बुधवार, 31 दिसंबर 2008

वर्ष-2008 : हिन्दी चिट्ठा हलचल (भाग- 2 )

चलिए अब मुंबई हमलों से उबरकर आगे बढ़ते हैं और नजर दौडाते हैं भारतीय संस्कृति की आत्मा यानी लोकरंग की तरफ़ । कहा गया है,कि लोकरंग भारतीय संस्कृति की आत्मा है , जिससे मिली है हमारे देश को वैश्विक सांस्कृतिक पहचान । ऐसा ही एक ब्लॉग है लोकरंग जो पूरे वर्ष तक लगातार अपनी महान विरासत को बचाता - संभालता रहा । यह ब्लॉग लोकरंग की एक ऐसी छोटी सी दुनिया से हमें परिचय कराता रहा, जिसे जानने-परखने के बाद यकीं मानिए मेरे होठों से फूट पड़े ये शब्द, कि " वाह! क्या ब्लॉग है .......!"

इस ब्लॉग में जो कुछ भी प्रस्तुत किया गया , वह हमारी लोक संस्कृति को आयामित कराने के लिए काफी है । चाहे झारखंड और पश्चिम बंगाल के बौर्डर से लगाने वाले जिला दुमका के मलूटी गाँव की चर्चा रही हो अथवा उडीसा के आदिवासी गाँवों की या फ़िर उत्तर भारत के ख़ास प्रचलन डोमकछ की ....सभी कुछ बेहद उम्दा दिखा इस ब्लॉग में ।

कहा गया है, कि जीवन एक नाट्य मंच है और हम सभी उसके पात्र । इसलिए जीवन के प्रत्येक पहलूओं का मजा लेना हीं जीवन की सार्थकता है । इन्ही सब बातों को दर्शाता हुआ एक चिट्ठा है- कुछ अलग सा । कहने का अभिप्राय यह है, कि लोकरंग का गंभीर विश्लेषण हो यह जरूरी नही , मजा भी लेना चाहिए ।

रायपुर के इस ब्लोगर की नज़रों से जब आप दुनिया को देखने का प्रयास करेंगे , तो यह कहने पर मजबूर हो जायेंगे कि- " सचमुच मजा ही मजा है इस ब्लोगर की प्रस्तुति में ....!"

एक पोस्ट के दौरान ब्लोगर कहता है, कि - " अगर वाल्मीकि युग में पशु संरक्षण बोर्ड होता तो क्या राम अपनी सेना में बानरों को रख पाते, युद्ध लड़ पाते ?" और भी बहुत कुछ है इस ब्लॉग में। सचमुच इस ब्लॉग में लोकरंग है मगर श्रद्धा, मजे और जानकारियों के साथ कुछ अलग सा ....!

मेरी कविता की एक पंक्ति है - " शब्द-शब्द अनमोल परिंदे, सुंदर बोली बोल परिंदे...!"शब्द ब्रह्म है , शब्द सिन्धु अथाह, शब्द नही तो जीवन नही .......आईये शब्द के एक ऐसे ही सर्जक हैं अजीत बड नेकर , जिनका ब्लॉग है - शब्दों का सफर । अजीत कहते हैं कि- "शब्द की व्युत्पति को लेकर भाषा विज्ञानियों का नजरिया अलग-अलग होता है । मैं भाषा विज्ञानी नही हूँ , लेकिन जब उत्पति की तलाश में निकालें तो शब्दों का एक दिलचस्प सफर नज़र आता है । "अजीत की विनम्रता ही उनकी विशेषता है ।

शब्दों का सफर की प्रस्तुति देखकर यह महसूस होता है की अजीत के पास शब्द है और इसी शब्द के माध्यम से वह दुनिया को देखने का विनम्र प्रयास करते हैं . यही प्रयास उनके ब्लॉग को गरिमा प्रदान करता है . सचमुच यह ब्लॉग नही शब्दों का अद्भुत संग्राहालय है, असाधारण प्रभामंडल है इसका और इसमें गजब का सम्मोहन भी है ....! इस ब्लॉग को मेरी ढेरों शुभकामनाएं !
अभी जारी है....../

मंगलवार, 30 दिसंबर 2008

वर्ष-2008 : हिन्दी चिट्ठा हलचल ( भाग - 1 )


वर्ष -2००८ में हिन्दी चिट्ठा जगत के लिए सबसे बड़ी बात यह रही कि इस दौरान अनेक सार्थक और विषयपरक ब्लॉग की शाब्दिक ताकत का अंदाजा हुआ । अनेक ब्लोगर ऐसे थे जिन्होनें अपने चंदीली मीनार से बाहर निकलकर जीवन के कर्कश उद्घोष को महत्व दिया लेखन के दौरान , तो कुछ ने भावनाओं के प्रवाह को । कुछ ब्लोगर की स्थिति तो भावना के उस झूलते बट बृक्ष के समान रही जिसकी जड़ें ठोस जमीन में होने के बजाय अतिशय भावुकता के धरातल पर टिकी हुयी नजर आयी । खैर इस विश्लेषण में मैं ब्लॉग या ब्लोगर की चर्चा नही कर रहा , अपितु वर्ष-२००८ की अपनी कुछ पसंदीदा पोस्ट की चर्चा करने जा रहा हूँ ।

इस वर्ष हमारे देश के लिए जो सबसे त्रासद घटना के रूप में दृष्टिगोचर हुआ , वह था मुंबई पर हुयी आतंकी हमला । इस हमला ने पूरे विश्व बिरादरी को झकझोर कर रख दिया एकवारगी । भला हमारे ब्लोगर भाई इससे अछूते कैसे रह सकते थे । कई चिट्ठाकारों के द्वारा जहाँ इस बीभत्स घटना की घोर निंदा की गयी , वहीं पाकिस्तान को इसके लिए खरी-खोटी भी सुनाई गयी ।
कनाडा के भारतीय ब्लोगर समीर लाल जी ने उड़न तस्तरी में अपने कविताई अंदाज़ में जहाँ कुछ इस तरह वयां किया " समझ नहीं पा रहा हूँ कि इस वक्त मैं शोक व्यक्त करुँ या शहीदों को सलाम करुँ या खुद पर ही इल्जाम धरुँ....!" वहीं अनंत शब्दयोग के एक पोस्ट में दीपक भारत दीप पाकिस्तान की पोल खोलते हुए कहते हैं , कि-"पाकिस्तान का पूरा प्रशासन तंत्र अपराधियों के सहारे पर टिका है। वहां की सेना और खुफिया अधिकारियों के साथ वहां के अमीरों को दुनियां भर के आतंकियों से आर्थिक फायदे होते हैं। एक तरह से वह उनके माईबाप हैं। यही कारण है कि भारत ने तो 20 आतंकी सौंपने के लिये सात दिन का समय दिया था पर उन्होंने एक दिन में ही कह दिया कि वह उनको नहीं सौंपेंगे। "सारथी पर अपने पोस्ट के माध्यम से जे सी फ्लिप शास्त्री जी कहते हैं , कि- "आज राष्ट्रीय स्तर पर शोक मनाने की जरूरत है.
बम्बई में जो कुछ हुआ वह भारतमां के हर बच्चे के लिये व्यथा की बात है!राष्ट्रद्रोहियों को चुन चुन कर खतम करने का समय आ गया है!!शायद एक बार और कुछ क्रांतिकारियों को जन्म लेना पडेगा !!!"

वहीं ज्ञान दत्त पाण्डेय का मानसिक हलचल में श्रीमती रीता पाण्डेय जी कहती हैं की "टेलीवीजन के सामने बैठी थी। चैनल वाले बता रहे थे कि लोगों की भीड़ सड़कों पर उमड़ आई है। लोग गुस्से में हैं। लोग मोमबत्तियां जला रहे हैं। चैनल वाले उनसे कुछ न कुछ पूछ रहे थे। उनसे एक सवाल मुझे भी पूछने का मन हुआ – भैया तुम लोगों में से कितने लोग घर से निकल कर घायलों का हालचाल पूछने को गये थे? "
कविताई अंदाज़ में अपनी भावनाओं को कुछ कठोर शब्दों में वयां किया है कवि योगेन्द्र मौदगिल ने कुछ इस प्रकार "बच्चा -बच्चा आज जगह ले अपने स्वाभिमान को , उठो हिंद के बियर सपूतों , पहचानो पहचान को,हिंसा
से ही ध्वस्त करो , हिंसा की इस दूकान को , रणचंडी की भेंट चढ़ा दो पापी पाकिस्तान को ...!" वहीं निनाद गाथा में अभिनव कहते हैं , कि "किसको बुरा कहें हम आख़िर किसको भला कहेंगे,जितनी भी पीड़ा दोगे तुम सब चुपचाप सहेंगे,डर जायेंगे दो दिन को बस दो दिन घबरायेंगे,अपना केवल यही ठिकाना हम तो यहीं रहेंगे,तुम कश्मीर चाहते हो तो ले लो मेरे भाई,नाम राम का तुम्हें अवध में देगा नहीं दिखाई....!"हिन्दी ब्लोगिंग की देन में एक पोस्ट के दौरान रचना कहती है, कि-"हर मरने वालाकिसी न किसी करकुछ न कुछ जरुर थाइस देश कर था या उस देश का थापर आम इंसान थाशीश उसके लिये भी झुकाओयाद उसको भी करोहादसा और घटनामत उसकी मौत को बनाओ...!"विचार-मंथन—एक नये युग का शंखनाद में सौरभ कहते हैं , कि-"कुरुक्षेत्र की रणभूमि के बीच खड़े होकर तो सिर्फ अर्जुन ने शोक किया था, पर आज देश के करोड़ों लोगों की तरह मैं भी मैदान के बीचो-बीच अकेला खड़ा हुआ हूँ—नितांत अकेला, शोकाकुल और ग़ुस्से से भरपूर। मेरे परिवार के 130 से ज्यादा सदस्य आज नहीं रहे. जी हाँ, ठीक सुना आपने, मेरे परिवार के सदस्य नहीं रहे. मौत हुई है मेरे घर में और मेरे परिवार को मारने वाले मेरे घर के सामने है, हँसते हुए, ठहाके लगाते हुए और अपनी कामयाबी का जश्न बनाते हुए. और मैं.... !" एक आम आदमी यानी ऐ कॉमन मन ने बहुत ही सुंदर प्रश्न को उठाया है, कि "कोई न कोई तो सांठ-गाँठ है इन मुस्लिम नेताओं, धार्मिक गुरुओं तथा धर्मनिरपेक्षियों (सूडो) के बीच....!"मेरी ख़बर में ॐ प्रकाश अगरवाल लोकते हैं , कि "हमारे पढ़े-लिखे वोटर पप्पुओं के कारण फटीचर किस्म के नेता चुने जा रहे हैं .....!"
कुछ अनकही में श्रुति कहती हैं , कि - "कहाँ है राज ठाकरे । मुंबई जल रही है , जाहिर है नेताओं की कमीज पर अब दाग काफी गहरे हो चुके हैं । " वहीं इयता पर कुछ अलग स्वर देखने को मिलता है , मगर सन्दर्भ है मुंबई का हमला हीं, कहते हैं कि "इस दौरान शराब की बिक्री में ७० फीसदी की कमी आयी । मयखाने खाली पड़े थे और शराबी डर के भाग लिए थे । नरीमन पॉइंट पर दफ्तर बंद है । किनारे पर टकराती सागर की लहरों के पास प्रेमी जोड़े नही हैं । सागर का किनारा वीरान हो गया है । बेस्ट की बसों में कोई भीड़ नही है ...!"
इस सब से कुछ अलग हटकर दिल एक पुराना सा म्यूज़ियम है पर मुंबई धमाकों में शहीद हुए जवानों की तसवीरें पेश की गयी , जो अपने आप में अनूठा था । वहीं हिन्दी ब्लॉग टिप्स पर ताज होटल का विडियो लगाया गया है, जहाँ ताज की पुरानी तसवीरें देखी जा सकती है ।
यहाँ तक कि मुंबई हमलों से संवंधित पोस्ट के माध्यम से वर्ष के आखरी चरणों में एक महिला ब्लोगर माला के द्वारा विषय परक ब्लॉग लाया गया , जिसका नाम है मेरा भारत महान जसके पहले पोस्ट में माला कहती है कि -"हमारी व्यापक प्रगति का आधार स्तम्भ है हमारी मुंबई । हमेशा से ही हमारी प्रगतिहमारे पड़ोसियों के लिए ईर्ष्या का विषय रहा है । उन्होंने सोचा क्यों न इनकी आर्थिक स्थिति को कमजोड कर दिया जाए , मगर पूरे विश्व में हमारी ताकत की एक अलग पहचान है , क्योंकि हमारा भारत महान है । "
...............अभी जारी है ...........

