रियाओं से हमें अवश्य अवगत कराएं ।

मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010

करते हो क्यूँ न पहल तौबा-तौबा ।


दो गज़लें

(एक)

है अचंभित हवा ये पहल देखकर
ताश के जो बने हैं महल देखकर ।

कंपकंपी सी हुई और शहर रो पडा-
इस जमाने का रद्दोबदल देखकर ।

मैंने समझा शहर में तबाही हुई-
अपने बेटों की आँखें सजल देखकर ।

पेंड की आड़ में था खडा आदमी-
भेड़ियों के गए दिल दहल देखकर ।

दुश्मनों की तरफदारी करने लगे-
दोस्तों की कमी आज़कल देखकर ।

बज़्म में कुछ सुना न सका है प्रभात-
आपके पास अपनी ग़ज़ल देखकर ।

(दो)

बनाया था मैंने महल तौबा-तौबा
कि मैं ही हुआ बे दखल तौबा-तौबा ।

जले मेरा घर मेरे ही सामने मैं-
तमाशा बना आजकल तौबा-तौबा ।

ये ग़ालिब के जुमले से तुमने चुराए-
जिगर की जमीं पर ग़ज़ल तौबा-तौबा ।

अदब के पुजारी हो लेकिन नहीं क्यों-
वतन के लिए एक पल तौबा-तौबा ।

वो मैयत में आये मगर इस अदा से-
नज़र उनकी थी न सजल तौबा- तौबा ।

अमन के लिए तुम ही प्रभात अब-
करते हो क्यूँ न पहल तौबा-तौबा ।
() रवीन्द्र प्रभात

शनिवार, 23 अक्टूबर 2010

बहुप्रतीक्षित ब्लॉग परिक्रमा में शामिल होईये आप भी .....


जैसा कि आप सभी को विदित है कि पूर्व में ऐसी घोषणा की गयी थी कि परिकल्पना से जुड़े समस्त चिट्ठाकारों के लिए हम शीघ्र ही एक ऐसा पन्ना लेकर आ रहे हैं , जिसका नाम होगा : ब्लॉग परिक्रमा । इसके अंतर्गत हम प्रत्येक सप्ताह एक प्रेरक ब्लॉग की परिक्रमा करेंगे अर्थात उसका समग्र विश्लेषण करेंगे और बताएँगे कि क्यों पढ़ा जाए यह ब्लॉग ?

इसी क्रम में आप सभी को यह अवगत कराना है कि वायदे के अनुसार परिकल्पना की ब्लॉग परिक्रमा की शुरुआत दिनांक २१.१०.२०१० से हीं हो चुकी है , किन्तु आज से हम एक उद्देश्यपूर्ण शुरुआत कर रहे हैं , पहले चरण में हिंदी ब्लोगिंग की शुरुआत से अबतक की संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत की जा रही है । इसके बाद हम अलग-अलग ब्लॉग की श्रृंखलाबद्ध परिक्रमा करेंगे ।


तो देर किस बात कि शामिल होईये हमारे साथ उस ब्लॉग की परिक्रमा में जो प्रेरक है हिंदी ब्लॉग जगत के लिए .....यहाँ किलिक करें

गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010

अब बचा क्या बिल्लोरानी जान हीं तो शेष है ....


बिक गया अभिमान सस्ते में, मोगैम्बो खुश हुआ !
देश का सम्मान सस्ते में, मोगैम्बो खुश हुआ !!

थैलियों में खो गयी कॉमनवेल्थ की गड्डियां-
लुट गया सम्मान सस्ते में, मोगैंबो खुश हुआ

ऐसी लड़ी है आंख पश्चिम से कि देखो खो गयी-
मनमोहनी मुस्कान सस्ते में, मोगैम्बो खुश हुआ !!

एक-दूजे पे उछाले खूब कीचड, बेच दी नेताओं ने -
अपना हिन्दुस्तान सस्ते में, मोगैम्बो खुश हुआ !!

मिलाई लीद घोडें की धनिया में वो चर्बी तेल में -
बिक गया इंसान सस्ते में , मोगैम्बो खुश हुआ !!

