जब कभी हम लिखते हैं तो श्रोता ढूंढते हैं 
प्रतिक्रिया का लेखन पर गहरा असर होता है 
बिना आग में तपे सच्चा सोना नहीं होता 
बिना हथौड़े की पैनी चोट के पत्थर मूर्ति का आकार नहीं लेता 
रचनाकार की कलम को पाठक/श्रोता के शब्द निखारते हैं  … 

            रश्मि प्रभा 



संगीता स्वरुप ( गीत )
सच है महत्वाकांक्षाएं कभी कभी नीचे धकेल देती हैं ....... माता पिता हमेशा बच्चों का भला ही चाहते हैं ..... जीवन से बेदखल करके भी उनकी यही कामना रहती है कि बच्चे अपने जीवन में खुश रहें ..... न जाने क्यों लोग अधिकार पर तो ध्यान देते हैं लेकिन कर्तव्य भूल जाते हैं ... यदि कर्तव्य करें तो अधिकार तो स्वयं ही मिल जाता है । अपेक्षाओं को सीमित करें तो उपेक्षाओं से बचा जा सकता है ।

Shikha Gupta
अपनी महत्वकांक्षा बच्चों पर आरोपित करने के नतीजे हैं ....क्यूँ हम भूल जाते हैं कि बच्चों की अपनी भी कुछ इच्छायें हो सकती हैं ...जन्म देने भर से उन पर हमारा मालिकाना हक़ नहीं हो जाता ....बेहतरीन अभिव्यक्ति

संध्या शर्मा
आत्महत्या का कारण माता-पिता की महत्वकांक्षा हो सकती है, लेकिन महत्वकांक्षा बच्चे के जीवन से बड़ी कभी नहीं होती, शायद बच्चे उसके पीछे छिपे प्यार को देख नहीं पाते... बहुत गंभीर विषय है



मन के - मनके,  
अब ये खबरें अधिक विचलित भी नहीं करती.
क्या करें--देह एक व्यापार है--एक साधन है-
और कुछ नहीं.
बहुत कुछ छप चुका है--लिख भी बहुत गया है--
मोमबत्तियाम लिये जनपथ भी रोंदे गये???
कहीं से कोई आवाज आई---राहत आई???
शर्मसार हैं शर्म करने वाले--और कुछा भी नहीं.


expression
सच...न्याय का इंतज़ार कब तक...
अब तो खुद ही तलवार उठा ले स्त्रियाँ :-(
बेहद दुखद है...

मार्मिक अभिव्यक्ति.

सादर
अनु


केवल राम :
अह्सास का दूसरा पक्ष यह भी हो सकता है—जमीन में अंकुरित होते हुए बीज को निर्दयता से,बाहर निकाल दें और इस तरह एक बीज की हत्या के अह्सास ने हजारों बीजों के जीवन के अह्सासों को कुचल दिया.

सही ..विचारणीय है ...आपका आभार

इसी के साथ आज की प्रस्तुति का समापन, मिलती हूँ ......कल फिर सुबह १० बजे परिकल्पना पर । 

3 comments:

  1. आप आते हैं
    हौले हौले
    पता चल
    जाता है मगर
    कुछ कह के
    जाया करो
    अच्छा लगेगा
    आपके पैरों
    के निशाँ भी रहेंगे
    और आवाज भी
    गूँजेगी बहुत देर
    तक और बहुत
    दूर तक :)

    आज का अंक बहुत सुंदर संदेश देकर गया है ।

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  2. बहुत बढिया टिप्पणी चर्चा रही, इसे देख कर टिप्पू चचा की याद आ गई।

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  3. रश्मि जी ,
    आपने टिप्पणियों के महत्त्व को ब्लोत्सव में प्रस्तुत किया। । वरना तो सब यही कहते हैं कि टिप्पणियाँ एक हाथ दो तो एक हाथ लो । जबकि यहभी सच है कि ऐसा कहने वाले भी चाहते हैं कि उनके लिखे पर समीक्षात्मक टिप्पणी हो । वैसे उपस्थिति दर्ज कराने के लिए भीजो टिप्पणी होती है तो यह तो पता चल ही जाता है की कम से कम ब्लॉग तक आये हैं तो कुछ तो पढ़ा होगा । टिप्पणियाँ प्रेरणा की स्त्रोत होती हैं । आपके ब्लोगोत्सव के साथ चल रही हूँ । बस टिप्पणी से उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाती । आभार आज की प्रस्तुति के तीनों अंशों का ।

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