रविवार, 21 दिसंबर 2008

आलोचनाओं को सकारात्मक भाव से लेना चाहिए !

कोई करे न करे हम जरूर देश के टुकङे कर देंगे यह पोस्ट मिहिरभोज ने लोखा है तत्त्व चर्चा में -
ये एक ब्लोग पोस्ट है...संभवताया लिखने वाली भारतीय भी है...और टिप्पणी करने वाले भी॥पर इन भले लोगों को खंडित भारत का ये नक्शा दिखाई नहीं दैता है....कितने देशभक्त हैं हम...कोई करे न करे हम जरूर देश के टुकङे कर देंगे ।
निश्चित रूप से उनकी चिंता जायज है , किसी विचारक ने कहा है , कि - जो आलोचनाओं से डर जाता है उसकी योग्यता मर जाती है , इसलिए आलोचनाओं को हमेशा सकारात्मक भाव से लेना चाहिए । मेरा भारत महान वैसे इस चिट्ठाजगत का एक नया चिट्ठा है , किंतु है अत्यन्त सुंदर और सारगर्भित । माला जी के विचार पूर्णत: राष्ट्र गौरव को आयामित करता हुआ है , प्रस्तुतीकरण भी वेहतर है । इसलिए ऐसी बातें करके उनके ब्लॉग की गरिमा को कम न आँका जाना चाहिए । मिहिरभोज ने तो अपनी चिंता से अवगत कराया और ऐसी चिंता हर भारतीयों के भीतर होनी चाहिए, मगर श्री संजय बेगानी जैसे एक वरिष्ठ चिट्ठाकार द्वारा मजाकिया लहजे में दी गयी टिपण्णी एक नए ब्लोगर को विचलित कर सकता है, जिसमें उन्होंने कहा है-"मेरा भारत महान और उसका खण्डित नक्शा लगाने वाले भी। " ऐसी टिप्पणियों से हमें बचने की कोशिश करनी चाहिए , क्योंकि चिट्ठाजगत को ऊँचाई पर ले जाना है तो सात्विक विचारों का आदान प्रदान ज्यादा कारगर सिद्ध हो सकता है।

मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

आतंक पढाये मुल्ला , चले कत्ल की राह !



आतंक पढाये मुल्ला , चले कत्ल की राह ।

जेहादी के नाम पे , पाक हुआ गुमराह । ।

बारूदों के ढेर पे , बैठा पाकिस्तान ।

खुदा करे ऐसा न हो, मिट जाए पहचान । ।

पूरी दुनिया कर रही, थू-थू आतंकवाद ।

पर कैसा यह पाक है, बना हुआ अपवाद । ।

पाक से चलकर आयी , कैसी है यह धुंध।

लाल शहर को कर गया ,चहरे कर गये कुंद । ।

तन उजला मन गंदा है , नेता नमकहराम ।

संसद में मधुमास करे , बिन गुठली बिन आम । ।

() रवीन्द्र प्रभात

बुधवार, 10 दिसंबर 2008

कौन बचाएगा यहाँ पांचाली की लाज ?


कान्हा - कान्हा ढूँढती , ताक- झाँक के आज ।
कौन बचाएगा यहाँ, पांचाली की लाज । ।
गिद्ध - गोमायु- बाज में, राम-नाम की होड़ ।
मरघट-मरघट घूमते, तोते आदमखोर । ।
कातिल - कातिल ढूंढ के , मुद्दई करे गुहार ।
मोल-तोल में व्यस्त हैं, मुंसिफ औ सरकार। ।
राग- भैरवी छेड़ गए, कैसा बे - आवाज़ ।
उछल-कूद कर मंच मिला ,बन बैठे कविराज । ।
घर- घर बांचे शायरी , शायर-संत - फ़कीर ।
भारत देश महान है , सब तुलसी सब मीर । ।
राजनीति के आंगने , परेशान भगवान ।
नेत- धरम सब छोड़ के , पंडित भयो महान । ।
हंस-हँस कहती धूप से , परबत-पीर-प्रमाद ।
बहकी - बहकी आंच दे , पिघला दे अवसाद । ।
यौवन की दहलीज पे, गणिका बांचे काम ।
बगूला- गिद्ध- गोमायु सब, साथ बिताये शाम । ।
मह- मह करती चांदनी , सूख गए जब पात ।
रात नुमाईश कर गयी , कैसे हँसे प्रभात । ।
नदी पियासी देख के , ना बरसे अब मेह ।
धड़कन की अनुगूंज से , बादल बना विदेह । ।
() रवीन्द्र प्रभात

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008

उसे नही मालूम कि क्या है आतंकवाद ?

११/२६ : एक शब्द चित्र

बारूदों के बीच जलते हुए अपने परिवार को
चीखते हुए अपने पिता/ कराहती हुयी अपनी माँ को
जब देखा होगा वह मासूम मोशे
तो सोचा होगा , कि कल जब बड़ा होगा वह
उसे भी झोंक दिया जायेगा आग में
औपचारिकताएं पूरी करने के लिए आतंक वाद की ...!

तब उसके भी लब्ज दब कर रह जायेंगे
और आँखे एक टक निहारती रहेंगी ममता को
सैनिकों के आने तक...!

उसे नही मालूम कि क्या है आतंक वाद

उसे केवल इतना पता है कि एक माँ थी
और एक पिता था उसका
जिसकी जरूरत पड़ती थी हर पल उसे
और उन्ही जरूरतों के बीच
वह सीख रहा था जीवन का ककहारा ....!

जीवन के फूलों में खुशबू का वास अगर नही कर सकते , तो -
किसी नौनिहाल की भावनाओं के साथ खेलना
किसी निर्दोष का कत्ल करना , कैसी मानवता है ?
ये कैसा आतंक है , कैसी मानसिकता है ?

कहीं ऐसा न हो , कि घायल स्वाभिमान और अपमान से -
उपजा आक्रोश लील जाए पूरी दुनिया को एकबारगी
फ़िर न आप होंगे और न हम
न यह नन्हा मोशे .....और न यह आतंकवाद ....!

गुरुवार, 27 नवंबर 2008

विचारों पर कार्यों का प्रभुत्व ज्यादा प्रासंगिक !

कहा गया है कि कार्यों पर विचारों का प्रभुत्व प्रासंगिक नही होता , प्रासंगिक होता है कि विचारों पर कार्यों का प्रभुत्व बनाया जाए । किसी भी कार्य की सफलता में परस्पर विचारों के आदान-प्रदान का विशेष महत्त्व होता है । पिछले वर्ष -२००७ में "परिकल्पना" पर "हिन्दी चिट्ठाकार विश्लेषण " की काव्यात्मक प्रस्तुति की गयी थी , कतपय लोगों को वह बेहद पसंद आयी । इसबार भी मेरी ईच्छा हुयी कि नए- पुराने सुंदर और सार्थक ब्लॉग का चुनाव किया जाए और उसकी प्रस्तुति कुछ नए अंदाज़ में की जाए । उसके लिए जनवरी माह के प्रथम सप्ताह का समय सुनिश्चित हुआ । आपके सुझाव आमंत्रित किए गए और कल के पोस्ट में केवल उल्लेख किया गया न कि विश्लेषण किया गया ।
कल के पोस्ट " आपके पसंदीदा २५ चिट्ठे " पर तमाम लोगों की सकारात्मक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं । उद्देश्य था कि आपको इस चर्चा-परिचर्चा में शामिल किया जाए , ताकिअगले माह किया जाने वाला विश्लेषण आसान हो सके ।
इसी क्रम मेंकुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ की गयी है , शुरुआत Suresh Chiplunkar जी ने कई मुद्दे उठाते हुए की , कि - "25 में से ज्ञानदत्त पांडे जी के दो ब्लॉग इसमें हैं,इसी प्रकार दीपक भारतदीप जी के भी दो ब्लॉग़ हैं, अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले दो-दो ज्योतिष ब्लॉग भी हैं, बिन्दु क्रमांक 4 के अनुसार "भाषा का अनुशासन" के आधार पर "भड़ास" और "मोहल्ला" का चयन भी समझ में नहीं आया…। "परमजीत बाली जी ,Ratan Singh जी ,sareetha जी और भाई कुश ने इस पर पुन: विचार करने की बात कही । रचना जी ने इसे बेकार की बात कहकर खारिज कर दिया । नरेश सिह राठोङ झुन्झुनूँ राजस्थान ने इसमें तकनीकी चिट्ठा शामिल न किए जाने की बात कीआदि।

पिछले पोस्ट पर आप सभी के महत्वपूर्ण सुझाव के लिए आभार ! भाई कुश ने एक और सुझाव दिया कि शीर्षक में "आपके " की जगह "कुछ लोगों के .....!" देना उचित होगा । मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ , कि आगे से ऐसा ही होगा । विश्लेषण के समय आप सभी के विचार प्राथमिकताओं की श्रेणी में रखे जायेंगे । आप सभी का पुन: आभार !

