स्वागत है आप सभी का ब्लॉगोत्सव-२०१४ के छठ्ठे दिन की प्रथम प्रस्तुति में


हिंदी हैं हम वतन है हिन्दुस्तां हमारा
और इससे अलग हमारे देश में अनेक प्रकार की संस्कृति, भाषा और बोलियां हैं 
जहाँ तक संभव है 
इस उत्सव में हर भाषा का सम्मान करते हुए हम भारत के गौरव को सर झुकाएँगे - 

नीलिमा शर्मा की पंजाबी रचना से मिलते हैं 

पंजाबी नज्म हिंदी अनुवाद संग 

इक याद तेरी ने वर्का फोल्या 
इक याद मेरी ने स्याही लिती 
कुज कुज यादां तेरियाँ सी 
मिठियां मीठियाँ
कुज यादां मेरियां सी
सौंधी जही अलसाई सी

वे रान्झेया
इक बारी वेल्ली रखी
तेरे मेरे विचोड़े ने
अथरू भर भर के
अँखियाँ विच
लिखे ने
पोथियाँ हजार

अज हिज्र ने
तेरे मेनू
कमली कित्ता
अज चाड़ दितियाँ ने खड्डी ते
सारियां यादां
बन'न लई
इक दुशाला इश्क विच भिजे हर्फा नाल .............
लोड़ मैनू तेरी निग दी

हिंदी अनुवाद 
............................
एक याद तेरी ने पन्ना खोला
एक याद मेरी ने स्याही ली
कुछ यादे तेरी थी
मीठी मीठी
कुछ यादे मेरी थी
सौंधी सी ,अलसाई सी

ओ राँझा (प्रिय)
एक अलमारी खाली रखना
तेरे मेरे विरह ने
आंसू भर भर कर
आँखों में
लिखी हैं
किताबे हजार

तेरे विरह ने
मुझे
पागल किया हैं

आज मैंने खड्डी ( कपडा बन'ने की मशीन ) पर
चढा दी हैं सारी यादे
बन'ने के लिय
प्यार से भीगे शब्दों का
शाल

मुझे जरुरत हैं
तेरे प्यार की गर्मी की ...................... 


Neelima Sharrma
नीलिमा शर्मा  -
http://doonitesblog.blogspot.in/
शब्दों से   प्यार आदत बन चुकी हैं ,  मन के भाव कभी सही से उकर  आते हैं लफ्ज़ो से तो कभी कशमकश जारी रहती हैं देरतलक , कहानिया लिखना भी बहुत पसंद हैं । कई साँझा काव्यसंग्रह में शामिल  हैं  कविताएं , कहानियाँ  भी कई पत्र पत्रिकाओ मैं प्रकाशित हो चुकी हैं...... 






अब पढ़ते हैं प्रियंका सिंह को -

ਪ੍ਰੇਮ ਤਾਂ ਕਿਤੇ ਵੀ ਨਹੀਂ 
ਬਸ ਸਰੀਰ ਹੈ
ਤੇ ਬਾਕੀ ਜੋ ਹੈ ਉਹ
ਇੱਕ ਲਗਾਅ ਹੈ ਜੋ ਸਿਰਫ਼ 
ਜਰੂਰਤਾਂ ਦੀ ਪੰਡ ਹੈ

ਪ੍ਰੇਮ 
ਗੱਲਾਂ ਵਿੱਚ ਲੜਦਾ ਝੱਗੜਦਾ ਹੈ ਤੇ
ਹਾਰ ਕਰ ਦੌਡ਼ ਜਾਂਦਾ ਹੈ  ਮੁੜ ਜਾਂਦਾ ਹੈ
ਕਾਲੇ ਸਿਆਹ
ਜੰਗਲਾਂ ਵਿੱਚ.... ਸੌ ਜਾਂਦਾ ਹੈ
ਉਦੋਂ ਤੱਕ 
ਜਦੋਂ ਤੱਕ ਸਰੀਰ ਜਾਗਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ
ਤੜਫਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ..... ਭੁੱਖਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ
ਪਿਆਰ ਨਾਲ ਹੌਂਕੇ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ਤੇ
ਲੋਚਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ਕਿਸੇ  ਛੁਵਣ ਨੂੰ 

