एक निःशब्द क्रंदन बतर्ज़.. चल उड़ जा रे पंछी
बहुत ज़द्दोज़हद के बाद यह तय पाया गया कि , अब यहाँ से चलना चाहिये । मेरी एक मनपसंद कविता है, " कोशिश करने वालों की हार नहीं होती .. " जब यहाँ पेज़ लेआउट, एलिमेंट एवं सेटिंग, संपादन वगैरह में दख़ल ही ना रहा तो ज़ाहिर है कि यह देश हुआ बेगाना......चल उड़ जा रे पंछी ऽ
वस्तुतः पंछी मुझे बचपन से ही आकर्षित करते रहे हैं, अपने छत पर कहीं छाँव में चारपाई डाल कर उनको खुले आसमान में स्वछंद उड़ते देखने का सुख अवर्णनीय है । हर चिंता फ़िक्र को अपने डैनों से झाड़ते हुये निरद्धंद विचर रहे होते यह पखेरू पता नहीं किस अनारकली का संदेश इधर से उधर कर रहे होते हैं । ऊपर आकाश से नीचे की ज़मीनी हक़ीक़त पर एक विहंगम दृष्टि फेरते हुये, जैसे हम धरती वालों पर मनमर्ज़ी बीट करने को सर्वथा स्वतंत्र , ये पाखी !
भला सोचिये आँधी तूफ़ान से उजड़ा इनका बसेरा इनको तनिक भी अवसाद नहीं देता । थोड़ी देर की चमगोईंयाँ, बस ! फिर मौसम खुलते ही अविचल अपने नीड़ का निर्माण फिर से करने में जुट जाना कितना प्रेरणादायक है । चूज़ों को मर खप कर चुगाना और फिर उन्हें अपनी आज़ाद ज़िन्दगी जीने को छोड़ देना, न कि उनसे अपने खिलाये पिलाये का हिसाब माँगना, जैसे वही हम मनुष्यों से ऊपर हों....!
ये बातें डॉक्टर अमर कुमार ने ०६ मार्च २००८ को कुछ तो है....जो कि ब्लॉग पर कही थी, तब शायद मुझे ये अंदेशा नहीं था कि डाक्टर साहब का साथ अब केवल तीन वर्षों का हीं है। डाक्टर साहब से मैं काफी अंतरंगता के साथ जुडा था । बात उन दिनों की है ज़ब हिंदी ब्लॉगिंग में सर्वाधिक सक्रिय ब्लॉगरों की संख्या काफी कम थी, मैं भी नया-नया हिंदी ब्लॉगिंग में आया था । डाक्टर साहब की छवि उस समय भी एक समालोचक की थी । उनकी आलोचना को कोई भी बुरा नहीं मानता था । उनसे मेरी निकटता २८ अक्तूबर २००७ को बढी, जब उन्होंने मुझे अपने ब्लॉग कुछ तो है.....जो कि पर लिखने हेतु आमंत्रित किया । उनके इस विनम्र आमंत्रण को मैं ठुकरा न सका और उनके साथ पूरी आत्मीयता के साथ जुड़ गया । मुझसे दो दिन पहले यानी २६ अक्तूबर को इस ब्लॉग से सुनीता शानू जी भी जुडी थी । तीन लोगों का यह सामूहिक ब्लॉग रंग लाना शुरू कर दिया था, किन्तु व्यक्तिगत ब्लॉग को ज्यादा समय देने के कारण इस ब्लॉग पर हम तीनों की हलचलें ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकी और इस ब्लॉग पर हम लोगों ने आपसी सहमति से लिखना बंद कर दिया । डाक्टर साहब से हमारी आत्मीयता लगातार बनी रही । एक अभिभावक की तरह वे मुझे हमेशा सुझाव देते रहते थे, किन्तु उन्होंने मुझे एक वचन दिया था कि चाहे जैसी भी बिपरीत परिस्थितियाँ हो हम सार्वजनिक रूप से एक-दुसरे की आलोचना नहीं करेंगे । कुछ कहना होगा तो एक-दूसरे को केवल मेल पर ही कहेंगे । उन्होंने अपने इस वचन का निर्वाह आखिरी समय तक किया ।
