सोमवार, 31 मई 2010

मेरे लिए मेरा अनोखा बंधन ही पुनर्जन्म है ... प्रीती मेहता

श्रीमती प्रीती मेहता, (http://ant-rang.blogspot.com/) ने बड़े ही जीवंत अंदाज में कहा,


"वेसे तो पुनर्जनम एक् आस्था और विश्वास का विषय है … वेदों और पुराणों में कहा गया है - शरीर नश्वर है , आत्मा तो अमर है .. यानि कह सकते है कि शरीर मरता है, आत्मा नहीं … तो यह आत्मा जाती कहाँ है ..? आत्मा एक् शरीर छोड़ दूसरे शरीर को धारण कर लेती है …

मेरे लिए मेरा अनोखा बंधन ही पुनर्जन्म है ... यह बंधन हर किसी से तो नहीं बंधता .. और जहा बंधता है , वहाँ बस बंधता ही जाता है ...बिना किसी शर्तो के , बिना किसी उम्मीद के ...बस बंध जाता है ....

अनोखा-बंधन

कितना सुन्दर और पवित्र नाम ?

सुन कर ही कुछ अलौकिक अनुभूति का एहसास हो जाता है…

जैसे पूर्व-जन्म का कोई बंधन ?

जो युग-युग से जन्म लेकर इक दिल से दूसरे दिल को जोड़ रहा हो ..?

जो निर्दोष, निस्वार्थ प्रेम भाव का झरना बन अविरत बहता रहता है ..

और यह एहसास सिर्फ महसूस किया जा सकता है,

इसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते .

जो सामाजिक और खून के रिश्तो से परे है और कुछ अलग है …


जीवन में बहुत बार अचानक किसी से संबंध बन जाते है,

मन में सकारात्मक और नकारात्मक तरंगे उठने लगती हैं ,

कभी- कभी कुछ क्षण का परिचय कुछ ख़ास बन जाता है ,

और ऐसे संबंध जो ना समझ आये या कहलो

जिसका ताल-मेल बुद्धि से भी ना मिल पाए ,

ऐसे संबंध ऋण का बंधन हैं ,

और यह बंधन कब , क्यों , कैसे … किसी से बन जाता है

यह समझ ही नहीं आता ... बस बन जाता है ...

यही है पुनर्जन्म ! "


नयी पीढी की विनीता श्रीवास्तव का कहना है,

" पुनर्जन्म पर कुछ लोग विश्वास करते है कुछ लोग विश्वास नहीं करते , मै भी नहीं करती. ये सब सिर्फ किताबो और कहानियो में ही अच्छी लगती है. अगर कोई कह्ता है कि उसका पुनर्जन्म हुआ है तो मै उसे सिर्फ १ अन्धविश्वास ही मानूंगी. व्यक्ति अपने कर्मो से ही जन्म लेता है. मै तो बस इतना ही कह सकती हूँ कि हमें अपने आज में जीना चाहिए और अच्छे कर्म करने चाहिए. "

तो ये है अलग-अलग धारणा.....सकारात्मक,नकारात्मक तथ्यों के बीच! कहीं विज्ञान है,कहीं मन... जो है - आपके समक्ष है आपके विचारों से जुड़ने की इच्छा  लिए!
तो अब आप अपने विचार प्रेषित करें, हम जानना चाहेंगे................
--
- सादर
रश्मि प्रभा
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परिचर्चा के समापन के पश्चात मैं आपको ले चल रही हूँ कार्यक्रम स्थल की ओर जहां  उपस्थित हैं २० वीं शादी के मशहूर युवा कवि श्री दिविक रमेश अपनी कविताओं  के साथ  .........यहाँ किलिक करें
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इसी के साथ अब रश्मि प्रभा को अनुमति दीजिये , कल फिर मिलती हूँ गीतों भरी उत्सवी शाम में मैं और स्वप्न मंजूषा शैल यानी अदा .....आपसे विनम्र निवेदन है कि ब्लोगोत्सव के इस आखिरी गीत-संगीत के भव्य कार्यक्रम में अवश्य पधारिये  कल ब्लोगोत्सव-२०१० पर ठीक अपराह्न ०२ बजे ....तबतक के लिए शुभ विदा ! 

हाँ कुछ है जिसे हम पुनर्जन्म कह सकते है...क्या आप मानते है??" : नीता

श्रीमती नीता (http://neeta-myown.blogspot.com/) ने कहा,

"अचानक कोई सामने से आकर हँस देता है..ना जान ना पहचान ...अचानक कभी कोई मदद कर देता है...जब हम कोई टिकिट की बड़ी सी लम्बी कतार में खड़े हों और अचानक कोई आ कर कहे हमें, कि मैंने ये कूपन लिया है ज्यादा है क्या आपको चाहिए... कभी कोई आ कर कहता है कि मुझे ऐसा क्यों लगता है की मैंने आपको कही देखा है , ऐसा महसूस होता है...और हमारे दिल के तार भी हिल जाते है॥

कभी कुछ काम कर रहे हों तो ऐसा होता है की ये काम हमने पहेले भी तो किया है...कभी कोई ऐसी जगह पे जहाँ हम जाते है जहाँ पहली ही बार गये हों पर ऐसा लगता है यहाँ आए हों पहले भी... नेट का कोई विश्व था ऐसा हमें पता नहीं था..पर अब ऑनलाइन हमारे बहोत सारे दोस्त है..ऑरकुट में लाखो लोग है..हम क्यों उसमे से १०० को अपना बनाते है..और उसमे से भी क्यों हम सिर्फ १० से जुड जाते हैं ...उसके दुःख से हम दुखी होते है..और उसके सुख से हम सुखी होते है..क्यों एक ही के घर में रह रहे लोग एक दूसरे से बहुत दूर होते है और बहोत दूर रहेने वाले लोग दिल के करीब होते है.. क्या आपके दिल में ऐसे सवाल नहीं आते ?कि क्यों कभी कोई अपना लगने लगता है............हाँ कुछ है जिसे हम पुनर्जन्म कह सकते है...क्या आप मानते है??"
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नीता  जी  के  विचारों  के  बाद आईये चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां "रज़िया" मिर्ज़ा उपस्थित है अपने संस्मरण  के साथ .....यहाँ किलिक करें 
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जारी है परिचर्चा मिलती हूँ एक अल्प विराम के बाद  

मेरे विचार से पुनर्जन्म होता है : वंदना श्रीवास्तव





श्रीमती वंदना श्रीवास्तव ( प्राचार्या ) के दृष्टिकोण से,

"पुनर्जन्म- ऐसा माना जाता है की मृत्यु के पश्चात् मनुष्य के शरीर का कोई हिस्सा बचा रहा जाता है ताकि वह किसी और रूप /शरीर में जन्म ले सके,इसके वैज्ञानिक तौर पर अब तक कोई प्रमाण नहीं मिले हैं किन्तु आस्था सभी की यही कहती है की पुनर्जन्म होता है तभी तो किसी से मिलने पर लगता है जैसे हमारा उससे कोई नाता है, हम पहले से ही उस व्यक्ति को किसी तरह जानते हैं ,उसकी आदतें, बोलचाल, व्यवहार बहुत जाना पहचाना लगता है और तब ही कहा जाता है की शायद पिछले जन्म का कोई रिश्ता है,उससे मिल कर लगता है जैसे किसी बहुत पुराने रिश्तेदार से मिल रहे हो जबकि हम पहली बार मिलते हैं.....इससे लगता है की हमारा कोई ना कोई पिछला जन्म तो होगा. कभी कभी किसी स्थान पर पहली बार जाने पर भी ऐसा जान पड़ता है मानो हम वहां पहले कई बार आ चुके हैं, हो सकता है की हमारी पूर्वजन्म की कुछ बातें हमारे सूक्ष्म शरीर में रह जाती हैं जो आत्मा के फिर से नए शरीर में आने पर हमारे अवचेतन मन में इंगित करती हैं की ये सब हमारे साथ पहले घटित हो चुका है और तब ही लगता है की हम पिछले जन्म में भी कहीं ना कहीं,किसी ना किसी रूप में अवश्य थे , और ये हमारा पुनर्जन्म है.मेरे विचार से पुनर्जन्म होता है. "



श्रीमती ज्योत्स्ना (http://jyotsnapandey.blogspot.com/) सहजता से बताती हैं,

"पुनर्जन्म होता है या नहीं ? प्रश्न अच्छा है ,इस संदर्भ में मैं आपको अपने ही परिवार की एक घटना से अवगत करती हूँ .....

बात उन दिनों की है जब मेरे बड़े भाई जोकि एयरफोर्स से अब रिटायर हो चुके हैं ,ढाई वर्ष के थे . भोजन परोसते समय माँ से बोले हम ऐसी प्लेटों में नहीं खाते थे .....

कैसी ? माँ ने जिज्ञासावश पूछा .

चीनी-मिटटी की प्लेट की तरफ इशारा करके बोले ऐसी में खाते थे .

अब तो सभी लोग इकट्ठे हो गए और उन बातों को बार बार पूछते ---घर में कौन कौन था ?

मैं मेरी वाइफ और मेरे बच्चे .

कितने बच्चे हैं ?....दो ,बेटी नाम जस्टी,और बेटे का पैनाडी.

तुम क्या करते थे?...मैं इंजिनियर था ......

क्या हुआ था तुम्हें ?....थोडी सी ज्यादा हो गयी थी ............बस एसीडेंट हो गया .

