चुनावी महापर्व की वयार धीरे-धीरे परवान चढ़ रही है , कहीं खोखले आदर्श का प्रदर्शन हो रहा है तो कहीं खुलेआम नैतिकता की होली जलाई जा रही है । कहीं सरेआम नफ़रत के बीज बोए जा रहे हैं तो कहीं साम्प्रदायिकता की फसल काटने की कोशिश हो रही है । कहीं उपहार बांटे जा रहे हैं तो कहीं पैसे । एन -केन प्रकारेण हमारे वोट खरीदने की तैयारी हो रही है । जहाँ ख़रीदे नहीं जायेंगे वहाँ लूट लिए जायेंगे । प्रश्न यह उठता है , कि यदि ऐसा न करे हमारे नेता तो "आम और ख़ास " में अन्तर क्या ?



वेचारा चुनाव आयोग परेशान ....आचार संहिता के माध्यम से नकेल कसने की कोशिश की जा रही है ......पर हमारे नेता हैं जो सुधारने का नाम ही नही ले रहे .....क्या करेंगे भाई ! जो व्यक्ति पाँच साल तक कायदे -क़ानून को ठेंगे पर रखा हो वह अचानक एक -दो महीनों में कैसे सुधर जायेंगे ? अब चुनाव आयोग को भला कौन समझाये कि आचार -संहिता का उल्लंघन इनके फितरत में शामिल है .....ये अपनी आदत से मजबूर हैं..... नेता जो ठहरे ...! हमारा गजोधर कहता है , जानते हैं साब जी ! यही है नेता की सही पहचान .....कि उसमें हो साम-दाम-दंड -भेद का ज्ञान ....! इसके अलाबा और भी बातें हैं जिसके बिना नेता अधूरे समझे जाते हैं ....सही नेता वही माना जाता है जिसके आगे और पीछे गुंडे होते हैं , साथ में बड़े-बड़े मुस्टंडे होते हैं ....घर और दफ्तर में कुछ असलहे और डंडे होते हैं ....जिसके पास काली कमाई को सफ़ेद करने के हथकंडे होते हैं ....और जिसके पास फंड नहीं फंडे होते हैं ....ऐसे नेता नेता होते हैं बाकी सब ठंडे होते हैं ......और भी बहुत कुछ कहता है हमारा गजोधर जिसकी चर्चा यहाँ उचित नहीं है ....!


फिलहाल चुनावी विगुल बज चुका है और हमारे नेता पांच साल के बाद ही सही मगर क्षेत्र में दस्तक दे चुके हैं , इसलिए आईये उनका स्वागत करते हैं और कहते हैं - नेता जी की जय....इन पंक्तियों के साथ ,कि -


दाल काली भयो

कोष खाली भयो

जल रही नोट की होलियाँ

कुछ तुम्हारी लगी बोलियाँ ,

कुछ हमारी लगी बोलियाँ !



राजपथ सज गयी वादों की झंडियाँ

हो गयी फुटपाथों पे सरगामियाँ

आ गए हैं शहर-गाँव बहरूपिये -

बांटने दोनों हाथों से वेशार्मियाँ



है आडंबर कहीं तो छलावा कहीं
बना चूं-चूं का है मुरब्बा कहीं
जिसकी लाठी वही भैंस ले जायेगा -
घात -प्रतिघात है और दुरावा कहीं

हास-परिहास है
न्यास-विन्यास है
शब्द की उठ रही अर्थियां ....!

था मुखर माफिया और प्रखर चोर भी
उसकी चांदी हुयी हर तरफ शोर भी
हो गया फिर से सत्ता का द्रौपदीकारण
और दुर्योधन से कान्हा का गठजोड़ भी

नेता की जय कहो
आओ पूजा करो
पाँव उनके धरो देवियाँ ....!

व्यंग्य एवं कविता :रवीन्द्र प्रभात कार्टून:राजेन्द्र घोरपकर (साभार दैनिक हिन्दुस्तान )

7 comments:

  1. व्यंग्य, कविता एवं कार्टून-तीनों से चुनावी बिगुल पूरे रस में बज रहा है.

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  2. अच्छा परिदृश्य खींचा है आपने -यही हैं हमारे लोकतंत्र के पहरुए !

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  3. व्यंग्य अत्यंत धारदार है और यही सच भी है .....जिसे नकारा नहीं जा सकता .......!

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  4. देश की राजनीति अब मूल्यों और सिद्धांतों पर नहीं चल रही . यह व्यक्तिपरक , धर्म और जाती पर आधारित होती जा रही है .ऐसे में एक आदर्श समाज की कल्पना करना असंगत है . दरअसल सिद्धांत विहीन राजनीति के इस दौर में मौकापरस्ती बढ़ गयी है और हर गठबंधन में शामिल दल अपने फायदे के मौके ढूँढते रहते हैं . आज की राजनीति पर बहुत सटीक व्यंग्य किया है आपने , बधाईयाँ !

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  5. समस्या सिद्धांतविहीन व् मूल्यविहीन राजनीति में है . इसी का दुष्प्रभाव है की आज राजनीति में बहुत सारी खामियां काफी पल्लवित-पुष्पित हुयी हैं .हमारी चुनाव प्रक्रिया भी ऐसी है जो दोषपूर्ण व्यवस्था रचती है . अभी जो चुनाव प्रक्रिया है उसमें ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जिनका मकसद राजनीति के जरिए लाभ कमाना है , जनसेवा नहीं . जनता का प्रतिनिधि कैसा हो यह तय करने का अधिकार राजनीतिक दलों को ही है . दल जैसे लोगों को टिकट देगा वैसे ही प्रतिनिधि चुने जायेंगे .
    आपने सही कहा है कि - "क्या करेंगे भाई ! जो व्यक्ति पाँच साल तक कायदे -क़ानून को ठेंगे पर रखा हो वह अचानक एक -दो महीनों में कैसे सुधर जायेंगे ? अब चुनाव आयोग को भला कौन समझाये कि आचार -संहिता का उल्लंघन इनके फितरत में शामिल है .....ये अपनी आदत से मजबूर हैं..... नेता जो ठहरे ...! "

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  6. पूर्णिमा जी और गीतेश जी , आपने सही कहा है और सच्चाई भी कमोवेश यही है कि कुछ लोग सत्ता के साथ अवसरवाद को दाल में नमक की तरह रखते हैं और कुछ लोग अवसरवाद को ही सत्ता का मन्त्र मानते हैं . आज की राजनीति इन्हीं दो छोरों के बीच घूम रही

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  7. कभी नेता का पहाड़ा पढ़ा था, वह याद आ रहा है..

    नेता एकम नेता
    नेता दूनी दगाबाज
    नेता तिया तिकड़मबाज
    नेता चौके चार सौ बीस
    नेता पंजे पुलिस दलाल
    नेता छिके छुपा रुस्तम
    नेता सत्ते सत्ता लोभी
    नेता अट्ठे अडंगा बाज
    नेता नम्मे नमक हराम
    नेता दस्से सत्यानाश !!!!!!!!!!

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