बात उन दिनों की है जब परिकल्पना सम्मान और ब्लॉगोत्सव को लेकर हिंदी ब्लॉग जगत के कुछ ब्लॉगरों के द्वारा मुझपर शब्द-प्रहार किये जा रहे थे, उस समय डाक्टर साहब मुझें बार-बार मेल करके संयम बरतने का आग्रह कर रहे थे । मुझे एक अभिभावक की तरह समझा रहे थे ।
रवीन्द्र जी,
हिन्दी ब्लॉगिंग के इतिहास को एक समेटने का आपका प्रयास कितना श्रमसाध्य है, यह सोच कर ही झुरझुरी होती है, क्योंकि मैंनें वर्ष 2009 के उत्तरार्ध में इसकी योजना बनायी थी, किन्तु इसके सर्वेक्षण में ही मेरा दम निकल गया.. और फिर मुझे अपने यूँ ही निट्ठल्ला का मान रखना था, अतः मैं चुप हो बैठ गया । अपने सपने को यूँ साकार होते देख मुझे क्या लग रहा है, यह न बता पाऊँगा.. कुछ अच्छा या बहुत अच्छा जैसे शब्द गौण हैं यहाँ ।अपने सर्वेक्षण के दौरान ही मुझे मनीष कुमार और महेद्र वर्मा जी जैसी प्रतिक्रियाओं की अपेक्षा रही थी, और अभी ऎसे स्वर और भी आने को होंगे । विकल्प के तौर पर आप अपने साइडबार में इस आशय की सूचना चस्पाँ कर र्सकते हैं, कि जिनको भी ऎसा लगे वह अपने ब्लॉग का लिंक , ब्लॉग आरँभ करने की तिथि, ब्लॉग पर लिखे गये पोस्टों की सँख्या का उल्लेख आपको मेल कर सकते हैं । पेज़लोड, पेज़रैंक जैसे तकनीकी टोटके इन दावों को प्रभावित नहीं करते । उस पर प्रकाशित सामग्री के आधार पर ब्लॉग के चुनाव करने आपका अधिकार सुरक्षित रहेगा ।अहर्निश असीम शुभकामनायें ! अब डॉक्टर साहब हमारे बीच नहीं रहे । कल डा.अमर कुमार के आकस्मिक निधन की हृदय विदारक सूचना मिली। कुछ माह पूर्व कैंसर का पता चलने के बाद हुये इलाज से वे ठीक से हो गये थे। तबियत ठीक होने लगी थी,लेकिन कल अचानक उनका रायबरेली में निधन हो गया। उनके इस आकस्मिक निधन से हम सभी स्तब्ध और दुखी हैं। व्यक्तिगत तौर पर मैंने अपना एक अभिभावक ,एक मार्गदर्शक खो दिया है...!
यह चिरंतन सत्य है कि मृत्यु पर व्यक्ति का एकाधिकार नहीं होता, किन्तु व्यक्तिगत तौर पर मैं यह महसूस कर रहा हूँ कि इस असामयिक निधन से भरपाई न होने वाली अपूरणीय क्षति हुई है !
अहर्निश असीम शुभकामनायें !
डॉक्टर साहब को विनम्र श्रद्धांजलि। ईश्वर उनके परिवार को इस असीम दु:ख को सहन करने के भरपूर शक्ति प्रदान करे।
आपके आलेख के माध्यम से डॉ. अमर कुमार जी के विलक्षण प्रतिभा संपन्न व्यक्तित्व से परिचित होने का अवसर मिला, आभारी हूँ ! समय और भाग्य की अनुकूल दृष्टि रहती तो शायद हमें भी उनका मार्ग दर्शन मिल जाता ! उनके परलोक गमन पर हार्दिक श्रद्धांजलि एवं संवेदनायें समर्पित हैं ! ईश्वर उन्हें अपनी शरण में लें व सभी बंधु बांधवों को यह दुःख वाहन करने की क्षमता प्रदान करें !