कैसे .?....मेरी व्हाइट कार पीपल से टकरा गयी थी ........न

तुम्हारा घर कहाँ है ?.......मानरोविया..

उस समय इस विषय पर बहुत शोध हो रहे थे ,तो एक पारिवारिक मित्र जो की राजनैतिक भी थे ने सलाह भी दी--"चलो घूमना भी हो जायेगा और खर्चा सरकार उठाएगी .बेटे को ले चलो"

माँ को डर था की कहीं बेटा ही न हाथ से चला जाये उन्होंने  मना कर दिया .
{हम गाँव की मिटटी से जुड़े लोग हैं ,आप कह सकती हैं ठेठ देहाती .ऐसे में उनके द्वारा प्रयुक्त अंग्रेजी के शब्द वास्तव में विस्मित करते थे .अब फैसला आप पर छोड़ती हूँ की पुनर्जन्म होता है या नहीं .}"
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आईये अब चलते हैं पुन: 
 कार्यक्रम स्थल की ओर जहां मंजू गुप्ता उपस्थित हैं अपनी कविताओं के साथ  ......यहाँ किलिक करें
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परिचर्चा जारी है मिलती हूँ एक अल्प विराम के बाद 

कई उदहारण भी हैं....जिससे यह प्रमाणित होता हैं कि पुनर्जन्म है : नवीन कुमार

श्री नवीन कुमार ( retd. SBI officer ) के कथनानुसार,

" Hindu mythology और मेरे विचार से आत्मा नही मरती... पुनर्जन्म ज़रूरी नही कि मनुष्य योनि में ही हो, पर जब पुनर्जन्म है तो मनुष्य और अन्य जीव-जंतुओं में हैं और कई उदहारण भी हैं....जिससे यह प्रमाणित होता हैं कि पुनर्जन्म है."

इनकी पत्नी श्रीमती मंजु श्री का कहना हैं कि

" पुनर्जन्म होता हैं या नही इस पर कुछ कहना आसान नही है, पर मैं गीता को मानती हूँ और गीता के कथनानुसार "आत्माअजर अमर है" तो मैं मानती हूँ कि पुनर्जन्म होता है। साथ ही कई ऐसी अद्भुत घटनाएंपढने सुनने को मिलती हैं जिससे इस विश्वास को बल मिलता है...वैसे यह सोचना भी अच्छा लगता है कि जो प्रियगए हैं वे एक दिन लौट आयेंगे."



श्रीमती नीलम प्रभा ( शिक्षिका, हिंदी विभाग,डीपीएस ,पटना)
स्पष्ट शब्दों में कहती हैं,

 "पूर्वजन्म या अगला जन्म और बीच में मृत्यु....सब उतने ही सच हैं जितनी कल की ,आज की और कल की सुबह और प्रकृति के रहस्य हैं !"
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आईये चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां पवन  चन्दन  उपस्थित हैं अपनी कविताओं के माध्यम से कारगिल के शहीदों को नमन करते हुए ......यहाँ किलिक करें
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जारी है परिचर्चा मिलती हूँ एक अल्प विराम के बाद

मैं पुनर्जन्म नही मानता : कर्नल अजय कुमार


कर्नल अजय कुमार का कहना है,

 "मैं पुनर्जन्म नही मानता , जितनी कहानियाँ निकलती हैं वह सब झूठी हैं और अपनी सोच के आधार पर लिखी जाती हैं।"

उनकी पत्नी श्रीमती उषा कुमार के विचार भी कुछ इसी तरह के हैं। उनका कहना है, "इस विषय पर मैंने कभी सोचा ही नही।

क्या है पूर्व जन्म और क्या है पुनर्जन्म...इन सारी बातों से परे मैं वर्त्तमान को जी रही हूँऔर यही सत्य है।"
 

श्री अभय कुमार सिन्हा ( retd. market secretary ) के शब्दों में,
 
" पुनर्जन्म का कोई प्रूफ़ नही है। सारी कहानियाँ मनोवैज्ञानिक स्वभाव की हैं। जैसे भगवान् आदमी के मन की उपज हैं, वैसे ही पुनर्जन्म के विचार हैं। यह सोचने के लिए की मृत्यु के बादसब ख़त्म हो जाता है, एक बड़ी भयंकर ताकत की ज़रूरत होती है। दरअसल मनुष्यएक continuity चाहता है तो इसे ही मान लेने में मानसिक संतुष्टि मिलती है। जिन्हें

इन बातों पर विश्वास होता है वे कम कारण ढूंढते हैं, जो हर बात में कारण जाननाचाहेंगे उन्हें इन बातों पर विश्वास नही होगा।"

इनकी पत्नी श्रीमती रेणु सिन्हा के शब्दों में,

"मैं जब छोटी थी तो पुनर्जन्म पर अनेक कहानियाँ सुनी, बड़े होने पर पढीं, पर इसका कोई ठोस प्रमाण वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नही था... पर, हिंदू धर्म में इस बात पर लोगों में विश्वास हैऔर यह सोच मन को एक शक्ति देती है कि हम किसी नए रूप में इस धरती पर फिर आयेंगे, मिलेंगे...मेरी सोच भी कहती है कि पुनर्जन्म होता है।"
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आईये अब चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां श्री सुमन सिन्हा उपस्थित हैं अपनी एक कविता के साथ ......यहाँ किलिक करें
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जारी है उत्सव मिलती हूँ एक अल्प विराम के बाद 

ब्लोगोत्सव की आखिरी परिचर्चा : क्या आत्मा अमर है ?


नमस्कार!
मैं रश्मि प्रभा
एक नयी परिचर्चा के साथ
आज पुन: उपस्थित हूँ परिकल्पना पर
आज उत्सव की यह आखिरी परिचर्चा है
और कल गीतों से भरी आखिरी शाम
फिर न जाने कब हमें एक साथ एक मंच पर
इकत्रित होने का सुयोग प्राप्त होगा......

खैर, विगत डेढ़ महीनों में हम सभी ने खूब मस्ती किये ब्लोगोत्सव के बहाने
खूब नए-नए विषयों को आपके सामने रखा ....और कई नयी प्रतिभाओं को पहली बार इतना बड़ा मंच मिला ! शुक्रिया ब्लोगोत्सव-२०१० की टीम .....शुक्रिया आप सभी पाठकों का , शुभचिंतकों का और समस्त प्रतिभागियों का...शुक्रिया उनका भी जो मंच के नेपथ्य में रहकर कार्यक्रम को गरिमा प्रदान किये ....!
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गीता में श्री कृष्ण ने कहा है-

नैनं छिदंति शस्त्राणि,नैनं दहति पावकः ,
न चैनं क्लेदयांत्यापोह,न शोशियती मारुतः ......................

यानि आत्मा अमर है।

तो प्रश्न उठता है कि इन आत्माओं का स्वरुप क्या होता है, क्या यह फिर किसी नए शरीर में आती है, कर्म काहिसाब चुकाने के लिए क्या आत्मा नए-नए रूपों में जन्म लेती रहती है? हाँ- तो यही है पुनर्जन्म!

जितने लोग उतने विचार...

सामान्य धरातल पर मुझे विश्वास है, आत्मा नए शारीरिक परिधान में पुनः हमारे बीच आती है। अगर सतयुग,द्वापरयुग सत्य है तो यह भी सत्य है कि आत्मा का नाश नही, वह जन्म लेती है। राम ने कृष्ण के रूप में, कौशल्याने यशोदा, कैकेयी ने देवकी, सीता ने राधा के रूप में क्रमशः जन्म लिया...कहानी यही दर्शाती है, तो इन तथ्यों के आधार पर मेरा भी विश्वास इसी में है।

ये हुई मेरी बात - अब इसी सन्दर्भ में और लोगों के विचार क्रम से रखते हुए मैं आपके विचारों से अवगत होना चाहूँगी ।
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श्रीमती सरस्वती प्रसाद ( "नदी पुकारे सागर" काव्यसंग्रह की लेखिका ) के शब्दों में,


" प्रभु के स्वरुप को किसी ने देखा नही है, पर अपनी भावनाओं के धरातल पर प्रभु की प्रतिमा को भिन्न भिन्न रूप देकर स्थापित कर लेते हैं - यही निर्विवाद सत्य है मान कर आस्था कानिराजन अर्पित करते हैं। ठीक इसी प्रकार पुनर्जन्म के प्रश्न पर गीता की सारगर्भित वाणीसामने आती है। छानबीन और तर्कों से परे आत्मा की अमरता पर विश्वास कर के मन कोसुकून मिलता है।

मैंने खोया और वर्षों मेरी आत्मा भटकती रही अचानक एक रात मेरी तीन साल की नतनी,जो मेरे ही पास रहती थी रात १२ बजे अचानक उठी और कहा "अम्मा उठो कविता सुनो" औरउसने अपने ढंग से एक लम्बी कविता सुनायी। कविता की शुरुआत थी

"माँ तुम दुःख को बोल दो, दुःख तुम पास नही आओ

मेरा गुड्डा खोया गुड्डा आ गया अब आ गया....."

