खानदान का वास्तविक अर्थ है, बुज़ुर्गों द्वारा अर्जित 'संस्कार' जिसका पालन पीढ़ी दर पीढ़ी किया  जाता  है  … 
खानदान की रुपरेखा सिर्फ पुरुष से नहीं होती, माँ -दादी-नानी के रूप में इसमें स्त्रियों की मुख्य भूमिका होती है  . खानदान लड़के को ही सिर्फ 'वंश' माने तो संस्कार के मूल मायने यहीं धूमिल हो जाते हैं ! 'वंश' बच्चे से होता है और ज्ञान की सीढ़ी का पहला पायदान माँ' !
हम सदी दर सदी इक्कीसवीं सदी में आ गए, पर आज भी गाँव -शहरों में अधिकतर ज़ुबान कहती है - 'बेटा हो तो वंश चले' 
वंश ! - जिनकी सिर्फ बेटियाँ होती हैं उनका वंश खत्म हो जाता है ?
बेटियाँ किस घर की हैं - यह क्या सिर्फ उलाहने के लिए है ?
उसके बच्चे क्या नाना-नानी के नहीं होते ?
बेटी के घर का पानी वर्जित क्यूँ ?- क्या यह उचित संस्कार है ?- सोचनेवाली बात है कि यह वर्जित इसलिए हुआ कि पुरुष प्रधानता के आगे लड़की के माता-पिता को बहुत अपमान सहना पड़ा  . अपमानित जो करे, उसका खानदान ! किस अर्थ में ?
जरुरी है कि इस अशिक्षित विचारोँ पर मनन करें  ……… 
खानदान विनम्रता से है,उचित शिक्षा से है (उच्च शिक्षा से नहीं)
बड़े बड़े महलों से नहीं 
अपार धनराशि से नहीं  .... 

           रश्मि प्रभा 



"पीतल के पतीले " सच्ची कहानी 

 चारों तरफ जंग का माहौल था .रात भर लोग गाँव खाली करते रहे थे ...बीच बीच में बॉर्डर से गोलियों की अवाजे  भी  सन्नाटा तोड़ रही थी .माईक पर गाँव खाली करने का सन्देश बार बार सुनाया जा रहा था पर सतवंत  कौर को चैन न था .घरों में इक भी मर्द न था .सभी सीना निकाल  मोहल्लो की रखवाली कर रहे थे ,फिर ट्रेनचस भी खोदनी थी .सभी मर्द बचाव के काम में जुटे थे .आर्मी के टेंकों और भारी बूट पहने बॉर्डर पर जाते हुए सिपाहियों की आवाजे उसके दिल दिमाग पर  मनो भार में छोड़ रही थी 
 .
वो मन ही मन बुदबुदा रही थी किधर ले जाये अपने नन्हें नन्हे चार बच्चो को .तभी आसमान को चीरता दुश्मन का ज़हाज गोले बरसाता तेजी से गाँव के आसमान से गुजरा .सुना देखा दूर आग की लपटे धुआं निकलता हुआ आर्मी के अस्पताल के पीछे से ,हाय दय्या कहीं अस्पताल पर बम गिरा दिया इन मनहूस जादो  ने तो  क्या होगा .वो पड़ोसन का लड़का तो वहीं नर्सिंग सुपरवाईसर है  .तीन महीने ही तो हुए हैं चाँद सी बहू  ले कर आई  हैं प्रीतो .हे भगवान् ! सतवंत उससे आगे नही सोच पा रही थी .

