
कल
सुबह अचानक फोन की घंटी .....फोन उठाते ही दूसरी तरफ से आवाज़ आई - "पापा ! मैं रश्मि बोल रही हूँ !"
"हाँ ! बोल बेटा कैसी है तू ?......पढाई कैसी चल रही है तेरी ?" मैं नींद से जागते हुए पुछा
" पापा मैं चारबाग में हूँ !" " चारबाग में क्या
कर रही है तू ?"
"मै अभी-अभी आई हूँ सहारनपुर एक्सप्रेस से ...!"
"तू आने से पहले बताई क्यों नहीं ?"
" आपको सरप्राईज देना चाहती थी इसलिए ....!"
" ठीक है तू वहीँ स्टेशन पर रूक मैं अभी आता हूँ ....!"
बेटी के आने की खबर सुनकर मेरी श्रीमती जी भी तैयार हो गयी स्टेशन जाने के लिए .....! फिर हम दोनों निकल पड़े अपनी इंडिका से । मैं काफी गुस्से में था कि जब फस्ट सिमेस्टर की परीक्षा के बाद छुटी हो गयी तो उसे खबर करना चाहिए था , मैं किसी को भेज देता साथ में आ जाती , अकेले आने की क्या जरूरत थी ?....मैं बरबराता रहा रास्ते भर और मेरी श्रीमती जी मेरे गुस्से को शांत करती
रही......अरे जाने भी दीजिये , बच्ची बड़ी हो गयी है ...मैनेजमेंट कर रही है ....साथ में हॉस्टल की और भी बच्चियां रही होंगी ......आप खामखा परेशान हो रहे
हैं.....आप अपने समय की बात मत कीजिये ...आज के बच्चे फास्ट लाईफ जीना पसंद करते हैं .....!
खैर श्रीमती जी के बकबक के आगे मैं चुप हो गया .......!
बहुत दिनों के बाद बेटी से मिला था , अच्छा लग रहा था ..... उसकी कहानियां ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी .....पता है पापा ! अमुक विषय में में पिछले बार मुझे इतने
मार्क्स आये... मगर एकाउंट्स में निदाफ़ के ज्यादा मार्क्स आ गए .....मात्र तीन नंबर से मैं पिछड़ गयी और फस्ट टॉपर नहीं बन सकी ....मैम ने कहा है थोडा सा और मेहनत करो निदाफ़ को पीछे छोड़ दोगी ......इस बार मेरा पेपर अच्छा गया है मैं फस्ट टॉपर बन के
दिखाऊंगी......उसकी बकबक से मेरा सर चकराने लगा तो सोचा क्यों न विषय परिवर्तन किया जाये ....!
मैंने उसकी लिवास की ओर मुखातीव होते हुए पूछा -" क्यों तेरे पास कपडे नहीं है जो फटे - पुराने - चिपियों वाले कपडे पहनी हो ?"
इतना सुनते हीं बिफरने लगी मुझपर - " पापा ! आप भी न ......देहरादून से ली हूँ इसे पूरे दो हजार में ......मात्र एक पिस बची थी दूकानदार के पास ...मैंने ले ली ...पूजा को भी यही पसंद था , मैं क्या करती ...वह मुझपर नाराज हो गयी ...मैंने उससे प्रॉमिस किया है कि लखनऊ में इसकी दूसरी पिस मिली तो ले आऊँगी तेरे लिए भी ....पापा ! कल आप शाम को ऑफिस से लौटते समय हजरतगंज होते हुए आईयेगा .....साहू सिनेमा के पास शायद मिल जाये ?
मैंने कहा ठीक है दे दे हमें ......दूसरे दिन मैं वह कपड़ा लेकर अपने टेलर मास्टर फरहान को दिया और कहा कि देख लो तुम्हारे पास बहुत सारे कपडे के कतरन होंगे ....मैच
कराके एक ऐसा ही हुबहू सिल दो ...शाम को ऑफिस से लौटते हुए ले जाऊंगा ।
उसने कहा ठीक है भैया आपके ऑफिस से लौटने से पहले मैं तैयार कर दूंगा । शाम को जब ऑफिस से लौटा तो देखकर हतप्रभ रह गया । पता ही नहीं चल पा रहा था कि कौन असली है और कौन नकली ?
मैंने कहा कितने दे दूं फरहान?
