कुछ रिश्ते अनाम होते हैं 
लोग !
अक्सर उनका नाम ढूंढते हैं 
पर रिश्ते 
बिना नाम के चलते जाते हैं 
उन्हें नहीं तलाश रहती किसी नाम की 
किसी सम्बोधन की 
या - मृत्यु के बाद किसी वसीयत की 
वे बस अनकही बातों का 
अनकहा सफर 
बिना किसी नाम के 
सहयात्री बन गुजार देते हैं !
लोग !
इसे स्वीकार नहीं कर पाते 
तो कभी रंगों में 
कभी शब्दों में  … उनका नाम उकेरने लगते हैं 
कभी प्रभावित 
कभी धिक्कार  … 
अनाम रिश्ते 
अनसुने भाव से बढ़ते जाते हैं 
उनके हर पल में होता है सिर्फ जीना !
लोग !
मरने के लिए एक नाम की तख्ती लिए घूमते हैं 
जाने क्यूँ ?
वे नहीं समझ पाते 
कि 
कुछ रिश्ते अनाम से 
बहुत खूबसूरत होते हैं 
उन फूलों की तरह 
जिनका नाम हम-तुम नहीं जानते  … 

                 रश्मि प्रभा 

                         अनाम रिश्ता             


“ये पोटली बांध कर कहां चलीं, माँजी?”जस्सी के घर से बाहर जाने के उपक्रम पर निम्मो बहू ने आवाज़ लगाई।
“आज सरसों का साग पकाया था, भाई जी को बहुत अच्छा लगता है। थोड़ा सा साग और चार मकई की रोटी ले जा रही हूं।“जस्सी ने धीमी आवाज़ में कहा।
“बहुत सेवा कर ली भाई जी की, अच्छा हो उन्हीं के घर रहकर उनकी पूरी देखभाल कर लीजिए।“
“ये क्या कह रही है, निम्मो, अपना घर छोड़ कर उनके घर जा कर रहूं? विस्मित जस्सी समझ नहीं पाई, निम्मो क्या कहना चाहती थी।
“ठीक ही तो कह रही हूं, अपने बेटे के समझाने पर भी बात समझ में नहीं आती। ये रोज़-रोज़ भाई जी के घर के चक्कर लगाने पर मुहल्ले-पड़ोसी कितनी बातें बना रहे हैं। कुछ तो अपने बेटे की इज्ज़त का ख्याल कीजिए। क्यों हमारी नाक कटाने पर तुली हैं?”
“किन मुहल्ले वालों की बात कर रही है, निम्मो? मेहर की मौत के बाद कहां थे ये मुहल्ले वाले? अकेली जान को अगर भाई जी और अमिया ने सहारा न दिया होता तो मेरे साथ दो नन्हे बच्चों को मेरी विधवा माँ क्या सम्हाल पाती?”