भरोसे राम के ही चल रही संसद हमारे देश की -
नेता बना भगवान सस्ते में , मोगैम्बो खुश हुआ !!

बेचकर सरे-आम अबला की यहाँ अस्मत पुलिस -
कर रही उत्थान सस्ते में , मोगैम्बो खुश हुआ !!

काठ की हांडी चढ़ाके कालमाडी और गुर्गे -
कर गए अपमान सस्ते में, मोगैम्बो खुश हुआ !!

कर दिए खारिज हमारे देश के अस्तित्व को ही -
खो गयी पहचान सस्ते में, मोगैम्बो खुश हुआ !!

अब बचा क्या बिल्लोरानी जान हीं तो शेष है -
कह दो दे दूं जान सस्ते में, मोगैम्बो खुश हुआ!!

() रवीन्द्र प्रभात

बुधवार, 20 अक्टूबर 2010

आपकी नाराजगी जो रह गयी है ।


ग़ज़ल :
एक कतरा जिंदगी जो रह गयी है
घोल दे सब गन्दगी जो रह गयी है ।

भीख देगा कौन , मुझको ये बताओ-
तुझमें ये आवारगी जो रह गयी है ।

आंख से आंसू छलक जाते अभीतक-
इश्क में संजीदगी जो रह गयी है ।

चाँदनी में घूमता है रात भर वह-
चाँद में दोशीजगी जो रह गयी है ।

सर-कलम कर मेरा, खंजर फेंक दे-
आंख में शर्मिंदगी जो रह गयी है ।

फासला प्रभात से है इसलिए बस-
आपकी नाराजगी जो रह गयी है ।
() रवीन्द्र प्रभात
*दोशीजगी: कुवांरापन

सोमवार, 18 अक्टूबर 2010

सस्ती कितनी जान हमारी बस्ती में ।


ग़ज़ल:

कुछ सूखे जलपान हमारी बस्ती में
सुपली भर है धान हमारी बस्ती में ।

हवा देखकर आज यहाँ शर्मिन्दा है-
टूटे छप्पर-छान हमारी बस्ती में ।

पुतले रोज जलाते लेकिन डरते भी -
रावण से भगवान हमारी बस्ती में ।

फैशन में गुमराह हुए ये बच्चे भी-
मुंह में दाबे पान हमारी बस्ती में ।

महिलाओं पर जोर-जुल्म दिखलाकर के -
बनती पुलिस महान हमारी बस्ती में ।

क्या-क्या जुल्म न ढाए खादी वालों ने-
सस्ती कितनी जान हमारी बस्ती में ।

मुंह में राम बगल में छुरी जो रखते वे-
पाते हैं सम्मान हमारी बस्ती में ।

सैर-सपाटे को आये थे जो प्रभात-
उनकी बड़ी दूकान हमारी बस्ती में ।

() रवीन्द्र प्रभात

शनिवार, 16 अक्टूबर 2010

कुत्सित अवधारणाओ के ऊपर....

असत्य, अमानवीयता और कुत्सित अवधारणाओ के ऊपर
सत्य, मानवीयता और प्रेरक विचारों के
प्रभुत्व का प्रतीक पर्व "विजया दशमी "
आप और आपके परिवारजनों के लिए
खुशियों के अनेकानेक क्षण लाए !
आप सभी का जीवन शान्ति,सुख, संतुष्टि परक हो ...!
इन्ही शुभकामनाओं के साथ-
शुभेच्छु-
रवीन्द्र प्रभात

शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010

वर्धा संगोष्ठी में उपस्थित थे गांधी, निराला, शमशेर और अज्ञेय भी ....

चौंक गए न आप ?
चौंकिए मत यह सच है कि वर्धा में आयोजित संगोष्ठी में उपस्थित थे राष्ट्रपिता गांधी, निराला, शमशेर, अज्ञेय भी .....


आईये पहले मिलते हैं गांधी से, मेरा मतलब है गांधी की स्मृतियों से, गांधी के विचारों से.....

