शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

परिकल्पना का तीसरा सार्थक कदम


जन्म,मृत्यु,शादी,..... उत्सव कोई भी हो,कहीं भी हो - कोई न कोई कमी रह ही जाती है 
कमी ना हो तो सीखने के अवसर नहीं मिलते 
नहीं मिलती सही गलत व्यक्ति के आचरण की पहचान 
....
लिखना,पढ़ना - कठिन काम है 
पर झटके से उसे मिटाना आसान है 
........ किये पर पानी फेरने में समझदारी काम नहीं आती 
नहीं होती समझदारी खुद को तीसमारखां दिखाने में 
समझदारी है 
गलती से सीखना 
तिनके की पहचान 
झंझावातों के मध्य भी शांत रहना !
.....
आलोचनाओं के कटघरे में तो भगवान् खड़े हैं 
फिर बंधू हम क्या चीज हैं 
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
हम शपथ लें 
कि धैर्य की सीमा पर 
हम अडिग रहेंगे 
ताकि यह तीसरा सार्थक कदम 
कांस्य-पदक से लेकर स्वर्ण-पदक तक जाये 
ज्ञानपीठ की तरह अपनी पहचान बनाये ....

शुभकामनायें आप् सबको, हम सबको 

गुरुवार, 29 नवंबर 2012

फिर ना कहना हमें बुलाया नहीं ....


परिकल्पना में भेजिए अपनी रचनाएँ - लघुकथा,कहानी,व्यंग्य,संस्मरण,यात्रा वृतांत,सामाजिक हलचल ..... 
पूरी धरती,पूरा आकाश लेकर भेजिए rasprabha@gmail.com पर 
समय रहते अपनी रचनाएँ भेजिए 

कलयुग से परिकल्पना युग


Photo Flipbook Slideshow Maker

बिना प्रयोजन कुछ संभव नहीं 
धरती भी जो बंजर होती है 
उसके पीछे सांकेतिक प्रयोजन होते हैं 
बंजर से उर्वरक होने के रास्ते 
जिजीविषा के मूल तत्व होते हैं ....
अनदेखा अनचाहा व्यवहार 
धरती नदी भी स्वीकार नहीं करती 
पेड़ पौधे पहाड़ अपना अस्तित्व ढूंढते हैं 
स्व के मद में हम उन्हें मिटाते हैं 
सत्य के दावानल में हम मिट जाते हैं !
बीच से ईंट हटाने से दीवारें गिरती हैं 
पाने के लिए खुद को खोकर 
नींव की ईंट पर ईंट रखना 
नई परम्परा 
नई संभावनाओं के प्रदीप्त द्वार खोलते हैं ............................ 
....................
कलयुग के अँधेरे में 
इक परछाईं सी गुम हो रही थी हिंदी साहित्य की साँसें 
ब्लॉग एक निजी डायरी बन उभरा 
रवीन्द्र प्रभात जी ने 
परिकल्पना का सिंचन किया 
समय बन हर दिशाओं में लक्ष्यभेद किया 
कोपलों को समेट 
हमने वटवृक्ष लगाया 
पंछियों के मधुर कलरव ने 
साहित्यिक आँगन को गुंजायमान किया 
......
हिंदी साहित्य से जुड़े प्रायः हर ब्लॉग का उल्लेख 
परिकल्पना को एक युग से परिभाषित करता है 
परिकल्पना युग ने हमेशा आपका सम्मान किया है 
करता रहेगा ....
तो आइये विगत की क्षणिक कटुता को भूल 
हम इस उत्सव का आनंद लें 
समय के हर लम्हे को साझा कर लें ....

बुधवार, 28 नवंबर 2012

आरम्भ 1 दिसम्बर से

(कृपया अब दूसरी कोई भी पोस्ट 25 दिसम्बर तक ना डाली जाये )



भीनी भीनी हवाओं की आहटें 
कहानियों कविताओं संस्मरणों 
हाइकु क्षणिकाओं .... संग 
हिंदी साहित्य के परिकल्पना मंच पर 
दस्तक दे रही हैं 
स्वागत कीजिये अपनी रचनाओं के संग 
मील का पत्थर हो यह परिकल्पना 
कोई कसर न छोड़िये 
परिकल्पना को इंतज़ार है आपका 
आप उसके मंच को साकार कीजिये 
परिकल्पना आपकी कल्पनाओं को पंख देगी 
है पंख मेरी झोली में 
सांता क्लॉज से लेकर आई हूँ 
आप आइये तो :) 

मंगलवार, 27 नवंबर 2012

मुश्किलें ना हों तो रास्ते नहीं ...



(कृपया अब दूसरी कोई भी पोस्ट 25 दिसम्बर तक ना डाली जाये )

 मुश्किलें ना हों तो रास्ते नहीं ... तो मुश्किलों से कभी ना घबराएँ ना डगमगाएं 
जब सारे रास्ते बंद नज़र आते हैं 
तो कोई फ़रिश्ता नए द्वार पर स्वागत की मुद्रा में होता है 
................
हमें भी मिला वह फ़रिश्ता 
बोला हंसकर -
मैं तो हर हाल में साथ रहता हूँ 
..............
'वटवृक्ष' - परिकल्पना का आयोजन 
गुल्लक खाली हो गया 
तब यह फ़रिश्ता विकल्प की रौशनी दे गया 
-
तो बंधू विकल्प यह है 
कि = हम परिकल्पना उत्सव 1 दिसम्बर से आरम्भ करेंगे 
25 तक हम हर रंग प्रस्तुत करेंगे 
यकीनन सात रंगों के अलावा भी :)
सात रंग तो प्रभु ने दिए हैं 
8,9.............. अनगिनत रंग हमसब बनेंगे 
क्योंकि लड़कर भी हम साथ साथ हैं ...........

इसी उत्सव में बिखरे रंगों को हम बारी बारी 
2 या 3 अंकों में वटवृक्ष की शान बनायेंगे 
..........
आप चाहें ना चाहें 
हम अपने रंग में आपको रंग जायेंगे 
कलयुग को सतयुग बना जायेंगे :)

सोमवार, 26 नवंबर 2012

शादी

          शादी
जैसे पतझड़ के बाद ,बसंत ऋतू में ,फूलों का महकना
जैसे प्रात की बेला में,पंछियों का कलरव, चहकना
जैसे सर्दी की गुनगुनी धूप  में,छत पर बैठ मुंगफलियाँ खाना
जैसे गर्मी में ट्रेन के सफ़र के बाद ,ठन्डे पानी से नहाना
जैसे तपती हुई धरती पर ,बारिश की पहली फुहार का पडना
जैसे बगीचे में,पेड़ पर चढ़ कर,पके हुए फलों को चखना
जैसे पूनम के चाँद को,थाली में भरे हुए जल में उतारना
जैसे बौराई अमराई में,कोकिल का पियू पियू पुकारना
जैसे सलवटदारवस्त्रों को प्रेस करवा कर के पहन लेना
जैसे सवेरे उठ कर ,गरम गरम चाय की चुस्कियां  लेना
जैसे दीपावली की अँधेरी रात मे, दीपक जलाना
जैसे चरपरा खाने के बाद मीठे गुलाब जामुन खाना   
जैसे सूखे से चेहरे पर  अबीर और गुलाल का खिलना
जैसे वीणा और तबले की ताल से ताल का मिलना
जैसे जीवन के कोरे कागज़ पर कोई आकर लिख दे प्रणय गीत
जैसे वीराने में बहार बन कर आ जाए ,कोई मनमीत
जैसे जीवन की बगिया में ,फूलों की तरह ,खिलता हो प्यार
जैसे सोलह संस्कारों में सबसे प्यारा मनभावन संस्कार
जैसे जीवन की राह में ,मिल जाए ,खूबसूरत हमसफ़र का साथ
इश्वर द्वारा मानव को दी गयी ,सबसे अच्छी सौगात
         शादी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंथरा

            मंथरा

जो लोग अपना भला बुरा नहीं समझते
आँख मूँद कर, दूसरों की सलाह पर है चलते
उन पर मुसीबत आती ही आती है
बुद्धि भ्रष्ट करने के लिए ,हर केकैयी को ,
कोई ना कोई मंथरा मिल ही जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चन्दन सा बदन

      चन्दन सा बदन

पत्नी जी हो नाराज,तो उन्हें मनाना
जैसे हो लोहे के चने  चबाना
सीधी  सच्ची बात भी उलटी लगती है
एसा लगता है,सब हमारी ही गलती है
एक बार पत्नी जी थी नाराज़,हमें था मनाना
हमने गा दिया ये गाना
'चन्दन सा बदन ,चंचल चितवन ,
 धीरे से तेरा ये मुस्काना'
अधूरा था गाना और पत्नी ने मारा ताना
'अच्छा ,तो अब तुम्हे मेरा बदन ,
लगता है चन्दन की लकड़ी '
हमने सर पीटा ,हो गयी कुछ गड़बड़ी
हमने कहा नहीं ,हमारा मतलब था ,
तुम्हारा बदन चन्दन सा महकाता है
वो बोली'चन्दन तो तब खुशबू देता है ,
जब वो पुराना होकर सूख जाता है
तो क्या तुम्हे हमारा बदन पुराना और,
सूखी लकड़ी सा नज़र आता है?
तो फिर क्यों लिपटे रहते हो मेरे संग
चन्दन पर तो लिपटते है भुजंग
हमने कहा गलती हो गयी रानी
अब करो मेहरबानी
देवीजी ,तुम चन्दन हम पानी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


रविवार, 25 नवंबर 2012

बेचारी मधुमख्खी

        बेचारी मधुमख्खी

निखारना हो अपना  रूप 
या दिल को करना हो मजबूत
मोटापा घटाना  हो
खांसी से निजात पाना हो
चेहरा हो बहुत सुन्दर ,इसलिए
नहीं हो ,हाई ब्लड प्रेशर ,इसलिए
हम शहद काम में लाते है
पर कृषि वैज्ञानिक बताते है
शहद का बनाना नहीं है सहज 
और एक मधुमख्खी ,अपने जीवनकाल में,
पैदा करती ही कुल आधा चम्मच शहद
मधुमाख्खियाँ,फूलों के ,
करीब दो करोड़ चक्कर लगाती है
तब कहीं ,आधा किलो शहद बन पाती है
मधुमख्खियों के ,पांच आँख होती है
वो,कभी भी नहीं सोती है
मधुमाख्खियों को लाल रंग,
काला  दिखता  है
इसलिए लाल फूलों का ,
शहद नहीं बनता है
फिर भी ,लगी रहती है दिन रात ,
पूरी लगन के साथ 
कभी भी ना थकी
बेचारी मधुमख्खी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


शहद सी पत्नी और 'हनीमून'

 
     शहद सी  पत्नी और 'हनीमून'

मधुर है,मीठी है,प्यारी है
शहद जैसी पत्नी हमारी है
भले ही इस उम्र में ,वो थोड़ी बुढ़िया लगती है
पर मुझे वो ,दिनों दिन और भी बढ़िया लगती है 
  क्योंकि शहद भी जितना पुराना होता जाता है,
उसकी गुणवत्ता बढती है
सोने के पहले ,दूध के साथ शहद खाने से
अच्छी नींद के साथ आते है ,सपने सुहाने से
सोने के पहले ,जब पत्नी होती है मेरे साथ
तो लागू होती है ,मुझ पर भी ये बात
दिल की मजबूती के लिए ,
शहद बड़ा उपयोगी है
मेरी पत्नी मेरे दिल की दवा है ,
क्योंकि ये बंदा ,दिल का रोगी है
शहद सौन्दर्य वर्धक है,
उसको लगाने से चेहरे पर चमक आती है
और जब पत्नी पास हो तो,
मेरे चेहरे पर भी रौनक छाती है
मेरी नज़रें ,मधुमख्खी की तरह ,
इधर उधर खिलते हुए ,
कितने ही पुष्पों का रसपान करती है
और मधु संचित कर ,
पत्नी जी के ह्रदय के छत्ते में भरती है
और मै ,मधु का शौक़ीन ,
रात और दिन
करता रहता हूँ मधु का रसपान
और साथ ही साथ ,पत्नी जी का गुणगान
क्योंकि शहद एक संतुलित आहार है
और मुझे अपनी पत्नी  से बहुत प्यार है
 अब तो आप  भी जान गए होंगे कि ,
लोग अपनी पत्नी  को'हनी 'कह कर क्यों बुलाते है
और शादी के बाद ,'हनीमून 'क्यों मनाते है
क्योंकि पत्नी का चेहरा चाँद सा दिखाता है
और उसमे 'हनी',याने शहद का स्वाद आता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


 



 

शनिवार, 24 नवंबर 2012

मिलन

            मिलन

मिलन मिलन में अक्सर काफी अंतर होता
जल जल ही रहता है ,टुकड़े  पत्थर  होता 
दूर क्षितिज में मिलते दिखते ,अवनी ,अम्बर
किन्तु मिलन यह होता एक छलावा  केवल
क्योंकि धरा आकाश  ,कभी भी ना मिलते है
चारों तरफ भले ही वो मिलते ,दिखते  है
मिलन नज़र से नज़रों का है प्यार जगाता
लब से लब का मिलन दिलों में आग लगाता
तन से तन का मिलन ,प्रेम की प्रतिक्रिया है
पति ,पत्नी का मिलन  रोज  की दिनचर्या है
छुप छुप मिलन प्रेमियों का होता उन्मादी
दो ह्र्दयों का मिलन पर्व ,कहलाता  शादी
  माटी और बीज का जल से होता  संगम
विकसित होती पौध ,पनपती बड़ा वृक्ष बन
सिर्फ मिलन से ही जगती क्रम चलता है
अन्न ,पुष्प,फल,संतति को जीवन मिलता है
हर सरिता,अंततः ,मिलती है ,सागर से
मीठे जल का मिलन सदा है खारे जल से
मिलन कोई होता है सुखकर ,कोई दुखकर
एक मिलन मृदु होता और दूसरा टक्कर
मधुर मिलन तो होता सदा प्रेम का पोषक
पर टक्कर का मिलन अधिकतर है विध्वंशक
टकराते चकमक पत्थर,निकले चिगारी
मिले हाथ से हाथ ,दोस्ती होती  प्यारी
हवा मिले तरु से तो हिलते ,टहनी ,पत्ते
मिले पुष्प,मधुमख्खी ,भरते मधु से छत्ते
शीत ग्रीष्म के मिलन बीच आता बसंत है
मिलन मौत से,जीवन का बस यही अंत है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

GEET-GAZAL KE SAYE MEN.





M.K. ARTS PVT.LTD.
AHMADABAD-GUJARAT.

PRESENTS

"GEET-GAZAL KE SAYE MEN." 

(Recorded Year-1990.)


SONGS WRITER-COMPOSER-MUSIC DIRECTOR -MARKAND DAVE.

CO-SINGER- SUSHRI PARUL VYAS.

MUSIC-SHRI PRASUN CHUDHARI-MARKAND DAVE.

M.K.AUDIO-VIDEO RECORDING STUDIO.

