कई ब्लॉग हैं,जहाँ पहुँचकर मेरा मन कहता है -
"अब तक क्यूँ नहीं मिले?"
ब्लॉग कहता है -
"यह मेरी गलती ?"
जो मैं देर से पहुँची
पर .... पहुँच ही गई
और अपने पे गुरुर है
कि परिकल्पना के उत्सव में मैं इन्हें ले आई ....
.कहते हैं,............... कर्तव्य के साथ विनम्रता न हो - तो कर्तव्य अर्थहीन है
अधिकार के साथ स्नेह न हो - तो अधिकार हिंसक है
महत्वाकांक्षा के आगे हार की रुकावट न हो
इच्छाशक्ति प्रबल न हो
- तो महत्वाकांक्षा कुरुक्षेत्र बनती है ...
मिलावट ज़रूरी है दोस्त :)
………………।
आवाज़ उतनी ही बुलंद कीजिये जो परिवर्तन का आगाज़ कर सके,विस्फोटक स्थिति न लाये …
रश्मि प्रभा
सोमेश सक्सेना का ब्लॉग और उनकी एक अलग अर्थपूर्ण बात -
"लेखन में रूचि होने के बावजूद ब्लॉग लेखन मैं ठीक से कर नहीं पाया, न तो नियमित रूप से ब्लॉग लिखता हूँ और न ही दूसरे ब्लॉग्स पर टिप्पणी करता हूँ इसलिए मैं खुद को ब्लॉगर के बजाय "लगभग ब्लॉगर" मानता हूँ। बस इसलिए ब्लॉग का नाम भी रख दिया "लगभग ब्लॉग", वैसे भी जिस ब्लॉग पर छह साल में तीस पोस्ट भी न हों उसे ब्लॉग के बजाय लगभग ब्लॉग कहना ही उचित होगा।"
नाम-वाम में क्या रखा है ! - इन स्थितियों की गहराई में उतरिये
लडकियाँ खुश हैं (?)
'एक'
वह लड़की अपने भाई-बहनों में सबसे होशियार थी. बचपन से पढाई में अव्वल थी. नृत्य, संगीत और पेंटिंग आदि में भी रूचि रखती थी. सभी को उम्मीद थी कि बड़ी होकर वह बहुत नाम कमाएगी. अच्छा करियर बनाएगी. ग्रेजुएशन होते ही उसकी शादी हो गयी. उसका पति एक बड़े शहर में, एक बड़ी कंपनी में काम करता है. बहुत अच्छे पैसे कमाता है. शादी के कुछ साल बाद ही पति ने एक फ्लैट खरीद लिया, कार, ए. सी. जैसी तमाम सुख-सुविधाएँ इकट्ठी कर लीं. अब वह हाउस वाइफ है और बच्चों को बड़ा कर रही है. अपनी सहेलियों के साथ किटी पार्टीज करती है. पैसों का भरपूर उपयोग करती है. पर अब उसकी सारी इच्छाएँ पति के अधीन हैं-
"इनको मेरा डांस करना पसंद नहीं है इसलिए अब डांस नहीं करती."
"इनको मेरा गाना गाना पसंद नहीं है इसलिए गाना नहीं गाती."
"इनको मेरा जींस पहनना पसंद नहीं है, वैसे भी मुझे साड़ी पहनना ही अच्छा लगता है."
"आप लोग जाओ फिल्म देखने मुझे इनसे पूछना पड़ेगा."
"नहीं, शादी में मैं नहीं आ पाऊँगी. इनके पास समय नहीं है और अकेले ये मुझे आने नहीं देते."
रोज पति और बच्चों की पसंद का खाना बनाते हुए वह सोचती है कि उसकी लाइफ कितनी अच्छी है. टी. वी. पर महिला उत्पीडन और घरेलु हिंसा की ख़बरें देखकर सोचती है कि शुक्र है मुझे इन सबसे नहीं गुजरना पड़ा.
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'दो'
वह मेरे एक मित्र की रिश्तेदार थी. एक छोटे से कस्बे से इस बड़े शहर में पढ़ने आयी थी. एक बार संयोग से उससे मुलाक़ात हुई. बातों बातों में उसने कहा कि उसने भी फेसबुक प्रोफाइल बनाया था पर 'भैया' ने कहा डिलीट कर दो तो डिलीट कर दिया. फिर और भी बातें निकलती गयीं भैया के बारे में.
"मुझे तो लम्बे बाल ज्यादा पसंद नहीं है पर भैया कटवाने नहीं देते."
"मेरे आने जाने का टिकट भैया ही करके देते हैं."
"भैया बोलते हैं होस्टल में मत रहना. वहां का माहौल अच्छा नहीं होता"
"भैया मेरी पढाई का बहुत ध्यान रखते हैं, कुछ भी होता है तो उन्ही से कहती हूँ."
"मेरे लिए राशन और साबुन वगैरह भैया ही ला देते हैं, महीने में दो तीन बार यहाँ आकर देख लेते हैं कुछ जरुरत तो नहीं है. कहते हैं फ़ालतू में फ़िज़ूल खर्च करने को मन करते हैं."
यह सब कहते समय उसके चेहरे के भावों और बातों से कहीं ऐसा नहीं लगा कि उसे अपने भैया से कोई शिकायत है. उल्टा भैया की तारीफ़ ही करती रही. उसके भैया के बारे में मेरी उत्सुकता बढ़ गयी थी. बाहर आते ही मैंने मित्र से इस बारे में पूछा. उसने बताया कि उसका "भैया" उससे दो साल छोटा है और दसवीं में दो बार फ़ैल हो चूका है.
सुन कर मैं अवाक रह गया.
सोमेश सक्सेना
http://someshsaxena.blogspot.in/
समय है एक विराम का, मिलती हूँ एक छोटे से विराम के बाद.....
संतोष करना स्त्री गुण
जवाब देंहटाएं8-) (m)
खोजने वाला भी तो आप जैसा होना चाहिये तभी तो मिलता भी है कोई इस तरह बहुत सुंदर ।
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