“कौन सा अहसान किया था उन्होंने? मुझे पड़ोस की मनमीत आंटी ने सब बताया है, कैसे तुम दिन-रात उनके घर में नौकरानी की तरह से खटती थीं। उसके बदले में थोड़ा सहारा दे दिया तो कौन सा उपकार कर दिया। एक बार कह दिया ये साग-रोटी ले कर नहीं जाना है। हमारे घर पैसों का पेड़ नहीं लगता।“ तैश में अपनी बात कहती निम्मो सास के हाथ से पोटली छीन बड़बड़ाती हुई अंदर चली गई।।
बहू के व्यवहार पर जस्सी उसे फटी-फटी आँखों से देखती रह गई। विरोध के शब्द मुंह से निकल ही नहीं सके। वापस अपने कमरे में जा कर कटे पेड़ सी पलंग पर गिर पड़ी। आँखों से आँसुओं का सैलाब बह निकला। कल भाई जी से कह आई थी, उनके लिए उनका मनपसंद साग बनाकर ले जाएगी। वह उसका इंतज़ार कर रहे होंगे। अमरीकन बहू से तो दो फुल्कों का भी सहारा नहीं है। बे्टा भी उसी के रंग में रंग गया है। जब तक अमिया थी भाई जी को गरम-गरम फुल्के सेंक कर खिलाती थी। आज अमिया को दुनिया छोड़े बीस दिन बीत चुके हैं। कैसे अचानक सबको छोड़ कर सोते-सोते चली गई। एक बार भी नहीं सोचा, उसके बाद भाई जी क्या करेंगे? उनका चश्मा, दवाइयां, कपड़े कौन सहेजेगा। अपनी हर बात के लिए तो भाई जी अमिया पर निर्भर थे।
आँसुओं से धुंधली आँखो में से अतीत की खिड़कियां एक-एक करके खुलने लगीं।
जस्सी और अमृत के घर पास- पास थे। दोनो घरों में बहुत मेल-मिलाप था। तीन बरस की जस्सी पांच बरस की अमृत के पीछे-पीछे घूमती। जस्सी अमृत नहीं कह पाती इसलिए उसे अमिया पुकारती। सबको जस्सी का दिया नाम इतना पसंद आया कि अमृत को अमिया ही पुकारा जाने लगा। दोनो का प्यार देख कर सब यही समझते कि वे दोनो बहने हैं। पास के बाग से कच्चे आम- अमरूद तोड़ने पर अमिया अपने ऊपर सारा दोष लेकर, माली की डांट खा, जस्सी को बचा लेती।
नन्ही जस्सी समझ नहीं पाती उसके घर उसके पापा क्यों नहीं हैं। माँ दिन- रात मशीन पर दूसरों के लिए कपड़े सिलती, कढाई-बुनाई करती, पर उसके लिए दूसरों की सिलाई के बाद बचे टुकड़े जोड़ कर फ़्राक सिल देती। हां अमिया वाली आंटी जी उसे हर त्योहार और जन्म-दिन के अलावा जब भी अमिया को कपड़े खरीदतीं तो जस्सी के लिए भी नई फ़्राक ज़रूर देतीं। अमिया के छोटे होगए कपड़ों को तो वह बड़े शौक से पहनती। अमिया के पापा भी उसे प्यार करते, पर उसके अपने पापा कहां थे?
उसे याद है जब अमिया को स्कूल में दाखिला दिलाया गया तो वह भी स्कूल जाने को मचल गई थी। बड़ी मुश्किल से उसे समझाया गया था, स्कूल में दाखिले के लिए उसकी उम्र कम थी। पांच साल की होते ही अमिया के पापा उसे खुद ले कर स्कूल में उसका नाम लिखा आए थे। पीठ पर बस्ता लादे दोनो साथ-साथ स्कूल जाने लगीं। अमिया जस्सी की पूरी जिम्मेदारी अपनी समझती। समय के साथ जस्सी की समझ में आ गया उसके पापा एक ऐक्सीडेंट में उसे और उसकी माँ को हमेशा के लिए छोड़ कर भगवान के पास चले गए थे। पापा के घरवालों ने जायदाद से माँ का हिस्सा भी छीन कर उसे बेघर कर दिया था। गांव वापस लौटी माँ और नन्ही जस्सी को अमिया के पापा और मां ने अपने रिश्तेदारों से बढ कर माना था।
