बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

" परिकल्पना फगुनाहट सम्मान-2010" दुआ कीजिए रचनात्मक असंतोष की यह आग लगातार जलती रहे...!

सरस्वती का साधक अग्निवीणा  का साधक होता है । चाहे वह गीतकार हो, कवि हो अथवा  व्यंग्यकार, वह तो आग बोता है, आग काटता है । ऐसी आग जो आखो के जाले काटकर पुतलियो को नयी दिशा देती है,अन्धेरा काटकर सूरज दिखाती है, हिमालय गलाकर वह गंगा  प्रवाहित करती है जिससे सबका कल्याण हो ।

साहित्य की आग रूलाती नही हँसाती  है,सुलाती नही जगाती है,मारती नही जिलाती है । इस आग की लपटे शाश्वत और चिरन्तन होती है । जो साहित्यिक साधक काल के जितने खण्डो को अपनी रचनाओ की अग्नीरेखा मे बान्ध सकता है वह उतना ही सफल होता है । क्या आज भी आपको शेक्सपेयर का "ब्रुट्स्" नही मिल जाता ? गाँव  के हाट मे नागार्जुन का "बलचनवा" नही दीख जाता ? प्रेमचन्द का होरी किसी अलाव के पास सिर झुकाये बैठा नही मिल जाता आखो मे आग की लपटे लिये किसी "मद्यप क्लीव रामगुप्त" की नपुन्सकता को धिक्कारती जय शंकर प्रसाद की " ध्रुबस्वामिनी" किसी जनता दरवार मे नही नजर आती ? जरूर आती है । यही तो रचनाधर्मी साधक की साधना के शाश्वत और चिरन्तन होने का प्रमाण है ।

 रचनाधर्मी साधक की साधना की यह आग हिन्दी चिट्ठाकारी में अनबरत कायम रहे, इसलिए मैने ये फ़ैसला किया है कि परिकल्पना पर अब हमेशा किसी न किसी प्रकार की प्रतियोगिता आयोजित की जाती रहेगी ताकि सकारात्मक ब्लॉगिंग को बढ़ावा मिलता रहे । इसी उद्देश्य से वर्ष के प्रारंभ में फागुनाहट सम्मान की परिकल्पना की गयी ।

मैने लगभग दो दर्जन प्राप्त प्राणवाण रचनाओ की पोटली से तीन मोती निकाले - एक गीत,एक कविता और एक व्यंग्य का चुनाव करते हुये आपसे परामर्श माँगा था कि इन तीनो रचनाओ मे से आप किसे फगुनाहट सम्मान के लिये उपयुक्त मानते है । आपने अपना बहुमूल्य वोट दिया, जिसके लिये हम आपके प्रति अपना  विनम्र आभार अर्पित करते हुये " परिकल्पना फगुनाहट सम्मान-2010" हेतु विजेता और उप विजेता के नाम की घोषणा करने जा रहे है ।

कुल वोट-74

  • श्री वसन्त आर्य की रचनाओ के समर्थन मे प्राप्त वोट -36
  • श्री ललित शर्मा की रचनाओ के समर्थन मे प्राप्त वोट - 30
  • श्री अनुराग शर्मा की रचनाओ के समर्थन मे प्राप्त वोट-08


विजेता - श्री वसन्त आर्य
  • रचना का नाम- जब फागुन मे रचायी मंत्री जी ने शादी
  • वर्ग- हास्य / व्यंग्य
  • आपको मिलते है-रु.5000/- सम्मान-राशि,ई -सर्टिफिकेट और छ्प्पन भोग की मिठाइयाँ साथ ही अगले वर्ष आयोजित फागुनाहट सम्मान के निर्णायक मंडल के सदस्य होने का गौरव ।
उप विजेता - श्री ललित शर्मा
  • रचना का नाम-सजना सम्मुख सजकर सजनी खेल रही है होली..
  • वर्ग- गीत
  • आपको मिलते है-रू.500/-मूल्य की पुस्तके और अगले वर्ष पुनः आयोजित परिकल्पना फगुनाहट सम्मान हेतु स्वतः नामित प्रथम रचनाकार होने का गौरव ।





    एक नजर वोट की गणना मे अपनायी गयी प्रक्रिया के सन्दर्भ मे-

    • श्री जी के अवधिया जी ने सार्वजनिक रूप से श्री वसंत आर्य और ललित शर्मा जी की कविताओं को सराहा है, किंतु मेल के माध्यम से उन्होने वोट केवल एक रचनाकार को ही दिया है ।इनके वोट को गणना मे शामिल किया गया है ।

    • श्री ज्ञान दत्त पांडे जी ने सार्वजनिक रूप से श्री वसंत आर्य और श्री अनुराग शर्मा की कविताओं के प्रकाशन के बाद अपनी टिप्पणी दी है, मगर उन्होने वोट किसी को भी नही किया है इसलिए उनके वोट शामिल नही किए गये हैं ।

    • सुश्री पूर्णिमा जी ने श्री वसन्त आर्य और श्री अनुराग शर्मा जी की कविताओ पर अपनी टिप्पणी दी है मगर वोट केवल एक व्यक्ति को किया है ।

    • श्री पी. सी. गोदियाल जी ने सार्वजनिक रूप से तीनो रचनाओ को सराहा है, इसलिये इनके वोट को गणना मे शामिल नही किया गया है ।

    • सुश्री निर्मला कपिला जी ने सार्वजनिक रूप से तीनो रचनाओ को सराहा है, किन्तु वोट केवल एक रचनाकार को दिया है ।इनके वोट को गणना मे शामिल किया गया है ।

    • श्री सुमन जी ने सार्वजनिक रूप से श्री अनुराग शर्मा और श्री ललित शर्मा दोनो की रचनाओ को सराहा है मगर उन्होने वोट किसी को भी नही किया है, इसलिये उनके वोट को गणना मे शामिल नही किया गया है ।

