मेरी पसंद का कमरा
जिसमें एहसासों का बिछौना हैं
आओ
पन्ने पलटते जाओ
रेखाओं की दुर्लभ आकृतियाँ
तुमसे बातें करेंगी
ज़िंदगी धूप तुम घना साया
बुनने बैठो कभी
जीवन के तानो -बानो को
सलाइयों में चढ़ाओ शब्दों के फंदे
और बुनो नया बेजोड़ नमूना
और दुःख का एक फंदा उलटा
जरूरी नहीं हर उलटा गलत हीं हो
सीधे फंदों पर बनता है
सपाट साफ़ नमूना
और उलटे फंदे पर
एक गहरी लकीर
दुःख,गहराई तक जाने का
और जीवन को समझने का
हुनर सिखलाता है
सुख -दुःख के सीधे- उल्टे फंदो से
कई नमूने बनते रहते हैं
कभी देखो पलट कर
उन बने हुए हिस्सों को
और समझ लो
कितना और कैसा जिया हमने
गुज़रते वक्त के साथ
सुख -दुःख बुनने की
एक आदत हो जाती है
ज़िंदगी से कोई शिकायत नहीं
बल्कि जीवन को सलीके से
बुनने का हुनर देने के लिए
या रब तेरा शुक्रिया
नज़रिया
" एक चोर, एक पियक्कड़ और एक अकर्मण्य लेकिन एक अत्यंत बढ़िया आदमी "
गोर्की ने इसे उस सत्रह वर्षीया लड़की की प्रतिभा कहा।
समस्त बुराईयों के बावजूद किसी में अच्छाई देख पाना वाकई प्रतिभा है। अमूमन ऐसा होता नहीं है इसीलिए ये और भी मायने रखता है। हम सभी एक इंसान को अपनी -अपनी दृस्टी और सोच के अनुसार भिन्न - भिन्न नज़रिये से देखतें हैं। किसी के प्रति सोच बदलते ही नज़रिया बदल जाता है और नज़रिया बदलते ही सोच।
दॉस्तोएवस्की के कई असफल प्रेम की उनकी प्रेमिकाओं ने, उनमें अलग - अलग अवगुण देखे। किसी ने कहा - वो पाशविक थे तो किसी के अनुसार वो ईर्ष्यालु और शक्की। किसी ने उनमें जुंआरी देखा तो किसी ने अपनी चाहना के लिए प्रेम का ढोंग करता हुआ अवसरवादी भी कह दिया था। शायद इसलिए वो सभी असफल प्रेम की भागीदार बनी। ऐसा नहीं है कि समानताएं और एक जैसे विचार ही दोस्ती के लिए जरूरी हैं। विभिन्नताएं भी प्रेम पैदा कर सकती हैं।
अन्ना ग्रिगोरीव्ना और दॉस्तोएवस्की के बहुत से बेमेल विचारों के बावजूद भी वो उनके साथ उनकी मृत्यू १८८१ में, ज़िंदगी के करीब तेरह वर्ष तक उनकी पत्नी बन कर रहीं। उसने उन्हें उनकी सभी अच्छाइयों और बुराइयों के साथ स्वीकारा था। सही मायने में उनकी ज़िंदगी थोड़ा बहुत स्थिर भी उसी के बाद से हुई।
अब जो है सो है। जो नहीं है वो भी है। इसी होने और नहीं होने में ही छिपा है जीवन का असली राज और तमाम खुशियां। सिर्फ कुछ खट्टी -मीठी यादें भी बहुत होती हैं प्रसन्न रहने के लिए। बस एक नज़र चाहिए।
ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो
जब हम छोटे बच्चे थे
हम बहुत अच्छे थे
मतभेद कम थे
दोस्त बहुत थे
गलत कम था
सही बहुत थे
झूठ कम था
सच बहुत थे
काम कम थे
आँसू कम थे
हँसी बहुत थी
चिंताएं कम थीं
नींद बहुत थी
बंधन कम थे
आज़ादी बहुत थी
खामोशियाँ कम थीं
शोर बहुत था
विरक्तियाँ कम थीं
प्रलोभन बहुत थे
मायूसियाँ कम थी
गीत बहुत थे
बेचैनियाँ कम थी
सुकून बहुत था
उलझने कम थीं
मस्तियाँ बहुत थीं
सब कुछ यहीं था
सब कुछ सही था
जब हम छोटे बच्चे थे
हम बहुत अच्छे थे
रिया शर्मा
अब समय है एक विराम का, मिलती हूँ एक छोटे से विराम के बाद.........
बहुत बढिया, शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है. गोर्की के केस में ताली दोनों हाथ से बजी :)
जवाब देंहटाएं(h)
जवाब देंहटाएंजितनी तन्मयता से आप हर ब्लॉग लिखती हैं...उतनी ही तन्मयता से हर पाठक इसे पढ़ता है ...यह आपकी शैली का करिश्मा है कि हर पाठक को बाँध लेतीं हैं...सोचने पर मजबूर कर देती हैं..."क्या वाकई.."
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ।
जवाब देंहटाएं