गांव जैसे उस छोटे कस्बे में लड़कियों के लिए दसवीं तक का स्कूल खुल जाना उनका सौभाग्य ही था। अमिया दसवीं पास कर चुकी थी। उसे शहर भेजते उसकी माँ को डर लगता था।
‘जवान लड़की को अकेले छोड़ना खतरे से खाली नहीं है। कल को कोई ऊंच-नीच हो जाए तो किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेंगे।“
ये अमिया की किस्मत ही थी कि स्कूल में ग्यारहवीं कक्षा शुरू कर दी गई। अमिया के स्कूल ना जाने की कल्पना से जस्सी उदास थी। अब वह भी खुशी से चहक उठी।
“अब कितना मज़ा आएगा हम दोनो साथ-साथ जाएंगे।“
“अगर तेरी अमिया की शादी दूसरे शहर में हो गई तब तू क्या करेगी, जस्सी?” अमिया की माँ ने मज़ाक में कहा।
“तब हम भी अमिया के साथ उसके घर जाएंगे।“ जस्सी ने तपाक से कहा।
जस्सी के भोले जवाब पर सब हंस पड़े।
अमिया की मां की आकस्मिक मृत्यु ने सबको स्तब्ध कर दिया। उस कठिन समय में अमिया को जस्सी की माँ और जस्सी ने सम्हाला था। पत्नी की मृत्यु के बाद अमिया के पापा जीवन के प्रति उदासीन  होगए। माँ के जाने के बाद अमिया का अधिकांश समय जस्सी के घर ही बीतने लगा। जीवन से विरक्त अमिया के पापा ने एक तरह से सन्यास ही ले लिया था। माँ की मृत्यु के बाद उन्नीस वर्ष की अमिया भी बहुत समझदार हो गई थी। वह अपने पापा की हर तरह से सेवा करती, पर उनका अकेलापन दूर करना कठिन था।
पत्नी की मृत्यु के बाद एक घनिष्ठ मित्र  की मृत्यु ने अमिया के पापा को और भी तोड़ दिया। मित्र का बेटा कुन्दन अनाथ हो गया, मित्र की पत्नी पहले ही दुनिया छोड़ कर जा चुकी थी। कुन्दन एक सौम्य-सुशील और शिक्षित युवक था। अमिया के पापा को कुन्दन अपनी बेटी के लिए हर तरह से योग्य वर लगा था। बेटी के दायित्व से मुक्त होने के लिए एक शुभ मुहूर्त में अमिया और कुन्दन का विवाह हो गया। शादी में जस्सी की माँ ने दिन रात काम करके अमिया को माँ की कमी महसूस नहीं होने दी।
अमिया की शादी में जस्सी के उत्साह का अन्त नहीं था। शादी पर पहनने के लिए अमिया ने जस्सी के लिए भी नए सूट सिलवाए थे। धानी सलवार सूट पर टिशू की चुन्नी के साथ गले में मोती की माला और कान में मैचिंग झुमके पहने जस्सी खूब सज रही थी। साथ की लड़कियां कुन्दन को छेड़ रही थीं। जस्सी को कुन्दन से सहानुभूति हो आई। प्यार से पूछा-
“हम आपको जीजू नहीं कहेंगे, भाई जी कहें तो कैसा रहेगा?’
“मुझे बहुत अच्छा लगेगा। मेरी कोई बहिन नहीं है, तुम जैसी बहिन पाकर तो हर त्योहार की खुशी दुगनी हो जाएगी।‘’मुस्करा कर कुन्दन ने कहा था।
“तो ठीक है, अब हमे कोई परेशान नहीं करेगा। मेरे भाई जी परेशान करने वालों को सज़ा देंगे।‘’
“मेरी बहिन को कौन परेशान करता है? नाम बताओ, उसकी अक्ल ठिकाने लगा दूंगा।“ कुन्दन ने बनावटी गुस्से से कहा।