और जहां विचार वो स्मृतियाँ हैं वहीँ साक्षात उपस्थित होते हैं गांधी -

मैं फिर जनम लूंगा
फिर मैं
इसी जगह आउंगा
उचटती निगाहों की भीड़ में
अभावों के बीच
लोगों की क्षत-विक्षत पीठ सहलाऊँगा
लँगड़ाकर चलते हुए पावों को
कंधा दूँगा
गिरी हुई पद-मर्दित पराजित विवशता को
बाँहों में उठाऊँगा ।

इस समूह में
इन अनगिनत अचीन्ही आवाज़ों में
कैसा दर्द है
कोई नहीं सुनता !
पर इन आवाजों को
और इन कराहों को
दुनिया सुने मैं ये चाहूँगा ।

मेरी तो आदत है
रोशनी जहाँ भी हो
उसे खोज लाऊँगा
कातरता, चु्प्पी या चीखें,
या हारे हुओं की खीज
जहाँ भी मिलेगी
उन्हें प्यार के सितार पर बजाऊँगा ।

जीवन ने कई बार उकसाकर
मुझे अनुलंघ्य सागरों में फेंका है
अगन-भट्ठियों में झोंका है,
मैने वहाँ भी
ज्योति की मशाल प्राप्त करने के यत्न किये
बचने के नहीं,
तो क्या इन टटकी बंदूकों से डर जाऊँगा ?
तुम मुझकों दोषी ठहराओ
मैने तुम्हारे सुनसान का गला घोंटा है
पर मैं गाऊँगा
चाहे इस प्रार्थना सभा में
तुम सब मुझपर गोलियाँ चलाओ
मैं मर जाऊँगा
लेकिन मैं कल फिर जनम लूँगा
कल फिर आऊँगा ।


गांधीजी के जन्मदिन पर दुष्यंत कुमार की लिखी यह कविता सहसा मेरे होठों से फूटने लगी थी जब मैं ब्लोगर मित्रों के साथ राष्ट्रपिता गांधी के सेवाग्राम आश्रम पहुंचा ! मुख्य द्वार से प्रवेश करते हीं सादगी, पवित्रता और पावनता का एहसास हुआ ....आज हम ब्लॉग एथिक्स की बात कर रहे हैं , मगर हमारे ब्लोगर केवल गांधी की सदिच्छा,सद्व्यवहार,सद्भावना,सदाचार,सदाकत और सदाशयता को ही आत्मसात कर लें तो मेरा मानना है की आचार संहिता की कभी आवश्यकता ही महसूस नहीं होगी !

आईये आपको दिखाते हैं हम सेवाग्राम आश्रम में रखी गांधी जी के द्वारा उपयोग में लायी जाने वाली कुछ बस्तुएं -

ये हैं लखनऊ निवासी रवि नागर जो उपस्थित थे दिनांक ०९.१०.२०१० को कविवर आलोक धन्वा जी कि अध्यक्षता में आयोजित काव्य संध्या के दौरान....जैसे ही काव्य संध्या का समापन हुआ बहने लगी सुर सरस्वती और संस्कृति की त्रिवेणी ....होने लगा उद्घोष कालजयी कविताओं का ! रवि नागर ने अतुकांत कविताओं को संगीत में इसप्रकार पिरोया था कि श्रोता मंत्रमुग्ध होकर बेसुध सुनते रहे और इसप्रकार साक्षात महसूस होते रहे निराला , शमशेर, अज्ञेय आदि कवि....!

वह तोड़ती पत्थर;
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर-
वह तोड़ती पत्थर।
कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
श्याम तन, भर बंधा यौवन,
नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन,
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार:-सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार।
()सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
=====================


मैंने कहा--
डूब चांद।
रात को सिहरने दे
कुइँयों को मरने दे।
आक्षितिज तन फ़ैल जाने दे।
पर तम
थमा और मुझी में जम गया।
मैंने कहा--
उठ री लजीली भोर-रश्मि, सोई
दुनिया में तुझे कोई
देखे मत, मेरे भीतर समा जा तू
चुपके से मेरी यह हिमाहत
नलिनी खिला जा तू।
वो प्रगल्भा मानमयी
बावली-सी उठ सारी दुनिया में फैल गई।
()अज्ञेय
=======================


प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
बहुत काली सिल जरा-से लाल केशर से
कि धुल गयी हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने
नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और...
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।

() शमशेर

हारमोनियम पर सुर साधते श्री रवि नागर

इसी के साथ मैं पटाक्षेप कर रहा हूँ वर्धा से संवंधित अपने अनुभवों की कथा का, आशा है कई खण्डों में प्रकाशित यह सचित्र कथा आप सभी को अवश्य पसंद आई होगी ...!