ਸਰੀਰ ਹੀ 
ਆਧਾਰ ਹੈ ਕੁੱਝ ਰਿਸ਼ਤੇਆਂ ਦਾ ਜਾਂ 
ਇੰਜ ਕੀ ਕਰੀਬ ਹੋਣ ਦਾ

ਰਿਸ਼ਤਾ...... ਕਿਦਾਂ ਦਾ ਰਿਸ਼ਤਾ ?
ਕੋਈ ਰਿਸ਼ਤਾ ਨਹੀਂ.....
ਸਰੀਰ ਦੇ ਅੱਗੇ 
ਕੋਈ ਰਿਸ਼ਤਾ ਨਹੀਂ ਟਿਕ ਨਹੀਂ ਸਕਦਾ 
ਗਰਮ, ਭੁੱਖ ਤੋਂ 
ਤੱਪਦੇ ਸਰੀਰ ਦੀ ਮਹਿਕ 
ਉਸਦੀ  ਮੱਧਮ ਜਿਹੀ 
ਤਹਿ ਹੀ ਕਾਫ਼ੀ ਹੈ
ਰਿਸ਼ਤਿਆਂ ਦੇ
ਸੁਆਹ ਹੋ ਜਾਣ ਲਈ
ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਮਰਿਆਦਾ ਨੂੰ 
ਖਾਕ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣ ਲਈਹੈ.......

ਕਮਜ਼ੋਰ ਇੱਕਲੀ 
ਅਹਿਸਾਸਾਂ ਦੀ ਭਟਕਦੀ
ਨੰਗੀ ਰਾਤਾਂ ਨੂੰ 
ਹਰ ਸਰੀਰ ਅਪਣੀ ਆਗੋਸ਼ ਵਿੱਚ 
ਲੇਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ
ਦਬੋਚਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ
ਮਸਲਣਾ ਤੇ ਭੋਗਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ....

ਮਨਿ, ਭਾਵਨਾਵਾਂ 
ਅਹਿਸਾਸ, ਸੰਵੇਦਨਾਵਾਂ ਤੇ
ਇੱਛਾਵਾਂ ਦਬੇ ਪੈਰਾਂ ਨਾਲ
ਕਮਜ਼ੋਰ ਰਾਤਾਂ ਵਿੱਚ 
ਡਰਦੀ, ਛੁੱਪਦੀ, ਭੱਜ ਜਾਂਦੀ ਹੈ

ਕਿਤੇ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ 
ਜਬਰਦਸਤੀ ਚੁੱਕ ਕੇ ਨਾ ਲੈ ਜਾਣ 
ਕੋਈ ਵਾਸਨਾ ਭਰਿਆ ਸਰੀਰ 
ਇਹਨਾਂ ਦਾ ਬਲਾਤਕਾਰ ਨਾ ਕਰ ਦੇਵੇ 
ਕਿਤੇ ਕੁਚਲ ਹੀ ਨਾ ਦੇਣ 
ਇਹਨਾਂ ਦੇ ਮਰਮ, ਇਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਆਤਮਾਵਾਂ ਨੂੰ ...

ਇਸਲਈ 
ਪ੍ਰੇਮ ਤੇ ਪ੍ਰੇਮ ਦੀ 
ਭਾਵਨਾਵਾਂ ਤਮਨਾੰਵਾਂ 
ਅਹਿਸਾਸ ਤੇ ਵੱਖਰੀ ਛੁਵਣ ਸਬ
ਪ੍ਰੇਮ ਦੀਆਂ ਅਦਾਵਾਂ ਹਨ
ਸਰੀਰ ਤੋਂ ਵੱਖਰੀ 
ਆਤਮਾ ਦੀ ਦੇਣ ਹੈ ਜੋ 
ਅਹਿਸਾਸਾਂ ਨਾਲ  ਅਹਿਸਾਸਾਂ ਦਾ ਮਿਲਣ ਹੈ
ਇਸ ਵਿੱਚ ਸਰੀਰ ਕਿਤੇ ਵੀ ਨਹੀਂ 

ਜਿੱਥੇ ਸਰੀਰ ਹੈ
ਉੱਥੇ ਸਿਰਫ਼ ਸਰੀਰ ਹੈ
ਕਿਤੇ ਕੋਈ ਰਿਸ਼ਤਾ ਨਹੀਂ, ਉਮਰ ਦਾ ਟਿਕਾਣਾ ਨਹੀਂ 
ਕੋਈ ਅਪਮਾਨ ਨਹੀਂ, ਕਿਤੇ ਉਲੰਘਣ 
ਕੋਈ ਮਰਿਆਦਾ ਨਹੀਂ 