    •  श्री जाकीर अली रजनीश,अनील त्रिपाठी,डा.दिनेशचन्द्र अवस्थी,गितेश, देवमणी पाण्डेय, कुमार राधारमण,महफूज अली,मानस के साथ-साथ सुश्री पुर्णिमा,माला,सन्ध्या आर्य ने श्री वसन्त के समर्थन में सार्वजनिक रूप से अपना वोट दिया है, इसलिये उनके वोट को इस गणना मे शामिल किया गया है ।

    • सार्वजनिक रूप से अदा जी ने श्री ललित शर्मा जी के समर्थन मे वोट करने का वचन दिया,किन्तु मेल/ SMS अथवा सार्वजनिक रूप से  उनका वोट प्राप्त नही हुआ है फिर भी उनके वचन रूपी वोट को इस गणना मे शामिल कर लिया गया है ।

    • कवि कुलवन्त जी ने श्री ललित शर्मा जी को विजेता होने की अग्रिम शुभकामनाये तो दे दी, मगर किसी भी माध्यम से वोट करना भूल गये, इसलिये उन्हे इस गणना मे शामिल नही किया गया है ।

    • ब्लोगवाणी पसन्द छः ललित शर्मा,छः वसन्त आर्य और तीन अनुराग शर्मा जी के लिये किये गये है, इसे भी वोट की गणना मे शामिल किया गया है ।

    • सार्वजनिक रूप से परिकल्पना के पोस्ट प्रतिक्रिया मे श्री वसन्त आर्य की रचना को छः पाठको ने शानदार और तीन पाठको ने रोचक बताया है, वही श्री ललित शर्मा जी की रचना को एक पाठक ने शानदार और दो ने रोचक बताया है, वही श्री अनुराग शर्मा जी की कविता को दो पाठको ने शानदार और दो ने रोचक बताया है । मगर इस प्रतिक्रिया को वोटो की गणना मे शामिल नही किया गया है ।

    • श्री ललित शर्मा जी की रचना पोस्ट पर टिप्पणी करने वाले टिप्पणीकारो मे से चार टिप्पणीकारो ने मेल के माध्यम से वोट किया है, इसलिये उनके द्वारा मेल से किये गये वोट को ही मान्यता दी गयी है ।

    • वोटो की गणना मे उन ब्लोगरो की राय भी शामिल है जिनसे विजेता के चयन मे मौखिक, लिखित अथवा दूरभाष पर राय ली गयी है ।

    • सार्वजनिक टिप्पणियो के माध्यम से प्राप्त वोट मे आगे रहे श्री वसन्त आर्य,दूसरे स्थान पर रहे श्री ललित शर्मा और तीसरे स्थान पर रहे श्री अनुराग शर्मा । इसीप्रकार मेल से प्राप्त वोट मे आगे रहे श्री ललित शर्मा,दूसरे स्थान पर रहे श्री वसन्त आर्य और तीसरे स्थान पर रहे श्री अनुराग शर्मा । एस. एम. एस. के माध्यम से प्राप्त वोट मे आगे रहे श्री वसन्त आर्य, दूसरे स्थान पर रहे श्री ललित शर्मा और तीसरे स्थान पर रहे श्री अनुराग शर्मा ।

    • सबसे सुखद बात तो यह है कि इस वोटिंग प्रक्रिया में उन सभी वरिष्ठ  चिट्ठाकारो के निष्पक्ष सुझाव प्राप्त हुए हैं, जिनसे सुझाव माँगे गये थे ।

    • केवल दो-एक चिट्ठाकार ही ऐसे थे जिन्होंने रचना न पढ़ पाने अथवा समय की कमी की बात करते हुए अपनी स्पष्ट राय देने में असमर्थता व्यक्त की ।

    • आपने एक महीने तक परिकल्पना पर हिंदी के कालजयी साहित्यकारों के साथ- साथ आज के कुछ महत्वपूर्ण कवियों की वसंत पर आधारित कवितायें पढी, जिसमें कवितायें भी थी,व्यंग्य भी , ग़ज़ल भी , दोहे भी और वसंत की मादकता से सराबोर गीत भी, जिन्होंने इसका भरपूर रसास्वादन किया, सकारात्मक टिप्पणियाँ की और हमारा मार्गदर्शन किया  उन्हें हम दिल से अपना आभार व्यक्त करते हैं ।
      आप सभी को होली की रंग भरी शुभकामनाएँ !

    मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

    परिकल्पना फगुनाहट सम्मान- 2010 : सभी साथियों का आभार !

    परिकल्पना फगुनाहट सम्मान- 2010 हेतु मत देने की समय-सीमा समाप्त हो चुकी है, कृपया अब आप अपना मत न दें ..... बहुमूल्य मत देने वाले सभी साथियों का आभार !

     परिणाम की घोषणा होली की पूर्व संध्या पर की जाएगी .तब तक आज से साढ़े आठ दशक पूर्व " मतबाला" में प्रकाशित इस फागुनी कविता का रसपान करें और आनंद लें फागुनाहट की मस्ती का -


















    लंबा-टीका हाथ सुमिरनी गेरुआ कफनी धार !
    पर नारी पर डीठ लगावें फैलावे व्यभिचार !

               भले जी बगुला भगत बने फिरते !!1!!
     
    नया ब्याह बूढ़ों का भैया कहीं अगर रुक जाए !
    सच मानो तो युवक पड़ोसी बिना मौत मर जाए !

                  हाय बाबा का ब्याह करा दो राम !!2!!
     
    कोट बूट पतलून डाटकार सिर पर रखते हैट !
    समझे हमी मनुष्यजगत में, बाकी सब है "रॅट" !

                      भले तुम फ़ैट बने हो ये मामू !!3!!
     
    दुराचार दूरी जाए देश से, चाहे नेता लोग !
    तो बस एक-एक वेश्या से, कर लें शीघ्र नियोग !

                    बाँस जब रहे न वंशी कहाँ बजे ?!!4!!
     