क्या सच है क्या झूठ क्या भ्रम...इन सब से परे मन को अच्छा लगता है सोचना वह है यहीं कहीं पास ही....."
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इस अनमोल विचार के बाद आईये चलते हैं  मुम्बई के बसंत आर्य की लघुकथा : खिड़कियाँ  का आनंद लेने के  लिए कार्यक्रम स्थल की ओर .......यहाँ किलिक करें
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जारी है परिचर्चा मिलती हूँ एक अल्प विराम के बाद 

शनिवार, 29 मई 2010

कोई जरूरी नहीं कि हर जबाब बोल कर दिया जाए


....कल मैंने प्रथम अन्तराष्ट्रीय हिंदी ब्लॉग उत्सव की प्रस्तावना की....ऐसे-ऐसे टिप्पणीकारों की टिप्पणियाँ आने लगी जो ब्लोगोत्सव में शामिल ही नहीं हैं ...उसी क्रम में मैंने स्पष्ट किया कि यह प्रस्ताव केवल ब्लोगोत्सव-२०१० में शामिल प्रतिभागियों और शुभचिंतकों के लिए है ...इसी क्रम में मैंने कुछ सम्मान की भी बात की और लोग पूछने लगे कि चयन का आधार क्या है ?

भाई बेहतर होगा कि पहले पोस्ट पढो फिर टिपण्णी करो ......कोई जरूरी नहीं कि हर जबाब बोल कर दिया जाए !

शुक्रवार, 28 मई 2010

कौन बनेगा वर्ष का श्रेष्ठ ब्लोगर ?

आज पहली बार मेरे किसी सार्वजनिक बक्तब्य पर ब्लोगवाणी के नापसंद में सर्वाधिक चटका लगाया गया है ...कहा जाता है कि जिस लक्ष्य को प्राप्त करने में आपकी शक्ति का कण-कण दूसरों के लिए बेचैनी पैदा कर दे , तो समझ लीजिये आप लक्ष्य प्राप्ति की ओर बढ़ रहे हैं ......

 हर समाज में कुछ विध्वंसक तत्त्व होते हैं जिनका एक मात्र उद्देश्य होता है पवित्र उद्देश्यों को प्रभावित करना ,किन्तु इस दिशा में विचारकों का मत है ,कि अपनी इच्छाशक्ति को इतना बड़ा बना लीजिये कि आप परिस्थितियों द्वारा नियंत्रित न हो , बल्कि आप परिस्थितियों का नियंत्रण करें .

आप केवल बैठे रहकर अपनी गोद में सफलता के गिराने की प्रतीक्षा नहीं कर सकते . एक बार आपका मार्ग तय हो गया और आपकी इच्छा दृढ हो गयी तो आपको व्यवहारिक प्रयत्न करते रहना होगा . फिर आप देखेंगे कि आपकी सफलता के लिए जो भी आवश्यक है वह आपके पास आ जाएगा . हर चीज आपको सही दिशा में आगे बढायेगी और आप अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे .....

ब्रेक से पहले हम बात कर रहे थे प्रथम अन्तराष्ट्रीय हिंदी ब्लॉग उत्सव की परिकल्पना के बारे में .....अब अपनी बात को हम समाप्त करें इससे पहले आपको बता दें कि निम्नलिखित श्रेणियों में सम्मान का प्रस्ताव लाया जा रहा है-
उत्सव में दिए जाने वाले सम्मान:

वर्ष के श्रेष्ठ चिट्ठाकार
वर्ष का श्रेष्ठ चिट्ठा
वर्ष का श्रेष्ठ तकनीकी चिट्ठा
वर्ष के श्रेष्ठ कवि/कवयित्री
वर्ष के श्रेष्ठ लेखक/लेखिका
वर्ष के श्रेष्ठ व्यंग्यकार
वर्ष के श्रेष्ठ गज़लकार
वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग संरक्षक
वर्ष के श्रेष्ठ विज्ञान कथा लेखक
वर्ष के श्रेष्ठ बाल कलाकार
वर्ष के श्रेष्ठ चित्रकार
वर्ष के श्रेष्ठ कलाकार
वर्ष के श्रेष्ठ पोस्ट लेखक
वर्ष के श्रेष्ठ विचारक
वर्ष के श्रेष्ठ हिंदी प्रचारक
वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग अतिथि
वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग शुभचिंतक
वर्ष के श्रेष्ठ नवोदित ब्लोगर
वर्ष के श्रेष्ठ टिप्पणीकार आदि .....
 
इस सन्दर्भ में आपकी क्या राय है ? अवश्य अवगत करावें .
ब्लोगोत्सव-२०१० पर लगातार कार्यक्रम जारी रहेंगे दिनांक ३१.०५.२०१० तक और दिनांक ०१.०६.२०१० को परिकल्पना की आखिरी प्रस्तुति गीतों भरी शाम के साथ संपन्न होगा ब्लोगोत्सव .....!
अब रवीन्द्र प्रभात को अनुमति दीजिये, शुभ विदा

समान्तर मीडिया की दृष्टि से कितनी सार्थक है हिन्दी ब्लोगिंग .......

आपका  पुन:  स्वागत है
परिकल्पना पर
अभी ब्रेक से पहले हम लखनऊ ब्लोगर एसोसिएसन
की तरफ से प्रस्तावित सम्मलेन की बात कर रहे थे
आईये आगे बढ़ते हैं
और शेष बातों पर प्रकाश डालते हैं-
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प्रस्तावित सत्र :


उदघाटन सत्र
हिन्दी ब्लोगिंग और युवा रचनाघर्मिता
हिन्दी में ब्लोगिंग क्यो ?
हिन्दी ब्लॉग अघ्ययन और अनुसंघान
हिन्दी मीडिया की बदलती भाषा
राजभाषा हिन्दी (शिक्षा, प्रशासन, न्यायिक क्षेत्र और अनुवाद)
ब्लोगिंग में समकालीन रचना संसार
अन्तरराष्ट्रीय कविता गोष्ठी
अन्तरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य मे हिन्दी ब्लोगिंग
हिन्दी ब्लॉग के विकास मे बाधाएं एवं चुनौतिययां
समकालीन प्रवासी हिन्दी ब्लोगर
समान्तर मीडिया की दृष्टि से कितनी सार्थक है हिन्दी ब्लोगिंग .......

सायंकालीन सांस्कृतिक सत्र
नाटक -गायन
दृश्य-श्रव्य प्रस्तुति
सम्मान समारोह व अन्तरराष्ट्रीय कवि सम्मलेन

इसके लिए संरक्षक: मार्गदर्शक : परामर्श :अन्तरराष्ट्रीय समिति: आयोजन समिति: अकादमिक समिति: संयोजक मण्डल: स्मारिका सौजन्य: मीडिया समिति: सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि से संबंधित व्यक्तियों का चयन करते हुए उन्हें उत्तरदायित्व दिया जाएगा !
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आज इस सन्दर्भ में मुझे बहुत बातें करनी है है आप सभी से मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद , किन्तु आप कहीं भी मत जाईयेगा ......
अभी चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां राजेन्द्र स्वर्णकार उपस्थित हैं अपनी दो कविताओं के साथ.....यहाँ किलिक करें

यह प्रस्ताव केवल ब्लोगोत्सव-२०१० से जुड़े रचनाकारों एवं शुभचिंतकों हेतु है

 अभी-अभी मैंने देखा कि पिछले पोस्ट में जब मैंने प्रथम अन्तराष्ट्रीय हिंदी बलोंग  उत्सव का सुझाव तथा प्रस्ताव रखा तो किसी ने ब्लोगवाणी पर सबसे पहले नापसंद का चटका लगा दिया , इस पर अचानक मुझे मृदुला गर्ग की एक कविता की कुछ पंक्तियाँ याद आ गयी जिसमें लिखा गया है कि- " मैंने अपने होने का एलान किया और लोगों की नींद उड़नछू हो गयी ....!"



मेरे मित्र आपको परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि यह प्रस्ताव केवल लखनऊ ब्लोगर एसोसिएसन से जुड़े कार्यकर्ताओं तथा ब्लोगोत्सव-२०१० से जुड़े रचनाकारों एवं शुभचिंतकों हेतु है ....!
खैर, आईये आगे बढ़ते हैं और इस प्रस्ताव को सार्वजनिक करते हैं परत-दर-परत !
 
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प्रस्तावना : प्रथम अन्तराष्ट्रीय हिंदी बलोंग उत्सव-2010


लखनऊ ब्लोगर एसोसिएसन, परिकल्पना ब्लॉग, लोकसंघर्ष,संवाद डोट कोंम ने संयुक्त रूप से हिन्दी को वैश्विक पहचान देने वाले अंतर्राष्ट्रीय प्रयासो को एक मंच देने के लिए इस वर्ष प्रथम अन्तराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग उत्सव की भव्य परिकल्पना की है, जिसमे हिन्दी भाषा व सहित्य के ज्वलंत विषयो पर विमर्श किये जायेंगे । उत्सव मे नाटक,रचना पाठ, विचार गोष्ठी, कवि सम्मेलन आदि कार्यक्रमों के साथ-साथ हिंदी सेवी सम्मान भी दिया जाएगा।

इस उत्सव मे भारतीय मनीषियो के आलावा अमेरीका, कनाडा, यूं .के., सहित कई देशो से साहित्यकार, पत्रकार, हिन्दी सेवी व शब्दकर्मी भाग लेगें . हिंदी जगत के लिए मानक बन चुके परिकल्पना ब्लॉग के द्वारा मुख्य रूप से आयोजित इस अन्तराष्ट्रीय उत्सव में कई महत्वपूर्ण मंत्री सहित कई सांसद व विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय सहित कई अन्य मंत्रालयों के वरिष्ठ अघिकारियों की उपस्थिति में हिन्दी के लब्घप्रतिष्ठित विद्धान, पत्रकार, लेखकगण बडी संख्या मे भाग लेगें और हिन्दी से जुडे तमाम मुद्दों मुद्दों पर सार्थक बहस को अंजाम देंगे ।

