देखने,सुनने,कहने का नज़रिया बदल देती है …
रश्मि प्रभा
अगर यह पृथ्वी बच्चों को सौंप दी जाएँ
अगर यह पृथ्वी बच्चों को सौंप दी जाएँ
वे अमूमन हर चीज को खिलौने में बदल देंगे
खिलौने मांगता हैं
पिता उसके हाथ में रंगीन कपडे की
झूठमुठ की चिड़ियाँ देते हैं
और पुचकार कर मुंह में दवा का ढक्कन उड़ेल देते हैं
तन्मयता और धन्यता से भरे हुए
साहस और डर का मिश्रण
इन्हें कभी हत्या के लिए नहीं उकसाता
एक स्त्री पृथ्वी के नीरव कोने में
जब अकेली खड़ी सुबक रही होगी
एक बच्चा उसके पैरों से लिपटा हुआ होगा
कोई युद्ध जब राष्ट्र को एकजुट कर रहा होगा
उस एकजुट होते राष्ट्र में बच्चे इस तरह बिखर जायेंगे की फिर कभी नहीं मिलेंगे
वे गुपचुप एक रंगीन कपडे की चिड़िया की आड़ में
इस तरह बड़े हो रहें होंगे
जैसे लुप्त हो रहे हैं ।
-अहर्निशसागर-
गुस्सा हैं अम्मा----
नहीं जलाया कंडे का अलाव
नहीं बनाया गक्कड़ भरता
नहीं बनाये मैथी के लड्डू
नहीं बनाई गुड़ की पट्टी
अम्मा ने इस बार-----
कड़कड़ाती ठंड में भी
आगी की गुरसी
नहीं गाये
रजाई में दुबककर
खनकदार हंसी के साथ
लोकगीत
नहीं जा रही जल चढाने
बड़ी खेरमाई
नहीं पढ़ रही
रामचरित मानस-----
जब कभी गुस्सा होती थी अम्मा
छिड़क देती थीं पिताजी को
ठीक उसी तरह
छिड़क रहीं हैं मुझे
अम्मा इस बार-------
मोतियाबिंद वाली आंखों से
टपकते पानी के बावजूद
बस पढ़ रहीं हैं प्रतिदिन
घंटों अखबार
दिनभर बड़बड़ाती हैं
अलाव जैसा जल रहा है जीवन
हत्या, बलात्कार ,आतंक
से लिपा तुपा है अखबार
भटे के भरते जैसी
भुंज रही है अस्मिता
जमीन की सतहों से
उठ रही लहरों से
लिखी जा रही है मौन संवेदनायें
छाया हुआ है घर घर मातम-----
रोते हुये गुस्से में
कह रहीं हैं अम्मा
यह मेरी त्रासदी है
कि
मैने पुरुष को जन्म दिया
और वह बन गया जानवर-------
नहीं खाऊँगी
तुम्हारे हाथ से दवाई
नहीं पियूंगी
तुम्हारे हाथ का पानी
तुम मर गये हो
मेरे लिये
इस बार
हर बार---------
ज्योति खरे जी की बात ही कुछ अलग है । वाह ।
जवाब देंहटाएंdono kavitayen apne me sarvashreshth :)
जवाब देंहटाएंलीक से हटकर एक छोटी सी लकीर ----
जवाब देंहटाएंआपका यह अभिनव प्रयोग सृजनशीलों को नयी दिशा देता है
उत्कृष्ट प्रस्तुति ----
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर ---
दोनो कवियों की कवितायेँ लीक से हटकर | ब्लॉग पर्व का हर दिन शब्द सागर से नए नए मोती चुन कर निकाल रहा |
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