    चेतगंज काशी में देखो ‘मण्डल’ एक महान।
    भांति-भांति के भूषण बिकते, जहां खुले मैदान।

                        टका दे इच्छा पूरी कर लीजै।।5!!


    ज्ञानी ध्यानी दास पहनते हैं तन पर कोपीन।
    खडे+ घाट पर नजर लड़ाते उनके सुत शौकीन।

                         अजब है भोला बाबा की काशी।।6!!


    कलकत्ते के धरमतला में अधरामृत की आस -
    रखकर धरमधका खाते हैं कितने लक्ष्मी दास।

                       नई बीबी धर में ‘ग्वाला’ संग है।।7!!


    पर्दा-‘सिस्टम’ बहुत बुरा है, इसको करके दूर।
    संग लिए लेडी को घूमें नकली बने हुजूर।

                      भले दिन-रात फिरें चपलूसी में।।8!!
    • गौरी शंकर शर्मा


    [ मतवाला, वर्ष-1, अंक-30, 15 मार्च, 1924 से साभार ]

    साहित्य समय की सीमाओं में कभी नही बंधता। वह तो शाश्वत होता है। 1924 की इस साहित्यिक रचना को आज के परिवेश में  देखें। क्या 86 वर्ष पूर्व की धड़कनें आज आपके चतुर्दिक फैले  परिवेश में नही धड़क रही है ? आज की बात को साढ़े आठ दशक पहले ही रचनाकार ने जिस अन्त:दृष्टि से देख लिया था, वही अन्त:दृष्टि शाश्वत साहित्व की ‘‘संजय-दृष्टि’’ है ........!

    सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

    जब फागुन में रचाई मंत्री जी ने शादी...





    "परिकल्पना फगुनाहट सम्मान-2010 "  हेतु नामित रचनाकारों क्रमश: श्री ललित शर्मा, अनुराग शर्मा और वसंत आर्य की रचनाओं की प्रस्तुति के अंतिम चरण में  हम आज प्रस्तुत कर रहे है मुम्बई, महाराष्ट्र से प्रेषित श्री बसंत आर्य की ---



















    फागुन में मंत्री जी ने शादी रचाई
    शादी के मंडप में
    कमाल किया
    और वधू के बजाय
    मंगल सूत्र कुर्सी के गले में डाल दिया

    अपनी धोती के छोर कुर्सी की टाँग से बाँध दिये

    और उसके सात फेरे लिये
    फिर बोले - मेरा एक्शन एकदम सही है
    इसीके सपने मुझे रात दिन आते थे
    मेरी असली प्रेमिका तो यही है

    पंडित से बोले- आपका बहुत बहुत धन्यवाद

    तहे दिल से शुक्रिया
    जिनकी कुशल निगरानी मे
    ये निष्पक्ष विवाह सम्पन्न हुआ
    और ये जो आप मंत्र पढवा रहे थे
    कसम से मुझे तो लगा
    राष्ट्रपति मुझे स्वयं शपथ ग्रहण करवा रहे थे

    तभी कोई बोला- मंत्रीजी

    बराती भूख से बिलबिला रहे है
    और खाने के लिए
    बच्चों की तरह चिल्ला रहे हैं

    मंत्री बोले-

    आपका भी अजीब किस्सा है
    अरे बराती कौन है यहाँ
    ये तो हमारी महारैली मे आये
    जुलूस का हिस्सा है
    रैली खत्म हुई
    अब सब अपने अपने घर जायें
    और आप भी मेरा दिमाग न खायें

    तभी दुल्हन बोली -मेरा क्या होगा?

    मंत्रीजी बोले -
    तू तो हमारे मेनीफेस्टो मे ही नही थी
    तू किसी और पार्टी से टिकट ले ले
    यानी किसी अन्य विवाह क्षेत्र से
    नामांकन पत्र दाखिल कर दे
    क्योंकि क्या पता
    कौन तेरी माँग भर दे

    करना पड़े तो

    एड्वांस मे पेमेंट कर
    और अपने विवाह प्रचार के लिए
    किसी मैरेज ब्यूरो से काँटेक्ट कर

    इन सबके बावजूद तुम्हे

    बहुमत न मिले तो चिंता न कर
    हम तुम्हारी जिन्दगी की नैया
    अपनी पतवार से खेते रहेंगे
    और तुमहे बाहरी समर्थन देते रहेंगे

    यह सुन दुल्हन गुस्से से फूल गई

    और आस पड़ोस सब भूल गई
    बोली - अबे बाहरी समर्थन की औलाद
    तू क्या बाहरी समर्थन से ही पैदा हुआ था
    और हुआ था तो हुआ था
    पर कुछ कर क्यों नही जाता
    और नहीं कुछ कर सकत
    तो शर्म से मर क्यों नहीं जाता

    तो एक चमचा बोला-लड़की

    मंत्रीजी का भला मान कि
    इनके दिल में तेरे लिए
    थोड़ा ही सही मगर प्यार है
    और बाहर से ही सही
    ये तेरी तकदीर बदलने को तैयार हैं
    तो लड़की बोली- चमचे
    हमारी तकदीर का क्या है
    इसे तो हम अपने आप ही बदल लेंगे
    लेकिन इस दो टके के नेता का क्या भरोसा
    कुर्सी के लिए तो ये
    अपने बाप तक को बदल देंगे.
    • बसंत आर्य
    ध्यान दें -

     आपको यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि श्री ललित शर्मा जी की रचनाओं के प्रकाशन के बाद से ही चिट्ठाकारों के वोट प्राप्त होने शुरू हो गए थे, लेकिन वोटिंग लाईन अब शुरू की जा रही है यह चौबीस घंटे तक चलेगी . हालांकि  पूर्व में भेजे गए मतों  को भी इसमें शामिल कर लिया गया है इसलिए वे चिट्ठाकार अब वोट न दें जो पूर्व में दे चुके हैं . आप से विनम्र अनुरोध है कि २४ घंटे के भीतर हमें अपने सुझाव ravindra.prabhat@gmail.com पर भेजें या मोबाईल न. +919415272608 पर S.M.S. करें,  क्योंकि अंतिम निर्णय ले लेने के पश्चात किसी भी प्रकार के सुझावों पर विचार करना संभव नहीं होगा !