इस बार यह अन्तराष्ट्रीय उत्सव २४ से २६ दिसम्बर, २०१० को मिनी स्टेडियम रिग रोड विकास नगर लखनऊ या फिर कैसरबाग़ स्थित राय उमानाथ बाली प्रेक्षागृह मे आयोजित करने की योजना बन रही है । इस उत्सव मे विदेश से लगभग 100 और देश के विभिन्न भागों से लगभग 200 विद्वानो की भागीदारी सुनिश्चित की जायेगी ।

इस अन्तराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग उत्सव-२०१० का मुख्य विषय ‘हिन्दी ब्लॉग की सार्थक रचनाघर्मिता ‘ है। बहुराष्ट्रीय कंपनियो, मीडिया मे तेजी से बदलती भाषा के कारण उत्पन्न चुनौतियों का सामना करते हुए कैसे अगली पीढी को हिंदी ब्लोगिंग से जोड़ा जाए इस पर सार्थक बहस उत्सव का मुख्य लक्ष्य होगा । बडे पैमाने पर युवाओं की भागीदारी उत्सव की मुख्य विशेषता होगी। हिंदी का सबसे प्रतिष्ठित अन्तराष्ट्रीय कवि सम्मेलन, नाटक, गीत संगीत, अकादमिक सत्रो की विचार गोष्ठियां और इन सबमें युवाओं का बढ-चढ कर हिस्सा लेना इस अन्तराष्ट्रीय उत्सव का मुख्य आकर्षण होगा।
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यह प्रस्तावना जारी है ......मिलते हैं एक अल्पविराम के बाद
तबतक चलिए चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां डा. सुभाष राय उपस्थित हैं अपनी एक कविता के साथ ....यहाँ किलिक करें

 

तीन दिवसीय प्रथम अन्तराष्ट्रीय हिंदी ब्लॉग उत्सव लखनऊ में ....





नमस्कार
मैं रवीन्द्र प्रभात
आज उपस्थित हूँ ब्लोगोत्सव के उन्नीसवें दिन परिकल्पना पर.......
सबसे पहले आप सभी का आभार
ब्लोगोत्सव-२०१० को हिंदी ब्लॉग जगत में एक नया मुकाम देने के लिए

आप सभी ने और हमारी ब्लोगोत्सव की टीम ने
एक बार फिर यह साबित कर दिया, कि
कर्म ही पूजा है और कामयाबी ही प्रसाद ....

यदि सच्चे मन से कोई काम किया जाए तो बिघ्न बाधाएं स्वत: नष्ट होते चले जाते हैं
काम यानी कर्तब्य इश्वर का सबसे बड़ा बरदान है, जो सृजन रुपी खूबसूरत फूल में सुगंध और चेतना का समावेश करता है . कर्तब्य सफलता का वह पवित्र मन्त्र है, जिसके उच्चारण मात्र से पवित्र हो जाती है जिन्दगी. जिन्दगी की सार्थकता तभी है जब वह सृजन से जुडी हो . जिन्दगी जब सृजन से जुड़ जाती है तो भव्य हो जाती .....जैसे आप सभी के विनम्र सामूहिक प्रयास से भव्य हो गया यह उत्सव !

आज उत्सव अपने  आखिरी चरण में  है, इस उत्सव की सफलता के बाद हम आगामी ०१ जून दिन मंगलवार को आपके लिए गीतों से भरी ब्लोगोत्सव की आखिरी भव्य शाम का आयोजन करने जा रहे हैं उसके बाद ब्लोगोत्सव पर सारस्वत सम्मान का सिलसिला शुरू होगा और सम्मान पाने वाले सभी प्रतिभागियों को आगामी प्रथम अन्तराष्ट्रीय हिंदी ब्लॉग उत्सव में मोमेंटो, सम्मान राशि, अंगवस्त्र, श्रीफल आदि से सम्मानित किया जाएगा ...ऐसी योजना बन रही है !

 लखनऊ ब्लोगर एसोसिएसन के अध्यक्ष की हैसियत से आगामी एसोसिएसन की बैठक में मैं प्रथम अन्तराष्ट्रीय हिंदी ब्लॉग उत्सव का प्रस्ताव रखने वाला हूँ , वैसे मौखिक रूप से एसोसिएसन के पदाधिकारियों से मेरी वार्ता हुई है और सभी ने इस प्रस्ताव का स्वागत किया है ....एक-दो दिनों में एसोसिएसन के संयोजक के द्वारा बैठक बुलाई जा रही है .

आपको उत्सुकता होगी  इस प्रस्ताव के बारे में विस्तार से जानने की .....थोड़ा धैर्य रखिये मैं अभी थोड़ी देर में उपस्थित होता हूँ ....इसके बारे में विस्तृत चर्चा हेतु

तबतक आप ब्लोगोत्सव पर दीपक शुक्ल की दो कविताएँ पढ़ें .....यहाँ किलिक करें

मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद 

बुधवार, 26 मई 2010

एक सीमा तक करें शैतानियाँ, ना किसी का दिल दुखाना चाहिए।

धीरे-धीरे यह कार्यक्रम संपन्नता की ओर अग्रसर है
श्री राम नरेश त्रिपाठी की बाल कविता के बाद
सुप्रसिद्ध गीत-गज़लकार
श्री रोहिताश्व अस्थाना की एक बाल कविता
फूल बनकर मुस्कराना चाहिए
की कुछ पंक्तियाँ
प्रस्तुत कर रहा हूँ-


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जिंदगी हंसकर बिताना चाहिए।
चुटकुले सुनना-सुनाना चाहिए।

रात-दिन आँसू बहाने से भला,
फूल बनकर मुस्कराना चाहिए।

चाट का ठेला खड़ा है सामने,
आज कुछ खाना-खिलाना चाहिए।

आ गया इतवार, पापा जी हमें,
आज तो सरकस घुमाना चाहिए।

एक सीमा तक करें शैतानियाँ,
ना किसी का दिल दुखाना चाहिए।

मास्टरजी हम पढ़ेंगे शौक से,
पर खिलौने कुछ दिलाना चाहिए।

देश को खुशहाल रखना है अगर,
हमको संसद में बिठाना चाहिए।
-रोहिताश्व अस्थाना
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इस बाल कविता के बाद मैं आपको ले चल रहा हूँ कार्यक्रम स्थल की ओर जहां अजित कुमार मिश्र उपस्थित हैं अपनी दो कविताओं के साथ ......यहाँ किलिक करें
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इसी के साथ मैं जाकिर अली रजनीश आपसे विदा ले रहा हूँ , कल अवकाश का दिन है उपस्थित होते हैं परसों यानी दिनांक - २८.०५.२०१० को प्रात: ११ बजे परिकल्पना पर 

हल्ला हुआ गली दर गल्ली। तिल्ली सिंह ने जीती दिल्ली।।


पुन: स्वागत है
आपका परिकल्पना पर
मैं यद्यपि बाल कविताएँ और कहानियां लिखता हूँ
ऐसे में मेरे आज के उद्बोधन में
बाल कविताएँ न हो तो शायद बेमानी होगी
इसलिए आज उत्सव के इस
चरण में मैं आपको
राम नरेश त्रिपाठी की एक बाल कविता सुना रहा हूँ-

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हल्ला हुआ गली दर गल्ली। तिल्ली सिंह ने जीती दिल्ली।।

-रामनरेश त्रिपाठी-


पहने धोती कुरता झिल्ली।
गमछे से लटकाये किल्ली।।

कस कर अपनी घोड़ी लिल्ली।
तिल्ली सिंह जा पहुँचे दिल्ली।।

पहले मिले शेख जी चिल्ली।
उनकी बहुत उड़ाई खिल्ली।।

चिल्ली ने पाली थी बिल्ली।
बिल्ली थी दुमकटी चिबिल्ली।।

उसने धर दबोच दी बिल्ली।
मरी देख कर अपनी बिल्ली।।

गुस्से से झुँझलाया चिल्ली।
लेकर लाठी एक गठिल्ली।।

उसे मारने दौड़ा चिल्ली।
लाठी देख डर गया तिल्ली।।

तुरत हो गयी धोती ढिल्ली।
कस कर झटपट घोड़ी लिल्ली।।

तिल्ली सिंह ने छोड़ी दिल्ली।
हल्ला हुआ गली दर गल्ली।
तिल्ली सिंह ने जीती दिल्ली।।
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इस बाल कविता के बाद आईये चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां कविता रावत जी उपस्थित हैं अपनी दो कविताओं के साथ .....यहाँ किलिक करें
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जारी है उत्सव मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद

अंग्रेज तो हिन्दुस्तान को आज़ाद छोड़ कर चले गए, लेकिन अपने पीछे हिंदी भाषा को अंग्रेजी का गुलाम बना कर गए!