बुधवार, 13 अक्टूबर 2010

वर्धा में केवल विचार मंथन ही नहीं मस्ती की पाठशाला भी

वाएं से जाकिर अली रजनीश,रवीन्द्र प्रभात,एडवोकेट पवन दुग्गल, जय कुमार झा,गायत्री शर्मा,अनूप शुक्ल और प्रियरंजन पालीवाल समापन सत्र के पश्चात फुर्सत के क्षणों में ।

विश्विद्यालय के कुलपति श्री विभूति नारायण रॉय द्वारा श्रीमती अजित गुप्ता के "प्रेम का पाठ" नामक पुस्तक का विमोचन करते समय बाएं से श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी,श्रीमती अनीता कुमार ,श्रीमती अजित गुप्ता ,कुलपति महोदय (श्री रॉय) तथा डॉ.कविता वाचक्नवी ...

फुर्सत के क्षणों में श्री आलोक धन्वा जी के साथ जय कुमार झा और रवीन्द्र प्रभात

भूदान और अन्त्योदय जैसे अमर वाक्य के प्रस्तावक प्रणेता आचार्य विनोबा भावे की समाधि स्थल पर जाकिर अली रजनीश, हर्षवर्द्धन,रवीन्द्र प्रभात, शैलेश भारतवासी और संजीत त्रिपाठी आदि ।

आचार्य विनोबा भावे की साधना स्थली पवनार आश्रम के पास प्रवाहित पवनार नदी में धमाल करते रवीन्द्र प्रभात, प्रियरंजन पालीवाल, श्रीमती अनिता कुमार,जय कुमार झा, प्रो.ऋषभ देव शर्मा, शैलेश भारतवासी,अविनाश वाचस्पति आदि ।


राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की साधनास्थली सेवा ग्राम स्थित उनके दफ्तर का अवलोकन करते अविनाश वाचस्पति और जाकिर अली रजनीश ।

इन स्मृतियों में मुझे भी शामिल कर लो भाई ! ऐसा कहते हुए पीछे खड़े प्रोऋषभ देव शर्मा और जाकिर अली रजनीश .....नीचे वाएं से शैलेश भारतवासी, डा कविता वाचक्नवी, श्रीमती अनिता कुमार,श्रीमती अजित गुप्ता, अविनाश वाचस्पति,रवीन्द्र प्रभात और हर्षवर्द्धन ।

पवनार नदी का एक दृश्य यह भी ......जय कुमार झा और रवीन्द्र प्रभात ।


पवनार नदी में स्थित स्मृति स्थल "हे राम " को स्मृतियों में संजोते हुए ब्लोगर्स.....वाएं से श्री अविनाश वाचस्पति, प्रियरंजन पालीवाल,हर्षवर्द्धन,श्रीमती अनिता कुमार,जाकिर अली रजनीश,प्रो ऋषभ देव शर्मा,रवीन्द्र प्रभात,विवेक सिंह,अशोक कुमार मिश्र और डा कविता वाचकन्वी आदि ।

पवनार नदी का एक दृश्य यह भी रवीन्द्र प्रभात, जाकिर अली रजनीश और विवेक सिंह ।

पवनार नदी का एक दृश्य यह भी ....रवीन्द्र प्रभात

इन स्म्रितोयों में मुझे भी शामिल कर लो भाई, ऐसा कहते हुए डा रिषभ देव शर्मा पीछे जाकिर अली रजनीश के साथ....नीचे वाएं से शैलेश भारतवासी,डा कविता बाचकन्वी,श्रीमती अनिता कुमार,श्रीमती अजित गुप्ता,अविनाश वाचस्पति,रवीन्द्र प्रभात और हर्षवर्द्धन ।



आचार्य विनोबा निवास का एक दृश्य यह भी .....