बुधवार, 26 नवंबर 2008

आपके पसंदीदा 25 चिट्ठे





तुलसी का पत्ता क्या बड़ा क्या छोटा ? आज जिसप्रकार हिन्दी के चिट्ठाकार अपने लघु प्रयास से प्रभामंडल बनाने में सफल हो रहे हैं, वह भी साधन और सूचना की न्यूनता के बावजूद , कम संतोष की बात नही है । हिन्दी को अंतर्राष्ट्रीय स्वरुप देने में हर उस ब्लोगर की महत्वपूर्ण भुमिका है जो बेहतर प्रस्तुतीकरण, गंभीर चिंतन, सम सामयिक विषयों पर शुक्ष्म दृष्टि, सृजनात्मकता, समाज की कु संगतियों पर प्रहार और साहित्यिक- सांसकृतिक गतिविधियों के माध्यम से अपनी बात रखने में सफल हो रहे हैं। निश्चित रूप से अब हिन्दी में बेहतर ब्लॉग लेखन की शुरुआत हो चुकी है और यह हिन्दी के उत्थान की दिशा में शुभ संकेत का द्योतक है ।




इसमें कोई संदेह नही, कि आज कल हिन्दी ब्लॉग लेखन अति सम्बेदनात्मक दौर में है , लेकिन इसकी जड़ें अभी भी ठोस जमीन में होने के बजाय अतिशय भावुकता के धरातल पर टिकी है। इस केंचुल से बाहर निकलने की आवश्यकता है। हिन्दी ब्लॉग लेखन पर गंभीर वहस की भी आवश्यकता महसूस हो रही है । इसके लिए जरूरी है, की बिना किसी पूर्वाग्रह के चिट्ठाकार आपस में चर्चा- परिचर्चा करें और हिन्दी के माध्यम से सुंदर सह- अस्तित्व की परिकल्पना को मूर्त रूप देने हेतु पहल करें । मेरे समझ से यही ब्लॉग लेखन की सार्थकता होगी ।




यह सब बातें मैं नही कर रहा हूँ , आप सभी के बीच के कुछ ब्लोगर की राय है , जिसे मैंने यहाँ प्रस्तुत करना उपयुक्त समझा । दर असल बात यह है, कि विगत दिनों "परिकल्पना" पर " हिन्दी चिट्ठाकार विश्लेषण- २००८" से संम्बंध में मैंने सुझाव आमंत्रित किए थे । कई चिट्ठाकार बंधुओं के सुझाव मेल तथा एस एम् एस के माध्यम से प्राप्त हुए । बहुत सारे ब्लॉग के नाम सुझाए गए, जिनका विश्लेषण किया जाना उचित होगा , क्योंकि ब्लॉग के विश्लेषण से पाठकों में यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि कौन से ब्लॉग का वाचन उनके लिए उपयुक्त है और वे अपनी मानसिकता के हिसाब से भावनात्मक रूप से उस ब्लॉग से जुड़कर ज्ञानार्जन कर सके


अब तक के प्राप्त सुझाव के आधार पर ऐसे हीं २५ चिट्ठों का नाम हमारे सामने आया है , जिनके विश्लेषण हेतु पेशकश की गयी है , वह इसप्रकार है-


ज्ञान दत्त पांडे का मानसिक हलचल /


उड़न तस्तरी /


सारथी /


रवि रतलामी का ब्लॉग/


दीपक भारतदीप की हिन्दी /


हिंद युग्म /


शिव कुमार मिश्रा और ज्ञान दत्त पांडे का ब्लॉग /


तीसरा खंभा /


आवाज़ /


गत्यात्मक ज्योतिष /


चक्रधर का चकल्लस /


अनंत शब्द योग /


नव दो ग्यारह /


मेरी कठपुतलियाँ /


चिट्ठा चर्चा /


आरंभ आरंभ /


शब्दों का सफर /


भडास /


रचनाकार/


मोहल्ला /


ह्रदय गवाक्ष /


ज्योतिष परिचय /


झकाझक टाईम्स /


निर्मल आनंद /


सत्यार्थ मित्र /




यहाँ मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि ये २५ चिट्ठे जिनके नाम का उल्लेख किया गया है वह आपके सुझाव पर आधारित है , न कि मेरी राय में ! यहाँ मैं यह भी स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि "परिकल्पना" पर अगले महीने कुल ५० चिट्ठों की चर्चा होगी कि क्यों ये चिट्ठे आपके पसंदीदा हैं ? विश्लेषण का आधार होगा- -(1) बेहतर प्रस्तुतीकरण (2) ब्लॉग लेखन का उद्देश्य (3) विश्व बंधुत्व की भावना (4) भाषा का अनुशासन (5) चिंतन में शिष्टाचार (6) रचनात्मकता (7) सक्रियता (8)जागरूकता (9) आशावादिता (10) विचारों की प्रासंगिकता आदि !




अब आप कहेंगे कि मैं ऐसा क्यों कर रहा हूँ , तो लीजिये निम्न पंक्तोयों के माध्यम से आपका यह भी भ्रम दूर हो जायेगा -




" फासला हो लाख पर चाहत बचाए रखना ,


रिश्तों के दरमियाँ हरारत बचाए रखना !




मुझसे न करो प्यार की बातें मुझे कबूल-


औरों के लिए दिल में मोहब्बत बचाए रखना !




धड़कनों में हर किसी के हर कोई आता नहीं-


मुसकुराने की मगर आदत बचाए रखना !




सैकड़ों सपने हैं इन आंखों में देखो झांककर -


जीवन में कुछ करने की ताकत बचाए रखना !"




आज बस इतना हीं , आप अपना सुझाव भेजना जारी रखें,आपके सुझाव की पोटली लेकर पुन: आऊँगा आपके बीच...!

गुरुवार, 20 नवंबर 2008

नेता शिरोमणी श्री राम लाल जी का चुनावी घोषणा - पत्र

आया हूँ तेरे द्वारे,
तू दे-दे मुझको प्यारे,
वोटों की झोली दे-दे,
या खोखा-खोली दे-दे,
मेरा ईमान ले-ले ,
अपना ईनाम दे-दे,
अल्लाह के नाम दे या-
ईश्वर के नाम दे-दे...!
वादा है मेरा वादा बन जाऊंगा मिनिस्टर
अन्तर नही रखूंगा कुत्ता हो या कलक्टर
इंगलिश की तोडूं टाँगे, करूं पूरी सबकी मांगें-
चाहूँगा भाई मेरे मैट्रिक हो फेल ऑफिसर ।
मैं हूँ तुम्हारे लायक,
मुझको बना विधायक,
कुछ गोला-गोली दे-दे,
या अपनी बोली दे-दे,
मेरा सलाम ले- ले,
अपना पयाम दे-दे,
अल्लाह के नाम दे या,
ईश्वर के नाम दे-दे...!
अस्पताल में भरूंगा मैं झोला छाप डॉक्टर
विभाग हेड होंगे सब वार्ड बोयाय- कम्पाउन्दर
गुंडों की चांदी होगी, हिजडों की शादी होगी-
खुलकर के अब दलाली पायेंगे नेता - अफसर ।
कीमत को लात मारूं,
करूं टके सेर दारू ,
खुशियों की होली दे-दे,
अपनी रंगोली दे-दे,
सस्ता है जाम ले-ले,
अपना खुमार दे-दे,
अल्ला के नाम दे या-
ईश्वर के नाम दे-दे...!
ऐसी बनेगी टायर होगी कभी न पंचर
मंहगे मिलेंगे राशन सस्ते मिलेंगे खंजर
हर छात्र को मिलेंगे रियायत में तमंचे-
चाहेंगे जैसा जीवन जियेंगे सारे खुलकर !
चन्दा दे या दुआ दे ,
चाहे तू बद दुआ दे,
मेरी जनता भोली दे-दे,
विजय तिलक की रोली दे-दे,
कट्टा के बल पे दे या-
तू अपने आप दे-दे ,
अल्लाह के नाम दे या -
ईश्वर के नाम दे-दे ...!
लाकर के लोकतंत्र तू पहले ही गलती कर दी
हम जैसे माफियाओं की ऐसे हीं झोली भर दी
मुझसे न रख अपेक्षा , भगवान देगा पैसा
तेरा भी वो हरेगा जैसे मेरी गरीबी हर दी ।
सत्ता मैं तुझसे लूंगा,
भत्ता मैं तुझको दूंगा,
तू चोरी-चोरी दे-दे
या सीनाजोरी दे-दे,
तू दंड-भेद दे , या -
फ़िर साम-दाम दे-दे,
अल्लाह के नाम दे या-
ईश्वर के नाम दे-दे....!
आपका-
अपना राम लाल !

( ऐसा केवल मनोरंजन के उद्देश्य से दिया जा रहा है, ऐसी ओछी सोच वाले नेताओं के फरेबी बातों में न आयें और अपना मत सोच-विचार कर दें , ताकि आपका कीमती वोट सही और सार्थक दिशा मेंप्रयुक्त हो )
कार्टून साभार: हिन्दुस्तान .