ਇਹ ਸਰੀਰ 
ਸਾਡੇ ਉੱਤੇ ਭਾਰੀ ਹੈ
ਸਾਰੀਆਂ ਤੋਂ ਅੱਗੇ ਜਿਉਂਦਾ ਹੈ
ਸਾਰੀਆਂ ਤੋਂ ਜਿੱਤਦਾ ਹੈ

ਸਰੀਰ 
ਸਿਰਫ਼ ਸੋਣਾ ਜਾਣਦਾ ਹੈ
ਉਸਦਾ ਕੋਈ ਨਿਯਮ, ਕੋਈ ਸੀਮਾ ਨਹੀਂ 
ਹੈ ਤਾਂ ਬਸ 
ਭੁੱਖ........ ਸਿਰਫ਼ ਭੁੱਖ .....!!


हिंदी रूपांतर 

प्रेम तो है नहीं कहीं 
शरीर है बस 
बाक़ी जो है वो 
लगाव है जो जरूरतों का पुलिंदा भर है 

प्रेम 
बातों में लड़ता-झगड़ता 
हार कर वापस दौड़ जाता है 
काले घने 
जंगलों में सो जाता है
तब तक 
जब तक शरीर जागता रहता है 
तड़पता रहता है, भूखा रहता है 
प्यास से चीख़ता और 
लालायित रहता है स्पर्श के लिए 

शरीर ही 
आधार है कुछ रिश्तों का या 
यूँ कहें की क़रीब होने का 

रिश्ता……….कैसा रिश्ता ?
कोई रिश्ता नहीं 
शरीर के आगे 
कोई रिश्ता नहीं टिका 
गर्म, भूख से
तपे शरीर की महक 
उसकी हल्की सी 
ताह ही काफ़ी है रिश्तों के 
भस्म हो जाने के लिए 
उसकी मर्यादाओं को ख़ाक 
करने के लिए 

कमज़ोर 
तन्हा अहसासों की भटकती 
नंगी रातों को हर 
शरीर अपनी आग़ोश में लेना चाहता है 
दबोचना चाहता है, 
मसलना चाहता है, भोगना चाहता है 
सोना चाहता है ……..

मन, भावनाएं,
एहसास, संवेदनाएं और 
इच्छाएं दबे पाँव 
ऐसी कमज़ोर रातों में 
डर कर, छुप कर भाग खड़ी होती है 

कहीं इनका 
ज़बरन अपहरण न हो जाये 
कोई वासना से लिप्त 
शरीर इनका बलात्कार न कर ले 
कहीं कुचल न दें 
इनके मर्म, इनकी आत्मा को 

इसलिए 
प्रेम और प्रेम सम्बंधित 
भावनाएं, तमन्नाएँ 
एहसास और अनोखी छुअन सभी 
प्रेम की अदायें है, शोखियां है 
शरीर से अलग़ 
आत्मा की देन है जो 
अहसासों से अहसासों का मिलन है 
इसमें शरीर कहीं नहीं है 

जहाँ शरीर है 
वहाँ सिर्फ शरीर है 
कोई रिश्ता नहीं, कोई उम्र का ठींकरा नहीं 
कोई अपमान नहीं, कोई उलंघन, 
कोई मर्यादा नहीं 

मेरा फोटोयह शरीर 
सब पर भारी है
सबके आगे जीता है, सबसे जीता है 

शरीर 
सिर्फ सोना जानता है 
उसके कोई नियम, कोई सीमा नहीं 
है तो बस 
भूख सिर्फ ………भूख!!! ……



प्रियंका……..

© पियु.... - Blogger



अब समय है एक विराम का, मिलती हूँ एक छोटे से विराम के बाद......


5 comments:

  1. वाह वाह , क्या शानदार नज्मे !
    दोनों ही कविताओ में जीवन की खुशबु है . मिटटी का स्पर्श है . दोनों कविताओ ने प्रेम के अलग अलग डायमेंशन को छुआ है .
    दोनों को दिल से बधाई !
    विजय

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  2. दोनों ही कवितायेँ प्रेम के दो अलग रूप दर्शाती हैं ।बहुत ही सुंदर ।

    जवाब देंहटाएं

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