![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEicI5mPKoGdxAeraY0MCdY01JYvqQcSZcShJmxAmMFYVm0hSElj5PzpHl94N3UxC18hj6Ffe_O7rXPkPlrw8tFb7UCnEhpJ-kwY5rU_J9vy2MYIo-CJHDdwoH-wWYe_O2jmP4D-fLL34n_t/s1600/10417457_10203114373395728_762850329853582810_n.jpg)
कम शब्दों में बड़ी अर्थपूर्ण बात कहना - आसान नहीं होता
एक छोटी कहानी बहुत बड़ी सीख दे जाती है
तो चर्चित कार्टूनिस्ट काजल कुमार की इस विशेषता को भी देखिये
कार्टून के माध्यम से तो वे बहुत कुछ कह ही देते हैं
आज हम उनकी लघु कहानियों के साथ उनका कार्टून चित्र भी देखेंगे
रश्मि प्रभा
ये है नए साल की खुली बानगी -
नया साल
जेब में पैसा
तो नया साल.
पैसा नहीं
तो
एक और कम्बख़्त
कड़कड़ाती सुबह.
लघुकथा: कवि
जहां एक ओर, माता-पिता ने उसका अच्छे से लालन-पालन किया, वहीं उसका भावनात्मक विकास भी बढ़िया हुआ. लाड़-प्यार के बीच पला वह बहुत भावुक लड़का था. पेंटिंग करना उसे अच्छा लगता था. धीरे-धीरे वह श्रंगार रस की कविताएं लिखने लगा. पर पढ़ाई में ऐसे लोगों के नंबर कुछ ख़ास नहीं आते. स्कूल खत्म करके किसी अच्छे कॉलेज में दाखिला नहीं मिला, एक पत्राचार पाठ्यक्रम में दाखिला लेकर किसी कॉल सेंटर में नौकरी करने लगा. रात को जागता दिन में सोता. पेंटिंग का शौक जाता रहा.
कॉल सेंटर एक दिन बंद हो गया. दूसरी जगह काम मिला नहीं. हालांकि मां-बाप उसे कुछ कहते नहीं हैं, पर वह अब यथार्थवादी कविताएं लिखने लगा है.
लघुकथा: खण्डित मूर्ति
उसके गांव में एक मंदिर था. वह उस मंदिर के अंदर कभी नहीं गया था. मंदिर में जाने की उसकी इच्छा तो बहुत होती थी पर उसके लोगों का मंदिर में जाना मना था. उसके लोगों का माद्दा नहीं था कि अपना मंदिर बनवा लें. वह दूर से ही मंदिर को प्रणाम करके चला आता था.
मंदिर वालों ने एक दिन, एक और भगवान की मूर्ति स्थापित करने का फ़ैसला किया. पर जब मूर्ति मंदिर पहुंची तो पता चला कि उसमें तो दरार है. खण्डित मूर्ति मंदिर में प्रतिस्थापित नहीं की जा सकती थी इसलिए भक्त लोग उसे एक पीपल के नीचे छोड़ आए. जब उसे पता चला तो वह बहुत खुश हुआ कि पीपल के नीचे भगवान विराजे हैं. वह वहां गया और भगवान की मूर्ति को प्रणाम कर बोला –‘कोई बात नहीं प्रभु तुम यहीं बैठो, आज तक तुमने मेरा ध्यान रखा, अब मैं तुम्हारा ध्यान रखा करूंगा.’
वह रोज़ सुबह वहां आता, प्रणाम करता और झाड़ू-बुहारी करके लौट जाता. अब उसने मंदिर जाना छोड़ दिया था.
लघु कथा: नालायक बेटा
क का बेटा नालायक निकला. ठीक से पढ़ा-लिखा नहीं. पढ़े लिखों का ही यूं कौन ठिकाना था कि कोई उसके बेटे को पूछता. माल-मत्ता उसके पास था नहीं कि कोई लंबा-चौड़ा काम धंधा उसे खोल कर दे देता. मध्यवर्गीय जीवन ने बेटे को कई चस्के लगा छोड़े थे सो, छोटी मोटी नौकरी भी अब उसके बूते की नहीं थी. क दु:खी रहने लगा.
उसे लगा कि सन्यास ले लेना चाहिए. वह हिमालय की ओर निकल गया. यहां वहां रूकते रूकते चलता रहा वो. भूख लगती तो कि कहीं कहीं पूजा-अर्चना की जगहों में खा-पी लेता. फिर आगे निकल जाता. यूं ही एक दिन लंगर खाते खाते उसे ध्यान आया कि आख़िर ये सब सामान आता कहां से है. इस एक सवाल ने उसकी आंखों में चमक ला दी थी.
वह लौट आया. सारी जमा पूंजी इकट्ठी की और बेटे के लिए एक छोटा सा मल्टी रिलीजन पूजा स्थल खुलवा दिया. अब उसका बेटा एक सी इ ओ तरह उसका रख-रखाव करता है. धीरे-धीरे आसपास की ज़मीन ख़रीद रहा है, कमरे जोड़ रहा है, रेगुलर भंडारे करता है, डिस्पेंसरी भी खोल ली है, नैचुरोपैथी-टाइप अस्पताल का प्लान है, भक्तों के लिए सफ़ारी भी चालू की है, आश्रम और गैस्ट हाउस से गुजारा नहीं हो रहा है इसलिए भक्तों के लिए एक होटल चेन से भी बातचीत चल रही है…
क अब प्रसन्न रहता है.
http://kathakahaani.blogspot.in/
http://www.kajal.tk/
काजल जी के कार्टून बहुत मारक होते हैं :)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंयूँ ही नहीं कहा गया, 'काजल' कि कोठरी में कैसो ही सयानो जाय....!!
जवाब देंहटाएंमुझे भी यात्रा में शामिल करने के लिए आपका विनम्र अाभार.
जवाब देंहटाएंkaajal kumar ke cartoons behtareen hote hain, unhi lekhni bhi sughad hai .
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया जी
जवाब देंहटाएंकाजल जी तो वैसे भी कमाल का लिखते हैं | लघु कहानियाँ गहरे अर्थ लिए | मज़ा आ गया
जवाब देंहटाएंkaajal ji ke cartoon aur laghukatha padhna behtreen anubhaw de jaata hai
जवाब देंहटाएं