MAIL- mdave42@gmail.com




लक्ष्मी जी की कृपा



लक्ष्मी जी का आकर्षण ही एसा है कि ,
 सब उसके प्रभाव से  बंध  जाते है
चिघाड़ने  वाले ,बलवान हाथी भी ,
उनको देख ,उमके सेवक बन जाते है 
और लक्ष्मी जी आस पास ,
अपनी सूंड उठा कर ,
पानी की बौछार करते हुए  नज़र आते है
कमलासन पर विराजमान,लक्ष्मी जी की,
कृपा जब आपके साथ होती है
तो दोनों हाथों से ,
पैसों की बरसात होती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

कार्तिक के पर्व



धन तेरस ,धन्वन्तरी पूजा,उत्तम स्वास्थ्य ,भली हो सेहत
और रूप चौदस अगले दिन,रूप निखारो ,अपना फरसक
दीपावली को,धन की देवी,लक्ष्मी जी का ,करते पूजन
सुन्दर स्वास्थ्य,रूप और धन का ,होता तीन दिनों आराधन
पडवा को गोवर्धन पूजा,परिचायक है गो वर्धन   की
गौ से दूध,दही,घी,माखन,अच्छी सेहत की और धन की
होती भाईदूज अगले दिन,बहन भाई को करती टीका
भाई बहन में प्यार बढाने का है ये उत्कृष्ट  तरीका
पांडव पंचमी ,भाई भाई का,प्यार ,संगठन है दिखलाते
ये दो पर्व,प्यार के द्योतक ,परिवार में,प्रेम बढाते
सूरज जो अपनी ऊर्जा से,देता सारे जग को जीवन
सूर्य छटी पर ,अर्घ्य चढ़ा कर,करते हम उसका आराधन
गोपाष्टमी को ,गौ का पूजन ,और गौ पालक का अभिनन्दन
गौ माता है ,सबकी पालक,उसमे करते  वास   देवगण
और आँवला नवमी आती,तरु का,फल का,होता पूजन
स्वास्थ्य प्रदायक,आयु वर्धक,इस फल में संचित है सब गुण
एकादशी को ,शालिग्राम और तुलसी का ,ब्याह अनोखा
शालिग्राम,प्रतीक पहाड़ के,तुलसी है प्रतीक वृक्षों का
वनस्पति और वृक्ष अगर जो जाएँ उगाये,हर पर्वत पर
पर्यावरण स्वच्छ होगा और धन की वर्षा ,होगी,सब पर
इन्ही तरीकों को अपनाकर ,स्वास्थ्य ,रूप और धन पायेंगे
शयन कर रहे थे जो अब तक,भाग्य देव भी,जग जायेंगे
देवउठनी एकादशी व्रत कर,पुण्य  बहुत हो जाते संचित
फिर आती बैकुंठ चतुर्दशी,हो जाता बैकुंठ  सुनिश्चित
और फिर कार्तिक की पूनम पर,आप गंगा स्नान कीजिये
कार्तिक पर्व,स्वास्थ्य ,धनदायक,इनकी महिमा जान लीजिये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 21 नवंबर 2012

जो दिखता है-वो बिकता है

   जो दिखता  है-वो बिकता है

जो दिखता  है -वो बिकता है
बिका हुआ रेपिंग पेपर में ,
                          छुप प्रेजेंट कहाता है
पर जब रेपिंग पेपर फटता ,
                          तो फिर से दिखलाता है
बन जाता प्रेजेंट ,पास्ट,
                     ज्यादा दिन तक ना टिकता है
जो दिखता है -वो फिंकता  है
लाख करोडो रिश्वत खाते ,
                         नेताजी ,कर घोटाले
पोल खुले तो फंसते अफसर ,
                           मारे जाते  बेचारे
छुपे छुपे नेताजी रहते ,
                            दोषी  अफसर दिखता  है
जो दिखता है-वो पिसता है
  गौरी का रंग गोरा लेकिन,
                         खुला खुला जो अंग रहे
धीरे धीरे पड़ता काला ,
                           जब वो तीखी धुप सहे
छुपे अंग रहते गोरे ,
                         और खुल्ला ,काला दिखता  है
जो दिखता है -वो सिकता  है
                                            
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 19 नवंबर 2012

कल भी आज भी - आज भी कल भी ...


पहली बार 
जब परिकल्पना के समय की लिबास में रवीन्द्र प्रभात जी ने समय की सूई घुमाई
तो कई काल इकट्ठे खड़े 
आशीर्वचन बोलों से 
शंखनाद कर उठे 
मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारा,गिरिजाघर ....
सब साथ हो लिए ...
माँ सरस्वती ने सबको कलम का उपहार दिया 
........
यही भावना यही दृश्य 
विचारों का मंथन करता गया 
कल भी आज भी -
करता रहेगा कल भी ...
अमृत की बूंद बूंद - सबके लिए है 
...
नीलकंठ होना पड़ता है 
बिना विषपान आगे बढ़ना संभव नहीं 
....
तो हम आप हो चुके नीलकंठ 
अब शुभ सुन्दर सत्य शिव की प्रतीक्षा है 
.... बंधू देर क्यूँ ?

(बस अपना ब्लॉग लिंक भेजें - चयन हमारा होगा .... :) 
इतना हक मेरा था - है - होगा)

दक्षिणा के साथ साथ

    दक्षिणा के साथ साथ

अबकी बार ,जब आया था श्राध्द पक्ष
तो एक आधुनिक पंडित जी ,
जो है कर्म काण्ड में काफी दक्ष
हमने उन्हें निमंत्रण दिया कि ,
परसों हमारे दादाजी का श्राध्द है,
आप भोजन करने हमारे घर आइये
तो वो तपाक से बोले ,
कृपया भोजन का 'मेनू 'बतलाइये
हमने कहा पंडित जी,तर  माल खिलवायेगे
खीर,पूरी,जलेबी,गुलाब जामुन ,कचोडी ,
पुआ,पकोड़ी सब बनवायेगे
पंडित जी बोले 'ये सारे पदार्थ ,
तले हुए है,और इनमे भरपूर शर्करा है '
ये सारा भोजन गरिष्ठ है ,
और 'हाई केलोरी 'से भरा है '
श्राध्द का प्रसाद है ,सो हमको  खाना होगा
पर इतनी सारी  केलोरी को जलाने को,
बाद में 'जिम' जाना होगा
इसलिए भोजन के बाद आप जो भी दक्षिणा देंगे
उसके साथ 'जिम'जाने के चार्जेस अलग से लगेंगे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

दिवाली मन जाती है

दिवाली मन जाती है

जब भी आती है दिवाली ,हर बार
एक जगह ,एकत्रित हो जाता है,
हम सब भाइयों का पूरा परिवार
मनाने को खुशियों का त्योंहार
साथ साथ मिलकर के ,दिवाली मनाना
हंसी ख़ुशी ,चहल पहल,खाना,खिलाना
लक्ष्मी जी का पूजन,पटाखे चलाना
प्रेम भाव,मस्ती,वो हँसना ,हँसाना
भले ही चार दिन ,पर जब सब मिल जाते है
मेरी माँ के झुर्राए चेहरे पर ,
 फूल खिल जाते है
सब को एक साथ देख कर ,
उनकी धुंधली सी आँखों में ,
खुशियों के दीपक जल जाते है
प्यार ,ममता और संतोष की,
 ऐसी चमक आती है
कि दीपावली,अपने आप मन जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गृह लक्ष्मी



नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृहलक्ष्मी  है
जीवन को करती ज्योतिर्मय
उससे ही है घर का वैभव
जगमग जगमग घर करता है
खुशियों से आँगन भरता है
दीवाली की सभी मिठाई
उसके अन्दर रहे समाई
गुझिये जैसा भरा हुआ तन
 रसगुल्ले सा रसमय यौवन
और जलेबी जैसी सीधी
चाट चटपटी  ,दहीबड़े सी
फूलझड़ी सी वो मुस्काती
और अनार सा फूल खिलाती
कभी कभी बम बन फटती है
आतिशबाजी सी लगती है
आभूषण से रहे सजी है
प्रतिभा उसकी ,चतुर्भुजी है
दो हाथों में कमल सजाती
खुले हाथ पैसे बरसाती
मै उलूक सा ,उनका वाहन
जाऊं उधर,जिधर उनका मन
इधर उधर आती जाती है
तभी चंचला  कहलाती है
मेरे मन में मगर रमी है
नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृह लक्ष्मी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 18 नवंबर 2012

आपके लिए आपके पास आपके साथ ............


















