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नेताजी, मानता  हूँ ।
मेरे  आख़री  निवाले  पर  भी, हक़  है  आप  का, मानता  हूँ ।
नेताजी, फिर  भी  आप  रह   जायेंगें   भूखे,  मैं   जानता  हूँ ।
१.
झूठे  -  मूठे   वर   देंगें,  रहने   को   ये   घर  देंगें,  खुशी   मना..!
कैसा  घर, कैसी  खुशी, महँगाई  ने  तिल-तिल  कर  हमें  मारा ।
नेताजी,  आप  तो  कभी  न   थे   इतने  सस्ते?  मैं  जानता  हूँ ।
मेरे   आख़री   निवाले   पर   भी,  हक़  है  आप  का, मानता  हूँ ।
२.
हाल  -  बेहाल  हम  रहते   हैं   और   मजबूरी   में   जीते   हैं ।
कब का  भूल चूके  हैं  रोना, दर्द  पर  भी  हम  तो  हँसते   हैं..!
नेताजी,  दर्द   की  आँख   के  आप   सितारे   हैं , जानता  हूँ ।
मेरे  आख़री  निवाले  पर  भी,  हक़  है  आप  का, मानता  हूँ ।
३.
मत  मारी  गई  थी  हमारी, जो   हमने  आप  का  बटन  दबाया ।
जंगल  जाने   को  बचा   था, एक ही  लोटन,  वो  भी  बिकवाया?
नेताजी,  फिर   भी   आप   रह   जायेंगे   प्यासे,  मैं  जानता  हूँ ।
मेरे   आख़री   निवाले   पर    भी,  हक़  है  आप  का, मानता  हूँ ।
मार्कण्ड दवे । दिनांकः२४-०८-२०१२.
 


 
 
बहुत सुन्दर और सटीक कटाक्ष...वाकई मज़ा आ गया ...! बधाई !!!
जवाब देंहटाएंThanks a lot, sushri Sarasji
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