देश हमारा धरती अपनी
जूनून कभी थमता नहीं …
रश्मि प्रभा
यह धरती मेरे देश की
यह धरती मेरे देश की
यह माटी मेरे देश की
फूलों की फ़सल उगायेगी
क्यारी क्यारी महकायेगी
यह धरती मेरे देश की ।
जिस का कण कण है कुन्दन सा
जिस की रज चन्दन सी पावन
उस का ही आँचल फटा हुआ
उस की ही आँखों में सावन ।
लेकिन जब कोटि कोटि माथों से बही पसीने की धारा
तो उजड़़े चमन खिलायेगी
हर मरुथल को हरियायेगी
यह धरती मेरे देश की ।
अब खेतों में कुछ हलचल है
अब लोहे में कुछ धड़कन है
सीने में जलते अंगारे
अब बाहों में कुछ तड़पन है ।
है जाग उठी करवट लेकर अब आज़ादी की देवी
सपनों के महल उठायेगी
हर घर को स्वर्ग बनायेगी
यह धरती मेरे देश की ।
कुछ रूप निखरता दिन पर दिन
चेहरों पर कुछ अरुणाई है
कण कण सूरज के दर्पण सा
माटी ने ली अँगड़ाई है ।
अब तो रोके से नहीं रुकेगी जनगंगा की धारा
चट्टानों से टकरायेगी
शोषण के दुर्ग ढहाएगी
यह धरती मेरे देश की । यह धरती मेरे देश की ।
उस का ही आँचल फटा हुआ
जवाब देंहटाएंउस की ही आँखों में सावन ।
यह धरती मेरे देश की । यह धरती मेरे देश की ।
ब्लॉगोत्सव के माधयम से सुधेश जी को पढ़ना बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंउत्सव चलता रहे इसी तरह ....................
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