पुन:  स्वागत है आपका -
परिकल्पना पर !
ब्रेक पर जाने से पहले आप मुखातिव थे भारतीय नागरिक, अमित केशरी, प्रताप सहगल और सरस्वती जी से ......आईये अब हम-

अमित केशरी  के राष्ट्रभाषा से संवंधित आलेख पर दृष्टि डालते हैं -

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नमस्ते दोस्तों,
इस लेख का शीर्षक देख कर आपको इतना आभाश तो जरुर ही हो गया होगा की ये लेख भाषा के ऊपर लिखी जा रही है, लेकिन अब तक शायद आपने यह न सोचा होगा की ये लेख हिंदी भाषा के "दुर्भाग्य" पर लिखा गया है, जी हाँ, हिंदी भाषा के लिए फिलहाल "दुर्भाग्य" ही मुझे सबसे सटीक शब्द सूझ रही है, क्युकी जब कोई भाषा किसी देश की राष्ट्र भाषा कहलाये, और उसे बोलने वाले उसके देशवाशी ही उसकी दुर्गति करे तो इससे बड़े दुर्भाग्य की बात उस भाषा के लिए कोई और नहीं हो सकती!

आज हमारे देश की आज़ादी के जब लगभग ६३ साल पुरे हो चुके हैं, तब ऐसा लगता है जैसे की हिंदी भाषा के गुलामी के ६३वि वर्षगाँठ मनाई जा रही है, अंग्रेज तो हिन्दुस्तान को आज़ाद छोड़ कर चले गए, लेकिन अपने पीछे हिंदी भाषा को अंग्रेजी का गुलाम बना कर गए! कहने को तो हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है, लेकिन आज देश की ५०% जनता अपने दिनचर्या को संपन्न करने में अंग्रेजी का बखूबी इस्तेमाल करती है, हिंदी आये न आये, अंग्रेजी जरुर आती है, कल सुबह मेरे साथ एक दक्षिण भारतीय सज्जन खड़े थे, जब उन्होंने मुझसे बात करनी सुरु की, तब उनकी अंग्रेजी सुन कर मैं समझ गया की ये सज्जन दक्षिण भारतीय हैं, जनाब को अंग्रेजी तो बखूबी आती थी, लेकिन हिंदी में हाँ और ना के अलावा कुछ भी नहीं बोल पाते थे, ये कैसी व्यथा झेल रही है हिंदी?क्या अब यह कहना सही होगा? कि "हिंदी हैं हम, वतन है हिन्दुस्तान हमारा !" क्या अब ऐसा प्रतीत नहीं होता, कि हिंदी बस नाम मात्र को ही राष्ट्र भाषा के नाम से जानी जाती है?

आज बच्चे बोलना सीखते हैं तो माता पिता उन्हें पहले अंग्रेजी कि तालीम देना सुरु कर देते हैं, क, ख, ग, घ... आवे या ना आवे, अंग्रेजी कि पूरी वर्णमाला जरुर सिख जाते हैं, आज हमारे देश में अंग्रेजी बोलने को लोग शिक्षित होने की पहचान दे बैठे हैं, लोग यह भूल चुके हैं की अंग्रेजी भी हिंदी के ही तरह एक भाषा है, जिसका उपयोग बोल चाल के लिए अंग्रेजों के द्वारा किया जाता है! वो भूल चुके हैं की वो अंग्रेज नहीं हैं, और न ही वे अमेरिका या इंग्लैंड में रह रहे हैं, मैं पिछले ६ वर्षों से रूस में रह रहा हूँ, बखूबी अंग्रेजी और रुसी दोनों भाषा जनता हूँ, लेकिन मुझे आज तक एक भी ऐसा रुसी नहीं मिला, जिसने मुझसे बात चित की सुरुआत अंग्रेजी में की हो, जिन रूसियों को बखूबी अंग्रेजी बोलनी आती भी है, वो भी आपसे रुसी भाषा में ही बात करना ज्यादा पसंद करेंगे, और अगर आप अंग्रेजी का प्रयोग कर रहे हों, तो वो दुशरे ही पल आपसे कहेंगे, "कृपा कर रुसी भाषा में बात कीजिये, आप फिलहाल इंग्लैंड में नहीं, बल्कि रूस में हैं" मुझे यह सुन कर हर बार इसी बात की याद आई, की हिन्दुस्तान में किसी एक हिन्दुस्तानी ने आज तक किसी विदेशी से यह नहीं कहा होगा! क्या हमारी हिंदी भाषा अंग्रेजी या रुसी भाषा से कम धनि है? या फिर समय के साथ हम हिन्दुस्तानियों ने अंग्रेजी को हिंदी से ज्यादा धनि बना दिया है?

पिछले साल जब मैं गर्मी की छुट्टियों में घर गया था, तब की बात है, मेरे पिता जी दूकान में बैठे थे, एक ग्राहक आये, सामन का भाव पसंद न आने पर उन सज्जन ने मेरे पिता पर अंग्रेजी में बोलते हुए चिल्लाना सुरु कर दिया, जनाब रांची के अस.डी.ऍम थे, बड़े ही रौब से अंग्रेजी झाडे जा रहे थे, मेरे पिता को अंग्रेजी नहीं आती, वो बिचारे चुप रह गए, मैं वहीँ मौजूद था, यह देख कर मुझे बहुत गुस्सा आया, की एक व्यक्ति अंग्रेजी बोल कर मेरे पिता को चुप करा गया, उन महासय से मैंने अंग्रेजी में बात चालु की, और उनकी बोलती बंद करवाई, इसके पश्चात उन महासय ने अविलम्ब ही मुझसे पूछ लिया, "क्या करते हो बेटा? कहाँ पढाई करते हो?" मैंने उन्हें अपने बारे में बताया, और फिर उन्होंने बताया की वो रांची के "अस.डी.ऍम" हैं, बात तो ख़तम हो गई, लेकिन मेरे दूकान के आगे मेरे पड़ोशियों का जमावड़ा यह देखने के लिए लग गया की कौन इस ग्राहक को अंग्रेजी का अंग्रेजी से जवाब दे रहा है? बात यहीं ख़तम नहीं होती, रात को जब मेरे पिता जी घर पहुंचे, तो माँ से कहते हैं, देखो, आज अमित ने मेरा नाक ऊँचा कर दिया, उसने ग्राहक को अंग्रेजी का जवाब अंग्रेजी में दिया, सुमित (मेरा छोटा भाई) को तो अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ने का कोई फायदा ही नहीं हुआ, वो ऐसी अंग्रेजी नहीं बोल पाता! इस पुरे वाकिये ने मेरे मन में आज तक एक ही सवाल खड़ा किया है, लोग अंग्रेजी को इतना महान क्यूँ समझ रहे हैं? क्यूँ भूल जा रहे हैं वो, की अंग्रेजी केवल और केवल एक भाषा से ज्यादा कुछ भी नहीं, क्यूँ लोग अंग्रेजी बोलने को प्रतिष्ठा का विषय बना दे रहे हैं? आज स्कूल, कॉलेजों और कार्यालयों में दरख्वास तक अंग्रेजी में ही लिया जाने लगा है, कब तक हिंदी अपने ही देश में ये घुटन सहती रहेगी?

हिंदी की उपेक्ष केवल हमारे देश के नागरिक ही नहीं कर रहे, बल्कि नेता गन भी खुल कर कर रहे हैं, हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व: राजीव गाँधी जी के कार्यकाल में जब रुसी राष्ट्रपति हिन्दुस्तान दौरे पर आये थे, तब रुसी राष्ट्रपति ने अपना अभिभाषण रुसी भाषा में दिया, लेकिन वहीँ, हमारे प्रधान मंत्री राजीव जी ने अपना अभिभाषण यह भूलते हुए अंग्रेजी में पेश किया कि वो फिलहाल हिन्दुस्तान में हैं!

अब आप ही जरा सोचिये, हम अपनी भाषा को भूल कर उसके अस्तित्व को खतरे में डाल रहे हैं या फिर अपने ही अस्तित्व को ख़तम कर रहे हैं? इस लेख को लिखने का मेरा एक ही उद्देश्य है, अगर इस लेख के जरिये मैं एक भी हिन्दुस्तानी के नज़र में अपनी हिंदी भाषा के प्रति थोडा भी झुकाव पैदा कर सका, तो मैं समझूंगा कि मेरा इस लेख को लिखना सफल हो गया, और हिंदी भाषा को भी पुनः खुद के अस्तित्व को खोने का डर नहीं सताएगा!
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इस आलेख के बाद  आईये चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां अपनी दो कविताओं के साथ उपस्थित हैं सुरेश यादव जी......यहाँ किलिक करें

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जारी है उत्सव मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद

मैं तुम्हारा हूँ !

आपका पुन: स्वागत है
परिकल्पना पर
परिकल्पना की इस अनोखी परिकल्पना को आयामित करने में जिस व्यक्तित्व की बड़ी भूमिका रही है वे हैं आदरणीया श्रीमती सरस्वती प्रसाद
कविवर पन्त की मानस पुत्री
जिनके ब्लोगोत्सव पर आगमन मात्र से
गरिमामय हो गयी परिकल्पना.....
आईये सरस्वती जी की कविता की इन पंक्तियों के माध्यम से मध्यांतर के बाद आगे बढ़ते हैं-

अपनी ही प्रतिध्वनि से रूबरू होनेवाले मन की आँखों में कितने अमूर्त चित्र मूर्तिमान होते गए ..,
मैं तुम्हारा हूँ
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शून्य में भी कौन मुझसे बोलता है
मैं तुम्हारा हूँ, तुम्हारा हूँ ..
किसकी आँखें मुझको प्रतिपल झांकती हैं
जैसे कि चिरकाल से पहचानती हैं
किसकी बाहें  हैं जो मेरी कल्पना में
दमकते नौलाख तारे टाँकती हैं
कौन कर मनुहार मुझसे बोलता है
मैं तुम्हारा हूँ, तुम्हारा हूँ..