कविवर आलोक धन्वा के शाथ शैलेश भारतवासी ....

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी,जय कुमार झा और जाकिर अली रजनीश बापू हिल पर....


बापू हिल का एक दृश्य यह भी जय कुमार झा, सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी और विवेक सिंह....

बापू हिल पर जाकिर अली रजनीश

अविस्मरणीय रहा वर्धा में आयोजित संगोष्ठी का दूसरा दिन


महात्मा गांधी अन्तराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला और संगोष्ठी के दूसरे दिन का दूसरा सत्र काफी महत्वपूर्ण रहा । एक ओर जहां आगंतुक ब्लोगर्स मित्रों ने अनेक बिंदूओं पर प्रकाश डालते हुए गंभीर विमर्श को जन्म देने की सार्थक पहल की वहीं साईबर लौ के एक्सपर्ट पवन दुग्गल ने कई विषयों पर क़ानून की धाराओं-उप धाराओं पर प्रकाश डाला ।


ब्लॉगिंग के लिए आचार संहिता संभव नहीं है : रवि रतलामी



दूसरे दिन के द्वितीय
सत्र के दौरान हिंदी के वहुचर्चित ब्लोगर श्री रवि रतलामी ने भोपाल में बैठकर फोन के माध्यम से सेमीनार


के दौरान कंप्यूटर पर पावरप्वाइंट प्रेजेंटेशन देते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि "ब्लॉगिंग के लिए आचार संहिता संभव नहीं है। उन्होंने बतौर उदाहरण देते हुए बताया कि विकिलिक्स एक उदाहरण है कि कैसे इसके माध्यम से घोटालों को भी उजागर किया जा सकता है।"

उन्होंने यह भी जानकारी दी कि "जिसे कानून का उल्लंघन करना ही होगा उसके लिए इंटरनेट पर कई साफ्टवेयर मौजूद हैं जैसे कि टॉर जिनका उपयोग करते हुए वह बेनामी ब्लॉगिंग कर सकता है।"
उनके इस पावर प्रजेंटेसन को विस्तार से यहाँ सुना जा सकता है

ब्लॉग भी अब कानून के दायरे में आ चुका है : पवन दुग्गल

श्री पवन दुग्गल ने अपने वक्तव्य में कहा कि -"किसी कंपनी के खिलाफ कोई अज्ञात बेनामी ब्लॉगर उसके उत्पाद के बारे में अंट-शंट लिखे जा रहा था। कोर्ट में मामला ले जाया गया। उस ब्लॉगर के खिलाफ फैसला आया लेकिन दिक्कत यह थी कि वह ब्लॉग नार्वे से संचालित था। फिर इसके लिए भारतीय कमीशन के माध्यम से नार्वे के कमीशन से संपर्क किया गया तब जाकर उस व्यक्ति तक पहुंचा जा सकाअज्ञात बेनामी ब्लोगर से संबंधित उन्होंने एक मुरादाबाद से संवंधित मामले का भी हवाला दिया । "



उन्होंने कहा कि- "ब्लॉग धीरे-धीरे लेकिन जल्दी असर दिखाता है, लोग उसे पढ़कर एक धारणा कायम करते हैंइसी परिप्रेक्ष्य में उन्होंने कारगिल हमले के दौरान बरखा दत्त पर ब्लॉग हमला किये जाने का भी हवाला दिया।"



उन्होंने कहा कि यदि आपके ब्लॉग पर कोई ऐसी टिप्पणी अथवा पोस्ट है जो आपत्तिजनक है तो हम पहले सर्विस प्रोवाईडर से जानकारी प्राप्त करते हैं और उस बेनामी ब्लोगर तक पहुँचाने के बाद वास्तविक वस्तुस्थिति की जानकारी लेते हैं । फिर यह देखते हैं कि उसका कृत्य किस धारा अथवा उपधारा के अंतर्गत आता है । उसके बाद हम कार्यवाई हेतु न्यायालय की शरण में जाते हैं ।"