“सच, तब तो बड़ा मज़ा आएगा। जानते हैं, पास के कस्बे में रहने वाला मेहर रोज़ साइकिल से हमारे पीछे आता है। हमसे बात करना चाहता है, पर हम बात नहीं करते।“
‘तुम बहुत अच्छा करती हो। हम उस मेहर को देख लेंगे।“
शादी में अमिया को माँ की कमी खल रही थी, पर जस्सी और उसकी सहेलियों ने नाच-गा कर रौनक कर दी। जस्सी का नाच तो देख कर सब तालियां बजाते नहीं थक रहे थे। अचानक अपने सामने मेहर को खड़ा देख जस्सी रुक गई। ये लो शिकार तो खुद सामने आगया था।
“तुम यहां? मेरा पीछा करने का अभी मज़ा मिल जाएगा, समझे।“
“अरे वाह गुस्से में तो तू और सोंड़ी लगती है। तेरा पीछा तो इस जिंदगी में नहीं छोड़ने वाला।“ मेहर बेखौफ़ हंस रहा था।
‘चलो ज़रा हमारे भाई जी के पास चलो, सब पता चल जाएगा।‘
“जो हुकुम सरकार, चलिए।“
मेहर अकड़ कर चल रही जस्सी के पीछे मुस्कुराता चल रहा था।
“ये देखिए भाई जी इसकी हिम्मत, यहां भी पीछा करता आगया।“कुन्दन के पास पहुंच जस्सी ने शिकायत की।
“’माफ़ करें प्राजी, देरी से आया हूं। आज फ़ैक्टरी से लौटने में देर हो गई।“ कुन्दन के पांवों पर झुकते मेहर ने कहा।
“अच्छा तो तू ही मेरी बहिन का पीछा करता है। मेरी शादी के दिन तो फ़ैक्टरी से देर में आया और मेरी बहिन का पीछा करने आते वक्त क्या फ़ैक्टरी जल्दी बन्द हो जाती है? देख आगे से ये नहीं चलेगा।‘’बात खत्म करते कुंदन के चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई।
“आप इसे जानते हैं भाई जी?” विस्मित जस्सी ने पूछा।
“हां, ये मेरे पापा के दोस्त का पुत्तर है। अब ये तुझे परेशान नहीं करेगा।“
“तो आप इसे सज़ा नहीं देंगे भाई जी?’”जस्सी निराश दिखी।
‘तेरी दी हुई सज़ा क्या कम थी? जानते हैं प्राजी, एक दिन मैं काम से इधर आ रहा था ये अमरूद के पेड़ पर चढी कच्चे अमरूद तोड़ कर फेंक रही थी। मैंने मना किया तो सीधे एक अमरूद मेरे सिर पर फेंक मारा। कई दिनो तक माथे पर गोमड़ा पड़ा रहा।“मेहर ने कहा।
“अरे वाह, मेरी बहिन का निशाना तो बड़ा पक्का है। सीधे तेरे माथे पर लगा।‘’ कुन्दन हंस पड़ा।
मेहर ने शरारत से जस्सी को  देखा तो जस्सी चिढ कर भाग गई। मेहर की मुग्ध दृष्टि जस्सी को अपनी पीठ पर जमी साफ़ महसूस हो रही थी।
जस्सी को इसी बात की खुशी थी कि अमिया अपने घर में ही रहेगी और अब कुंदन भाई जी भी साथ में रहेंगे। दोनो के साथ जस्सी को खूब मज़ा आएगा। अगर अमिया को किसी और जगह जाना होता तो जस्सी सह नहीं पाती। अमिया की तरह कुंदन भी जस्सी को छोटी बहिन की तरह से स्नेह देता। तीनो का समय अच्छा बीत रहा था।
अमिया की शादी के बाद उसके पापा कुन्दन पर सारी ज़िम्मेदारी छोड़ कर हरिद्वार चले गए। अमिया और कुन्दन ने उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की, पर वह नहीं रुके। इस बीच मेहर का उनके घर आना-जाना लगा रहता। अमिया छेड़ती-
“सच कहो, मेहर भाई तुम यहां हमारी जस्सी के लिए आते हो न?”