    अब निर्णय आपको लेना है कि तीनों रचनाकारों की रचनाओं में सर्वश्रेष्ठ रचना कौन सी है ? जारी है वसंतोत्सव , मिलते हैं एक छोटे से विराम के बाद ..!

    शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

    सर्दी का अंत मधुरिम वसंत।


    "परिकल्पना फगुनाहट सम्मान-2010 " हेतु नामित रचनाकारों क्रमश: ललित शर्मा, अनुराग शर्मा और वसंत आर्य की रचनाओं की प्रस्तुति के क्रम में हम आज प्रस्तुत कर रहे  है पिट्सवर्ग सं. रा. अमेरिका से श्री अनुराग शर्मा द्वारा प्रेषित  कविता, जो पूरी तरह प्रकृति के मानवीकरण पर आधारित है -




    वसंत














    मन की उमंग
    ज्यों जल तरंग


    कोयल की तान
    दैवी रसपान

    टेसू के रंग
    यारों के संग


    बालू पे शंख
    तितली के पंख

    फल अधकच्चे
    बादल के लच्छे


    इतराते बच्चे
    फूलों के गुच्छे

    रक्ताभ गाल
    और बिखरे बाल

    सर्दी का अंत
    मधुरिम वसंत।

    () अनुराग शर्मा

    शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

    सजना सम्मुख सजकर सजनी खेल रही है होली..

    परिकल्पना फगुनाहट सम्मान-2010  हेतु नामित रचनाकारों क्रमश:  ललित शर्मा, अनुराग शर्मा और वसंत आर्य की रचनाओं की प्रस्तुति के क्रम में हम आज प्रस्तुत है अभनपुर जिला रायपुर छत्तीसगढ़ के श्री ललित शर्मा के गीत--




    सजना सम्मुख सजकर सजनी
    खेल रही है होली..


    कंचनकाया कनक-कामिनी,
    वह गाँव की छोरी
    चन्द्रमुखी चंदा चकोर
    चंचल अल्हड-सी गोरी.
    ठुमक ठुमक कर ठिठक-ठिठक कर
     करती मस्त ठिठोली.
    सजना सम्मुख सजकर सजनी
    खेल रही है होली..


    छन-छन, छनक-छनन छन
    पायल मृदुल बजाती
    सन-सन सनक सनन सन
     यौवन-घट को भी छलकाती
    रंग रंगीले रसिया के छल से
     भीगी नव-चोली
    सजना सम्मुख सजकर सजनी
    खेल रही है होली..






    पीताम्बर ने प्रीत-पय की
     भर करके पिचकारी
    मद-मदन मतंग मीत के
     तन पर ऐसी मारी
    उर उमंग उतंग क्षितिज पर
     लग गई जैसे गोली
    सजना सम्मुख सजकर सजनी
    खेल रही है होली..
















    गज गामिनी संग गजरा के
     गुंजित सारा गाँव
    डगर-डगर पर डग-मग
    डग-मग करते उसके पांव
    सहज- सरस सुर के संग
    सजना खाये भंग की गोली
    सजना सम्मुख सजकर सजनी
    खेल रही है होली..
    () ललित शर्मा
    जारी है वसंतोत्सव , मिलते हैं एक छोटे से विराम के बाद ...!

    गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

    परिकल्पना का पहला 'फगुनाहट सम्मान' हेतु सुरक्षित नामों की घोषणा ...

    जैसा कि आप सभी को विदित है कि इस बार परिकल्पना पर जारी है वसंतोत्सव . इस आयोजन को शुरू करते हुए मैंने घोषणा की थी कि अब प्रत्येक वर्ष इस प्रकार का आयोजन किया जाएगा, साथ ही प्राप्त रचनाओं के आधार पर किसी एक चिट्ठाकार को जो चिट्ठाकार के साथ-साथ  रचनाकार भी होंगे  उन्हें फगुनाहट सम्मान से नवाजा जाएगा .आपको यह बताते हुए मुझे बेहद हर्ष की अनुभूति हो रही है कि सम्मान राशि जो पूर्व में १०००/- तय की गयी थी उसे बढ़ाकर ५००१/- किया जा रहा है और इसके साथ लखनवी अंदाज़ की मिठाईयों का प्रतिष्ठान "छप्पन भोग " की मिठाईयां भी उन्हें प्रदान की जायेंगी, ताकि सम्मान के साथ रचनाकार को फगुनाहट की भी आनंदानुभूति हो सके .

         इस सम्मान हेतु लगभग दो दर्जन रचनाएँ प्राप्त हुयी हैं, जिनमें  से तीन श्रेष्ठ रचनाओं का चयन करते हुए उन्हें फगुनाहट सम्मान के लिए नामित कर सुरक्षित किया गया है .एक श्रृंगार से ओतप्रोत गीत है तो दूसरी प्रकृति का मानवीकरण करती हुयी कविता और तीसरी अतुकांत व्यंग्य कविता .रचनाकार हैं क्रमश: अभनपुर छत्तीसगढ़ से श्री ललित शर्मा, पिट्सवर्ग अमेरिका से श्री अनुराग शर्मा और मुम्बई महाराष्ट्र से श्री वसंत आर्य ..

          अगले पोस्ट से इन तीनों रचनाकारों की कवितायें  क्रमश: प्रकाशित की जायेगी .  कविताओं के परिप्रेक्ष्य में प्राप्त आपकी टिप्पणियों तथा ईमेल से प्राप्त सुझावों और S.M.S. पर प्राप्त राय के साथ-साथ कुछ महत्वपूर्ण चिट्ठाकारों से परस्पर संवाद स्थापित करने के पश्चात ही विजेता के नाम की घोषणा की जायेगी .