कुलपति श्री विभूति नारायण राय के एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि -"यदि आपने ऐसी कोई पोस्ट डाली हो जो विबादासपद है तो संज्ञान में आते ही उसे तत्काल हटा लें , और अपने इस कृत्य के लिए सार्वजनिक माफी मांग लें तो आप बच सकते हैं , बसरते कि आहत व्यक्ति ने आपके पोस्ट का प्रिंट न निकाला हो या फिर भावनाओं में आबद्ध होकर आपको माफ़ कर दे तब ।"


उज्जैन के हरफन मौला ब्लोगर सुरेश चिपलूनकर के एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि-" देश के इंफर्मेशन एक्ट 2000 में 2008 में संशोधन पारित किया गया है जो कि 27 अक्तूबर 2009 से लागू हो चुका है। इस एक्ट के अंतर्गत ब्लॉग, ब्लैकबेरी यहां तक कि सेटेलाइट फोन भी आ चुके हैं ।"


इसी क्रम में उन्होंने कहा कि " ब्लॉगिंग ने आपको पूरी स्वतंत्रता नहीं दी है कि किसी के बारे में कुछ भी जो मन में आया लिख दें, बिना किसी सबूत के। ब्लॉग कानून के दायरे में आ चुका है। कानूनन ब्लॉगिंग इंटरनिजरी है। धारा 79 कहता है कि जिम्मेदारी ब्लॉग, ब्लॉगर व ब्लॉगिंग प्लेटफार्म पर है। किसी जुर्म या कमीशन में भागीदार हैं तो पूरे तौर पर जिम्मेदार। तीन साल की सजा व पांच लाख का जुर्माना। पांच करोड़ तक का हर्जाना (6 माह के भीतर) भी हो सकता है।"


भड़ास ब्लॉग के संचालक श्री यशवंत सिंह के एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि " यदि आप ब्लॉग लेखन से जुड़े हैं और आपको किसी भी राज्य की पुलिस पूछताछ के लिए बुलाती है तो आपको जाना चाहिए और सहयोग करना चाहिए , इससे आप अन्य किसी भी विधिक समस्याओं से बच सकते हैं । "



सोशल नेट्वर्किंग से संवंधित एक अन्य प्रश्न के उत्तर में पवन दुग्गल का कहना है कि “वर्तमान समय का आईटी अधिनियम सन 2000 का है जिसमें मूलतः ई-वाणिज्य को बढ़ावा देने का संशोधन था. तब किसी ने सोशल नेटवर्किंग साइट का नाम भी नहीं सुना था. परन्तु आजकल सोशल नेटवर्किंग साइट का व्यापक प्रयोग होने लगा है अतः पिछले वर्ष इस अधिनियम को निगमित किया गया. और अब विशेष रूप से तलाक के मामलों में इस प्रवृत्ति का चलन बढ़ रहा है.

आमतौर पर इन संदेशों का प्रयोग माध्यमिक सबूतों के रूप में होता है परन्तु यह प्राथमिक सबूतों की तरह महत्वपूर्ण भी हो सकते हैं. दुग्गल के अनुसार अगर हम गुस्सा होकर भी कोई ट्वीट्स या संदेश (जैसे कि “मैं अपनी पत्नी से नफ़रत करता हूं”) करते हैं और अगर इन संदेशों का प्रिंटआउट या स्क्रीन शॉट अदालत में पेश होता है तो यह माध्यमिक सबूत माने जाते हैं.

साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल कहते हैं कि तकनीकी रूप से बेनामी ब्लोगिंग को रोक पाना बहुत मुश्किल है। अवेयरनेस लाकर ही ब्लोगर्स को इनसे दूर रखा जा सकता है।


अश्लीलता और खुलेपन के मुद्दे पर श्री पवन दुग्गल का कहना था कि "काफी बड़ी संख्या में लोग इंटरनेट पर पॉर्न मटीरियल को ही देखना, पढ़ना चाहते हैं। खास बात यह है कि अश्लीलता के मुद्दे पर भी समाज दो तबकों में बंट जाता है, एक में खुलेपन के हिमायती तो दूसरे में संस्कारों के साथी। कोई-न-कोई कॉमन व्यू तो जरूर बनना चाहिए। कम-से-कम खुलेपन की लिमिट तो तय की ही जा सकती है।"