उत्तर में मेहर मुस्कुरा देता। अब उसे जस्सी का पीछा करने की ज़रूरत नहीं थी। कुन्दन काम में व्यस्त रहता। उसने अमिया के पापा का काम बड़ी अच्छी तरह से सम्हाल लिया था। घर में उसके न रहने पर जस्सी और अमिया की बातों का पिटारा खुल जाता। कभी- कभी मेहर भी उनकी बातों में शामिल हो जाता। जस्सी पर उसकी मुग्ध दृष्टि अमिया से छिपी नहीं थी। मेहर की मज़ेदार बातें जस्सी को भी हंसा देतीं। कभी-कभी दोनो की आँखें मिल जाने पर जस्सी शर्मा जाती। अब उसे मेहर से कोई शिकायत नहीं थी बल्कि अब वह जस्सी को अच्छा लगने लगा था।
राखी के दिन जस्सी बहुत उत्साहित थी। अपने हाथो से मिठाई बना कर पूजा की थाली सजाई। कुन्दन को राखी बांधती जस्सी का चेहरा चमक रहा था। कुन्दन की आंखों में खुशी के आँसू आ गए। जस्सी को उपहार दे कर कहा-
“आज मेरी जिंदगी की सबसे बड़ा खुशी का दिन है। मुझे राखी बांधने वाली बहिन मिल गई है।“
“और हमे एक प्यारा भाई मिला है, पर अमिया को हम भाभी नहीं कहेंगे। हमारे लिए वो अमिया ही रहेगी, मेरी बड़ी बहिन।“जस्सी ने फ़ैसला सुना दिया।
आखिर मेहर ने अपने मन की बात खोल ही दी, वह जस्सी से शादी करना चाहता था। अमिया ने जस्सी की माँ के सामने मेहर का प्रस्ताव रख दिया।
“मेहर हर तरह से जस्सी के लिए अच्छा पति साबित होगा। गांव में उसकी ज़मीन जायदाद है। मेहर का बड़ा भाई कहने को तो सौतेला है, पर वही खेती सम्हालता है और मेहर अल्मूनियम बनाने वाली फ़ैक्टरी में काम करता है।“
जस्सी की माँ को भला क्या ऐतराज़ होता। बिना बाप की बेटी को घर बैठे अच्छा घर-वर मिल जाए तो और क्या चाहिए। एक दिन जस्सी को अकेले पा मेहर ने पूछा-
‘’मेरी घरवाली बनेगी, जस्सी? तुझे पलकों पर बिठा कर रक्खूंगा।“
“अगर तेरी पलकें मेरा बोझ उठा सकें तो मंज़ूर है, मेहर?”जस्सी ने मज़ाक किया।
उत्तर में मेहर ने नाज़ुक फूल सी जस्सी को अपनी सबल बांहों में उठा कर चक्कर दिला दिए। डर से जस्सी ने आँखें मूंद लीं।
जस्सी की शादी में अमिया और भाई जी ने कोई कसर नहीं छोड़ी। जस्सी की माँ कम खर्चे की बात करती तो भाई जी कहते-
“ये मेरी बहिन की शादी है, कोई कमी कैसे रह सकती है।“
अमिया के कंधे पर सिर धर कर रोने के बाद जस्सी विदा हो गई। शादी के बाद मेहर ने जस्सी को अपने प्यार से अमिया और माँ का अभाव भुला दिया। अमिया के बेटे के जन्म पर जस्सी खुशी से नाच उठी। पूरे एक महीने अमिया और उसके बेटे के साथ रहने पर भी उसका दिल नहीं भरा। मेहर रोज़ चक्कर लगाता रहा और जस्सी को वापस जाना पड़ा। विदा करती अमिया ने हंसते हुए मेहर से कहा-
“जस्सी को बच्चे से इतना प्यार है, अब इसे अपना बच्चा चाहिए, मेहर्।“
‘”जो हुकुम परजाई जी। ये कहे तो बच्चों की लाइन लगा दूं।‘’मेहर ने शैतनी से कहा।
“धत्त, बेशरम कहीं का।“ जस्सी ने लजा कर चुन्नी में मुंह छिपा लिया।