रविवार, 16 नवंबर 2008

चुनाव जब भी आता है दोस्त !

चुनाव जब भी आता है दोस्त !
सजते हैं वन्दनवार हमारे भी द्वार पर
और हम-
माटी के लोथडे की मानिंद
खड़े हो जाते हैं भावुकता की चाक पर
करते हैं बसब्री से इंतज़ार
किसी के आने का .....!
कोई न कोई अवश्य आता है मेरे दोस्त
और ढाल जाता है हमें -
अपनी इच्छाओं के अनुरूप
अपना मतलब साधते हुए
शब्जबाग दिखाकर .....!
उसके जाने के बाद -
टूटते चले जाते हैं हम
अन्दर हीं अन्दर
और फूटते चले जाते हैं थाप-दर-थाप
अनहद ढोल की तरह .....
यह सोचते हुए , कि-
" वो आयेंगे वेशक किसी न किसी दिन , अभी जिंदगी की तमन्ना है बाकी ......!"
()रवीन्द्र प्रभात


कार्टून: इंडियन कार्टून से साभार

शनिवार, 8 नवंबर 2008

लौटा है शीत जब से गाँव

प्रीति भई बावरी ,


देख घटा सांवरी ,


है धरती पे उसके न पाँव ,


लौटा है शीत जब से गाँव ।




सुरमई उजालों में चुम्बन ले घासों को ,


बेंध रही हौले से गर्म-गर्म साँसों को ,


बहकी है पुरवाई, ले-ले के अंगडाई -


गेहूं की बालियों से छुए कुहासों को ,




चाँद की चांदनी ,


खो गयी रागिनी ,


आयी प्राची से सिंदूरी छाँव ,


लौटा है शीत जबसे गाँव ।




बांसों के झुरमुट से किरणें सजी-संवरी ,


निकली है स्वागत में गाती हुयी ठुमरी,


देहरी के भीतर से झाँक रही दुल्हनियां -


साजन की यादों में खोयी हुयी गहरी ,




शीत की भोर से,


धुप की डोर से ,


सात फेरे लिए हैं अलाव ,


लौटा है शीत जबसे गाँव ।




मौसम की आँखों में महुए सी ताजगी ,


दिखती है खुल करके धुप की नाराजगी ,


गुड की डाली खाके सोया है देर तक -


मतवाला सूरज है अलसाया आज भी ,




गा रही गीत री ,


बांटती प्रीत री ,


बंजारन गली-गली-ठांव ,


लौटा है शीत जबसे गाँव ।

() रवीन्द्र प्रभात


(सर्वाधिकार सुरक्षित )

शनिवार, 25 अक्टूबर 2008

अर्थ -वैभव व् समृद्धि की परिपूर्णता का परिचायक पर्व दीपावली शुभ हो !





आईये हम सब मिलकर दीपावली का त्यौहार कुछ इस तरह मनाते हैं,कि दीपावली के प्रेरक प्रकाश से हमारा आँगन और हृदय दोनों आलोकित हो उठें। हमारी ईर्ष्या, द्वेष और शत्रुता की भावनाएं प्रेम, सद्भावना और मित्रता में बदल जाए । हर कोई एक दिया समर्पित करे सद्भावना को , ताकि जीवन के साथ-साथ समाज को नई ज्योति मिले और नए वर्ष के कर्तव्यों को पूरा करने में बल मिले । आप सभी को पुन: दीपोत्सव की बधाईयाँ !




तम से मुक्ति का प्रतीक इस त्यौहार का प्रेरक प्रकाश आप सभी के व्यक्तित्व और कृतित्व की आभा को आपकी आशाओं और इच्छाओं के अनुरूप आरोग्यता की दिव्य ज्योति का कवच प्रदान करे , ताकि आप सभी उस प्रदीप्त प्रेरणाप्रद प्रकाश- पथ पर निरंतर गतिशील रहते हुए सदैव शान्ति , सुख , समृद्धिपरक क्षणों की अनुभूति प्राप्त कर सकें ......! आप सभी के लिए दीपावली शुभ हो !

बुधवार, 22 अक्टूबर 2008

इश्वर इन्हें सद्बुद्धि दे ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं..!



मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने कहा है, की – “ व्यक्ति जिसका अन्तर-मन प्रशांत हो, कभी भी सच्चे मायनों में हिंसा नहीं अपना सकता. मुझे उम्मीद है कि पूर्व साइड में चांदनी की सरजमीं कहलाये जाने वाले भारत का उजाला शान्ति की चेतना को वैसे हीं दूर तक पहुंचायेगा , जैसे चाँद की शीतल किरणें दोपहर की चिल चिलाती गरमी से राहत पहुंचाती है. एक निर्विकार शांतिमय दिल से विनम्रता उपजती है. विनम्रता से दूसरों की बात सुनने की क्षमता उपजती है, सुनने की क्षमता से पारस्परिक संवेदना और पारस्परिक संवेदना से शांतिपूर्ण समाज….!”
भारत के सन्दर्भ में उपरोक्त विचार किसी भारतीय का नहीं , अपितु एक गैर भारतीय विचारक का है, जिसने गांधी के इस देश को समूचे विश्व के लिए प्रेरणा प्रद माना। भारत को महात्मा बुद्ध, गुरुनानक देव, महात्मा गांधी और स्वामी विवेकानंद का देश कहा जाता है। जिनके अनुयायी समूचे विश्व में फैले हैं।भारत को जगत पिता की संज्ञा से भी नवाजा जाता है, क्योंकि भारत के अहिंसावादी विचार समूचे विश्व के लिए अनुकरणीय है।
विगत दिनों जो कुछ भी महाराष्ट्र में हुआ वह हमारे समाज के लिए कहीं से भी शुभ नही कहा जा सकता। घर-वार, जमीन-खेती छोड़, दूर शहर में नौकरी का पर्चा देने आए बेरोजगार लड़कों का स्वागत पत्थरों- हौकियों से करना , उन्हें पीटना , जान से मारने की कोशिश करना , हिंसा करना क्या एक सभ्य समाज के लिए उचित है?
कोई भी समाज हिंसा को महत्त्व नही दे सकता । अगर देता है तो वह समाज कभी भी सभ्य कह लाने का अधिकारी नहीं हो सकता॥ईशाई धर्म के प्रवर्तक प्रभु ईशू को जब शूली पर चढाया जा रहा था , तो उन्होंने बस इतना कहा कि –“ इश्वर इन्हें सद्बुद्धि दे, ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं !”
आप अब कहेंगे , कि इतने दिनों के बाद ब्लॉग पर लौटा है और लगा उपदेश देनें । भाई मेरे! मैं उपदेशक नहीं हूँ जो उपदेश दूँ और न विचारक जो आपको उपाय बतलाऊँ .मैं राजनेता भी नहीं हूँ जो समस्याओं को इतना जटिल बना दूँ कि उसका समाधान ही मुश्किल हो जाए . लेकिन मैं आज पाँच महीने बाद ब्लॉग पर लौटा हूँ तो चाहूंगा कि ऐसी विषय से मैं अपने पोस्ट की शुरुआत करू जो मैं सोचता हूँ और महसूस करता हूँ।
आज जो कुछ भी महाराष्ट्र में हो रहा है, उसे कोई भी सभी समाज कदापि स्वीकार नही करेगा . महाराष्ट्र तो सादगी और शौर्य का प्रतीक रहा है , फ़िर हिंसा का ताण्डव क्यों? मराठी और गैर मराठी इश्यू को लेकर इसतरह हिंसा कराने से क्या महाराष्ट्र का भला होगा , कभी नही ।क्या यह वही प्रदेश है, जिसके सन्दर्भ में कभी लोकमान्य तिलक ने कहा था, कि- “सभ्यता क्या होती है? संगठन क्या होता है?सादगी क्या होती है और समृद्धि क्या होती है ? जानना हो तो महाराष्ट्र आ जाओ…॥!”
जिस महाराष्ट्र में हिन्दी को आज अपमानित किया जा रहा है, वोट बैंक के लिए हिंसा का सहारा लिया जा रहा है। याद करो यह वही महाराष्ट्र है जन्हाँ उत्पन्न हुए काका कालेलकर एक निर्भीक स्वतंत्रता सेनानी और संत पुरूष के रूप में, जिन्होनें अहिन्दी भाषी होते हुए भी राष्ट्रभाषा हिन्दी का व्यापक प्रसार किया महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत में .
सम्प्रदायवाद और क्षेत्रवाद अगर राजनीति के घूरे पर पालने वाले दो सबसे घृणित कीडे हैं तो उन दो विभूतियों को आप क्या कहेंगे जिनके सियासी रथ में यही मकोडे जुटे हैं? महाराष्ट्र के नाम पर, महाराष्ट्र के ही एक जीनियस की देखरेख में बने संविधान की धज्जियाँ उडाने वाले को आप क्या कहेंगे? मैं तो कहूंगा मानसिक रूप से पूर्णत: वीमार , शायद आप भी मेरी बातो से इतेफाक रखें। ऐसे व्यक्ति जो वीमार होता है वह दया का पात्र होता है , उसके लिए इश्वर से दुआ माँगी जाती है । इसलिए मैं भी राज ठाकरे के लिए यही दुआ करूंगा कि हे इश्वर ! उसे सद्बुद्धि दे , वे नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं…!
महाराष्ट्र के निवासियों आप अपने आचरण के विपरीत जाकर हिंसा को तरजीह मत दो . हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नही है.....!

शनिवार, 7 जून 2008

क्या इतना संवेदनहीन हो गया है हमारा समाज ?