...........रपट अभी जारी है

मंगलवार, 12 अक्टूबर 2010

कैमरे में कैद वर्धा में आयोजित संगोष्ठी की सच्चाई


विगत दिनांक ०९-१० अक्टूबर २०१० को वर्धा में महात्मा गांधी अन्तराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के तत्वावधान में आयोजित "हिंदी ब्लोगिंग की आचार संहिता " विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी और कार्यशाला का आयोजन हुआ ...प्रस्तुत है स्मृतियों के आईने में कैद कुछ सुनहरे पल .....

हिंदी ब्लॉग जगत की पवित्रता को बचाए रखने की एक मुहीम .....हम आपके सहयोग के आकांक्षी हैं । मंच पर उदघाटन सत्र के दौरान बाएं से श्री आलोक धन्वा, श्रीमती अजित गुप्ता, श्री विभूति नारायण राय, श्री ऋषभ देव शर्मा,श्री अजित राय और श्रीमती कविता वाचकनवी




ब्लोगरों को अपनी लक्षमण रेखा स्वयं बनानी होगी : विभूति नारायण राय







शुरुआत में जैसे रेल यात्रा करने से लोग डरते थे लेकिन आज यह हमारी आवश्यकता बन गयी है वैसे ही शायद अभी ब्लॉगिंग के शुरुआती दौर में इसके प्रति हिचक है लेकिन आने वाले समय में यह जन समुदाय की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सकती है :आलोक धन्वा







देश के कोने-कोने से आये सभी सम्मानित अतिथियों का स्वागत और अभिनन्दन, इस कार्यक्रम के माध्यम से हिंदी ब्लॉग जगत में शिष्टाचार की एक नयी परिभाषा गढ़ने में कामयाब होंगे : सिद्दार्थ शंकर त्रिपाठी







पाखंड हर जगह निंदनीय है, चाहे ब्लोगिंग क्यों न हो :प्रो. ऋषभ देव शर्मा





आने वाले समय में आचार संहिता की आवश्यकतायें बढ़ेंगी : डॉ.कविता वाचक्नवी


हम हिंदी पट्टी के लोग अतितों में जीते हैं। या तो हम अराजक हो जाते हैं या फ़िर बेहद भावुक। अंग्रेजी के लोग तार्किक होते हैं इसलिये वे गाली और गप्प को कम तथ्य को ज्यादा तरजीह देते हैं :यशवंत सिंह






ब्लॉग एक तरह से रसोई गैस की तरह है जिस पर आप हर तरह का पकवान बना सकते हैं। साहित्य,लेखन, फोटो, वीडियो, आडियो हर तरह की विधा में इसमें अपने को अभिव्यक्त कर सकते हैं : अनूप शुक्ल ।

जब कोई परिवार अथवा समाज बड़ा स्वरुप लेने लगता है, तो वहां कुछ अवांछित लोगों की सक्रियता भी बढ़ने लगती है ! ऐसे में समाज के जिम्मेदार लोगों का यह कर्त्तव्य बनता है कि समाज को विसंगतियों और विभेद से दूर रखा जाए : रवीन्द्र प्रभात


ब्लोगिंग में ताकत बहुत है , मीडिया से भी ज्यादा ...इसका एक उदाहरण है विगत दिनों आये घातक सुनामी को एक सुनामी ब्लॉग ने ऐसा सार्थक कवरेज दिया जो किसी भी अखवार अथवा चैनल ने नहीं दिया : गायत्री शर्मा


गांधी बाबा के आदर्शों को ब्लोगिंग के माध्यम से साकार करने का संकल्प लेते ब्लोगर गण ...वाएं से अनूप शुक्ल, रवीन्द्र प्रभात,ऋषभ देव शर्मा,कविता वाचकनवी,अजित गुप्ता, अनिता कुमार,हर्ष वर्द्धन, अविनाश वाचस्पति, अशोक कुमार मिश्र,गायत्री शर्मा,संजीत त्रिपाठी, डा. महेश सिन्हा,जाकिर अली रजनीश,जय कुमार झा, विवेक सिंह, संजय वेंगानी ,प्रियरंजन पालीवाल आदि ।





सुरेश चिपलूनकर ने स्मृतियों को कैमरे में कैद करने की ठान ली है जिसको फोटो खिचवाना है आये मैं तैयार हूँ । /tr>



मगर अगले ही क्षण जाकिर अली रजनीश को कैमरा थमाते हुए कहा क्या केवल मैं ही फोटो खीचूँगा कोई मेरी भी तो फोटो उतारे ....!



