(सौजन्य-गूगल)
तेरी रुसवाई । (गीत)  
जब हमें तेरी रुसवाईयाँ डसती हैं ।
ज़िंदगी   गहरी   सिसकीयाँ   भरती   है ।
भली-चंगी तो  लग  रही  थीं  अभी  तक !
हम    नहीं,  ये   गुमनामियाँ   कहती   है ।
ज़िंदगी   गहरी   सिसकीयाँ   भरती   है ।
(रुसवाई=बदनामी)
अन्तरा-१
ग़मज़दा  दिल  को  अब,  कुछ  ना  भाता  है ।
रह रह कर  ये   कलेजा,  मूँह   को  आता  है ।
लग  रही   थीं   ये,  आईने   की  रौनक अयां !
हम     नहीं,  धुंधली   परछाईयाँ  कहती  है ।
ज़िंदगी   गहरी   सिसकीयाँ   भरती   है ।
(अयां=साफ)
अंतरा-२.
ग़म  ग़लत  करने  का  बहाना  है  पीना ।
यारों,  जीना   भी   ऐसा, है   कोई   जीना ?
नामुराद ज़िंदगी अब, क्या संभल पायेगी !
हम   नहीं,  ज़बर  मजबूरियाँ  कहती है ।
ज़िंदगी   गहरी   सिसकीयाँ   भरती   है ।
(नामुराद=विफल ; ज़बर=प्रचंड )
अंतरा-३.
मयक़दे  का   साक़ी,  बड़ा   ही  जालिम  है ।
यहाँ    मदहोशी  भी,  लूटने  का  आलम  है ।
लूटा  दे  सब   कुछ, ख़ुदकुशी  भी  कर  लें ।
हम  नहीं,  निगोड़ी गमगिनियाँ  कहती  हैं ।
ज़िंदगी   गहरी   सिसकीयाँ   भरती   है ।
(निगोड़ी=बदनसीब)
अंतरा-४.
पैमाने   फिसलना,  बात   आम   होती   है ।
कभी  न  कभी,  ज़िंदगी  तमाम  होती  है ।
ग़द्दार  सांसो  का  ग़म  मत करना  यारों ।
टूटे  ख़्वाबों  की  बदरंगिनियाँ  कहती  है ।
ज़िंदगी   गहरी    सिसकीयाँ   भरती   है ।
(बदरंग=मलिन)
मार्कण्ड दवे । दिनांक-०६-०८-२०१२.
 


 
 
बहुत ही सुन्दर गीत ... मन भावन ...
जवाब देंहटाएंThanks a Lot shri Nasva sahab.
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