नोएडा के चर्चित आरुषी -हेमराज हत्याकांड को हुए तीन सप्ताह से ज्यादा हो चुके हैं और गुत्थी सुलझती दिखाई ही नही दे रही है , हर कोई अपनी डफली अपना राग अलाप रहा है और पुलिसिया छानबीन के नाम पर वही ढाक के तीन पात ! हालांकि अब यह सी बी आई के सुनबाई का हिस्सा है , मैं नही जानता कि राजेश तलवार की गिरफ्तारी उचित है या नही, अगर उसके द्वारा यह कुकृत्य किया गया है तो उसे उसकी सजा मिलनी ही चाहिए मगर हत्या को लेकर जो व्यक्तिगत टिप्पणी की जा रही है और हत्या की आड़ में राजनीति की रोटी सेंकी जा रही है वह उचित नही है । मीडिया के अलग राग हैं, पुलिस के अलग और राज्य- केन्द्र सरकार के अलग। मीडिया को अपने टी. आर. पी बढ़ाने हेतु एक मुद्दा मिल गया है वहीं पुलिस के द्वारा प्रेम कहानियां गढ़ने में कोई कसर नही छोडी गयी , सरकार को अपनी छवि की चिंता है , किसी को भी एक आम भारतीय परिवार की भावनाओं का ज़रा भी ख़याल नही आ रहा है । ज़रा सोचिये ! व्यक्ति सुबह- सुबह टी. वी. खोलता है तो वस् इस दोहरे हत्याकांड पर तरह-तरह के किस्सों का मायाजाल। ऐसी-ऐसी घिनौनी बातें की जा रही है कि व्यक्ति अपने परिवार के साथ बैठकर टी वी देखने में शर्मिन्दगी महसूस करने लगा है । पीड़ित परिवार से सहानुभूति कम और घिनौनी साजिश ज्यादा दिखती है...!
मुझे राजेश तलवार से कोई हमदर्दी नही , लेकिन कहीं ऐसा न हो कि पुलिस और अब सी बी आई असली कातिल को ढूंढ ही न पाये और पीड़ित परिवार पूरी तरह टूटकर बिखर जाए...! इसी से मिलाती-जुलती एक ख़बर पर पिछले दिनों मेरी नजर गयी जो एक दैनिक में प्रकाशित हुयी थी , कि कैनवेरा में फांसी के ८६ साल बाद एक व्यक्ति निर्दोष पाया गया । हुआ यों कि एक व्यक्ति जिसे ८६ वर्ष पूर्व एक वालिका के कत्ल के इल्जाम में फांसी पर लटका दिया गया था, निर्दोष निकला। दोबारा हुयी जांच के दौरान पता चला कि उस पर झूठा इल्जाम लगाया गया था। अदालत ने उसे माफ़ कर दिया मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी ।
एक दु:खद घटना जो ग़लत न्याय की वजह से घटी है
उस अखबार के अनुसार कोर्लिन कैम्पबेल रोज को १९२१ में दक्षिण आस्ट्रेलियाई शहर मेलबौर्न में एक १२ वर्षीय वालिका एल्मा तिर्तिस्क के कत्ल का दोषी पाया गया था। विक्टोरिया केअतौर्नी जेनरल रॉब हाल्स के मुताबिक यह एक दुखद मामला था जिसमें ग़लत न्याय की वजह से एक व्यक्ति फांसी पर चढ़ा दिया गया । रोज का मामला शुरू से ही विवादास्पद रहा था । एक गवाह ने भी कहा था कि वह घटना के समय रोज के साथ काम पर था । कुछ शोधकर्ताओं ने १९९५ में रोज के ख़िलाफ़ सबूत के तौर पर प्रयोग किए गए बालों की जांच की तो पता चला कि वह घटना स्थल के नही थे। इस पर रॉब हाल्स ने दो वर्ष पूर्व इस मामले की दोबारा जांच कराबायी। न्यायधीशों ने पाया कि रोज निर्दोष था । लोगों ने महसूस किया कि असल हत्यारा पकडा नही गया और निर्दोष को फांसी हो गयी। अब इसकी भरपाई कौन करेगा ?
मीडिया, पुलिस, सी बी आई और राजनीति में उलझ कर रह न जाए सच
जैसा कि यह अंदेशा है , कहीं मीडिया, पुलिस, सी बी आई और राजनीतिज्ञों के चक्रव्यूह में उलझ कर रह न जाए सच। क्योंकि विगत की अनेकों घटनाओं पर नजर डालें तो ख़ुद महसूस होने लगेगा कि आज तपेदिक हो गया सच को , कल्पनाएं लूली- लंगडी हो गयी है और मर्यादा की गलियारों में घूमते हुए अमर्यादित लोग बार- बार सामना करते हैं अपनी गलतियों का और कहते हैं-
शायद विधाता को यही मंजूर है .....!
अब इस नाटक का पटाक्षेप हो जाना चाहिए
लगभग एक माह बीतने को है , जांच का परिणाम शून्य । आख़िर कहाँ गया हत्यारा आसमान खा गया या फ़िर धरती लील गयी ? खैर इस हत्याकांड की आड़ में मीडिया चैनलों के द्वारा इस पूरे प्रकरण को जिस प्रकार उछाला जा रहा है वह पूरी तरह भारतीय परिवार को प्रदूषित कर रहा है । जब भी टी वी खोलो मीडिया चैनलों के द्वारा बाप- बेटी के रिश्तों पर आपत्तिजनक टिप्पणियों को देखकर जहाँ हर परिवार में एक पिता की आँखे शर्म से झुक जाती होगी वहीं उसकी बेटी किसी न किसी वहाने वहाँ से टलने का प्रयास करने लगती होगी । मैं तो यही कहूंगा कि अब इस नाटक का पटाक्षेप हो जाना चाहिए । क्योंकि इसको मिर्च मसाला लगाकर बार-बार कवरेज देने से हमारे परिवार का , समाज का माहौल बिगड़ रहा है ।

शुक्रवार, 9 मई 2008

एक ऐसी किताब जिसे पढ़ने के बाद आप वेचैन हो जायेंगे एक नए समाज की परिकल्पना के लिए !



आज लगभग एक सप्ताह बाद नेट पर लौटा हूँ , बिगत एक सप्ताह ऐसी जगहों पर व्यतीत हुआ जहाँ चाह कर भी नेट पर आना संभव नही हो पाया । खैर इस एक सप्ताह को मैंने तमाम व्यस्तताओं के बावजूद वेहद उत्पादक तरीके से बिताया । जब भी समय मिला खूब किताबें पढी , खूब चिंतन-मनन किया । वैसे तो मैंने इस एक सप्ताह में लगभग एक दर्जन के आसपास किताबों का अध्ययन किया , मगर ग्रहण किया केवल एक किताब को ।

मेरे एक वरिष्ठ साथी ने मुझे एक किताब पढ़ने को दिया और कहा कि यार रवींद्र! इस किताब को पढो और देखो अपने समाज को , अपने देश को दूसरों की नज़रों से । उस किताब को मैंने अपने हाथों में लेकर सिर्फ़ एक पन्ना ही पलटा था, कि चौंक गया एकबारगी....किताब की शुरुआत में ही लेखक ने पूरे जीवन दर्शन को महज चार-पाँच पंक्तियों में समेटते हुए लिखा है, कि-

"जब मैं मरूँ, तब
मेरी दृष्टि उसे दे देना जिसने कभी सूर्योदय नहीं देखा
मेरा ह्रदय उसे दे देना, जिसने कभी हार्दिक तर्पण अनुभव नही की
मेरा रक्त उस युवक को दे देना, जिसे किसी कार के ध्वंसावशेष से निकाला गया हो, ताकि वह अपने पोते को खेलता देख सके
मेरे गुर्दे को किसी दूसरे का जहर सोखने देना
मेरी हड्डियों को किसी अपंग बच्चे को चलने देने में इस्तेमाल होने देना
मेरे मृत शरीर का जो भी भाग बचे उसे जला देना और मेरी राख को इधर-उधर हवा में छितरा देना, ताकि फूल को जन्म देने में मददगार हो सके
अगर कुछ दफ़न ही करना है, दफनाना मेरी गलतियों को, मेरे उन पूवाग्रहों को, जो अपने साथी-मनुष्यों के प्रति मेरे मन में थे
मेरे पापों को शैतान को दे देना
अगर मुझे याद करने का मन आए, कोई क्रिपालुतापूर्ण कृत्य करके या किसी जरूरतमंद को सांत्वना देकर कर लेना
यदि तुम वैसा ही करोगे जैसा मैंने कहा है, तो मैं अमर हो जाऊंगा, और सदा जीवित रहूँगा .....!"

चौंकिए मत यह कोई धार्मिक किताब नही है और न मैं इस पोस्ट के माध्यम से कोई आस्था चैनल की शुरुआत कर रहा हूँ, बस मेरा उद्देश्य ये है कि हो सके तो इस किताब को एकबार अवश्य पढ़ें, मेरा दावा है कि हर कोई एक सुंदर समाज के निर्माण में सहायक सिद्धहोगा । यह किताब देश के सर्वश्रेष्ठ बुद्धिजीवी नानी पालाखीवाला के उन आलेखों का संकलन है , जिसे पढ़ने के बाद व्यक्ति के भीतर सात्विक तूफान उठाने लगता है। उन्होंने इस किताब के माध्यम से भारत की आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक सभी प्रकार की समस्यायों का विश्लेषण किया है और समाधान भी दिए हैं । यह किताब उनके समग्र कृतित्व में से चुनी हुयी ऐसी रचनाओं का संकलन है जिनमें देश की सभी वर्त्तमान समस्यायों पर प्रकाश डाला गया है और उनको हल करने के उपाय सुझाए गए हैं। भारत के नव निर्माण में लगे प्रत्येक भारतीय के लिए यह पुस्तक पठनीय है। किताब का नाम है- "आज का भारत नव निर्माण की दिशाएँ" जिसका संपादन-संयोजन किया है देश के विख्यात विधिवेत्ता और बुद्धिजीवी श्री एल. एम्. सिघवी ने और प्रकाशित किया है राजपाल & साँस , कश्मीरी गेट, दिल्ली ने ।

इस किताब में आपको इन प्रश्नों के हल आसानी से मिल जायेंगे -
() मानवीय गरिमा क्या है?
() एक खुले हुए समाज के लिए कौन से अधिकार मूलभूत है?
()राजनीतिक शक्ति की सीमायें क्या है?
()आर्थिक विकास को गतिशील कैसे बनाएं?
() समाजवाद वनाम पूंजीवाद
() शिक्षा के भारतीय आधार क्या है?
() बौद्धिक शक्ति की महत्ता क्या है?
()हम इजराइल से क्या सीखें?
()दुनिया की सबसे गंदी और मंहगी बस्ती मुम्बई है कैसे?