मेहर ने अपना कहा सच कर दिखाया। एक-एक साल के अन्तर पर जस्सी का बेटा और उसके बाद बेटी का जनम हुआ था। दोनो बच्चों के जनम पर अमिया बड़ी बहिन होने के नाते ढेर सारी सौगातें लेकर आई थी। सब कुछ कितना अच्छा चल रहा था कि मेहर अचानक बीमार पड़ गया। भयानक खांसी के साथ सांस लेने में तकलीफ़ होने लगी। आराम ना आने पर शहर के बड़े डाक्टर को दिखाया गया। जांच में पता चला उसके दोनो फेफड़ों में कैंसर ने घर बना लिया था। देर होने की वजह से कैंसर बहुत फैल चुका था। उसके बाद मेहर ने कितने कष्ट में तीन महीने काटे थे। उसकी मौत पर सौतेले भाई और भाभी ने उसे मनहूस कह कर घर से निकाल दिया। “तू मनहूस है, तेरी वजह से मेरा जवान भाई चला गया।“भाई ने जस्सी को सुनाया।
“अब हमे और हमारे बच्चों पर रहम कर और यहां से चली जा।“भाभी ने हाथ जोड़े।
“इन दो बच्चों को ले कर कहां जाएंगे? हमे घर के कोने में पड़ा रहने दो। ये आपके भाई के बच्चे हैं।‘ जस्सी की आँखों से आँसू बह रहे थे।
“कहीं भी जा, हमे मतलब नहीं। मेहर की बीमारी में हमारा सब कुछ खत्म हो गया। अब तीन-तीन पेट कहां से भरेंगे। सीधी तरह से चली जा वर्ना- - भाई ने चेतावनी दी।
जस्सी की विनती का कोई असर नहीं हुआ। निरुपाय जस्सी फिर उसी घर में वापस आ गई जहां से उसकी डोली उठी थी। अमिया उसे सीने से लिपटा कितना रोई थी। भाई जी ने स्नेह से सिर पर हाथ धर कर कहा था-
“जब तक तेरा भाई जिंदा है, तू और तेरे बच्चे मेरी जिम्मेदारी हैं। उस घर में तुझे कभी वापस नहीं जाना होगा जहां से मेरी बहिन को अपमानित करके निकाला गया है।“
सच यही था कि जस्सी और उसके बच्चे अमिया और भाई जी के संरक्षण में शान्त और सुखी ज़िंदगी बिता सके थे। उन्होंने अपने इकलौते बेटे और जस्सी के बच्चों में कोई भेद नहीं रखा था। जस्सी को पास के प्राइमरी स्कूल में टीचर की नौकरी मिलने पर अमिया नाराज़ हो उठी।
“क्यों तुझे क्या ज़रूरत है काम करने की? तेरे भाई जी के पास रब्ब का दिया इतना है कि तीन की जगह दस लोगों के रोटी खाने पर कमी नहीं होने वाली है।”
“कुछ काम करूंगी तो जी लगा रहेगा, अमिया। बच्चे तो अब बड़े हो गए हैं। उनके सिर पर तेरा और भाई जी का साया बना रहे, मुझे उनकी कोई फ़िकर नहीं है”
अमिया के बेटे कमल को अमरीका पढाई के लिए जाने का मन था। उसके साथ भाई जी जस्सी के बेटे अमर को भी भेजना चाहते थे, पर अमर समझदार लड़का था, उसने हिंदुस्तान में ही पढाई और नौकरी का फ़ैसला लिया था। चार साल बीत गए। उस बीच जस्सी की बेटी की शादी एक अच्छे घर-वर के साथ धूमधाम से हो गई। कन्या दान भी अमिया और भाई जी ने ही किया था। जिस दिन कमल अमरीका से अमरीकी लड़की के साथ ब्याह करके घर वापस आया। अमिया टूट गई। जस्सी के सामने फूट पड़ी-