रात के अँधेरे के साथ साथ सड़के भी आग उगल रही थी टेंकों की आवाज उसके कानों में दूर तक से आ रही थी वन टन थ्री टन की बख्तरबंद गाड़ियाँ असले के साथ बॉर्डर एरिया की तरफ कूच कर रहे थे  .सतवंत खुद को कोसती रही चली ही जाती कहीं बच्चों को ले कर,पर कहाँ समझ ही नहीं पा रही थी 
चाई जी पिछले साल ही गुजर गयी तब तक वो जिन्दा थी हो आती थी साल में एक  बार ,कहने को तीन भाई थे पर सब एक से एक शाने  ,बहन को कभी याद ही नहीं करते बीबियों के पिछलग्गू .
ब्लेक आउट की वजह से  अँधेरा और गहरा होता जा रहा था .यह सरदार साहिब भी ने सारे  गाँव के ठेकेदार बने हैं यह नहीं की अपने बीबी बच्चों को संभाले सतवंत मन मन में बुडबुड  कर रही थी .
 अचानक छोटा बेटा प्रिंस जाग गया .माँ हलक सुख रहा है पानी दे दे ,हाँ बेटे रुक लाती हूँ कह कर सतवंत आँगन की तरफ दौड़ी .पर घुप्प अँधेरे में हाथ को हाथ नही सूझ रहा था .किसी तरह से पानी का जग लेकर आई प्रिंस को पानी पिलाया और सभी बच्चों को अपनी छाती से चिपका कर लेट गयी  

न जाने क्या सोच रही थी अचानक उसके मन में एक  विचार कौंधा .उसने देखा प्रिंस कुनमुना रहा था उसे गोद में उठाया और गुप अँधेरे में पड़ोस के घर जा पहुची .सांकल जोर जोर से खटका  रही थी पर डरे छिपे लोग दरवाजा इतनी रात गए दरवाजा नहीं  खोल रहे थे .कहीं कोई दुश्मन का आदमी न आ टपके और सब को गोलियों से भून दे .सपन जोत दरवाजा खोल में सतवंत .दो चार बार जब ऊँची आवाज में चिल्लाई तभी सपन जोत  और उसके घरवाले ने दरवाजा खोला. 

क्या हुआ सतवंत इतनी रात को .क्या हुआ? .सतवंत बोली सपन तूने हफ्ते भर पहले जब माता की चौकी की थी तो चार पीतल के पतीले  मेरे घर से मगवाये  थे न. वो दे दे .हाँ  सतवंत पर इतनी रात को तू अपने पतीले  क्यों लेने आई है सपन बोली .और तू इतना हांफ क्यों रही है ?.क्या गाँव छोड़ के जा रही है ?
नहीं तू जल्दी से मेरे चारो  पीतल के पतीले  दे दे ,पर इतने घुप अँधेरे में कैसे मिलेगे न जाने कहाँ रखे हैं .तू अभी जा में मुह अँधेरे तेरे  पतीले  ले कर आती हूँ मैं सपनजोत बोली  .
अब सतवंत का गुस्सा सातवे आसमान पर चढने  लगा .जोर दे कर बोली नहीं मुझे अभी चाहिए सुबह का क्या पता .बेचारी सपन जोत स्थिति भापती सी ,करती क्या न करती दूसरे माले पर गयी गोदाम  का दरवाजा खोला . ब्लेक आउट के समय दरवाजो पर कार्बन पेपर ,मोमबत्ती भी जलाने की इजाजत नहीं .पर पड़ोसन दरवाजे पर .किसी न किसी तरह चालीस मिनिट की मशक्कत के बाद सतवंत  के पतीले   उसे मिले .लेकर आई और सतवंत से बोली देख ले तेरे ही है न ?

सतवंत ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं और चारो पतीले  लेकर अपने घर की तरफ मुड़ गयी .गली में कुत्ता रो रहा था उसे बड़ा अपशगुन लगा .किसी न किसी तरह से भागती प्रिंसी को संभालती अपने दरवाजे पर पहुंची .जल्दी से अंटी  से चाबी का गुच्छा निकाला  और दरवाजा खोला .

सामने की सड़क से भारी टेंक असला लेकर अभी भी जा रहे थे .सिपाहियों के बूटो की आवाजे उसे डरा रही थी और सरदार जी उसके शोहर का दूर दूर तक नहीं पता था .शायद अब सुबह ही आयें सतवंत ने कुण्डी लगा कर अन्दर से दरवाजे पर ताला जड़ दिया .