और भी बहुत कुछ पायेंगे आप इस किताब में........! जी हाँ यह एक ऐसी किताब है जिसे पढ़कर आप वेचैन हो जायेंगे एक नए समाज की परिकल्पना के लिए.....मेरी बातों पर यकीं कीजिये और एक बार अवश्य .पढ़कर देखिये इस किताब को....फ़िर आप सवयं कहेंगे क्या सचमुच यही है कसौटी जिंदगी की?

रविवार, 27 अप्रैल 2008

खेल खेल सा खेल खिलाड़ी !

खेल खेल सा खेल खिलाड़ी,
सबसे रख तू मेल खिलाड़ी !
नियम बने हैं बाती- भाँति,
खेल है दीपक, तेल खिलाड़ी !
बन्दर के हांथों में मत दे,
मीठे-मीठे बेल खिलाड़ी !
खुशी जीत की सबको होती,
हार भी हंसकर झेल खिलाड़ी !
ख्वाब हो ऊंचे, लक्ष्य बड़े हों,
मन में हो ना मैल खिलाड़ी !
टीम से तुम हो, टीम न तुमसे ,
दुनिया रेलमपेल खिलाड़ी !
भाव खाओ मत, बड़े नही हो,
"हेड" हो या फ़िर "टेल" खिलाड़ी !
(रवीन्द्र प्रभात )

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2008

ग़ज़ल: अब न हो शकुनी सफल हर दाव में ...!




भर दे जो रसधार दिल के घाव में ,
फ़िर वही घूँघरू बंधे इस पाँव में !

द्रौपदी बेवस खड़ी कहती है ये -
अब न हो शकुनी सफल हर दाव में !

बर्तनों की बात मत अब पूछिए-
आजकल सब व्यस्त हैं टकराव में !

मंहगाई और मेहमान दोनों हैं खड़े-
काके लागूं पाय इस अभाव में ?

है हरतरफ़ क्रिकेट की चर्चा गरम -
बेडियां हॉकी के पड़ गए पाँव में !

है सफल माझी वही मझधार का-
बूँद एक आने न दे जो नाव में !

बात करता है अमन की जो "प्रभात "
भावना उसकी जुडी अलगाव में !

(रवीन्द्र प्रभात)

मंगलवार, 15 अप्रैल 2008

ग़ज़ल: घर को ही कश्मीर बना !

कैनवस पर अब चीड़ बना ,
घर को ही कश्मीर बना ।

सत्ता के दरवाजे पर ना -
बगुले की तसवीर बना ।

झूठ-सांच में रक्खा क्या -
मेहनत कर तकदीर बना ।

रोज धूप में निकलो मत -
चेहरे को अंजीर बना ।

ऐटम-बम से हाथ जलेंगे -
प्यार की इक तासीर बना ।

सूरज सिर पर आया है -
मन के भीतर नीर बना ।

अदब के दर्पण में "प्रभात"
ख़ुद को गालिब-मीर बना ।
()रवीन्द्र प्रभात



शनिवार, 12 अप्रैल 2008

एक मुलाक़ात , उडन तश्तरी के साथ ....!


कल मेरे शहर में थे समीर भाई , जी हाँ वही समीर लाल जी जिनकी "उडन तश्तरी " के दीदार के लिए वेचैन रहते हैं हिन्दी के कतिपय ब्लोगर । ठीक दोपहर के बारह बजे जब ताण्डव कर रहा था ग्रीष्म , चंद लमहात समीर भाई के साथ गुजारते हुए अच्छा लगा । हुआ यों कि अचानक सुबह नौ बजे के आस-पास मेरे मोबाइल की घंटी बजी और मैं हतप्रभ रह गया यह जानकर कि समीर भाई मेरे शहर में? थोड़ी देर के लिए कानों को यकीन ही नही हुआ मगर अगले ही क्षण दिल ने महसूस किया कि यह समीर भाई की ही आवाज़ है । मैंने झटपट अपने एक कवि मित्र राहुल सक्सेना को फोन किया और उसे अपने साथ लेकर पहुंचा समीर भाई के पास । एक संक्षिप्त मुलाक़ात समीर भाई के साथ इतना ऊर्जादायक रहा कि उसे वयान करते हुए मुझे शब्द कम पड़ रहे हैं । बस इतना ही कह सकता हूँ कि इस संक्षिप्त मुलाक़ात की तपीश में फीकी पड़ गयी ग्रीष्म की तपीश । मुझे ग्रीष्म में बसंत का एहसास होने लगा , मगर अगले ही क्षण जब समीर भाई से अलग हुआ महसूस करने लगा ग्रीष्म की तपीश ।
मैं पहली बार कल मिला समीर भाई से , अब तक केवल ब्लॉग पर पोस्ट पढ़ते हुए ही उनके व्यक्तित्व को महसूस किया था पर साक्षात मिलाने का आनंद ही कुछ और था । कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके विचार तो महान होते हैं, पर व्यक्तित्व महान नही होता , कुछ ऐसे लोग होते हैं जिनका व्यक्तित्व महान होता है पर विचार महान नही होते । मगर मैंने समीर भाई के व्यक्तित्व को भी उतना ही उत्कृष्ट महसूस किया जितना उनके विचारों को महसूस करता था । मैं इस मुलाक़ात को एक सुंदर सुयोग की संज्ञा देता हूँ ।
अचानक बसंत ऋतु की विदाई के पश्चात् जब आगमन होता है ग्रीष्म का , तो मन किसी अनचाहे दर्द को महसूस करने लगता है अनायास हीं । मगर हवाओं का चुप होना वेहद सालता है जब तमाम दुश्प्रवृतियों को समेटे ताण्डव करने लगता है ग्रीष्म......लाल रेखाएं खींच जाती अचानक , लहर के लोल पर ....चिडियां नही करती किल-बिल, सुनाई नही देती स्पष्ट पक्षियों की चहचहाहट ....नही रम्भाती गायें खुलकर ....कि जैसे स्तब्ध हो जाती पृथ्वी हवाओं के चुप होने से ...!
यद्यपि गर्मी में प्रेम का भी एहसास उतना ही होता है जितना विरह का । बहुत पहले मैंने इसी एहसास पर एक कविता लिखी थी , उसकी चंद पंक्तियों का एहसास आप भी करें - " मैंने पहले भी तो बाँटीं थी / तुम्हारे अकेलेपन की शाम / जेठ की तपती धूप और गर्म साँसें / तुम्हारे सुख के लिए/ मगर- तुम्हारी नर्म उंगलियाँ / नही खोल पायी थी / मेरे मन की कोई गाँठ/ एक बार भी ......एक बार भी - सर्पीली सडकों पर सफर करते हुए / तुम्हारे पाँव नही डगमगाए थे और मैं- पहाडों की तरह पघलता रहा सारा दिन / सारी रात.....तुम्हारे साथ-साथ ....!"
चलिए जब समीर भाई के बहाने ग्रीष्म की चर्चा हो ही गयी तो क्यों न कुछ सृजन की भी बात हो जाए ? समय कम था और बातें बहुत करनी थी , उन्हें दोपहर के भोजन के पश्चात् कानपुर के लिए प्रस्थान करना था , इसलिए जी भर कर न तो बातें कर सका और न रचनाओं का आदान-प्रदान हीं , यानी की समंदर पीने के बावजूद भी मैं तीश्नालब (प्यासा) ही रहा , मगर इस तीश्नगी ने समीर भाई की प्रेरणा से कुछ दोहे रच डाले जिसे मैं समीर भाई को समर्पित करते हुए प्रसंगवश यहाँ उल्लेख कर रहा हूँ -
पहले ओला गिर गया, गडमड पैदावार !
कैसी गर्मी बेशरम, आयी है इसबार !!
झुरमुट-झुरमुट झांकता, रात में नन्हा चाँद !
पर ज्यों-ज्यों दिन चढ़ रहा, बढ़ा रहा अवसाद!!
धूप चढी आकाश में, मन में ले उपहास !
पानी-पानी कर गयी , रेगिस्तानी पियास !!
लहर-लहर के लोल पर, ललकी-ललकी धूप !
नदी पियासी ढूंढ रही, कहाँ गए नलकूप ?
लूट रही मंहगाई, आकरके बाज़ार !
मौसम सी बदली हुयी, दिखती है सरकार !!
() रवीन्द्र प्रभात

बुधवार, 9 अप्रैल 2008

स्वयं की पहचान, स्वयं का सम्मान, कर्म- योग का ध्यान है गीता का ज्ञान !

कल एक समाचार चैनल पर यह बार-बार प्रदर्शित किया जा रहा था, कि ईराक में तैनात ब्रिटिश सैनिकों को गीता का पाठ पढाया जा रहा है , उन्हें जीवन और मृत्यु के साथ-साथ शरीर और आत्मा की सच्चाईयों से रू-ब-रू कराया जा रहा है । इसे विडंबना ही कहेंगे कि भारतीय धर्म -ग्रंथों की सदैव उपेक्षा करने वाली ब्रिटिश सेना को आज अपने सैनिकों के टूटते आत्मबल को बचाने की जद्दोजहद के बीच याद भी आयी तो भारतीय धर्म ग्रन्थ की । इराक के सैनिक शिवरों में गीता का पाठ पढाने हेतु हिन्दू धर्म पुरोहितों की न्युक्ति भी की गयी है , यह हमारी विरासत के लिए एक ऊर्जादायक बात है।

यद्यपि विदेशों में हमारे धर्म ग्रंथों को महत्त्व देने की यह पहली कोशिश नही है , ऐसे मौके कई बार आए हैं जब अवसाद के शिकार विदेसियों को हमारी संस्कृति ने शांति, सुख, संतुष्टि प्रदान की है। मगर इसे दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि जिस ग्रन्थ को विदेशों में इतना तबज्जो दिया जा रहा हो उसी ग्रन्थ को हमारे देश में साम्प्रदायिकता से जोड़कर देखा जाता है। विगत दिनों इलाहाबाद उच्च न्यायालय का एक ऐतिहासिक वक्तव्य आया था कि गीता कोई धर्म विशेष का ग्रन्थ नही अपितु राष्ट्रीय ग्रन्थ है , हालांकि इसे राजनीतिक रंग दे दिया गया और इसे खारिज करने में कोई कसर नही छोडा गया । वैसे इसमें क़ानून मंत्री की भुमिका विवादोंमुखी रही है, किंतु महान्यायवादी के कथन एवं जन सम्मति से " सत्यमेव जयते" की पुष्टि हुई है ।

