रश्मि प्रभा ....
जीना भर शेष ......
जीने के लिए
खाया भी पीया भी
भोगा भी खोया भी
किये अनेक तप चाहा मनचाहा फल
बजती रही मंदिर की घंटियाँ
जलता रहा आस्था की डोर का दीपक
मरने से पहले बुझी नहीं आस की लौ |
बीच सफ़र
डगमगाए कदम बहुत बार
बढ़ा भी रुका भी
गिरा भी संभला भी
बीने कंकर चल दिया राह पर अनथक
चलती रही आंधियाँ
बरसे बहुत गम के बादल
राह का धुंधलका घुलता रहा मंजिल पाने तक |
हर पल हर घड़ी
आती जाती रही बेआवाज़ साँसें
धड़का भी थमा भी
जीया भी मरा भी
मुखरित हुआ मौन बढ़ती रही जिंदगी
बदलते रहे पहर
लिखी जाती रही इबारत वक़्त के पन्ने पर
होती रही भोर काली रात बीत जाने के बाद |
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(अब तक जो जीया हाथ की लकीरों में था ...लकीरों में थी जिंदगी ....जिंदगी में बहुत कुछ था पर कुछ भी नहीं ....उस कुछ की तलाश में है अभी जीना भर शेष ...मेरे लिए !!)
बता मन मेरे..गीत लिखूँ कौन सा !
शब्द सारे खो गए
छा गया है मौन सा
अब तू बता मन मेरे
गीत लिखूँ कौन सा ।
शब्द सागर है भरा
साहिल है बेचैन सा
अब तू बता मन मेरे
मोती चुनूँ कौन सा ।
ज्वलंत हैं अभिलाषाएँ
अस्तित्व है गौण सा
अब तू बता मन मेरे
रास्ता बढूँ कौन सा ।
नेह हृदय है बह रहा
माझी है निष्प्राण सा
अब तू बता मन मेरे
पतवार ढूँढू कौन सा ।
अब तू बता मन मेरे
गीत लिखूँ कौन सा ....!!
उम्र पार की वो औरत
इक पड़ाव पर ठहर कर
अपनी सोच को कर जुदा
सिमट एक दायरे में
करती स्व का विसर्जन
चलती है एक अलग डगर
उम्र पार की वो औरत |
देह के पिंजर में कैद
उम्र को पल-पल संभालती
वक्त के दर्पण की दरार से
निहारती अपने दो अक्स
ढूंढती है उसमे अपना वजूद
उम्र पार की वो औरत |
नियति के चक्रवात में
बह जाते जब मांग टीका
कलाई से लेते हैं रुखसत
कुछ रंग बिरंगे ख्वाब
दिखती है एक जिन्दा लाश
उम्र पार की वो औरत |
नए रिश्तों की चकाचौंध में
उपेक्षित हो अपने अंश से
बन जाती एक मेहमान
खुद अपने ही आशियाने में
तकती है मौत की राह
उम्र पार की वो औरत !!
सु..मन
सुमन कपूर
मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार रश्मि आंटी ।
जवाब देंहटाएंमन मेरा बहुत बावरा
मैं राधा वो मेरा संवरा ।
suman kee kavitaaye man me bas jaati hia apni simplicity kee wajah se !
जवाब देंहटाएंaabhar prastuti ke liye !
(h) (h) (h)
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