“मेरे तो सपने तो टूट गए, जस्सी। अमरीकी बहू के साथ चार बात भी तो नहीं कर सकती।
उसकी गिट्पिट बोली कैसे समझूं। यही दिन दिखाने के लिए कमल को अमरीका भेजा था।“
कमल के लौटने के बाद उसकी शादी के सपने देखती अमिया ने न जाने कितने कीमती जोड़े खरीद कर रख रखे थे। उसकी स्कर्ट और फ़्रॉक पहनने वाली बहू को वो भारी ज़री के कामदार कपड़े ज़रा भी नहीं भाए। अमर की शादी में वो कीमती कपड़े जस्सी की बहू निम्मो की किस्मत में आए। आज वही निम्मो भाई जी के लिए चार रोटी और साग ले जाने पर क्या कुछ नहीं सुना गई। नहीं जस्सी अब तुझे दिल पर पत्थर रखने होंगे। आंसू पोंछ जस्सी उठ गई। भाई जी से सब कुछ कहना ही होगा। जिस निम्मो पर अमिया जान छिड़कती थी आज उसके खिलाफ़ बोलते उसकी ज़ुबांन ज़रा नहीं हिचकी।
सब सुन कर भाई जी सोच में पड़ गए। सहज हो कर कहा-
“परेशान मत हो, मेरी बहना। जब से अमिया गई है तभी से मेरा दिल यहां नहीं लगता। मैंने एक आश्रम में जाने का पक्का निश्चय कर लिया है। वहां मेरे पास आने में तुझे कोई नहीं रोक सकेगा। वहां तेरे लिए मेरी मन पसंद रोटी-साग बनाने का पूरा इंतज़ाम है।‘भाई जी मुस्कराए।
“हाय, भाई जी, इतना बड़ा घर छोड़ कर आश्रम में रहोगे? नहीं आप कहीं नहीं जाओगे।“
‘घर तो घरवाली से बनता है, जब घरवाली ही नहीं रही तो कैसा घर? एक बात याद रख, जब तक मैं ज़िंदा हूं, जहां भी मैं रहू, वो जगह तेरा मायका है। जब जी चाहे अपने भाई जी के पास आ जाना। खर्चे की पर्वाह मत करना। तेरे भाई के पास अपनी बहिन को आराम से रखने के लिए पैसों की कमी नहीं है।“
‘भाई जी, शायद मेरा सगा भाई भी होता उससे भी इतना प्यार नहीं मिलता।“ जस्सी की आँखों से आँसू बह निकले।
“क्या मैं तेरा सगा भाई नहीं हूं? जिस दिन बेटे-बहू से न बने बेहिचक भाई के पास चली आना।“प्यार से जस्सी के सिर पर आशीष का हाथ धरते भाई जी की आँखें नम थीं।

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पुष्पा  सक्सेना

A nationally acclaimed writer. Authored 25 books. TV serials,plays and Tele films are being made .Wrote 250 stories on AIDS awareness





अनाम से रिश्ते 

कुछ रिश्ते जो अनाम
 होते है ,
फिर भी मन  के करीब
 लगते है ...
जिनको छूने से भी डर
 लगता है लेकिन 

 मन से महसूस तो किया
 जाता है ,
जुबान पर नहीं लाया जाता ...
और नाम भी नहीं दिए जाते 
ऐसे अनाम रिश्तो को....
तो फिर क्या कहिये ऐसे रिश्तों 
को,
 जिनका नाम आते ही होठों पर 
एक मधुर मुस्कान सी  आ 
जाती है ,
उस अनाम से रिश्ते को मुस्कान 
के रिश्ते का नाम  तो दे ही 
सकते है ....
Upasna Siag का प्रोफ़ाइल फ़ोटो

उपासना सियाग 








इसी के साथ आज का कार्यक्रम संपन्न, मिलती हूँ अगले सोमवार को, 
तब तक के लिए शुभ विदा ।  


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