खैर इन राजनीतिक पचड़ों में पड़ने से क्या फायदा ? जहाँ अंधेर नगरी हो और चौपट राजा हो, वहा भाजी और खाजा में क्या फर्क, सब टेक सेर .....! जहाँ तक मेरी अपनी व्यक्तिगत राय है , मैं धार्मिक ग्रंथों को सेकूलर-विजन से देखता हूँ, क्योंकि यदि न्याय पूर्वक अध्ययन किया जाए तो कोई भी धर्म ग्रन्थ किसी अन्य धर्म पर आक्रमण या अतिक्रमण नही करता है। यही हमारे संविधान में मुझे जितना ज्ञात है " सेकूल्रिज्म" की परिभाषा है । यदि गीता को " राष्ट्रीय शास्त्र" की संज्ञा दी जारही है तो इस सन्दर्भ में न कोई अतिश्योक्ति होनी चाहिए और न कोई शक की गुंजाइश ही । क्योंकि इसी ग्रन्थ ने सत्य मेव जयते का शंखनाद कर एक सुंदर और खुशहाल सह-अस्तित्व की परिकल्पना को मूर्तरूप देने का वचन दिया था। आज जिस अशप्रिशयता को लेकर यूं पी की मुख्यमंत्री और कॉंग्रेस के बीच तू तू मैं मैं हो रही है , दोनों को मेरी राय है कि गीता पढो सब समझ में आ जायेगा ...!

श्री कृष्ण में कभी कोई संकीर्णता शेष नही थी। बालक अवस्था में ग्वालों के संग लीला से लेकर योग दर्शन की कुशल शिक्षाओं में उनकी दृष्टि समदर्शी ही रही है । इसकी एक बानगी देखें-

" विद्याविने सम्पन्ने ब्राह्मने गावी हस्तिनी !
शुनि चैव श्वपाके च पंडिता: समदार्शिनी:!! ५!!"

श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन ! इस जगत में पंडित अर्थात ज्ञानी व्यक्ति विद्या एवं विनम्रता से युक्त ब्राह्मण में, गाय में, हाथी, कुत्ते और चांडाल में समदर्शी होते हैं ।
इस विचार को क्या गांधी जी के " अश्प्रिश्यता अपराध है" विचार से सम्बद्ध नही मान सकते । इसकी न्याय पूर्वक व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है कि जो भेदभाव करता है, वह विद्वान तो नही हो सकता चाहे और कुछ भी हो। यह क्या आज के समाज में प्रासंगिक नही है? समभाव की महत्ता को इंगित करते हुए श्री कृष्ण कहते हैं कि-


" इहैव तैर्जित: सर्गो येषां साम्ये स्थितन मन: !!
निर्दोषण ही सम ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मानी ते स्थिता: !!"


अर्थात जिनका मन समभाव में स्थित है, उनके द्वारा इस जीवित अवस्था में ही सम्पूर्ण संसार जीत लिया गया, क्योंकि परमात्मा निर्दोष है सम है और वह परमात्मा में ही स्थित है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि सभी प्राणियों में ईश्वरीय शूक्ष्म तत्व का निवास है।

बिना कर्म के संन्यास भी अप्राप्य -

यद्यपि संन्यास का अर्थ लिया जाता है जिसने सांसारिक विषयों का मन-वचन-कर्म से पूर्णत: परित्याग कर दिया है तथापि कृष्ण कहते हैं-

" संन्यासस्तु महाबाहो दु:खाप्तुमयोगत: !
योगयुक्तो मुनिब्रह्म नाचिरिनाधिग्च्छाती !!"


हे अर्जुन ! कर्मयोग के बिना संन्यास ( मन, इन्द्रिय और शरीर द्वारा होने वाले सम्पूर्ण कर्मों में कर्तापन का त्याग ) प्राप्त होना कठिन है और मुनि ( भगवान् के स्वरूप का मनन करने वाला) और कर्मयोगी परब्रहम परमात्मा को शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है । तात्पर्य है व्यक्ति को सं न्यस्त होने पर भी अपने कर्म का त्याग नही करना चाहिए प्रत्युत किए गए कार्य में " मैंने किया है" इस भाव का लेश मात्र भी प्रवेश नही होना चाहिए । अर्थात कार्य में समग्र रूप से भागवतसमर्पण होवें ।

मनुष्य स्वयं ही मित्र और स्वयं ही शत्रु

श्री पार्थसारथी गीता में कहते हैं कि मनुष्य स्वयं ही अपना शत्रु है, जब वह अपने मन, इन्द्रियों समेत शरीर के सामने घुटने टेक देता है तो वही मनुष्य उसी प्रकार दु:खों से दु:खी रहता है जिस प्रकार शत्रुओं द्वारा सताया जाता हुआ मनुष्य ।

" बन्धुरात्मंस्त्स्य येनात्मैवात्मना जित: !
अनात्मंस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत !!"


अर्थ है कि जिस जीवात्मा द्वारा मन, इन्द्रियों के सहित शरीर जीता हुआ है, उस जीवात्मा का मित्र वह स्वयं ही है और जिसके द्वारा मन इन्द्रियों सहित शरीर नही जीता गया है उसके लिए वह स्वयं ही शत्रु के सदृश है।

अर्थात यदि अपना सच्चा और सदा सानिध्य रखने वाला मित्र खोजना है, तो अपने मन और इन्द्रियों एवं शरीर को जीत लो, आप पायेंगे अपने ही अन्दर अपने मित्र को और वह मित्र आपको लेशमात्र भी दु:ख नही पहुँचायेगा , साथ ही चिरानंद का संचार करेगा ।

क्या आज के भागमभाग भौतिकवाद के युग में यह एक सटीक मन्त्र नही है सुख का ?

रविवार, 6 अप्रैल 2008

कुछ मतलब की बातें शराब के बहाने, ग़ज़ल के माध्यम से ...!


कहते हैं शराब, लोग या तो ग़म को भूलने या फिर ख़ुशी मनाने के लिए पीते हैं।वैसे सच तो यह है कि पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए। शराब के सन्दर्भ में लोगों की अपनी-अपनी दलीलें होती हैं । मेरे एक मित्र ने मुझसे कहा कि यार शराब सदियों से शायरों की पसंदीदा रही है , चाहे गालिब रहे हों चाहे .......सब के सब शराब की ईज़त अफजाई की है , तारीफ़ में कशीदे पढे हैं, तू कैसा शायर है यार कि अभी तक शराब पर कुछ भी नही लिखा? उसने ऐसी -ऐसी बातें की , कि मेरे भीतर का शायर जाग उठा । मैंने कहा आज कुछ लिख ही डालते हैं , तू मुझे बता शराब पीने के क्या-क्या फायदे हैं ? उसने कहा पहले पिलाओ फ़िर बताते हैं , भाई , अपनी गरज थी सो मैंने सोचा कि यार रवीन्द्र ! इसकी बातों में वजन है,आज इसे दिल खोलकर पिलादे , ताकि इसकी कही हुई बातों पर गौर करके तुम अपनी शायरी को धार दे सको , बरना तुम्हे इस बात का हमेशा मलाल ही रहेगा कि सभी विषयों पर लिखा , शराब पर नही लिखा । भाई, यकीं मानिए मेरे उस मित्र ने शराब के शुरुर के साथ ऐसी गोपनीयता पर से परदा हटाया कि मैं हतप्रभ रह गया एकबारगी , फ़िर मैंने सहज अनुमान लगा लिया कि आख़िर क्यों स्व हरिवंश राय बच्चन ने मधुशाला खंड काव्य लिखा होगा ? चलिए मैंने भी इस विषय पर एक ग़ज़ल कहने की कोशिश की है , मगर अंदाज़ ज़रा हटकर है -
चौंकिए मत जाम इतना पी रहे हैं , इसलिए ।
एक मुकम्मल जिंदगी हम जी रहे हैं , इसलिए ।।
मैंने मयखाने को समझा पाकगाहों की तरह -
साथ में पंडित कभी मौलवी रहे हैं , इसलिए ।।
शर्म क्या हम डूब ही गए इश्क - दरिया में अगर -
डूबने को आप भी राजी रहे हैं , इसलिए ।।
जानते हैं हम कि जलना खुदकुशी होती नही -
एक चरागे-अंजुमन हम भी रहे हैं , इसलिए ।।
फ़िर कोई महफ़िल में नंगा हो नही मेरे "प्रभात" -
कुछ फटे कपडों को लेकर सी रहे हैं , इसलिए ।।
() रवीन्द्र प्रभात

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2008

तंग चादर है जिसकी वही , सो रहा तानकर रात में ....!

फोटो : दैनिक भाष्कर से साभार

हादसे दर -ब - दर रात में ,

आप हैं बेखबर रात में ।

दिन में रिश्वत निगल जो गया -

बन गया नामवर रात में ।

तंग चादर है जिसकी वही-

सो रहा तानकर रात में ।

दूर जाना जरूरी है जा -

हाथ को थामकर रात में ।

हर कदम को उठाना यहाँ -

जानकर-सोचकर रात में।

दिन में नेता बने देवता -

बन गए जानवर रात में ?

घूमती है बला हर जगह -

लौट जा अपने घर रात में ।

राम-रावण में है दोस्ती -

राहजन-राहबर रात में !

बेच करके ईमान-व-धरम -

टूटते जाम पर रात में !

छोड़ करके रूमानी ग़ज़ल-

कुछ कहो देश पर रात में ।

बढ़ना खामोश होकर प्रभात -

रास्ता पुर खतर रात में !

() रवीन्द्र प्रभात



शुक्रवार, 28 मार्च 2008

डोन्ट बरी ! फूड और पोआईजन दोनों हो जायेंगे सस्ते ....!