कौन छू छू कर मेरी हर सांस को
दे रहा बल है मेरे विश्वास को
कौन जुगनू सा उस छोर पर
दूर करता है मेरे हर त्रास को
कौन झंकृत करके मन के तार
मुझसे बोलता है
मैं तुम्हारा हूँ , तुम्हारा हूँ ..

किसकी यह पावन सुधि मेरी आत्मा पर
प्यार बनकर माँ के उर का छा रही है
किसकी छाया लिपट कर मेरे अंग से
ज़िन्दगी के गीत सुंदर गा रही है
कौन होकर स्वप्न में साकार
मुझसे बोलता है
मैं तुम्हारा हूँ, तुम्हारा हूँ ..





सरस्वती प्रसाद
 
 
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आईये अब चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां लखनऊ के गोपाल जी उपस्थित हैं अपनी दो कविताओं के साथ........यहाँ किलिक करें
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जारी है उत्सव मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद

उनके बच्चे कैसे पँख निकलते ही आकाश मे उड़ान लेते हैं.........


स्वागत   है पुन:
आप सभी का परिकल्पना पर
आईये -
शमा जी के इस मार्मिक संस्मरण को
आगे बढाते हैं -



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.................मैं बेटे के कमरे मे गयी। मन अनायास भूत कालमे दौड़ गया। मेरे कानोमे मेरे छुट्को की आवाजे गूँजने लगी,उन्ही आवाजोमे मेरी आवाज़ भी ना जानूँ, कब मिल गयी......

"माँ!देखो तो इसने मेरी यूनिफार्म पे गीला तौलिया लटकाया है,"मेरी बेटी चीख के शिक़ायत कर रही थी! "माँ!इसने बाथरूम मे देखो कितने बाल फैलाये है!छी!इसे उठाने को कहो"!बेटा शोर मचा रहा था!

" मुझे किसी की कोई बात नही सुन नी !चलो जल्दी !स्कूल बस आने मे सिर्फ पाँच मिनट बचे हैं !उफ़!अभीतक वाटर बोतल नही ली!"मैं भी झुँझला उठी!!

माँ!मेरी जुराबे नही मिल रही,प्लीज़ ढूँढ दो ना",बेटा इल्तिजा कर रहा था। "रखोगे नही जगह पे तो कैसे कुछ भी मिलेगा???"मैं भी चिढ़कर बोल रही थी। अंत मे जब दोनो स्कूल जाते तो मेरी झुंझलाहट कम होती। अब आरामसे एक प्याली चाय पी जाय !

मुझ पगली को कैसे समझा नही कि एक बार मेरे पँछी उड़ गए तो ना जानू आँखें इन्हें देखने के लिए कितनी तरस जाएँगी???

अब इस कमरे मे कितनी खामोशी थी!सब जहाँ के तहाँ !चद्दर पे कहीँ कोई सिलवट नही!डेस्क पे किताबोंका बेतरतीब ढ़ेर नही !कुर्सी पर इस्त्री किये कपड़ों पर गीला तौलिया फेंका हुआ नही!अलमारी मे सबकुछ अपनी जगह!

"मेरा एकही जूता है!दूसरा कहाँ गया??मेरी टाई नही दिख रही!मेरी कम्पास मे रुलर नही है!किसने लिया??"बच्चों की ये घुली मिली आवाजे थी।......."तो मैं क्या कर सकती हूँ ???अपनी चीज़े क्यों नही सँभालते??"पलट के चिल्लानेवाली मैं खामोश खडी थी।

सजे संवरे कामरोको देख के ईर्षा करनेवाली मैं.....अब मेरे सामने ऐसाही कमरा था! "लो ये तुम्हारा इश्तेहारवाला कमरा"!!!मेरे मन ने मुझे उलाहना दी....!तुम्हे यही पसंद था ना हमेशा!हाज़िर है अब ये तुम्हारे लिए!सुबह उठोगी तो ये ऐसाही मिलेगा तुम्हे........!" मुझे सिसकियाँ आने लगी!

उस कमरे से निकल के मैं मेरी बिटियाके कमरेमे आयी। इतने दिनोसे पोर्टफोलियो के चक्कर मे बिखरे हुए कागजात,ऍप्लिकेशन फोर्म्स,साथ,साथ चल रही पैकिंग,और बिखरे हुए कपडे,अधखुली सूट केसेस ....अब कुछ भी नही था वहाँ....!

मैंने घबराकर दोनो लैंप जला दिए!वो कुछ मुद्दत से बडे नियम से व्यायाम करती थी। उसने दीवार पे कुछ आसनों के पोस्टर लगा रखे थे......केवल वही उसके अस्तित्व की निशानी...खाली ड्रेसिंग टेबल (वैसे वो कुछ भी प्रसाधन तो इस्तेमाल नही करती थी).....ड्रेसिंग टेबल पे उसके कागज़ कलम ही पडे
रहेते थे....पलंग पे फेंका दुपट्टा नही....हाँ अल्मारीके पास कोनेमे पडी उसकी कोल्हापुरी चप्पल ज़रूर थी। मैं सबको हमेशा बडे गर्व से कहती थी की मेरी बेटी मेरी सहेली की तरह है,हम ख़ूब गप लडाते है,आपसमे हँसी मजाक करते है,एकदूसरेके कपडे पेहेनते हैं .....मुम्बई मे रेहेते हुए भी उसका रिधान सादगी भरा था। हाथ करघे का शलवार कुर्ता तथा कोल्हापुरी चप्पल।

उन्ही दिनोंकी,एक बड़ी ही मन को गुदगुदा देनेवाली घटना याद है मुझे......उसके क्लास की study tour जानेवाली थी । उसने मुझे बडेही इसरार के साथ रेलवे स्टेशन चलने को कहा . .मैं भी तैयार हो गयी। स्टेशन पोहोच के उनसे मुझे अपने क्लास के साथियोसे तथा उनके माता पिता जो वहाँ आये थे,उन सभीसे बडेही गर्व से मिलवाया। फिर मुझे शरारत भरी आँखों से देखते हुए बोली,"माँ,अब तुम्हे जाना है तो जाओ। "

"क्यों??जब आही गयी हूँ तो मैं ट्रेन छूटने तक रूक जाती हूँ!"मैंने कहा। "नही,जाओ ना!तुम्हें क्यों लायी थी ये लॉट के बताउंगी !" उसकी आंखों मे बड़ी चमक थी। "ठीक है...तुम कहती हो तो जाती हूँ!" कहके मैं घर चली आयी..... और उसके सफरसे लौटने का इंतज़ार करने लगी। वो जब लौटी, स्टेशन वाली बात मुझे याद भी नही थी। अपने सफ़र के बारेमे बताते हुए उसने मुझ से कहा,"माँ तुम पूछोगी नही,की मै तुम्हें स्टेशन क्यों ले गयी थी??"

"हाँ,हाँ बताओ,बताओ,क्यों ले गयी थी??" मैनेभी कुतूहल से पूछा! वो बोली,"मुझे मेरे सारे क्लास को दिखाना था कि मेरी माँ कितनी नाज़ुक और खूबसूरत भी है! अभी तक उन्हों ने तुम्हारे talents के बारेमे ही सुन रखा था! हाँ ,तुम्हारे हाथ का खाना ज़रूर चखा था....पर तुम्हे देखा नही था!!जानती हो,जैसे ही तुम थोडी दूर गयी ,सारा क्लास मुझपे झपट पडा !सब कहने लगे ,अरे! तुम्हारी माँ तो बेहद खूबसूरत है! तुम्हारी साडी और जूडेपे भी सब मर मिटे। "

मेरे मन मे सच उस वक़्त जो खुशीकी लेहेर उठी ,मैं उसका कभी बयाँ नही कर सकती!हर बच्चे को अपनी माँ दुनिया शायद सब से सुन्दर माँ लगती होगी। लेकिन मेरी लाडली जिस विश्वास और अभिमान के साथ मुझे स्टेशन ले गयी थी,मुझे सच मे अपने आप को आईने मे देखने का मन किया!
मेरा मन और अधिक भूतकाल मे दौड़ गया। हमलोग तब भी मुम्बई मे ही थे। बेटी ने तभी तभी स्कूल जाना शुरू किया था। वो स्कूल बस से जाती थी। एक दिन स्कूल से मुझे फ़ोन आया। स्कूल बस गलती से उसे बिना लिए चली गयी थी। मैं तुरंत स्कूल दौड़ी । उसे ऑफिस मे बिठाया गया था। उसके एक गाल पे आँसू एक कतरा था। मैंने हल्केसे उसे पोंछ डाला,तो वो बोली,"माँ!मुझे लगा,तुम जल्दी नही आओगी,इसलिये पता नही कहॉ से ये पानी मेरी गाल पे आ गया।"

अब पीछे मुड़कर देखती हूँ ,तो लगता है,वो एक आँसू उसने मुझे पेश की हुई सब से कीमती भेंट थी..... काश! उसे मैं मोती बनाके किसी डिब्बी मे रख सकती!
कुछ दिन पेहेले मैं अपने कैसेट प्लेयर पे रफी का गाया ,"बाबुल की  दुआएँ लेती जा,"गाना सुन रही थी तो उसने झुन्ज्लाकर मुझ से कहा,"माँ!कैसे रोंदु गाने सुनती हो!इसीलिये तुम्हें डिप्रेशन होता है!"