उसने कहा अब आपसे कतरन का पैसा क्या लेना , मार्केट से दो मीटर कपडे लेने पड़े उसके अस्सी रुपये और सिलाई के एक सौ बीस रुपये दे दीजिये यानि कुल दो सौ रुपये मात्र ...!
जब मैं असली और नकली दोनों कपड़ों को लेकर घर लौटा तो मेरी बिटिया रानी खुशी से फूले नहीं समा रही थी बोली -पापा , उतने ही पैसे में मिले कि ज्यादा में ?
मैंने सोचा कम पैसे कहकर उसकी खुशी को कम क्यों किया जाये , सो मैंने कहा विल्कुल बज़ट में ।
मगर उसकी जिद के सामने मैं किं कर्त्तव्य विमूढ़ हो गया .....बार-बार जिद करने पर मैंने कहा -
दो सौ रुपये मात्र !
भौचक रह गयी शूट का दाम सुनकर ...फिर उसे मैंने पूरी बात बताई और उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा- बेटा , यही है नयी पीढी और पुरानी पीढी की सोच का सच ...!
यह सुनकर उसकी आँखों में आंसू छलछला गए ......वातावरण को गंभीर होते देखकर मैंने कहा देखो बेटा ....किसी शायर ने कहा है .....जहां जाने से कद अपना छोटा
लगे, उस बुलंदी पे जाना नहीं चाहिए .....!"
जीवन के हर मोड़ पर सलाहकार मिलते रहते हैं , मिलते रहेंगे , उनकी कोई कमी नहीं है । कमी इस बात की है कि हम अनुकूल सलाह को समझ सके और प्रतिकूल सलाह को छोड़ सके । हम हर सलाह को काम में लेने लग जाते हैं , केवल इसलिए कि हम समझ नहीं पाते कि हमारे लिए क्या उचित है । आज मनुष्य विवेक के धरातल पर पराधीन हो गया है । क्या खाना है और क्या खा रहा है उसे यह भी पता नहीं । उसके मन में एक इच्छा है विकासवादी दिखाई पड़ने की ।
आज किसी शहरी बच्चे को चमड़े के जूते पहनने की बात कहो , उसे लगेगा कि वह ऐसा करके महाभारत काल में चला जायेगा । चाहे उसके पांव से बदबू ए या फिर नेत्र ज्योति घटे वह पहनेगा तो बस आधुनिक और भरी मंहगे "स्पोर्ट्स शूज " । किसी माता से कहें कि वह बच्चों के आँखों में काजल डाले वह नाराज हो जायेगी । बड़ी उम्र के लोग आज रूखी चपातियाँ खाते नज़र आते हैं , चर्बी बढ़ने का डर है । पहले बुजुर्गों के लिए घी और मेवा डालकर सर्दियों में लड्डू बनते थे ,ताकि शरीर चलता रहे । सब कुछ उलटा-पुलटा हो रहा है आज कल ।
नमक में घी डालने का काम उधर टेलीविजन कर रहा है अपने विज्ञापनों के जरिये एक धीमा विष दर्शकों के मानस पटल पर घोलने का । उपभोक्ता वस्तुओं की विभिन्न श्रेणियां आज टेलीविजन के प्रभाव से
हीं बाज़ार में आ रही है । मंहगाई तो एक बहाना है । टेलीविजन की मर को व्यक्ति सहन नहीं कर पा रहा । बच्चा भी विज्ञापन देखकर जिद करता है , जिसके कारण खरीद की सूची में नित्य नए परिवर्तन होते चले जाते हैं । उधार पर मिलने की नयी-नयी नीतियों ने अग्रिम खरीद का सपना दिखाया और किस्त बांध दी । पूरी वेतन राशी किस्तों में जाने लगी । घर में जब कोई काम अचानक में पड़ा तो मंहगाई याद आ गयी ।
इसलिए बेटा ! आप प्रवंधन की छात्रा हो ........अगर अच्छा मैनेजर स्कील हासिल करना है तो जीवन में सोचने ...बार-बार सोचने की आदत डालो .....फिर किसी निष्कर्ष पर पहुँचो ....यही है मेरी नेक सलाह आपके लिए ।
इतना सुनते हे वह मेरे गले से लिपट गयी और बोली -"मैं ऐसा ही करूंगी
पापा और एक अच्छा मैनेजर बनकर दिखाऊंगी !"
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