कल दफ्तर से लौटा, निगाहें दौड़ाई ,हमारा तोताराम केवल एक ही रट लगा रहा था-"राम-नाम की लूट है लूट सकै सो लूट.........!" कुछ भी समझ न आया तो मैंने तोते को अपने पास बुलाया और फरमाया-मुंह लटकाता है , पंख फड फडाता है , कभी सिर को खुजलाता तो कभी उदास सा हो जाता है , तू केन्द्र सरकार का मंत्री तो नही ? फ़िर कौन सी समस्या है जो इसकदर रोता है ? तू तो महज एक तोता है , आख़िर क्यों तुम्हे कुछ - कुछ होता है?

तोताराम ने कहा , अब हमारे पास क्या रहा ? रोटी और पानी , उसमें भी घुसी- पडी है बेईमानी... लगातार मंहगी होती जा रही है कलमुंही ,नेताओं को न उबकाई आ रही है न हंसी ...सोंच रहे हैं चलो किसी भी तरह मंहगाई के चक्रव्यूह में भारतीय जनता तो फंसी ! अरे बईमान सत्यानाश हो तेरा , ख़ुद खाते हो अमेरिका का पेंडा और हमारे लिए रोटी भी नही बख्सते और जब कुछ कहो तो मुस्कुराकर कर कहते हो डोंट बर्री ! हो जायेंगे सस्ते ....! अरे क्या हो जायेंगे सस्ते फ़ूड या पोआईजन ? उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा- "दोनों "

हम जनता है, पर अधिकार नही है और उनका कहना है सरकार जिम्मेदार नही है ....रोटी चाहिए - न्यायालय जाओ ! पानी चाहिए- न्यायालय जाओ ! बिजली चाहिए- न्यायालय जाओ ! सड़क चाहिए- न्यायालय जाओ ! भाई , यदि इज्जत- आबरू और सुरक्षा चाहिए तो न्यायालय जाना ही पडेगा ....ज़रा सोचो जब जेड सुरक्षा में दिल्ली पुलिस का एसीपी राजवीर सुरक्षित नही रहा तो आम पबलिक की औकात क्या ? एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ, आज अपने बाजुओं को देख, पतबारें न देख ! समझ गए या समझाऊँ या फ़िर इसी शेर को फ़िर से दुहाराऊँ ?

60साल में भारत का रोम-रोम क़र्ज़ में डूब गया है और हम गर्ब से कहते हैं कि भारतीय हैं.भारत का बच्चा-बच्चा जानता है कि भ्रष्टाचार की जड़ कहाँ है? उसे कौन सींच रहा है ? भाई यह तो हमारी मैना भी जानती है कि पानी हमेशा ऊपर से नीचे की ओर आता है . पिछले दिनों एक धर्मगुरू के धर्म कक्ष में अचानक फंस गयी थी हमारी मैना ......उसी धर्म कक्ष की दीबारों पर जहाँ ब्रह्मचारी के कड़े नियम अंकित किए गए थे , इत्तेफाक ही कहिये कि उसी फ्रेम के पीछे मेरी मैना गर्भवती हो गयी ...इस प्रसंग को खूब उछाला पत्रकारों ने , सिम्पैथी कम , उन्हें अपने टी आर पी बढ़ाने की चिंता ज्यादा थी ! चलिए इसपर एक चुराया हुआ शेर अर्ज़ कर रहा हूँ - दीवारों पर टंगे हुए हैं ब्रह्मचर्य के कड़े नियम, उसी फ्रेम के पीछे चिडिया गर्भवती हो जाती है ! भाई, कैसे श्रोता हो चुराकर कविता पढ़ने वाले कवियों की तरह बाह-बाह भी नही करते ? मैंने कहा तोता राम जी !चुराए हुए शेर पर वाह-वाह नही की जाती, इतना भी नही समझते ?

मैंने कहा - तोताराम जी, बस इतनी सी चिंता , वह भी उधार की ? तो क्या झूठे वायदों का करू और नकली प्यार की ? मेले में भटके होते तो कोई घर पहुंचा जाता, हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आयेंगे ? मैंने कहा तोताराम जी, दुनिया में और भी कई दु:ख है , तुम्हारे दु:ख के सिवा.....यह सुनकर हमारा तोता मुस्कुराया .....यह बात जिस दिन समझ जाओगे कि भूख के सिवा और कोई दु:ख नही होता , उसदिन फ़िर यह प्रश्न नही करोगे बरखुरदार ! मैंने कहा कि भाई, तोताराम जी , मैं समझा नही , तोताराम ने कहा भारत की जनता को यह सब समझने की जरूरत हीं क्या है? मैंने कहा क्यों? उसने कहा यूँ!" हम सब मर जायेंगे एक रोज, पेट को बजाते और भूख-भूख चिल्लाते, बस ठूठें रह जायेंगी, साँसों के पत्ते झर जायेंगे एक रोज !"
हमने कहा- यार तोताराम , आज के दौर में ये क्या भूख-भूख चिल्लाता है ?
तुझे कोई और मसला नज़र नही आता है?


उसने कहा कि तुम्हे एतराज न हो तो किसी कवि की एक और कविता सुनाऊं? हमने कहा हाँ सुनाओ! तोता राम यह कविता कहते-कहते चुप हो गया कि- " यों भूखा होना कोई बुरी बात नही है, दुनिया में सब भूखे होते हैं, कोई अधिकार और लिप्सा का, कोई प्रतिष्ठा का, कोई आदर्शों का और कोई धन का भूखा होता है, ऐसे लोग अहिंसक कहलाते हैं, मांस नही खाते, मुद्रा खाते हैं ......!!" मैंने कहा भाई, तोताराम जी ! ये तुम्हारी चोरी की शायरी सुनते-सुनते मैं बोर हो गया , ये प्रवचन तो सुबह-सुबह बाबा लोग भी देते हैं लंगोट लगाकर ! तुम तो ज्ञानी हो नेताओं की तरह , कुछ तो मार्गदर्शन करो भारत की प्रगति के बारे में....प्रगति शब्द सुनते ही हमारा तोता गुर्राया , अपनी आँखें फाड़-फाड़ कर दिखाया और चिल्लाया - खबरदार तुम आम नागरिकों को केवल प्रगति की हीं बातें दिखाई देती है, मुझसे क्यों पूछते हो , जाओ जाकर पूछो उन सफेदपोश डकैतों से , बताएँगे कहाँ-कहाँ प्रगति हो रही है देश में .....भाई, मेरी मानो तो छूत की बीमारी जैसी है प्रगति . शिक्षा में हुई तो रोजगार में भी होगी , रोजगार में हुई तो समृद्धि और जीवन-स्तर में लाजमी है , क्या पता कल नेता के चरित्र में हो ? वैसे देखा जाए तो भारत की राजनीति में एकाध प्रतिशत शरीफ बचे हैं , अर्थात अभी नेताओं के चरित्र में प्रगति की संभावनाएं शेष है ......चारा घोटाला के बाद चोरी के धंधे में भी नए आयाम जूडे हैं, पहले चोर अनपढ़ - गंवार होते थे, इसलिए डरते हुए चोरी करते थे , अब के चोर हाई टेक हो गए हैं . जितना बड़ा चोर उतनी ज्यादा प्रतिष्ठा . चारो तरफ़ प्रगति ही प्रगति है , तुम कैसे आदमी हो कि तुम्हे भारत की प्रगति दिखाई ही नही देती ? अरे भैया अब डाल पे उल्लू नही बैठते हैं, संसद और विधान सभाओं में बैठते हैं जहाँ घोटालों के आधार पर उनका मूल्यांकन होता है .....समझे या समझाऊँ या फ़िर कुछ और प्रगति की बातें बताऊँ ?

मैंने कहा भाई तोताराम जी, तुम्हारा जबाब नही , चोरी को भी प्रगति से जोड़ कर देखते हो ? तो फ़िर उन लड़किओं का क्या होगा , जिस पर लडके ने नज़र डाली और उसका दिल चोरी हो गया ? तोताराम झुन्झालाया ..पागल हैं सारे के सारे , ये दिल -विल चुराने का धंधा ओल्ड फैशन हो गया है । दिल चुराओ और फिजूल की परेशानी में पड़ जाओ. यह खरीद - फरोख्त के दायरे में भी नही आता , इससे कई गुना बेहतर तो लीवर और किडनी है। उनका बाज़ार में मोल भी है , चुराना है तो लीवर और किडनी चुराओ , दिल चुराने से क्या फैयदा ?

मैं आगे कुछ और पूछता इससे पहले , तोताराम ने मेरे हांथों पर चोंच मारा और बोला मेरे यारा ! नेताओं और धन पशुओं को अपना आदर्श बनाओगे प्रतिष्ठा को गले लगाओगे, खूब तरक्की करोगे खूब उन्नति पाओगे ......! मैंने कहा - जैसी आपकी मर्जी गुरुदेव ! चलिए अब रात्री विश्राम पर चलते हैं और जब कल सुबह नींद खुले तो बताईयेगा- यह प्रगति है या खुदगर्जी , इस सन्दर्भ में क्या है आपकी मर्जी ?

मगर जाते-जाते मेरे तोताराम जी का एक शेर सुनते जाइये....इसबार मेरा तोताराम नही कहेगा कि यह शेर मेरा है , दरअसल यह शेर दुष्यंत का है सिर्फ़ जुबान इनकी है - शेर मुलाहिजा फरमाएं हुजूर!

"सिर्फ़ हंगामा खडा करना मेरा मकसद नहीं!
मेरी कोशिश है ये सूरत बदलनी चाहिए !!"


मैंने कहा भाई, तोताराम जी , अब चलिए आप भी आराम कर लीजिये .....तोताराम ने कहा - हाँ चलिए हमारे देश में आराम के सिबा और बचा ही क्या है ! मैंने कहा - क्या मतलब ? उसने कहा- चलिए एक और शेर सुन लीजिये जनाब ! " किस-किस को गाईये, किस-किस को रोईये , आराम बड़ी चीज है मुंह ढक के सोईये !" मैंने कहा ये शेर तुम्हारा है ? उसने कहा- कल तक किसी और का था , अभी हमारा है और कल किसी और का .....हाई टेक सोसाईटी में सब जायज है ....!
 
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