दिव्या शुक्ला
बात बीस साल पहले की है इसी लखनऊ का केस है -----
-----मेरी बहुत खास दोस्त जो वकील है अक्सर मै उसके घर जाती रहती थी
- मुझे केस फ़ाइल पढ़ने में बहुत रूचि थी
------जब भी उसके पास जाती जरुर देखती ----
एक फ़ाइल उठाई ही थी अचानक वो बोल पड़ी

------अरे दिव्या देख ये तेरे ही शहर की लड़की थी
मायके का नाम सुना तो फ़ाइल छोड़ उसी से सारी बात पूछी
------बहुत अपसेट थी वो गुस्सा और दुःख दोनों भरा था
उसके मन में बोली ----कुछ नहीं कर पाई मै
---------मुझे पता था वो बहुत मजबूत है कुछ भी कर सकती है
वो कैसे ये बोल रही है ----जो कुछ भी वो बोली
------मै स्तब्ध सुनती गई ---गुस्से में बड़बड़ाती जा रही थी
कैसे बाप है वकील है भाई इंजीनियर एक भाई वकील
------और बेटी को मरने को छोड़ दिया
इसी लखनऊ शहर में शादी हुई थी सुधा की
-------बिजनेस था ससुराल वालों का कपड़े का
बहुत परेशान करते थे उसे --एक बेटा भी था साल भर का
-------मायके भेज दिया था उसे ---कुछ महीनों बाद
लखनऊ में ही तलाक का केस दर्ज हुआ
-----ये केस मेरी दोस्त के पास आया
फाइनल डेट के दिन ---जज ने पति पत्नी दोनों को बुलाया
------और एकांत में आखिरी बार बात करने को कहा
तलाक फाइनल हो चुका था ---पर न जाने क्या कहा उस आदमी ने
-------सुधा ने तलाक का केस वापस ले लिया
और वापस ससुराल चली गई -----बाप भाई गुस्से में वापस हो गये
-----यहाँ तक तो बात ठीक थी ---उसके बाद का किस्सा सुन कर
मेरा रोम रोम सिहर उठा न जाने कितनी रात न सो पाई मै
-----पता चला उसके बेटे का मोह दिला कर ले गये थे वो लोग
और वो बावली नहीं जानती थी उसकी नियति क्या थी
-----उसे ले जाकर उन राक्षसों ने ऊपर छत पर टिन की छत के नीचे
पैरों मे कुत्ते की जंजीर बाँध कर रखा था ----जाड़े गर्मी बरसात सब वही
----पहनने को सिर्फ दो कपड़े --पेटीकोट और ब्लाउज -जाड़े में फटी चादर -----खाने को चौबीस घंटे में सिर्फ सूखी एक या दो रोटी --
---दो ग्लास पानी ---लगभग साल भर ही बीता
वह हड्डियों का ढांचा भर रह गई बस - अठारह बीस किलो का वज़न
-----और एक दिन मुक्त हो गई इस यंत्रणा से ---
पैसे के बल पर पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट बनी
---उसे टीबी का रोगी दिखा दिया गया ---थाने में पैसा भर दिया
फोन गया मायके ---बाप भाई आये फिर मेरी मित्र के पास
-------वो बिफर पड़ी और भगा दिया --उसका दाहसंस्कार भी हो गया था
पुलिस प्रशासन कोई नहीं सुन रहा था ---पैसे से मुहँ बंद था
-------मैने अपनी मित्र से पूछा भी बीच में उसकी कोई खबर नहीं मिली
उसने बताया बहुत रोका था उसनें उस समय --वो नहीं मानी थी
---पर उसके इस कदम के बाद मायके वालों ने भी उसे छोड़ दिया था
उसकी बड़ी बहन जो यहाँ इसी शहर में है और सम्पन्न है
------उसे उसकी हालत की खबर रहती थी उसने उसे नहीं बचाया
सुन कर बहुत रोई थी तब मै - कितनी रातें सो नहीं पाती थी सोच कर
---कितनी भूख लगती होगी उसको --जाड़ा गर्मी कैसे सहा होगा