वटवृक्ष के बीज 
जब सोच में पनपे थे 
तो सपने उसकी जड़ों जैसे दूर तक मजबूत थे 
मिटटी की अपनी तासीर थी 
जिसे गाँव की मीठी खुशबू के साथ 
मैंने रवीन्द्र प्रभात जी को दी ...
सपनों की उड़ान लम्बी ही नहीं 
बहुत ऊँची होती है 
पंखों की मजबूती में 
ब्रह्माण्ड की खोज - उसकी ताबीर होती है !
.....
धीरे धीरे 
वटवृक्ष की जड़ें फैलीं  
कल्पना से परिकल्पनाओं के आधार दिए 
कलमकारों को छांव मिली ...
...
शब्दों का सिंचन अद्भुत,अनोखा रहा  
माली बन 
मैंने और रवीन्द्र जी ने 
कई पौधे लगाये 
वृक्षों को आयाम दिए 
संभावनाओं के अनगिनत द्वार खोले 
....
थकान हुई 
दिल घबराया 
पर माथे पर उभरे 
छलछलाए स्वेद कणों की 
हमने परवाह नहीं की 
....
आज भी हमें परवाह नहीं सूखे की 
सुनामियों की 
खनकती गेहूं की बालियों जैसे रचनाकारों के संग 
हम हाज़िर हैं ..........
आपके लिए 
आपके पास 
आपके साथ ............  इजाज़त हो तो करें 1 दिसम्बर से हम अपनी और आपकी परिकल्पना की शुरुआत :)
प्रशंसक ना हों तो लिखने का अर्थ अर्थहीन होता है !

भावनाओं का क्रूज़ है - मित्र भाव के संग साथ चलते हैं न 



पत्नी-पीड़ित -पति

           पत्नी-पीड़ित -पति

सारी दुनिया में ले  चिराग ,
यदि निकल ढूँढने जाए आप
              मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
               पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
                  ये बात नहीं है  अनजानी
चेहरे पर चिंतायें होगी ,
             माथे पर शिकन पड़ी होगी
मुरझाया सा मुखड़ा होगा ,
             सूरत कुछ झड़ी झड़ी होगी
सर पर यदि होंगे बाल अगर ,
              तो अस्त व्यस्त ही पाओगे ,
वर्ना अक्सर ही उस गरीब ,
            की   चंदिया  उडी उडी होगी
 रूखी रूखी बातें करता ,
             सूखा सूखा आनन  होगा
निचुड़ा निचुड़ा ,सुकड़ा सुकड़ा ,
              ढीला ढीला सा तन होगा
आँखों में चमक नहीं होगी ,
              कुछ कुछ मुरझायापन  होगा
यदि बाहर से हँसता भी हो,
              अन्दर से रोता मन होगा
बिचके जो बातचीत में भी,
                कुछ कहने में शरमाता हो
पत्नी की आहट पाते ही ,
                  झट घबरा घबरा जाता हो
चौकन्ना श्वान सरीखा हो,
                    गैया सा सीधा सीधा  हो
पर अपने घर में घुसते ही ,
                     भीगी बिल्ली बन जाता हो
दिखने में भोला भोला हो
जिसके होंठो पर ताला हो
                      बोली हो जिसकी दबी दबी ,
                    और हंसी हँसे जो खिसियानी
                       मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
                        पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
उस दुखी जीव को देख अगर ,
                   जो ह्रदय दया से भर जाए         
उसकी हालत पर तरस आये,
                  मन में सहानुभूति  छाये
शायद तुम उससे पूछोगे ,
                 क्यों बना रखी है ये हालत ,
हो सकता है वो घबराये ,
                 उत्तर देने में   कतराये
तुम शायद पूछो क्या ऐसा ,
                  जीवन लगता है जेल नहीं
चेहरे पर चिंताएं क्यों है,
                    क्यों है बालों में तेल  नहीं
सूखी सी एक हंसी हंस कर ,
                     शायद वह यह उत्तर देगा ,
पत्नी पीड़ित ,होकर जीवित ,
                     रह लेना कोई खेल नहीं
मै खोया खोया रहता हूँ,
                       मुझको जीवन से मोह नहीं
सब कुछ सह सकता ,पत्नी से ,
                        सह सकता मगर बिछोह नहीं
शायद मेरी कमजोरी है ,
                            कायरता भी कह सकते हो,
लेकिन अपनी पत्नीजी से ,
                            कर सकता मै  विद्रोह   नहीं   
 कैसे साहस कर सकता हूँ
उनके बेलन से  डरता हूँ
                         पत्नी सेवा है धर्म मेरा ,
                           पत्नीजी है घर की रानी
                          मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
                           पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
ऐसे पत्नी पीड़ित पति की भी,
                     काफी किस्मे होती है
कितने  ही आफत के मारों ,
                     की गिनती इसमें होती है
कोई के पल्ले बंध जाती,
                      जब बड़े बाप की बेटी है,
तो छोटी छोटी बातों में ,
                      भी तू तू मै  मै  होती है
कोई की पत्नी कमा  रही,
                      तो पति पर रौब चलाती है
कोई सुन्दर आँखों वाली है ,
                       पति को आँख दिखाती  है
कोई का पति दीवाना है ,
                        कोई के पति  जी दुर्बल है ,
पति की कोई भी कमजोरी का ,
                        पत्नी लाभ  उठाती है
कुछ ख़ास किसम के पतियों संग ,
                        एसा भी चक्कर होता है
पति विरही ,तडफे ,पत्नी को ,
                      पर प्यारा पीहर होता है
कोई की पत्नी सुन्दर है,
                    सब लोग घूर कर तकते है
कुछ शकी किस्म के पतियों को,
                      अक्सर ये भी डर  होता है
  कोई की पत्नी रोगी है
  कोई की पत्नी ढोंगी  है
                 कोई की पत्नी करती है ,
                  अक्सर अपनी ही मन मानी
                मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
                पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
                  ये बात नहीं है अनजानी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नुक्सान

            नुक्सान

मेरी शादी नयी नयी थी
मेरी बीबी छुई मुई थी
सीधी सादी भोली भाली
एक गाँव की रहने वाली
ससुर साहब ने पाली भैंसे
बेचा दूध,कमाए पैसे
अरारोट ,पानी की माया
बचा दूध तो दही बनाया
मख्खन,छाछ ,कड़ी बनवायी
घर पर सब्जी कभी न आयी
तो भोली बीबी को लेकर
मैंने बसा लिया अपना घर
तरह तरह की बात बताता
ताज़ी ताज़ी सब्जी  लाता
एक दिवस ऑफिस से लौटा
आते ही बीबी ने टोका
तुम्हे ठगा सब्जी वाले ने
धोखा  खूब दिया साले ने
 सब्जी तुम लाये थे जो भी
हाँ हाँ क्या थी,पत्ता गोभी
छिलके ही छिलके निकले जी
गूदे का ना पता चले जी
मैंने छिलके फेंक दिये  है
सारे पैसे व्यर्थ गये  है
सुन कर बहुत हंसी सी आई
पत्नीजी ने कभी न खायी
थी सब्जी पत्ता गोभी की
वह ना उसकी माँ दोषी थी
कंजूसी से काम हो गया
पर मेरा नुक्सान हो गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 17 नवंबर 2012

मात शारदे!

   मात  शारदे!