अन्दर कमरे में आई तो सभी बच्चे फर्श पर चटाई का बिस्तर बना लुढके  पड़े थे .सतवंत ने जल्दी से सभी के सिर पर एक एक  करके पतीले पहना दिए .और खुद से बोली वाहे गुरु जी मेरे बच्चों की रक्षा करना .  






एक दिल को छू लेने वाली सच्ची कहानी......

 मैं एक दुकान में खरीददारी कर रहा था, तभी मैंने उस दुकान
के कैशियर को एक ५-६ साल के लड़के से बात करते हुए देखा |
कैशियर बोला: "माफ़ करना बेटा, लेकिन इस गुड़िया को खरीदने
 के लिए तुम्हारे पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं|" फिर उस छोटे-से लड़के
 ने मेरी ओर मुड़ कर मुझसे पूछा ''अंकल, क्या आपको भी यही
लगता है कि मेरे पास पूरे पैसे नहीं हैं?'' मैंने उसके पैसे गिने और
उससे कहा: "हाँ बेटे, यह सच है कि तुम्हारे पास इस गुड़िया को
खरीदने के लिए पूरे पैसे नहीं हैं" | वह नन्हा-सा लड़का अभी भी
अपने हाथों में गुड़िया थामे हुए खड़ा था | मुझसे रहा नहीं गया |

इसके बाद मैंने उसके पास जाकर उससे पूछा कि यह गुड़िया
वह किसे देना चाहता है? इस पर उसने उत्तर दिया कि यह वो
गुड़िया है - जो उसकी बहन को बहुत प्यारी है | और वह इसे,
उसके जन्मदिन के लिए उपहार में देना चाहता है | "यह गुड़िया
पहले मुझे मेरी मम्मी को देना है, जो कि बाद में जाकर मेरी
बहन को दे देंगी" | यह कहते-कहते उसकी आँखें नम हो  आईं थीं |

"मेरी बहन भगवान के घर गयी है...और मेरे पापा कहते हैं कि
मेरी मम्मी भी जल्दी-ही भगवान से मिलने जाने वाली हैं| तो,
मैंने सोचा कि क्यों ना वो इस गुड़िया को अपने साथ ले जाकर,
मेरी बहन को दे दें...|" मेरा दिल धक्क-सा रह गया था |
उसने ये सारी बातें एक साँस में ही कह डालीं और फिर मेरी ओर
देखकर बोला -"मैंने पापा से कह दिया है कि - मम्मी से कहना कि
वो अभी ना जाएँ| वो मेरा, दुकान से लौटने तक का इंतजार करें|

फिर उसने मुझे एक बहुत प्यारा-सा फोटो दिखाया, जिसमें वह
खिलखिला कर हँस रहा था | इसके बाद उसने मुझसे कहा
"मैं चाहता हूँ कि मेरी मम्मी, मेरा यह फोटो भी अपने साथ ले जायें,
ताकि मेरी बहन मुझे भूल नहीं पाए | मैं अपनी मम्मी से
बहुत प्यार करता हूँ और मुझे नहीं लगता कि वो मुझे ऐसे
छोड़ने के लिए राजी होंगी, पर पापा कहते हैं कि उन्हें
मेरी छोटी बहन के साथ रहने के लिए जाना ही पड़ेगा |

इसके बाद फिर से उसने उस गुड़िया को ग़मगीन आँखों-से,
खामोशी-से देखा| मेरे हाथ जल्दी से अपने बटुए ( पर्स )
तक पहुँचे, और मैंने उससे कहा "चलो एक बार और गिनती
करके देखते हैं कि तुम्हारे पास गुड़िया के लिए पर्याप्त पैसे हैं
या नहीं?'' उसने कहा: "ठीक है| पर मुझे लगता है मेरे पास पूरे पैसे हैं" |