          यहाँ यह भी स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि नामित सदस्यों में से केवल एक रचनाकार को ही यह सम्मान प्रदान किया जाएगा और विजेता को ही सम्मान राशि दी जायेंगी शेष दो सदस्यों को नहीं . पहले मेरे मन में यह विचार आया था कि सम्मान राशि को तीनों रचनाकारों में वितरित किया जाए , किन्तु कुछ शुभचिंतकों ने सुझाया कि ऐसा करने से फिर सम्मान की गरिमा अछुण नहीं रह पायेगी, इसलिए इस विचार को त्यागना पडा .

        एक और बात--तीनों नामित रचनाकारों में कोई महिला रचनाकार शामिल नहीं है, ऐसा इसलिए कि किसी भी महिला रचनाकार की रचनाएँ हमें प्राप्त नहीं हुयी है. हालांकि सुश्री पारुल जी ने रचना भेजने की पेशकश की थी जरूर किन्तु उनकी रचनाएँ निर्धारित अंतिम  तिथि १६ फरवरी तक प्राप्त नहीं हो सकी है .


        बहरहाल, कल से हम तीनों रचनाकारों की कविता प्रस्तुत करने जा  रहे हैं . आप से विनम्र अनुरोध है कि हमें अपने सुझाव ravindra.prabhat@gmail.com पर भेजें  या  मोबाईल न. +919415272608 पर S.M.S. करें, मगर शर्त है कि तीनों रचनाओं के प्रकाशन के २४ घंटे के भीतर, क्योंकि अंतिम निर्णय ले लेने के पश्चात किसी भी प्रकार के सुझावों पर विचार करना संभव नहीं होगा !

        जारी है वसंतोत्सव , मिलते हैं एक छोटे से विराम के बाद ...!


      

    मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

    टंगा नहीं सम्मान-पत्र सुन-सुनकरके ताना ...


    श्री पांडे आशुतोष और डा निज़ाम सिद्दीकी के साथ
    मैं चाय की चुस्कियों के बीच
    वसंतोत्सव में आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं हिन्दी और भोजपुरी के मूर्धन्य कवि पांडे आशुतोष  और अज़हर हाशमी  की एक ग़ज़ल . इस ग़ज़ल में वसंत की भी चर्चा है और आज के परिवेश की भी . पांडे आशुतोष जी मेरे सृजन के प्रारंभिक दौर में मेरे काफी करीब रहें हैं . पहली बार उनसे मेरी मुलाक़ात १९९१ में केशरिया महोत्सव में आयोजित कवि सम्मलेन के दौरान हुयी थी. मंच पर काफी करीब बैठे हुए हम दोनों का पहली बार परिचय हुआ और विचारों के आदान-प्रदान के साथ आत्मीयता बढ़ती चली गयी . उम्र का एक लंबा फासला होने के बावजूद उनका मित्रवत स्नेह मुझे उनसे पूरी भावनाओं के साथ आवद्ध कर गया .आज पांडे आशुतोष जी हमारे बीच नहीं है , किन्तु उनकी रचनाएँ हमें हमेशा उनकी उपस्थिति का एहसास कराती रहती है . आज मैं उनकी वह ग़ज़ल प्रस्तुत कर रहा हूँ जो उन्होंने मेरे साथ वाल्मीकिनगर की यात्रा के क्रम में कही थी .


    आना हो तो जल्दी दिन रहते आ जाना !
    यहाँ फिरौती वालों में शामिल अपना थाना !!


    कितनी मेरी इज्जत करते हैं वस्ती वाले-
    टंगा नहीं सम्मान-पात्र सुन-सुन करके ताना !!


    सूखे नल पर बैठा कौवा ख्वाब देखता है-
    शायद आज बना होगा मेरे घर में खाना !!


    सम्मलेन का मिला निमंत्रण, इसीलिये कहता-
    जब भी लौटो भाव बाजरे का पूछे आना !!


    जले हुए गावों को मंत्री जी क्या देखेंगे-
    पहुँच गए जल का विवाद सुलझाने हरियाणा !!


    सारंगी पर गीत सुनाकर देते हैं फेरी-
    हम बैरागी मौसम के पहने गेरुआ बाना !!


    दरवाजे पर कुवां, शिवालय, पेंड बेल का है-
    कैसे-कैसे स्वप्न पालते थे मेरे नाना !!


    आग पेट की मुझको बन्दर नाच नचाती है-
    ताली सुनकर उसी शेर को पड़ता दुहराना !!
    () पांडे आशुतोष

    अमीर खुसरो ने अपने संत गुरु ख्वाजा निजामुद्दीन को वसंत महोत्सव के बारे में बताया कि किस तरह मंदिरों में एक मौसम पूजा जाता है। ख्वाजा निजामुद्दीन ने तय किया कि इस्लाम मानने वाले भी वसंत उत्सव को मनाएं, क्योंकि मौसम का कोई मजहब नहीं होता। वह तो अपने फूलों, फलों, रंगों और खुशबू की जुबान में मोहब्बत का पैगाम देता है।अजहर हाशमी कहते हैं कि "मन में न हो खटास तो समझो वसंत है"प्रस्तुत है इस अवसर पर उनकी एक प्यारी सी ग़ज़ल -

    रिश्तों में हो मिठास तो समझो वसंत है
    मन में न हो खटास तो समझो वसंत है।


    आँतों में किसी के भी न हो भूख से ऐंठन
    रोटी हो सबके पास तो समझो वसंत है।


    दहशत से रहीं मौन जो किलकारियाँ उनके
    होंठों पे हो सुहास तो समझो वसंत है।


    खुशहाली न सीमित रहे कुछ खास घरों तक
    जन-जन का हो विकास तो समझो वसंत है।


    सब पेड़-पौधे अस्ल में वन का लिबास हैं
    छीनों न ये लिबास तो समझो वसंत है।
    ()अजहर हाशमी
    जारी है वसंतोत्सव , मिलते हैं एक छोटे से विराम के बाद ...!

    सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

    कुछ पल का ही शेष है, वासंती त्यौहार

    वसंतोत्सव में हम आज लेकर आये हैं श्री पाल भसीन के दोहे !गुड़गांव के जाने माने साहित्यकार पाल भसीन के लिए लेखन अभिव्यक्ति का माध्यम है। वह लेखन को बेचने में विश्वास नहीं रखते। वह कहते हैं कि उन्होंने अपने सुकून तथा शौक के लिए लेखन का काम शुरू किया था। उनके समकालीन दोहों की रचना के मूल में कवि की जीवन के प्रति गंभीरता, जीवन-परिवेश-सम्बद्धता, व्यापकता-भाव तथा कलात्मक सौंदर्य-दृष्टि को देखा जा सकता है।  जीवन के द्वंद्व,  मानसिक उथल-पुथल, परिवेश का प्रभाव,  सामाजिक, सांस्कृतिक तथा मूल्यपरक चिंताओं, राजनैतिक दुरावस्था, नैतिक मूल्यों के प्रति  उदासीनता, आस्था तथा जीवन-विश्वास के संकट, संवेदनशीलता के क्षरण और जीवनशैली तथा मनुष्य की मानसिकता पर पडने वाले प्रभाव की समग्रता की परख स्पष्ट परिलक्षित होती है पाल भसीन के दोहे में . आईये उनके कुछ वासंती दोहे पर नज़र डालते हैं -

    और सुमन कुछ बीन लिए, और निखार सिंगार !
    कुछ पल का ही शेष है,           वासंती त्यौहार !!



    अधरों पर तो वर्जना, चितवन में स्वीकार!
    तालमेल का खेल है, यह अनबूझा प्यार !!



    रूप-गंध बिखरा दिए, मुझको देख उदास !
    रजनीगन्धा ने किये, संभव सभी प्रयास !!



    सुबह गुलाबी दोपहर,       सूर्यमुखी सी शाम !
    हुयी कमलिनी रात है, चम्पक सी अभिराम !!



    रात धुली सी चांदनी, भोर सुनहरी धुप !
    हो जाए यह जिन्दगी, इनके ही अनुरूप !!



    कही हवा ने कान में,     अनहोनी कुछ बात!
    उस कदली के गाछ के, तभी लरजते पात !!



    'अजी छोडिये ज्ञात है,        क्यों उम्दा अनुराग !'
    कहा मृगी ने और फिर, गयी छिटक कर भाग !!



    दोहे 'पाल भसीन' के, है विदग्ध उच्छवास !
    और बढाते बेकली,       और जगाते प्यास !!
    () () ()
     
    अपनी बात-
    इस बार वसंत का कुछ अलग रूप देखने को मिला है .कोहरे के चादर में लिपटा हुआ शीत के आलिंगन में कई दिनों तक आवद्ध रहा वसंत . मौसम का गेरुआ बाना पहने वसंत कभी सारंगी बजाता दिखाई दिया तो कभी सुनहरी धूप  में कोहरे को चूमता हुआ . इस बार के  अनोखे दृश्य को मैंने भी छंद में उतारने का प्रयास किया है जो कुछ इस तरह है -


    कंपकपाती शीत संग मधुमास, अच्छा लगा !
    सुबह के चाँद का एहसास ,    अच्छा लगा !!


    मन-प्राण-कंठों में उतरकर व्यंजनायें-
    स्वर को दे गयी सांस,     अच्छा लगा !!


    स्पर्श लेकर पोर भर का खो गयी है -
    सर्द कोहरे के बिछौने घास,  अच्छा लगा !!


    हो गयी  गलबाहियां भ्रमरों का पीले पुष्प से-
    साथ में था  दिक् और कंपास, अच्छा लगा !!


    बह गयी  है भावनाएं मृदु-सुरभि-समीर में-
    मुठ्ठियों में उनके है आकाश, अच्छा लगा !!
    () रवीन्द्र प्रभात

    शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

    ओ वासंती पवन हमारे घर आना

    ...वसंतोत्सव में हम आज लेकर आये हैं कुँवर बेचैन  और नरेन्द्र शर्मा के गीत और रामेश्वर कंबोज "हिमांशु" के दोहे ! कुँअर बेचैन ग़ज़ल लिखने वालों में ताज़े और सजग रचनाकारों में से हैं। उन्होंने आधुनिक ग़ज़ल को समकालीन जामा पहनाते हुए आम आदमी के दैनिक जीवन से जोड़ा है। यही कारण है कि वे नीरज के बाद मंच पर सराहे जाने वाले कवियों में अग्रगण्य हैं। उन्होंने गीतों में भी इसी परंपरा को कायम रखा है।वहीं नरेन्द्र शर्मा के गीतों ने हिन्दी को समृद्ध करने में अप्रतीम भूमिका निभायी है । रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' समकालीन हिन्दी कविता के एक ऐसे हस्ताक्षर हैं जिन्होंने अतुकांत कविता के इस दौर में दोहों-ग़ज़लों और गीतों के माध्यम से अपने होने का एहसास कराया है । आईये इन गीतों और  दोहों  में ढूँढते हैं वसंत को ...!













    !! ओ वासंती पवन हमारे घर आना !!
    • कुँवर बेचैन
    बहुत दिनों के बाद खिड़कियाँ खोली हैं
    ओ वासंती पवन हमारे घर आना!




    जड़े हुए थे ताले सारे कमरों में
    धूल भरे थे आले सारे कमरों में
    उलझन और तनावों के रेशों वाले
    पुरे हुए थे जले सारे कमरों में
    बहुत दिनों के बाद साँकलें डोली हैं
    ओ वासंती पवन हमारे घर आना!




    एक थकन-सी थी नव भाव तरंगों में
    मौन  उदासी थी वाचाल उमंगों में
    लेकिन आज समर्पण की भाषा वाले
    मोहक-मोहक, प्यारे-प्यारे रंगों में
    बहुत दिनों के बाद ख़ुशबुएँ घोली हैं
    ओ वासंती पवन हमारे घर आना!