मात शारदे !
मुझे प्यार दे
वीणावादिनी !
नव बहार  दे
मन वीणा को ,
झंकृत कर दे
हंस वाहिनी ,
एसा वर दे
सत -पथ -अमृत ,
मन में भर दे
बुद्धिदायिनी ,
नव विचार दे
मात  शारदे!
ज्ञानसुधा की,
घूँट पिला दे
सुप्त भाव का ,
जलज खिला दे
गयी चेतना ,
फिर से ला दे
डगमग नैया ,
लगा पार दे
मात शारदे !
भटक रहा मै ,
दर दर ओ माँ
नव प्रकाश दे,
तम हर ओ माँ
नव लय दे तू,
नव स्वर ओ माँ
ज्ञान सुरसरी ,
प्रीत धार  दे
मात शारदे !

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दुनियादारी

       दुनियादारी

दोस्ती के नाम पर ,जाम पीनेवाले भी,
       दोस्ती के दामन में ,दाग लगा देते है
धुवें से डरते है,लेकिन खुदगर्जी में,
       खुद आगे रह कर के आग  लगा देते  है
रोज की बातें है ,जो अक्सर होती है
    खुदगर्जी  झगडे का ,बीज सदा बोती  है
कभी कभी लेकिन कुछ ,एसा भी होता है,
     दुश्मन तो साथ मगर ,दोस्त दगा देते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जग में चार तरह के दानी

                 जग में चार तरह के दानी
प्रथम श्रेणी के दानी वो जो पापकर्म  करते रहते है
पर ऊपरवाले से डर  कर ,दान धर्म  करते रहते  है
बेईमानी की पूँजी का ,थोडा प्रतिशत दान फंड में
गर्मी में लस्सी पिलवाते,कम्बल बँटवा रहे ठण्ड में
जनम जनम के पाप धो रहे ,गंगाजी की एक डुबकी में
पूजा ,हवन सभी करवाते ,लेकिन खोट भरा है जी  में
लेकिन डर कर ,'धरमराज 'से ,धर्मराज  बनने वाले ये,
छिपे भेड़ियों की खालों में ,इस  कलयुग के सच्चे ज्ञानी
                 जग में चार तरह के  दानी
निज में रखता कलम ,पेन्सिल ,कलमदान यह कहलाता है
कुछ पैसे  गंगा में   डालो ,     गुप्तदान यह      कहलाता है
और तीसरे ढंग  की दानी,       कहलाती है चूहे दानी
कैद किया करती चूहों को , नाम मगर है फिर भी दानी
शायद दान किया करती है,आजादी का,स्वतंत्रता  का
चौथी दानी,मच्छरदानी ,फहराती है ,विजय पताका
मच्छरदानी ,पर मच्छर को,ना देती है पास फटकने
रक्तदान से हमें बचाती  ,रात  चैन से देती  कटने
चूहेदानी में चूहे पर,मच्छरदानी  बिन मच्छर के ,
फिर भी दानी कहलाती है,यह सचमुच ही है हैरानी
                     जग में चार तरह के दानी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

तुमने अचार बना डाला



वैभव के सपने देखे थे,मैंने जीवन के शैशव में
इच्छाओं का बहुत शोर ,करता था मै किशोर वय में
यौवन के वन में आ जाना,यह तो थी मृगतृष्णा  कोरी
लेकिन अब मै हूँ समझ सका,जीवन भाषा ,थोड़ी थोड़ी
मै बनने वाला था कलाकार,तुमने बेकार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला
मेरी सारी  आशाओं पर, उस रोज तुषारापात हुआ
जिस दिन से था इस जीवन में,मेरा तुम्हारा साथ हुआ
मैंने सोचा था पढ़ी लिखी ,तुम मेरा काव्य सराहोगी
तुम स्वयं धन्य हो जाओगी,जो मुझ सा कवि  पति पाओगी 
थी मधुर यामिनी की बेला,मै था तुम पर दीवाना सा
तुम्हारी रूप प्रशंसा में,मैंने कुछ गाया गाना सा
मै भाव विभोर हो गया था,सोचा था तुम शरमाओगी
या तो पलके झुक जायेगी ,या बाँहों में आ जाओगी
पर पलकें झुकी न शरमाई,तुम झल्ला बोली ,मत बोर करो
बाहर मेहमान जागते है,अब चुप भी रहो,न शोर करो 
फिर यह सुन कर अभिलाषाओं ने, था बाँध सब्र का फांद दिया
जब तुम बोली हे राम मुझे,किस कवि के पल्ले बाँध दिया
फिर दिया लेक्चर लम्बा सा ,तुमने घर ,जिम्मेदारी का
मुझको अहसास दिलाया था,तुमने मेरी बेकारी का
उस मधुर यामिनी में तुमने,फीका अभिसार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला
फिर मुझे प्यार से सहला कर ,ऐसी कुछ मीठी बात करी
रह गयी छुपी ,दिल ही दिल में,मेरी कविताई ,डरी डरी
मै प्रेम डोर से बंधा हुआ ,जो भी तुम बोली ,सच समझा
फिर वही हुआ जो होना था,मै नमक ,तेल में ,जा उलझा
तुम्हारा कहना मान लिया,हो गया किसी का नौकर ,मै
बेचारी काव्य पौध सूखी ,जो पछताता हूँ ,बोकर ,मै
बाहर  कोई का नौकर पर ,घर में नौकर तुम्हारा था
तुम्हारी रूप अदाओं ने ,एक कलाकार को मारा था
अच्छा होता यदि उसी रात ,जो प्यार मुझे तुम ना देती
मीठी बातों के बदले में ,फटकार मुझे जो तुम देती
तो हिंदी जग में आज नया,एक तुलसीदास नज़र आता
पत्नी ताड़ित यदि बन जाता,पत्नी पीड़ित ना कहलाता
कितने ही काव्य रचे होते,मै कालिदास बना होता
मुरझाती यदि ना काव्य पौध ,तो अब वह वृक्ष घना होता
पर बकरी बन,उस पौधे को,तुमने आहार बना डाला
केरी पक कर ना आम बनी,तुमने अचार   बना डाला 
मै कई बार पछताता हूँ,यदि तुमसे प्यार नहीं होता
मै कुछ का कुछ ही बन जाता,मेरा ये हाल नहीं होता
लेकिन मुझसे भी ज्यादा तो,अब कलाकार हो अच्छी तुम
हर साल प्रकाशित कर देती ,कोई बच्चा या बच्ची तुम
ना जाने क्यों,मेरे मन को ,रह रह यह बात कचोट रही
तुम सौत समझती कविता को,क्यों गला ,कला का घोट रही
मै जब भी कुछ लिखने लगता ,सब काम याद क्यों आते है
अब तुम्ही बताओ उसी समय,बच्चे क्यों शोर मचाते है
मै भली तरह से समझ गया,यह तुम्ही उन्हें हो सिखलाती
क्या लिखूं रात में खाक तुम्हे ,लाइट में नींद नहीं आती
घंटो तक बोर नहीं करती ,सखियों की बातचीत तुमको
तो बतलाओ क्यों चुभते है,मेरे ये मधुर गीत  तुमको
मै अलंकार की बात करूं ,तुम आ जाती हो गहनों पर
मेरे कविता के टोपिक को,तुम ले आती निज बहनों पर
कहती  हो रचना को चरना,कवि को कपिकार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला
मै बात काव्य रस की करता,जाने क्यों मुंह बिचकाती हो
जब गन्ने और आम का रस ,दो दो गिलास पी जाती हो
मै जब भी समझाने लगता,कविता का भाव कभी तुमको
आ जाता याद बाज़ार भाव,लगता है मंहगा घी तुमको
जब मेरी काव्य साधना की ,दो बात नहीं सुन सकती हो
उस मुई सिनेमे वाली के,घंटों तक चर्चे करती हो
क्यों गज भर दूर ग़ज़ल से तुम,क्यों है रुबाई से रुसवाई
क्यों डरती हो तुम शेरो से,क्यों नज़म तुम्हे ना जम  पायी
क्यों है नफरत,क्या इन सबसे ,है पूर्व जन्म का बैर तुम्हे
या मै ही सीधासादा हूँ,ना मिला कोई दो सेर तुम्हे
मत समझो यह सीधा प्राणी ,केवल घर का बासिन्दा है
मै भले गृहस्थी में उलझा,मेरा कवि  अब भी जिन्दा है
पर तुम जब घर पर रहती हो ,तो कहाँ काव्य लिख सकता हूँ
दो,चार  माह ,मइके रहलो,तो महाकाव्य  लिख सकता हूँ
हे राम फंसा किस झंझट में,मेरे सर भार बना डाला
तुमने मुझको जाने क्या क्या ,मेरी सरकार बना डाला
मै बनने वाला था कलाकार ,तुमने बेकार  बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

60 प्रतिशत की छूट.....देखा है कभी ऐसा ऑफर ?