हर भले आदमी की एक रेल होती है जो उसकी माँ के घर की ओर जाती है , सिटी बजाती हुई धुंआ उडाती हुई : काव्य संध्या के दौरान आलोक धन्वा



भाई हमें भी कुछ क्षण बापू को स्मरण करने दो : जाकिर अली रजनीश



थोड़ी देर के लिए मुझे भी ध्यान से गुजरने दो : हर्ष वर्द्धन





सुना है चिट्ठा चर्चा पर किसी की तीखी प्रतिक्रया आई है : जय कुमार झा ने कहा .....अरे किसी ने नाराजगी भी व्यक्त की है : जाकिर अली रजनीश....अच्छा ज़रा मैं भी पढूं : रवीन्द्र प्रभात ......भाई साहब सब माया है : विवेक सिंह ।

हम होंगे कामयाब एक दिन , पूरा है विश्वास : प्रतिभागियों के समूह के साथ महात्मा गांधी अन्तराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय

और अब हिंदी चिट्ठाकारों मेरी आवाज़ सुनो .....



आचार संहिता की बात अगर न भी मानें तो मन की बात माननी चाहिये और ऐसी बातें करने से बचना चाहिये जिससे लोगों को बुरा लग सकता है : अविनाश वाचस्पति



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ब्लोगिंग एक नदी की तरह है , जिसके दोनों तरफ किनारे होते हैं और बीच में प्रवाह होता है ...जो प्रवाह के साथ चलता है वही सच्चा ब्लोगर है : प्रवीण पाण्डेय




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व्यक्तिगत हिसाब निपटाने के लिये बेमानी ब्लाग लिखना अनुचित है लेकिन जनहित में संस्थागत लड़ाइयां लड़ने के लिये बेनामी की आवश्यकता पड़ सकती है : हर्षवर्धन




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आज हिंदी चिट्ठाकारी अत्यंत संवेदनात्मक दौर में है इसलिए संभालकर पाँव बढाने की आवश्यकता है : अनिता कुमार




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ब्लोगिंग को हथियार बनाएं अराजकता के खलाफ मगर हमारी भाषा आक्रामक नहीं होनी चाहिए : अशोक कुमार मिश्र




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नए चिट्ठाकारों को विषय परक ब्लॉग की जानकारी दें वरिष्ठ ब्लोगर, ताकि वे अपनी पसंद के हिसाब से ब्लॉग का चयन कर सके : जाकिर अली रजनीश




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हम सुधार की अपेक्षा केवल नए ब्लोगर से ही नहीं कर सकते , अपितु शिष्टाचार का पालन वरिष्ठ ब्लोगर को भी करना होगा ....पानी ऊपर से साफ़ गिरेगा तो नीचे साफ़ पानी अपने आप मिलने लगेगा : जय कुमार झा



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विरोधी बातों का शालीलना से जबाब देना चाहिये। बहुत गुस्सा आये तो आप साले की जगह भाईसाहब शब्द का इस्तेमाल करते हुये कह सकते हैं- भाई साहब आप बहुत हरामी हैं:सुरेश चिपलूनकर

और अंत में आईये जानते हैं क्या कहा क़ानून के जानकार ने आचार संहिता के उलंघन पर-

ब्लोगिंग में अचार संहिता के उलंघन पर तीन वर्ष की कैद और १ लाख से पांच लाख रुपये और उससे ज्यादा भी जुर्माना हो सकता है , भारत में इस तरह के दो-तीन मामले उजागर हुए हैं अभी तक : पवन दुग्गल ( एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया/साईबर लौ तथा आई टी एक्ट कमिटी के चेयरमैन)

 
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