एक और प्रसंग मुझे याद आया । तब हमलोग ठाने मे थे। बिटिया की उम्र कोई छ: साल की होगी। उसे उस वक़्त कुछ बडाही भयानक इन्फेक्शन हो गया।एक सौ चार -पांच तक का बुखार,मतली। उसे सुबह शाम इंजेक्शन लगते थे। इंजेक्शन देने डॉक्टर आते, तो नन्ही सी जान मुझे कहती,"माँ!तुम डरना मत!मुझे बिलकूल दर्द नही होता है!तुम दूसरी तरफ देखो। डाक्टर अंकल जब माँ दूसरी तरफ देखे तब मुझे इंजेक्शन देना,ठीक है?"

मेरी आँखों मे आये आँसू छुपाने के लिए मैं अपना चेहरा फेर लेती!

वो जब थोडी ठीक हुई तो उस ने मुझसे नोट बुक तथा पेंसिल माँगी और मुझपे एक निहायत खूबसूरत निबंध लिख डाला!

उसने लिखा,"जब मैं बीमारीसे उठी तो माँ ने मेरे बालोंमे हल्का-हल्का तेल लगाके कंघी की फिर चोटी बनाई। गरम पानीमे तौलिया दुबाके बदन पोंछा। फिर बोहोत प्यारी खुशबु वाला,मेरी पसंद का powder लगाया.......जब मैं बीमार थी तब वो मुझे बड़ा गंदा खाना देतीं थी..... लेकिन उसीसे तो मैं ठीक हुई!"

ऐसा और बोहोत कुछ! मैं ख़ुशी से फूले ना समाई! वो निबंध मैंने उसकी टीचर को पढने के लिए दिया..... वो मुझे वापस मिलाही नही! काश! मैंने उसकी इक कॉपी बनाके टीचर को दी होती! वो लेख तो एक बच्ची ने अपनी माँ को दिया हुआ अनमोल प्रशास्तिपत्रक था! एक नायाब tribute!!

अभी,अभी तक जब हम पुनेमे मे थे,वो मुझे देर रात बैठ के लंबे लंबे ख़त लिखती ,जिनमे अपने मनकी सारी भडास उँडेल देती! पत्र के अंत मे दो चहरे बनाती,एक लिखने के पेहेलेका बड़ा दुखी सा,और एक मनकी शांती पाया हुआ,बडाही सन्तुष्ट! उसे मेरे migraine के दर्द की हमेशा चिंता रहती।

आज हवायी अड्डे परका उसका चेहेरा याद करती हूँ ,तो दिलमे एक कसक-सी होती है!!लगता है, एकबार तो उसकी आँखों मे मुझे,मुझसे इतना दूर जाता हुए, हल्की सी नमी दिखती!......ऐसी नमी जो मुझे आश्वस्त करती के उसे अपनी माँ वहाँ भी याद आयेगी, जितनी मुम्बई से आती थी!!

काश! हवायी अड्डे परभी उसके गालपे जुदाई का सिर्फ एक आँसू लुढ़क आया होता जो मेरे कलेजेको ठंडक पोहोचाता ....... एक मोती, जो बरसों पेहेले मेरी इसी लाडली ने मुझे दिया था! जानती हूँ,उसका मेरे लिए लगाव,प्यार सब बरकारार है!फिरभी मेरी दिलने एक आश्वासन चाहा था!

मन फिर एकबार बच्चों के बचपन मे दौड़ गया। हम उन दिनों औरंगाबाद मे थे । मेरा बेटा केवल दो साल का था। बड़ा प्यारासा तुतलाता था!एक रात मेरे पीछे पड़ गया,"माँ मुझे कहानी छुनाओ ना!,"उसने भोले पनसे मेरा आँचल खीचा। मैंने अपना आँचल छुडाते हुए कहा,"चलो अच्छे बच्चे बनके सो जाओ तो!!मुझे कितने काम करने है अभी!दादीमाको खानाभी देना है!"

"तो छोटी वाली कहानी छुना दो ना!",उसने औरभी इल्तिजा भरा सुर मे कहा। "तुम्हे पता है ना वो वी विली विंकी क्या करता है.....जो बच्चे अपनी माँ की बात नही सुनते,उनकी माँ को ही वो ले जाता है...बच्चों को पीछे ही छोड़ देता है"!

कितनी भयानक बात मैंने मेरे मासूम से बच्चे को कह दी ! मुड़ के देखती हूँ तो अपनेआप को इतना शर्मिन्दा महसूस करती हूँ ,के बता नही सकती। सब कुछ छोड के एक दो मिनिट की कहानी क्यों नही सुनाई मैंने उसे?? कभी कभार ही तो वो चाहता था!

अब जब औरंगाबाद की स्मृतियाँ छा गईँ तो और एक बात याद आ गयी। ये बचपन से अंगूठा चूसता था और मेरी परिवार वाले मेरी पीछे पड़ जाते थे कि मैं उसकी आदत छुडाऊं !मुझे ख़ूब पता था कि ये आदत इसतरहा छुडाये नही छूटेगी लेकिन मैं उनके दबावमे आही गयी एक दिन उसे अपने पास ले बैठी और कहा,"देखो,तुम्हारी माँ अँगूठा नही चूसती,तुम्हारे बाबा नही चूसते..." आदि,आदि, अनेक लोगोंकी लिस्ट सुना दीं मैंने उसे...उसने अँगूठा मूहमे से निकाला,तो मुझे लगा, वाक़ई इसपे मेरी बात का कुछ तो असर हुआ है!!अगलेही पल निहायत संजीदगी से बोला,"तो फिर उन छब को बोलो ना छूस्नेको!!"

अँगूठा वापस मूहमे और सिर फिरसे मेरी गोदी मे !!......अकेलेमे भी कभी उसकी ये बात याद आती है है तो एक आँख हँसती है एक रोती है.....अभी,अभी कालेज मे भी रात मे अँगूठा चूसने वाला छुटका,सोनेसे पहले एक बार ज़रूर लाड प्यार करवाने के लिए मेरी गोदीमे सिर रखने वाला मेरा लाडला,परदेस रेहनेकी बात करेगा और मुझे उस से किसी भी सम्पर्क के लिए तरसना पडेगा...कभी दिमाग मे आयाही नही था....भूल गयी थी ये पँख मैनेही इन्हें दिए है......अब इनकी उड़ान पे मेरा कोई इख्तियार नही.....लेकिन दिलको कैसे समझाऊँ ??दोस्तोने फिर कहा, लोग तो बच्चे अमेरिका जाते हैं ,तो मिठाई बाँटते है.....तुम्हे क्या हो गया है????"

सच मानो तो मेरा मूह कड़वा हो गया था.....!फिर एकबार मन वर्तमान मे आ गया!!घर मे किस कदर सन्नाटा है....कंप्यूटर पे कौन बैठेगा इस बात पे झगडा नही.......खाली पडा हुआ कंप्यूटर कौनसा चॅनल देखना है टी.वी.पर........कोई बहस नही और कोई कुछ नही देखेगा ,कहके चिल्ला देने वाली मैं खामोश खडी॥इतनी खामोशी के, मुझ से सही नही गयी......मैंने एक चैनल लगा दिया......मुझे घर मे कुछ तो आवाज़ चाहिए थी....मानवी आवाज़.....मेरे कितने ही छन्द थे.....लेकिन मुझे इसवक्त मेरे अपने, मेरे अतराफ़ मे चाहिऐ थे......

मेरे बच्चो!जानती हूँ जीवन मूल्यों मे तेज़ी से बदलाव आ रहा है।! तुम्हारी पीढी के लिए भौगोलिक सीमा रेशायें नगण्य होती जा रही है!फिरभी कभी तो इस देश मे लॉट आना। यही भूमी तुम्हारी जन्मदात्री है। मेरी आत्माकी यही पुकार है। इस जन्म भूमी को तुम्हीने स्वर्ग से ना सही अमेरिका से बेहतर बनाना है!!मेरा आशीर्वाद तुम्हारे पीछे है और आँखें तुम्हारी वापसी के इंतज़ार मे!!कहीँ ये थक ना जाएँ....गगन को छू लेनेवाले मेहेल और माँकी झोंपडी की ये टक्कर है......ऐसा ना हो के मेरे जीवन की शाम राह तकते तकते रात मे तबदील हो जाये....
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शमा जी के इस मार्मिक संस्मरण के बाद आईये चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां हिंदी के सुपरिचित रचनाकार श्री प्रताप सहगल जी उपस्थित हैं अपनी दो कविताओं के साथ.......यहाँ किलिक करें
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जारी है उत्सव मिलता हूँ एक अल्प विराम के बाद

आओ, मेरे लाडलों, लौट आओ !!!


स्वागत है आप सभी का पुन:

परिकल्पना पर !