किसी ने ठीक ही कहा है, कि साहित्य विभिन्न विधाओं से जनकल्याण के साथ ही जग कल्याण करता है । नानारूप है माँ सरस्वती के साधना मंत्रों के ।

कथा-कहानी, उपन्यास और कविता, निबंध से लेकर दर्शन तक सरस्वती के इन नाना रूपों को जग कल्याण के लिए सहज-सरल करने का बीड़ा उठाया है एक उत्साही प्रकाशक ने ।

नाम है शैलेश भारतवासी, जिन्होने कुछ प्राणवान पुस्तकों की पुष्पांजलि तैयार कर माँ सरस्वती की उसी अग्निवीणा को समर्पित करने का प्रयास किया है जिस अग्निवीणा को कवि नज़रूल, निराला, पंत, दिनकर, अज्ञेय से लेकर मुक्तिबोध आदि तक आजीवन अग्नि अर्घ्य चढ़ाते रहे ।

यानि साहित्यिक पुस्तकों को घर-घर पहुंचाने की प्रतिबद्धता । 

हिंद युग्म और इंफीबीम खास तरीके से दीवाली मना रहे हैं। हिंद युग्म की पुस्तकों को 10 दिनों के लिए इंफीबीम ने 60 प्रतिशत तक की छूट पर बेचने का निर्णय लिया है। 

इंफीबीम हिंद युग्म के साथ मिलकर हिंदी साहित्य को घर-घर पहुँचाना चाहता है। अब आप इनके प्रकाशन की मनपसंद किताबें मात्र 40 प्रतिशत कीमत पर खरीद सकते हैं। 

यह ऑफर केवल अगले 10 दिनों के लिए है, इसलिए जल्दी करें । अवसर बार-बार नहीं आता । 

 जिन पुस्तकों पर यह विशेष छूट दी जा रही है। 

उसकी सूची यहाँ मौज़ूद है- http://www.infibeam.com/Books/book-offers-showcase.html

मंगलवार, 13 नवंबर 2012

संरक्षक (रेफ्रिजेटर)



कई रसीली ,मधुर रूपसी,
मेरे उर में  आती जाती
उनकी  सुरभि,मुझे लुभाती
निश्चित ही स्वादिष्ट बहुत वो होगी,
मेरा मन ललचाता
लेकिन मै कुछ कर ना पाता
क्योंकि मुझे गढ़ने वाले ने ,
मेरे मुख दांत  ना दिये
सिर्फ सूँघना ही नसीब में लिखा इसलिये
मै तो उनके रूप ,स्वाद को कर संरक्षित
उनकी जीवन अवधि बढाता रहता,परहित
यूं ही तरस तरस कर करना जीवन व्यापन
बिना किये रस का आस्वादन ,
कट जाता है ,मेरा जीवन
कई मिठाई,कितने ही फल
कितने ही पकवान,पेय जल
आकर्षित करते रहते है मुझको हर पल 
मेरा मन कितना ही चाहे
मै बेबस ,भरता ही रहता,ठंडी आहें
मन मसोस मै रहता हरदम
तुम चाहो तो इसको कह सकते  हो संयम
बचा खुचा ,घर का सब खाना
है मेरे ही हिस्से आना
मुझे चाहता दिल से गोरस
मै ना अगर मिलूँ,
तो उसका दिल जाता फट
मै संरक्षक ,
जो भी मेरे उर में बसता,
उसका यौवन,संरक्षित रहता है,
एक लम्बी अवधी तक
मै तो हूँ घर घर का वासी ,
सभी गृहणियों का मै प्यारा
मै  रेफ्रिजेटर  तुम्हारा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 12 नवंबर 2012

ज्योति का प्रथम तीर्थ दीप ...

ज्योति का प्रथम तीर्थ दीप 
कालिमा  आती नहीं समीप 
आइए उजियारे की लालिमा लाते हैं 
मिलकर दीपावली मनाते हैं ......
शुभ दीपावली 


रविवार, 11 नवंबर 2012

शनिवार, 10 नवंबर 2012

रेपिंग पेपर

        रेपिंग पेपर

          मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
        चमक दमक वाला सुन्दर सा,
        मै तो एक आवरण भर हूँ
        मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
छोटी,बड़ी सभी सौगातें
मुझ में लोग छुपा कर लाते
मेरा आकर्षण है बस तब तक
मुझ में गिफ्ट छुपी है जब तक
जब भी मै हाथों में आता
जो भी पाता,वो मुस्काता
सभी देखते रूप चमकता
अन्दर क्या है की उत्सुकता
जैसे कभी सुहाग रात में
पहली पहली मुलाक़ात में
        आकुल पति उठाता  जिसको,
        मै दुल्हन का, घूंघट भर हूँ
         मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
कितनी गिफ्टें,नयी,पुरानी
अगर आपको है निपटानी
मेरे बिना काम ना चलता
मै हूँ उनका ,रूप बदलता
एक गिफ्ट,कितने ही रेपर
बदल,बदल,बदला करते घर
लेकिन गिफ्ट कोई जो पाता
उसे आवरण नहीं सुहाता
अन्दर क्या है,यही चाव है
उत्सुकता ,मानव स्वभाव है
        तिरस्कार है मेरी नियति,
         मै गूदा ना,छिलका भर हूँ
         मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
लिपट  गिफ्ट के प्यारे तन से
मै आनंदित होता ,मन से
जन्मदिवस,शादी,दीवाली
रहती मेरी शान निराली
हाथों हाथ ,लिया मै जाता
बड़े गर्व से हूँ इठलाता
देने वाला जब जाता है
मुझ को फाड़ दिया जाता है
मेरी तरफ नहीं देखेंगे 
टुकड़े टुकड़े कर फेंकेगे
           पहुंचूंगा कूड़ेदानी में,
           अल्प उम्र है,मै नश्वर हूँ
            मै तो रेपिंग का पेपर हूँ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 8 नवंबर 2012

अभी तो मै जवान हूँ?



          अभी तो मै जवान हूँ?

इस मकां के लगे हिलने ईंट ,पत्थर

लगा गिरने ,दीवारों से भी पलस्तर
पुताई पर पपड़ियाँ पड़ने लगी है
धूल,मिटटी भी जरा झड़ने   लगी है
कई कोनो में लटकने लगे   जाले
चरमराने लग गये है ,द्वार सारे
बड़ा जर्जर और पुराना पड़ गया जो ,
कभी भी गिर जाय ,वो मकान  हूँ
और मै दिल को तस्सली दे रहा,
यही कहता ,अभी तो मै जवान हूँ
थी कभी दूकान,सुन्दर और सजीली
ग्राहकों की भीड़ रहती थी रंगीली
सब तरह का माल मिलता था जहाँ पर
खरीदी सब खूब  करते थे  यहाँ पर
लगे जबसे पर नए ये  माल खुलने
लगी  ग्राहक की पसंद भी ,अब बदलने
धीरे धीरे अब जो खाली हो रही है,
बंद  होने जा रही दूकान  हूँ
और मै दिल को तस्सली दे रहा,
यही कहता,अभी तो मै जवान हूँ
जवानी कुछ इस तरह मैंने गुजारी
दूध देती गाय को है घांस  डाली
अगर उसने लात मारी,लात खायी
बंदरों सी गुलाटी जी भर   लगाई
रहूँ करता ,मौज मस्ती,मन यही है
मगर ये तन,साथ अब देता नहीं है
गुलाटी को मचलता है,बेसबर मन,
आदतों से अपनी खुद  हैरान हूँ
और मै मन को तस्सली दे रहा हूँ,
यही कहता,अभी तो मैं  जवान हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 7 नवंबर 2012

