परिकल्पना हर भाषाओँ को इस उत्सव में लाकर हिन्दुस्तान की एकता का सन्देश देता है 
क्योंकि यह सत्य है 
कि मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा  … 
इस गीत के साथ भारत की शिखा वार्ष्णेय की रुसी कविता पढ़िए 


все те же
Я тоже была наивной,
В воды Волги опустив ноги
В воды, смешанные с моими слезами
Все равно вспоминала о Ганге.
Горы видела - горы Урала,
Только думала о Гималаях.
И не знала я о том раньше:
Да, зовут их, порой, непохоже,
Только вода все та же
Только земля все та же

(шиха варшней) 

(हिन्दी रूपान्तरण)

सब एक ही.

कैसी पागल थी मैं भी 
पाँव डाल कर वोल्गा में 
उस पानी में मिलाकर आंसूं  
याद करती थी गंगा को 
देखा करती थी यूराल और 
सोचती थी हिमालय को 
कैसे नहीं जानती थी मैं 
इनके नाम अलग हो सकते हैं 
लेकिन पानी तो यही है 
धरती तो वही है.




शिखा वार्ष्णेय 

मोस्को स्टेट यूनिवर्सिटी से टीवी जर्नलिज्म में परास्नातक ( with honor ) करने के बाद  कुछ समय भारत एक टीवी चेनल में न्यूज़ प्रोडूसर के तौर पर काम किया वर्तमान में लन्दन में स्वतंत्र पत्रकारिता और लेखन में साक्रिय. देश के लगभग सभी मुख्य समाचार पत्र- पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित "लन्दन डायरी" नाम से निक जागरण (राष्ट्रीय ) में नियमित कॉलम। प्रकाशित पुस्तक - यात्रा संस्मरण  - "स्मृतियों में रूस "(डायमंड बु क्स -२०१२) के लिए  "जानकी बल्लभ शास्त्री साहित्य सम्मान" "मन के प्रतिबिम्ब" प्रकाशित काव्य संग्रह।


 ब्लॉग "स्पंदन" (SPANDAN, http://www.shikhavarshney.com/ )

समय है एक विराम का, मिलती हूँ एक छोटे से विराम के बाद.....

14 comments:

  1. खूबसूरत!
    शिखा जी का ब्लॉग भी पढ़ता रहता हूँ!

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  2. शिखा जी के लेखन से अवगत हूँ | उनका ब्लॉग सच में स्पंदित कर देता है |

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन मिलिए १६ वीं लोकसभा की नई अध्यक्षा से - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. मन को छूते गहरे भाव ! बहुत सुंदर !

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  5. बहुत सुन्दर शिखा जी . पानी भी वही हिया धरती भी वही है. वाह जी वाह

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  6. नदी और पर्वत ....नाम अलग होते हुए भी एक ही धरती पर हैं ... इसी तरह इंसान में मन के भाव भी , संवेदनाएं भी एक सी हैं . बहुत सुन्दर

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  7. बहुत गहन और सुन्दर अभिव्यक्ति...

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