 इसके बाद मैंने उससे नजरें बचाकर कुछ पैसे उसमें जोड़ दिए,
और फिर हमने उन्हें गिनना शुरू किया | ये पैसे उसकी गुड़िया के
लिए काफी थे यही नहीं, कुछ पैसे अतिरिक्त बच भी गए थे |
नन्हे-से लड़के ने कहा: "भगवान् का लाख-लाख शुक्र है  -
मुझे इतने सारे पैसे देने के लिए!” फिर उसने मेरी ओर देख
कर कहा कि "मैंने कल रात सोने से पहले भगवान् से प्रार्थना
की थी कि मुझे इस गुड़िया को खरीदने के लिए पैसे दे देना,
ताकि मम्मी इसे मेरी बहन को दे सकें | और भगवान् ने मेरी
बात सुन ली| इसके अलावा मुझे मम्मी के लिए एक सफ़ेद
गुलाब खरीदने के लिए भी पैसे चाहिए थे, पर मैं भगवान् से इतने
ज्यादा पैसे मांगने की हिम्मत नहीं कर पाया था |

पर भगवान् ने तो मुझे इतने पैसे दे दिए हैं कि अब मैं गुड़िया के साथ-साथ एक
सफ़ेद गुलाब भी खरीद सकता हूँ ! मेरी मम्मी को सफेद गुलाब
बहुत पसंद हैं|" फिर हम वहा से निकल गए | मैं अपने दिमाग से
उस छोटे-से लड़के को निकाल नहीं पा रहा था | फिर, मुझे दो दिन
पहले स्थानीय समाचार पत्र में छपी एक घटना याद आ गयी ,
जिसमें एक शराबी ट्रक ड्राईवर के बारे में लिखा था | जिसने,
नशे की हालत में मोबाईल फोन पर बात करते हुए एक कार-चालक
महिला की कार को टक्कर मार दी थी,

जिसमें उसकी ३ साल की बेटी की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो
गयी थी और वह महिला कोमा में चली गयी थी|
अब एक महत्वपूर्ण निर्णय उस परिवार को ये लेना था कि,
उस महिला को जीवन-रक्षक मशीन पर बनाए रखना है अथवा नहीं?
क्योंकि वह कोमा से बाहर आकर, स्वस्थ हो सकने की अवस्था में नहीं थी |
क्या वह परिवार इसी छोटे-लड़के का ही था? मेरा मन रोम-रोम काँप उठा |
मेरी उस नन्हे लड़के के साथ हुई मुलाक़ात के 2 दिनों बाद मैंने
अखबार में पढ़ा कि उस महिला को बचाया नहीं जा सका |

मैं अपने आप को रोक नहीं सका, और  अखबार में दिए पते पर जा पहुँचा,
जहाँ उस महिला को अंतिम दर्शन के लिए रखा गया था |
वह महिला श्वेत-धवल कपड़ों  में थी - अपने हाथ में एक सफ़ेद
गुलाब और उस छोटे-से लड़के का वह फोटो लिए हुए|
और उसके सीने पर रखी हुई थी - वही गुड़िया |
 मेरी आँखे नम हो गयी, मैं नम आँखें लेकर वहाँ से लौटा|
उस नन्हे-से लड़के का अपनी माँ और उसकी बहन के लिए जो प्यार था,
वह शब्दों में बयान करना मुश्किल है | और ऐसे में, एक शराबी
चालक ने अपनी घोर लापरवाही से, क्षण-भर में उस लड़के से
उसका सब कुछ छीन लिया था.............
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****************** इस कहानी से, सिर्फ और सिर्फ एक पैग़ाम देना चाहता हूँ :
 कृपया - कभी भी शराब पीकर और मोबाइल पर बात करते समय वाहन ना
चलायें ..........







श्याम विश्वकर्मा 










इसी के साथ आज का कार्यक्रम संपन्न, मिलती हूँ कल फिर सुबह १० बजे परिकल्पना पर.......

4 comments:

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    1. खानदान विनम्रता से है,उचित शिक्षा से है (उच्च शिक्षा से नहीं)
      बड़े बड़े महलों से नहीं
      अपार धनराशि से नहीं ...सही कहा रश्मि दी !
      कहानियाँ भी बेहद उम्दा लगीं ! :)

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  2. पीतल के पतीले ...मर्मस्पर्शी कहानी .....अंतस्तल को सरोबार कर गयी .....तहेदिल से बधाई मंजुल जी

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