जो मेरी तकदीर होगी



दाल रोटी खा रहे हम,रोज ही इस आस से,

               सजी थाली में हमारी ,एक दिन तो खीर होगी
मर के जन्मा ,कई जन्मों,आस कर फरहाद ये,
                 कोई तो वो जनम होगा,जब कि उसकी हीर होगी
उनके दिल में जायेगी चुभ,प्यार का जज्बा जगा,
                  कभी तो नज़रें हमारी,वो नुकीला तीर होगी
इंतहां चाहत की मेरी,करेगी एसा असर,
                    जिधर भी वो नज़र डालेंगे,मेरी तस्वीर  होगी  
मेरे दिल के चप्पे चप्पे में हुकूमत आपकी,
                     मै,मेरा दिल,बदन मेरा, आपकी जागीर  होगी
रोक ना पायेगा कोई,कितना ही कोशिश करे,
                     मुझ को वो सब,जायेगा मिल,जो मेरी तकदीर होगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

हस्त शक्ति-दे भक्ति



श्री विष्णु ,जग के पालनहार

एकानन है,मगर भुजाएं चार
   याने सर और हाथ का अनुपात
           एक पर चार
श्री ब्रह्माजी
जिन्होंने ये सृष्टि  रची
चतुरानन है,और भुजाएं भी चार
     याने सर और हाथ का अनुपात
               एक पर एक
और भगवान् शंकर
हर्ता है जो हरिहर
     एकानन है और भुजाये है  दो
     याने सर और हाथ का अनुपात
             एक पर दो
रावण,लंका का स्वामी
बुद्धिमान पर अभिमानी
      उसके थे दस सर और भुजाएं बीस
        याने सर और हाथ का अनुपात
              एक पर दो
लक्ष्मी और सरस्वती माता
धन और बुद्धि की दाता
दोनों के एक एक आनन और चार भुजाएं
      याने सर और हाथ का अनुपात
              एक पर चार
श्री दुर्गा या काली माँ का स्वरूप
 शक्ति का साक्षात्  रूप
     एक आनन पर अष्ट भुजाधारी
        याने सर और हाथ का अनुपात
              एक पर आठ
यदि उपरोक्त आंकड़ों पर आप गौर फरमाएंगे
तो सांख्यिकी के नियम अनुसार ,ये पायेंगे
कि प्रति सर सबसे ज्यादा हस्त शक्ति
देवी दुर्गा या काली माँ है रखती
जिसका अनुपात
है एक पर आठ
उसके बाद,विष्णु,लक्ष्मी और सरस्वती माता है
जिनका एक पर चार का अनुपात आता है
और क्योंकि हाथों से ही,
उपकार और आशीर्वाद दिए जाते है
इसीलिये ये ज्यादा हाथों के,
 औसत वाले ,पूजे जाते है
और सबसे कम औसत पर,
एक सर पर एक हाथवाले ब्रह्माजी आते है
इसीलिए वो सबसे कम पूजे जाते है
और उनके मंदिर ,एक दो जगह ही दिखलाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 5 नवंबर 2012

लेखा जोखा




पिछले कितने ही वर्षों का,

इस जीवन के संघर्षों का ,
                  आओ करें हम लेखा जोखा
किसने साथ दिया बढ़ने में,
मंजिल तक ऊपर चढ़ने में,
                    और रास्ता  किसने  रोका
किसने प्यार दिखा  कर झूंठा,
दिखला कर अपनापन ,लूटा,
                   और किन किन से खाया धोका
बातें करके  प्यारी प्यारी,
काम निकाल,दिखाई यारी,
                    और पीठ में खंजर  भोंका 
देती गाय ,दूध थी  जब तक,
उसका ख्याल रखा बस तब तक,
                     और बाद में खुल्ला  छोड़ा
उनका किया भरोसा जिन पर,
अपना  सब कुछ ,कर न्योछावर,
                       उनने ही है दिल को तोड़ा
खींची टांग,बढे जब आगे
साथ छोड़,मुश्किल में भागे,
                    बदल गए जब आया मौका
टूट गए जो उन सपनो का ,
बिछड़े जो उन सभी जनों का
                    सभी परायों और अपनों का
नहीं आज का,कल परसों का
विपदाओं का, ऊत्कर्षों  का,
                       आओ करें हम लेखा जोखा
 पिछले कितने ही वर्षों का,
इस जीवन के संघर्षों का,
                         आओ करें  हम लेखा जोखा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

    
                   
 

शनिवार, 3 नवंबर 2012

संकट तो है सब पर आते


      संकट तो है सब पर आते
लेकिन जो धीरज धरते है,
      मुश्किल में भी है मुस्काते
      संकट तो है सब पर आते
हिल जाते है,पात,टहनियां,
लेकिन तना,तना रहता है
होती गहरी जड़ें ,उसीका,
बस अस्तित्व बना रहता है
      झंझावत और तूफानों में,
      सुदृढ़ वृक्ष ना हिल पाते है
     संकट तो सब पर आते है
शिवशंकर,भगवान हमारे,
भी तो आये थे संकट में
भस्मासुर को वर दे डाला,
दौड़ा भस्म उन्ही को करने
       रख कर रूप मोहिनी वाला,
        श्री विष्णु है उन्हें बचाते
        संकट तो  है सब पर आते
राम रूप में प्रगटे भगवन ,
कितने संकट आये उन पर
भटके वन वन,उस पर रावण,
उड़ा ले गया,सीता को हर
       संकटमोचन बन कर हनुमन,
       सीता का है पता  लगाते
        संकट तो है सब पर आते     
इसीलिये यदि आये संकट,
नहीं चाहिए हमको डरना
बल्कि धीर धर ,निर्भयता से,
रह कर अडिग,सामना करना
        सच्चे साथी,साथ निभाते,
       रहो अटल,संकट टल जाते
       संकट तो है सब पर आते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

एक ब्लॉगर के द्वारा बनाया जा रहा अनोखा कीर्तिमान....


कई वर्षों से यह बहस आम है कि ब्लॉग पर जो साहित्य लिखे जा रहे हैं वह कूड़ा है यानि दोयम दर्जे का है । हमारे कई साहित्यिक मित्र ऐसे हैं जो बार-बार यह तर्क देकर मुझे चुप रहने का संकेत देते रहे हैं कि बताइये यदि ब्लॉग अभिव्यक्ति का बेहतर माध्यम होता तो हिन्दी के गंभीर लेखक इससे दूरियाँ क्यों बनाकर रखते ? मैंने कभी इन बातों से इत्तेफाक नहीं रखा और हमेशा रवि रतलामी जी के उस वक्तब्य का समर्थन करता रहा कि आप माने या न माने हिन्दी साहित्य को नया सुर-तुलसी ब्लॉग से ही प्राप्त होगा । क्योंकि माध्यम चाहे जो हो प्रतिभाएं जब साधना में आँखें बंद करती हैं तो सृजन के सारे नयन भक्क खुल जाते हैं । 

आपको जानकार यह आश्चर्य होगा कि हमारी इस धारणा को प्रतिष्ठापित किया है एक ऐसे होनहार युवा ब्लॉगर ने जिन्होने नवंबर-2008 से कहानियाँ ब्लॉग पर अपने सधे हुये स्वर प्रकाशित करने शुरू किए और देखते ही देखते उस गंतव्य  की  ओर अपना कदम बढ़ा दिया, जहां शेक्सपेयर के 'बृट्स' मिल जाएँगे और बाबा नागार्जुन का 'बलचनमा' भी । जहां प्रेमचंद का 'होरी' किसी अलाव के पास बैठा मिल जाएगा , वहीं आँखों में आग की लपटे लिए किसी "मद्यप क्लीव रामगुप्त" की नपुंसकता को धिक्कारती जय शंकर प्रसाद की "ध्रुव स्वामिनी" भी । नाम है किशोर चौधरी  