    पतझर ही पतझर था मन के मधुबन में
    गहरा सन्नाटा-सा था अंतर्मन में
    लेकिन अब गीतों की स्वच्छ मुंडेरी पर
    चिंतन की छत पर, भावों के आँगन में
    बहुत दिनों के बाद चिरैया बोली हैं
    ओ वासंती पवन हमारे घर आना!
    () () ()




    वासंती दोहे / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु


    वसन्त द्वारे है खडा़, मधुर मधुर मुस्कान ।
    साँसों में सौरभ घुला, जग भर से अनजान ।।




    चिहुँक रही सुनसान में, सुधियों की हर डाल ।
    भूल न पाया आज तक, अधर छुअन वह भाल ।।




    जगा चाँद है देर तक, आज नदी के कूल ।
    लगता फिर से गड़ गया उर में तीखा शूल ।।




    मौसम बना बहेलिया, जीना- मरना खेल ।
    घायल पाखी हो गए, ऐसी लगी गुलेल ।।




    अँजुरी खाली रह गई, बिखर गये सब फूल ।
    उनके बिन मधुमास में, उपवन लगते शूल।।
    () () ()


    वासन्ती गीत / नरेन्द्र शर्मा

    मैं गीत लिखूँ, तुम गाओ!
    मेरे बौरे रसालवन-से मन में कोयल बन जाओ!

    जो दबी दबी इच्छाएँ थीं, उमड़ी हैं बन पल्लव-लाली,
    भावों से भरे हृदय-सी ही काँपी-थिरकी डाली डाली!
    स्वर देकर मौन मूक मुझको, मन में संगीत बसाओ!

    मंजरित आम्र की मधुर गंध में उठी झूमती अभिलाषा,
    पल्लव के कोमल रंगों में है झूल रही मेरी आशा;
    क्या क्या मेरे मन-कानन में तुम गा गा कर बतलाओ!

    मेरे रोमों से गीत खिलें, किरणें फूटें जैसे रवि से,
    रसभरे पके अँगूरों-से हों मधुर शब्द मेरे कवि के,
    जीवन का खारा जल मधु हो, जब तुम अधरों पर लाओ!

    पतझर-वसन्त, पतझर-वसन्त--इस क्रम का होगा कहीं अंत?
    हैं इने-गिने जीवन के दिन, है जग-जीवन का क्रम अनंत!
    अनगाए रह जाएँगे गाने, आओ, मिल कर गाओ!
    () () ()

    सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

    पीली पडी धरा की देह, फागुन इतने रंग न घोल!

    फगुनाहट की आहट मात्र से ही प्रकृति सुन्दरी अपने अतुल और समस्त वैभव संजोकर मानव जीवन को सर्वाधिक आनन्द, उल्लास एवं सरसता प्रदान करने एवं प्राणी मात्र को समस्त दु:खों से उन्मुक्त कर नव जीवन की आनंदानुभूति देने के लिए अपने शांत, स्निग्ध , स्वक्ष शीतल , मंद, सुगंध एवं विविध बयार के साथ स्वागतार्थ खडी है ! देखिये उस वसंत का स्वागत कुछ अलग अंदाज में कैसे कर रहे हैं श्री गजानन सिंह नम्र , श्री आनन्द शर्मा जी तो फागुन से इतने रंग न घोलने का निवेदन कर राहे हैं वहीं श्री आनन्द विल्थारे फगुनाहट की मस्ती को कुछ अलग अंदाज में वयां कर रहे हैं ...वसंतोत्सव में हम आज लेकर आये हैं गजानन सिंह 'नम्र', आनन्द विल्थरे और आनंद शर्मा की कविता ! आईये उनकी कविताओं में ढूँढते हैं वसंत को ...!



    !!मस्ती !!

    () () आनन्द विल्थरे

    वसंत के
    विस्तरे पर लेटा फागुन
    मेरे भी दिल में
    आग भड़का रहा है
    काश, हम उसे
    समझा पाते
    कि गीली बारूद के पीछे
    मिहनत  करने से कोई
    लाभ नहीं है,
    लेकिन वह तो
    अपनी ही धुन में
    भर-भर कटोरे
    मस्ती छलका रहा है !
    ()()()




    !! स्वागत वसंत !!


    () गजानन सिंह 'नम्र'
     
    शीतल समीर में, प्रकृति के चीर में ,
    धरती शरीर में,  विचारा वसंत है !


    पल्लव पराग में, पुष्प अनुराग में,
    मोहक से बाग़ में, उभरा वसंत है !


    आम्र के श्रृंगार में, नीर के आगार में,
    तारों की बरात में, उजाला वसंत है !


    उषा की ललाई में, रवि अरुणाई में ,
    शशि अंगराई में, निखारा वसंत है !


    जीवन संगीत में, मानव की प्रीत में
    भ्रमरों के गीत में, बिखरा वसंत है!


    नवल आकाश में, कोमल सी घास में,
    मन के विशवास में,  लहरा वसंत है !


    शोभा के स्वरुप में, किर्निली धुप में,
    'नम्र' जग अनूप में,  उतरा वसंत है!


    !! एक गीत फागुनी गंध का !!

    () आनंद शर्मा

    पीली पडी धरा की देह
    फागुन इतने रंग न घोल!


    जमीन बर्फ कुछ तो पिघला दे
    माथा ठंडा है, सहला दे,
    होते दीवारों के कान-
    फागुन हौले-हौले बोल!


    पीली पडी धरा की देह
    फागुन इतने रंग न घोल!


    तू अग्रज रसवान क्षणों का
    मैं अतीत का बोझिल झोंका ,
    रख दरवाजे बंद और-
    वह खिड़की भी मत खोल !


    पीली पडी धरा की देह
    फागुन इतने रंग न घोल!



