टिप्पणी लिखना भी एक कला है - 'बढ़िया' 'सुन्दर' 'क्या खूब' रचना की बस तारीफ करता है, व्याख्या नहीं करता   … ना ही यह स्पष्ट होता है कि लिखनेवाले ने क्या समझा !

        रश्मि प्रभा 

विशेष टिप्पणियों के दूसरे भाग में और टिप्पणीकार :

एक प्रयास: कभी गुजरना शून्य से 


Vaanbhatt ने कहा…
ये भी एक गज़ब अनुभूति है...संवेदनशील व्यक्ति इस अवस्था का अनुभव कर सकता है...


संतोष पाण्डेय
कविता में कुछ शब्दों का प्रयोग बेहद अनूठा है। 
जैसे- दिन के कार्य 'दिवंगत करके। 
यह पक्तियां भी शब्द शिल्प की अच्छी उदाहरण हैं।
घर में रहते तीन जीव हैं
उनके भी सपने सजीव हैं।
और समापन हमेशा की तरह बेहद अर्थपूर्ण- 
रिक्त मनुज का शेष रहेगा।
छोटी पंक्तियों की गीतनुमा कविता लिखना आसान नहीं होता। श्रम, समय और साधना की मांग करती है।


ashish
जो तटस्थ है उनका इतिहास भी समय लिखेगा . शब्दशः सहमत इस आक्रोश से.



shikha varshney
नहीं...क्यों रोका जाये बेटी को आने से? ...बेटे को क्यों नहीं ??अगर नहीं दे सकते हम उसे संस्कार इंसानों वाले.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने
दीदी,
कमाल की रचना है.. बिना भाषणबाज़ी के नारी विषय के हर पहलू को आपने छुआ है.. और वो भी इतनी संवेदनशीलता के साथ कि यह निर्णय करना असंभव प्रतीत हो रहा है कि शब्द दर शब्द इस कविता की पंक्तियों में तेज़ाब भरा है कि आंसू.. बिना कुछ कहे, सिर्फ सिर झुकाए इस माँ (बेटियों को बंगाल में माँ कहकर बुलाते हैं) की सारी बातें सुन स्वीकार रहा हूँ!
इस रचना पर आपके चरण स्पर्श की अनुमति चाहता हूँ!!


rashmi ravija
आलेख में जो भी सवाल उठाये गए हैं ,वे बार बार दिमाग में आते हैं और उत्तर कोई नहीं मिलता . अगर रामायण काल्पनिक कथा भी है तो भी समाज की मानसिकता तो दर्शाती ही है . और अक्सर कथाओं में वही होता है जो समाज में घटित हो रहा होता है . इतना तो स्पष्ट है कि सभी गुणों से योग्य पुरुष भी अपनी छवि को लेकर इतना सतर्क होता है कि ये जानते हुए भी कि उसका निर्णय गलत है ,पर समाज की खातिर गलत निर्णय ही लेता है . लेखक ने राम के गुण गाकर तो उन्हें भगवान बना दिया है , समाज की मानसिकता भी दर्शा दी है पर सीता के साथ भी अन्याय नहीं किया है .उनका आत्मसम्मान सुरक्षित रखा है . अब समाज सिर्फ राम के गुण ही देख पाता है तो यह समाज का दोष है. 


असली जीवन शब्दों में असली मृत्यु शब्दों से


सुशील कुमार जोशी
वाह । कोशिश जारी रहनी चाहिये। शब्द मृत्यू मिले इससे अच्छा क्या ? :)

आशा जोगळेकर
तो - शब्दों के ब्रह्ममुहूर्त से
प्रार्थना के शब्द लो
अर्घ्य में अमृत से शब्दों का संकल्प लो
फिर दिन की,जीवन की शुरुआत करो … 

शब्दों का ऐसा ही उपयोग जीवन को सार्थक बनायेगा।

Digamber Naswa
बिलकुल सच कहा है .. शब्द ही होते हैं जो तीखे तेज़ धार बन जाते हैं और प्रार्थना भी ... 
गहरा भाव लिए ...


स्व प्न रं जि ताखामोशी


चला बिहारी ब्लॉगर बनने 
बाहर के समस्त शोर को अपने अन्दर समेटना और अपनी अंतर्यात्रा आरम्भ करना. यही यात्रा हमें परमात्मा से मिला देती है जहाम एक असीम शांति है, अपना अस्तित्व और परमात्मा के अस्तित्व में कोई भेद नहीं. एकाकार होना.. एक अद्वैत की स्थिति!!


Pallavi
आग,दिया,बाती,तेल जैसे..रुह,शरीर,ज़िंदगी,मौत सबका आपस में संबंध है और इस गहन संबंध को बहुत ही खूबसूरती से लिखा है आपने!!!

टिप्पणियों का यह सिलसिला जारी है, मिलती हूँ एक छोटे से विराम के बाद........

2 comments:

  1. अरे वाह दी टिप्पणियों का भी लेखा जोखा रखा है ………सार्थक आयोजन

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  2. कितना अच्छा लग रहा है टिप्पणी पर टिप्पणी करना :)

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