रेगिस्तान के दूर दराज क्षेत्र के किसी लेखक के काम और पहचान का दुनिया भर में चर्चा और स्वागत का विषय होना आश्चर्यजनक लग सकता है किन्तु आधुनिक डिजिटल-ऐज़ में इसी के जरिये किशोर चौधरी की पहली किताब 'चौराहे पर सीढ़ियाँ' रीलिज होने से पहले ही हिट हो गई है। यह हिंदी में पहली बार हुआ है कि हिंदी की किताब को ऑनलाइन बेचने वाली वेबसाइटों पर प्री-बुकिंग पर रखा गया है और यह अंग्रेजी किताबों से होड़ ले रही है। जबकि कहा जा रहा है कि हिंदी किताबों को खरीदकर पढ़ने का प्रचलन लगभग खत्म हो गया है। ब्लॉग पर लिखी गयी कहानियों के इस संकलन 'चौराहे पर सीढ़ियाँ' ने प्री बुकिंग से बेहतर साहित्य के भविष्य को आशान्वित किया है। इन दिनों ऑनलाइन शॉपिंग के ज़रिए किताब खरीदने का भी प्रचलन बढ़ा है, लेकिन हिंदी किताबों की बिक्री बहुत कम है। ऐसे में ये किताब हिंदी प्रकाशन तंत्र की नयी उम्मीद है।

'चौराहे पर सीढ़ियाँ' किशोर चौधरी की 14 कहानियों का संग्रह है जो नवम्बर के दूसरे सप्ताह में प्रकाशित होने वाला है। किशोर चौधरी हिंदी के ऐसे युवा कथाकार हैं जो मुद्रित दुनिया से पूरी तरह से दूर रहे हैं। किशोर ने कभी भी खुद को पत्र-पत्रिकाओं को छपाने का प्रयास नहीं किया। किशोर चौधरी ने पिछले कुछ सालों से ब्लॉग बनाकर उसपर अपनी कहानियों को प्रकाशित करना शुरू किया है। बहुत कम समय में इनके ब्लॉग पर प्रकाशित कहानियों को हजारों बार पढ़ा गया। इंटरनेट पर किशोर की लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि किशोर की पहली पुस्तक के लिए ऑनलाइन मेगा स्टोर फ्लिपकार्ट ने बाज़ार में आने से पहले एक पेज बनाया है। इस पेज को पसंद करने वालों की संख्या कुछ ही दिनों में हज़ार के पार हो गयी है। इन दिनों हिन्दी भाषा की किताब के लिए ऐसा समर्थन देखा जाना एक बड़ी बात है। इस किताब की प्री बुकिंग करने वाले ऑनलाइन स्टोर इंफीबीम के पेज को 500 से अधिक लोगों ने फेसबुक पर शेयर किया है। गौरतलब है कि फेसबुक पर किसी वेबपेज को लाइक या शेयर से उस विशेष प्रयोक्ता के समस्त मित्र परिवार में वह पेज साझा हो जाता है। इसे वायरल प्रभाव भी कहा जाता है।

इंफीबीम स्टोर पर तां त्वान एंग, जेफ्री ओर्चर, कार्बन एडिसन और मेगेन हर्ट जैसे लेखकों की किताबों आने वाली किताबों के बीच हिन्दी भाषा की इस पुस्तक को सर्वाधिक लाइक्स मिले हैं। यह उन सब किताबों में इकलौती किताब है जो हिन्दी भाषा में है। अंग्रेज़ी के बढ़ते हुये दवाब के बीच इस तरह से हिन्दी कहानियों का पसंद किया जाना, हिन्दी भाषा के लिए के सुखद है।

'चौराहे पर सीढ़ियाँ' को हिंद युग्म प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। हिन्द युग्म के शैलेश भारतवासी का कहना है कि "महंगाई के इस दौर में पाठक किताबों से दूर न हों और उन तक स्तरीय साहित्य कम मूल्य में पहुँच सके इसलिए किताब का मूल्य पचानवे रुपये रखा गया है। इसी किताब को प्री बुकिंग में विशेष ऑफर के साथ स्टोर्स एक सौ एक रुपये में पाठक के घर तक डिलीवर कर रहे हैं। भारतवासी ने विश्वास जताया है कि अब पाठक अच्छे साहित्य तक आसानी से पहुँच सकेगा और भौगोलिक सीमाएं कोई बाधा न बनेगी। किशोर चौधरी की इस किताब को देश भर के छोटे बड़े कस्बों और शहरों से सैकड़ों ऑर्डर मिले हैं। इस प्रकार से हिन्दी किताबों की दुनिया सिमटने की जगह अपना नया रास्ता बना कर हर ओर फैल रही है।"


आप भी किशोर चौधरी की पुस्तक की प्री बुकिंग हेतु इस लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं : 


क्या किशोर चौधरी ने यह सिद्ध नहीं कर दिया है कि यदि ब्लॉग और प्रिंट के चक्कर मे साधना परों की तलाश मे भटकती रहे , यदि मौन स्वर के माया- मृग के आखेट मे हाँफता रहे तो न माया मिलेगी न राम । एक ब्लॉगर के द्वारा बनाए जा रहे इस अनोखे कीर्तिमान पर आपको कैसी अनुभूति हो रही है ? 

आइए इस चर्चा को आगे बढ़ाते हैं .....आप भी खुलकर शामिल होईए ......।

करने पड़ते है समझौते


         

जीवन के हर एक मोड़ पर

अपने सब सिद्धांत  छोड़ कर
  चाहे हँसते,   चाहे रोते
करने पड़ते है समझौते
 बेटी  का करना विवाह है
अच्छे वर की अगर चाह है 
पढ़ा लिखा और अच्छे पद पर
है कमाऊ,सुन्दर लड़का  पर
उसके माता पिता तेज है
मांग रहे मोटा  दहेज़ है
नेता आप,समाज सुधारक
आदर्शों को आले में रख
बेटी सुख का ख्याल करेंगे
मुंहमांगा दहेज़ दे देंगे
अच्छा रिश्ता,यूं ना खोते
करना पड़ते है समझौते 
अफसर आप इमानदार है
चलते नियम अनुसार है
मोटा टेंडर कोई खुलेगा
ऊपर से आदेश मिलेगा
ये बोला मंत्री  जी ने है
टेंडर भरा भतीजे ने है
नियमो को करके अनदेखा
देना होगा उसको ठेका
उनका काम पड़ेगा करना
परेशान होवोगे  वरना
नहीं किया तो ट्रांसफर होते
करने पड़ते है समझौते  
लड़का,लड़की हुए सयाने
एक दूसरे को ना जाने
जब उनका विवाह होता है
शादी भी एक समझौता है
तज कर घर को मात पिता के
नए ,पराये घर में आके
रंगना पड़ता नए रंग में
जीना पड़ता नए ढंग में
समझौते करने है सबसे
सास,ससुर से और ननद से
परिवार ,सुखमय तब होते
करने पड़ते है समझौते
इस समझौते के ही मारे
भीष्मपिता  रह गए कुंवारे
मत्स्य भेद कर,जीत स्वयंबर
अर्जुन लाये ,द्रौपदी को घर
समझौते ने करी ये गती
पांच पति में बंटी द्रौपदी
राम और रावण युद्ध हुआ जब
साथ आई वानर  सेना सब
समझौता,सुग्रीव ,राम का
रावण वध में ,बना काम का
युगों युगों से देखा  होते
करना पड़ते है समझौते

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 
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