    ()()()
    परिकल्पना पर जारी है " बसंतोत्सव " .... बहेगी बसंत की मादकता के साथ-साथ फगुनाहट की बयार होली तक लगातार .... और थमेगी होली की मस्ती के साथ...... इसके अंतर्गत हिंदी के कालजयी साहित्यकारों के साथ- साथ आज के कुछ महत्वपूर्ण कवियों की वसंत पर आधारित कवितायें प्रस्तुत की जा रही हैं...... इसमें कवितायें भी है , व्यंग्य भी , ग़ज़ल भी , दोहे भी और वसंत की मादकता से सराबोर गीत भी . इस श्रृंखला में हम देंगे आपकी भी स्तरीय रचनाओं को सम्मान और प्रकाशित करेंगे परिकल्पना पर ...शर्त है कि आपकी रचना बड़ी न हो !


    तो देर किस बात की आप अपनी वसंत की मादकता से परिपूर्ण एक छोटी रचना चाहे वह व्यंग्य हो , कविता हो , गीत हो अथवा ग़ज़ल..... यूनिकोड में टाईप कर भेज दीजिये निम्न लिखित ई-मेल आई डी पर - mailto:ravindra.prabhat@gmail.com

    गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

    आज वसंत की रात, गमन की बात न करना !

    वसंतोत्सव में हम आज लेकर आयें हैं बहुचर्चित गीतकार श्री गोपाल दास "नीरज" जी का एक वसंत गीत "आज वसंत की रात गमन की बात न करना"। नीरज जी से हिन्दी संसार अच्छी तरह परिचित है । जन समाज की दृष्टि में वह मानव प्रेम के अन्यतम गायक हैं, दिनकर जी के कथनानुसार  हिन्दी की वीणा है' और अन्य भाषा भाषियों के विचार से  एक 'सन्त कवि'।

    वर्तमान समय में वे हिंदी के सर्वाधिक लोकप्रिय और लाडले कवि है और बच्चन जी के बाद कवियों की नई पीढ़ी को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले कवियों में से एक । आज अनेक गीतकारों के कंठ में उन्हीं की अनुगूँज है। पूरे सम्मान के साथ आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं उनका एक सम्मोहक गीत-



    आज वसंत की रात,
    गमन की बात न करना !


    धूल  बिछाए फूल-बिछौना,
    बगिया पहने चांदी-सोना,
    कलियाँ फेंके जादू-टोना,
    महक उठे सब पात,
    हवन  की बात न करना !


    आज वसंत की रात,
    गमन की बात न करना !




    बौराई अमवा की डाली
    गदराई गेहूं की बाली,
    सरसों  खडी बजाये ताली,
    झूम रहे जल-जात,
    शयन की बात न करना !


    आज वसंत की रात,
    गमन की बात न करना !


    खिड़की खोल चन्द्रमा झांके,
    चुनरी खींच सितारे टाँके,
    मना करूँ  तो शोर मचाके,
    कोयलिया अनखात,
    गहन की बात न करना !

    आज वसंत की रात,
    गमन की बात न करना !

    निंदिया बैरिन सुधि बिसराई
    सेज निगोड़ी करे ढिठाई
    ताना मारे सौत जुन्हाई
    रह-रह प्राण पिरात,
    चुभन की बात न करना !

    आज वसंत की रात,
    गमन की बात न करना !


    यह पीली चूनर, यह चादर
    यह सुन्दर छवि यह रस-गागर
    जनम-मरण की यह रज-कांवर
    सब भू की सौगात,
    गगन की बात न करना !
     
    आज वसंत की रात,
    गमन की बात न करना !

    () गोपाल दास नीरज
    जारी है वसंतोत्सव , मिलते हैं एक छोटे से विराम के बाद ...!


    मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

    बड़ा बाजीगर है वसंत !

    वसंतोत्सव में हम आज लेकर आयें हैं डा राम विलास शर्मा की कविता ।  वैसे कवि के रूप में कम शर्मा जी की ख्याति हिन्दी समालोचक के रूप में अधिक रही है ।  इन्होने  "निराला की साहित्य साधना"तीन खंडो में लिखकर न केवल अपनी प्रखर आलोचनात्मक प्रतिभा का परिचय दिया,बल्कि यह सिद्ध कर दिया कि कविता को समझने के लिए इनके  पास एक कवि का ह्रदय भी है।  प्रगतिवादी समीक्षा पद्धति को हिन्दी में सम्मान दिलाने वाले लेखको में डॉ.रामविलास शर्मा का नाम लिया जाता है। आईये  आधुनिक हिन्दी साहित्य में सुप्रसिद्ध आलोचक ,निबंधकार ,विचारक एवं कवि डॉ.रामविलास शर्मा की कविता वसंत सम्मोहन पर नज़र डालते हैं -











    !! वसंत सम्मोहन !!

    बड़ा बाजीगर है वसंत !

    देखते ही जिसे
    बौरा उठती है
    बेचारी भोली-भाली अमराई
    गदरा जाती है
    टेशू  की ईकहरी नाजुक टहनियां
    झूम उठती है
    गेहूं की दूध भरी बालियाँ
    खिलखिला उठती हैं
    आँचल लहराती अल्हड सरसों
    और उलट देती है
    आँखों तक झूलता घूंघट
    अचानक कचनार की कलियाँ
    घुलने लगती है
    कोयल के कंठ में -
    जानलेवा मिठास
    शुरू हो जाती है हरकत
    तितलियों के परों में
    और भंवरों के स्वर में
    बीन की मादक झंकार
    यहाँ तक कि
    बूढ़े सेमल की
    झुर्रियों से ढकी रंगों में भी

    तेज हो जाती है रक्त की रफ़्तार
    और/ खिल उठते  हैं
    अनुराग रंजित सुर्ख फूल
    देखते-देखते

    वसंत
    महज चितवन से
    एक ही झटके में उखाड़ देता है
    बाघिन सी खूंखार सर्दी के
    नुकीले, तीखे नख दन्त


    बड़ा बाजीगर है वसंत !

    () राम विलास शर्मा

    जारी है वसंतोत्सव , मिलते हैं एक छोटे से विराम के बाद ...!
     
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