रवीन्द्र जी की परिकल्पना का यह सामूहिक उत्सव इतना प्रभावशाली है, हर स्वर इतना गरिमामय है कि -
मेरे साथ-साथ आप भी नई कल्पना की उन्मुक्त उड़ान के लिए कलम के साथ तत्पर हो जाते होंगे और सपनों को अर्थ देने के लिए वेचैन ...!
इस ब्लोगोत्सव में -
शमा जी ने अपने संस्मरण से खूब शमा बांधा
आज -
उनका एक और संस्मरण परिकल्पना पर जारी है .....आईये आगे बढ़ते हैं और उनके संस्मरण से मुखातिव होते हैं .....
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............वो दिन भी आही गया जब हम मुम्बई के आन्तर राष्ट्रीय हवायी अड्डे पे खडे थे। कुछ ही देर मे मेरी लाडली को एक हवायी जहाज़ दूर मुझ से बोहोत दूर उड़ा ले जाने वाला था। उस वक़्त उसकी आँखोंमे भविष्य के सपने थे। ये सपने सिर्फ अमेरिकामे पढ़ाई करने के नही थे। उनमे अब उसका भावी हमसफ़र भी शामिल था।

उन दोनोकी मुलाक़ात जब मेरी बेटी तीसरे वर्ष मे थी तब हुई थी,और बिटिया का अमेरिका जानेका निर्णय भी उसीकी कारण था। मेरा भावी दामाद भविष्य मे वहीँ नौकरी करनेवाला था।

मेरी लाडली के नयन मे खुशियाँ चमक रही थी,और मेरी आँखोंसे कयी महीनोसे रोके गए आँसू ,अब रोके नही रूक रहे थे। वो अपने पँखों से खुले आसमान मे ऊँची उड़ान भरना चाहती थी,और मैं उसे अपने पँखों मे समेटना चाह रही थी......
मुझे मित्रगण पँछियों का उदहारण देते है..... उनके बच्चे कैसे पँख निकलते ही आकाश मे उड़ान लेते हैं.........इतनाही नही बल्कि मादा उन्हें अपने घोंसले से उड्नेके लिए मजबूर करती है....... लेकिन मुझे ये तुलना अधूरी सी लगती है। पँछी बार बार घोंसला बनाते हैं.....,अंडे देते हैं....,उनके बच्चे निकलते हैं.....,लेकिन मेरे तो ये दो ही है। उनके इतने दूर उड़ जाने मे मेरा कराह ना लाज़िम था।

मेरी लाडली सात समंदर पार चली गयी....... हम वापस लौट आये...... सिर्फ दोनो। पति अपने काम मे बेहद व्यस्त। बड़ा सा, चार शयन कक्षों वाला मकान....... हर शयन कक्ष के साथ दो दो ड्रेसिंग रूम्स और स्नानगृह। चारों ओरसे बरामदोसे घिरा हुआ।सात एकरोमे स्तिथ । ना अडोस ना पड़ोस।

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संस्मरण का अगला हिस्सा कुछ देर बाद , तबतक  चलिए  चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां मास्को से अमित केशरी लेकर उपस्थित हैं एक कविता : पंख .....यहाँ किलिक करें
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जारी है उत्सव, मिलता  हूँ एक अल्प विराम के बाद

ब्लोगोत्सव-२०१० की आखिरी शाम हिंदी ब्लॉग जगत के लिए एक यादगार शाम होने जा रही है !



नमस्कार !

मैं जाकिर अली रजनीश

आज  उपस्थित हूँ ब्लोगोत्सव -२०१० के अठारहवें दिन के कार्यक्रम के संचालन-संयोजन-समन्वयन हेतु परिकल्पना पर !

आजकल हर कोई जो ब्लोगोत्सव से जुडा है व्यस्त है इस उत्सव की आखिरी यादगार  शाम की तैयारी में........खासकर रश्मि प्रभा जी जिनके संचालन में गीतों से भरी उत्सवी शाम का आयोजन एक-दो दिन बाद होने वाला है ....
इस शाम के बारे में आज मैं कुछ नहीं बता सकता  क्योंकि इस शाम की परिकल्पना अभी जेहन की कोख में विकसित हो रही है ! बस इतना अवश्य कह सकता  हूँ कि ब्लोगोत्सव-२०१०  की आखिरी शाम हिंदी ब्लॉग जगत के लिए एक यादगार शाम होने जा रही है !

इसकी औपचारिक घोषणा श्री रवीन्द्र प्रभात जी के द्वारा एक-दो दिनों में संभव है , तबतक प्रतीक्षा करें और आज के इस कार्यक्रम में मेरे साथ उत्सव का आनंद लें .....

आज हम परिकल्पना पर उपस्थित हैं शमा जी के संस्मरण के साथ , आईये पढ़ते  है एक माँ के दर्द की कहानी उसी की जुबानी -
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(एक माँ के दर्द की कहानी, उसीकी ज़ुबानी)


हमारा कुछ साल पेहेले जब मुम्बई से पुणे तबादला हुआ तो मेरी बेटी वास्तुशाश्त्र के दूसरे साल मे पढ़ रही थी । सामान ट्रक मे लदवाकर जब हम रेलवे स्टेशन के लिए रवाना हुए तो उसका मुरझाया हुआ चेहरा मेरे ज़हन मे आज भी ताज़ा है।

हमने उसे मुम्बई मे ही छोड़ने का निर्णय लिया था। पेहेले पी.जी. की हैसियत से और फिर होस्टल मे। उसे मुम्बई मे रेहेना बिलकुल भी अच्छा नही लगता था। वहाँ की भगदड़ ,शोर और मौसम की वजह से उसे होनेवाली अलेर्जी, इन सभी से वो परेशान रहती। पर उस वक़्त हमारे पास दूसरा चाराभी नही था।

जब हमने उस से बिदा ली तो मेरी माँ के अल्फाज़ बिजली की तरह मेरे दिमाग  कौंध गए। सालों पूर्व जब वो मेरी पढ़ाई के लिए होस्टल मे छोड़ने आयी थी ,उन्होने अपनी सहेली से कहा था,"अब तो समझो ये हमसे बिदा हो गयी!जो कुछ दिन छुट्टियों मे हमारे पास आया करेगी,बस उतनाही उसका साथ। पढायी समाप्त होते,होते तो इसकी शादीही हो जायेगी।"

मेरे साथ ठीक ऐसाही हुआ था। मैंने झटके से उस ख़याल को हटाया । "नही अब ऐसा नही होगा। हमारा शायद वापस मुम्बई तबादला हो!शायद क्यों ,वहीँ होगा!"लेकिन ऐसा नही हुआ।

वास्तुशाश्त्रके कोर्स मे उसे छुट्टियाँ ना के बराबर मिलती थी,और उसका पुणे आनाही नही होता......नाही किसी ना किसी कारण वश मैं उस से मिलने जा पाती। देखते ही देखते साल बीत गए। मेरी लाडली वास्तु विशारद की पदवी धर हो गयी।
हमारा पुणे से नासिक तबादला हुआ.......और हमे हमारे बेटे कोभी पढ़ाई के लिए पीछे छोड़ना पडा। इसी दरमियान मेरी बेटी ने आगे की पढ़ाई के लिए, अमरीका जाने का निर्णय ले लिया...... मेरा दिल तो तभी बैठ गया था!मेरी माँ की बिटिया कमसे कम अपने देश मे तो थी!और हमारा कुछ ही महीनोमे और भी दूर.....नागपूर, तबादला हो गया। बेटाभी था उस से भी कहीँ और ज़्यादा दूर रह गया। बिटिया अमेरिका जाने की तैय्यारियोंमे लगी रही........
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यह  संस्मरण जारी रहेगा अगले चरण में भी , उससे पहले  आईये चलते हैं कार्यक्रम स्थल की ओर जहां भारतीय नागरिक के नाम से मशहूर एक ब्लोगर उपस्थित हैं अपने सारगर्भित आलेख के साथ.......यहाँ किलिक करें
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जारी है उत्सव, मिलता हूँ एक अल्प विराम के बाद

मंगलवार, 25 मई 2010

ब्लोगोत्सव-२०१० में शामिल समस्त प्रतिभागियों हेतु आवश्यक सूचना

ब्लोगोत्सव-२०१० में शामिल सभी प्रतिभागियों को अवगत कराना है कि पूर्व में किये गए वायदे के मुताबिक़ ब्लोगोत्सव से जुड़े समस्त रचनाकारों को लोक संघर्ष पत्रिका की आजीवन सदस्यता मुफ्त दी गयी है .

  इस पत्रिका का नया जून-२०१० अंक प्रकाशित हो चुका है, जिसे समस्त सदस्यों को डाक से उनके पते पर प्रेषित किया जाना है .....पत्रिका के प्रबंध संपादक श्री रंधीर सिंह सुमन के द्वारा  ब्लोगोत्सव में शामिल प्रतिभागियों का पत्राचार का पता और टेलीफोन न. की मांग की गयी है .

 अत: आप सभी से निवेदन है कि जो रचनाकार ब्लोगोत्सव में शामिल हो चुके हों अथवा शामिल होने की प्रक्रिया में हों वे अपना नाम,पत्राचार का पता, टेलीफोन न. अविलंब निम्न लिखित ई-मेल आई डी पर प्रेषित करें-

पत्रिका का यह अंक आपके लिए प्राप्त करना ज्यादा  महत्वपूर्ण है,  क्योंकि इस अंक में मेरे द्वारा विगत वर्ष परिकल्पना पर २५ खण्डों में वृहद् रूप से प्रकाशित ब्लॉग विश्लेषण-२००९ का संक्षिप्त रूप ०९ पृष्ठों में प्रकाशित हुआ है शीर्षक है- "हिंदी ब्लोगिंग की दृष्टि से सार्थक रहा वर्ष-२००९"

जो चिट्ठाकार ब्लोगोत्सव से नहीं जुड़े हैं वे इस आलेख में अपने चिट्ठे को ढूंढ सकते हैं ....जिसे इस सन्देश के साथ संलग्न किया जा रहा है .
भवदीय-
रवीन्द्र प्रभात
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आलेख : सामाजिक मीडिया का उदय : हिंदी ब्लोगिंग की दृष्टि से सार्थक रहा वर्ष-२००९
पृष्ठ सं. १० से १८ तक
यहाँ पढ़ें :


 
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