आखिर क्या कसूर था उसका ---उसका सीधा और सरल होना
-----या माँ होना ---सुना था उसका बेटा उसे बहुत गिडगिडाने पर
दूर से ही दिखाया जाता था ---बस इसी लालच में
---तिल तिल कर मरना स्वीकार किया --बेटे को देखती रहेगी
उफ़ आज भी सोच कर आत्मा काँप उठती है ----
-----सोचती हूं पहले ज़रा भी पता होता तो
शायेद कुछ कर पाते ------इस घटना के बाद मै आजतक
---उस की बड़ी बहन से नहीं मिली उसकी शक्ल भी नहीं देखी
---आखिर क्या गुनाह था उसका ---उसका जरूरत से ज्यादा सीधापन
या उसके पति सास ससुर की लालच---
बचपन से जानती थी उसको ---आज उसका बेटा बाईस चौबीस साल होगा
-----न जाने कहाँ होगा पर माँ को याद तो करता होगा
ईश्वर से प्राथना है कभी एक बार मिले तो बताऊँ
----तेरे बाप ने दादी बाबा ने किस तरह मारा तेरी माँ को
और नाना नानी मामा मासी सब ही हत्यारे है तेरी माँ के
----ये समाज भी --काश मै कुछ कर पाती उस समय
पर पता ही न चला ----------------------------
ये कहानी नहीं है सत्य घटना है जो कभी नहीं भूलती
उसके अपने शहर वाले जहाँ उसका बचपन बीता नहीं जानते सत्य
वह तो बस यही जानते होंगे वो बीमारी से मर गई
मै भी कहाँ जान पाती सच अगर मेरी दोस्त ही उसकी वकील न होती
उसे जानती थी --सालों से मिली नहीं थी
पर उसका धुंधला सा अक्स याद आया था तब भी और अब भी
बहुत पीड़ा हुई थी ----जब पता चला वो ही चल बसी थी
आप सब से कहना चाहती थी कब से पर शब्द नहीं मिल रहे थे
आज लिख ही दिया ---
क्या कहेंगे ऐसे मायके को ऐसे ससुराल को -----
हत्यारे...एक जैसे हत्यारे ....
कनुप्रिया
बात ये नहीं की तुमने उसे कहाँ कैसे मारा
बात ये भी नहीं की मार देने के बाद
तुम्हें कितना अहसास हुआ की तुमने मार दिया ...
मार दिया एक बच्ची को माँ के पेट में
मार दिया उसे किसी पेड़ से लटकाकर
मार दिया उसे काल कोठरी में बंद करके
या मार दिया उसके अरमानो को
फर्क नहीं पड़ता की क्यों मारा
फर्क नहीं पड़ता की मंशा क्या थी
पर जिस दिन तुमने उसे ये जानकर मारा
कि वो लड़की थी
तुम चाहे कितने ही ढोंग रचा लो
तुम्हारी नियत खराब ही है
तुमने अगर उसके अरमानों को मारा
बिना अपनी किसी मजबूरी के
सिर्फ इसलिए की वो लड़की जात है
उसे हक नहीं बराबरी से जीने का
हसने मुस्कुराने ,सपने पूरे करने का
तो तुम भी गुनाहगार हो
क्यूंकि तुमने उसे जीते जी मार दिया
तुम सब ....हाँ सब बराबर के गुनाहगार हो
चाहे तुम माँ बाप हो अजन्मी बच्ची के
या तुमने लड़की को रेप करके लटकाया फांसी पर
या उसे जला दिया दहेज की आग में
या मार दिया उसे जीते जी
सबके हाथ खून में रंगे हैं
तुम सब हत्यारे हो एक जैसे हत्यारे .....
यहाँ मैं स्पष्ट कर दूँ कि परिकल्पना टीम भूत-प्रेतों तथा अंधविश्वास में न तो विश्वास करता है और न बढ़ावा देता है। यह लेखकों के व्यक्तिगत अनुभव और विचारों की प्रस्तुति मात्र है। इसी के साथ आज का कार्यक्रम सम्पन्न करती हूँ और इस वायदे के साथ मैं आप सभी से विदा लेती हूँ , कल सुबह 10 बजे परिकल्पना पर आप सभी से फिर मुखातिब हूंगी।