जवाब देंहटाएंDr. sahab ko mai jab tak jaan pata vo hame chhod gaye...das din pahle hi unse milkar aaya tha,bahut bhavuk ho rahe the !vo ek zindadil aur insaani-blogger the.unki smriti ko naman !
जवाब देंहटाएंमैंने भी सतीश जी के पोस्ट से अमर जी को जाना था. उनकी बीमारी व जीवटता को ह्रदय में उतारा था.हतप्रभ हूँ.वे ब्लॉगजगत में एक स्थान रिक्त कर गए. विनम्र श्रद्धांजलि .
जवाब देंहटाएंमैंने भी सतीश जी के पोस्ट से अमर जी को जाना था. उनकी बीमारी व जीवटता को ह्रदय में उतारा था.हतप्रभ हूँ.वे ब्लॉगजगत में एक स्थान रिक्त कर गए. विनम्र श्रद्धांजलि .
जवाब देंहटाएंआपके लिखे लेख के माध्यम से डा० अमर कुमार जी के व्यक्तित्व का परिचय मिला ... सच ही समालोचक बहुत कम मिलते हैं ... मेरी उनको विनम्र श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंडॉ अमर कुमार जी को हार्दिक श्रद्धांजलि !
जवाब देंहटाएंडॉक्टर साहब को विनम्र श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति से जाना डा. साहब के व्यक्तित्व एवं उनके विचारों को भी ...ऐसे सहृदयशील व्यक्तित्व को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि एंव नमन ..।
जवाब देंहटाएंडॉ अमर कुमार के आकस्मिक निधन की सूचना अभी ही आपके द्वारा दी गयी सूचना से मिली. मेरी उनको हार्दिक श्रद्धांजलि . ईश्वर इन क्षणों में उनके परिवार को धैर्य प्रदान करे.
जवाब देंहटाएंडॉ.अमर के निधन की खबर दुखदाई है.
जवाब देंहटाएंवह एक साफ़-सुथरी सोंच वाले आला दर्जे के इन्सान और क़ाबिले-एहतराम ब्लोगर थे.उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि
मैं तो कहूँगा कि:-
रूह निकली है मगर उसका असर जिंदा हैं.
मौत क्या मारेगी , अर्बाबे - हुनर जिंदा है.
कौन कहता है कि वो छोड़ गए दुनिया को,
आज भी सफ़ह-ए-काग़ज़ पे अमर जिंदा है.
*****
अर्बाबे - हुनर=हुनरमंद,
सफ़ह-ए-काग़ज़=काग़ज़ के पन्ने
एक आलोचक मित्र, साथी और भाई के जाने से बड़ी क्षति क्या हो सकती है?
जवाब देंहटाएंडा अमर कुमार के निधन पर बहुत दुख हुआ।उनको हार्दिक श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंसुधा भार्गव
विनम्र श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंआदरणीय श्री डॉ.अमर कुमार जी को हम विनम्र श्रद्धा-सुमन अर्पित करते को मेरी भी विनम्र श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंयह बहुत दुखद है और बहुत अप्रत्याशित -हिन्दी ब्लॉग जगत की यह ऐसी रिक्तता है जिसकी भरपाई संभव नहीं है
जवाब देंहटाएंऐसे सहृदयशील व्यक्तित्व को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि एंव नमन ..।
जवाब देंहटाएंईश्वर इन क्षणों में उनके परिवार को धैर्य प्रदान करे....!
जवाब देंहटाएंहार्दिक श्रद्धांजलि एवं संवेदनायें !
जवाब देंहटाएंमेरी उनको विनम्र श्रद्धांजलि...!
जवाब देंहटाएं'अमर' वाकई अमर हैं, हमारे दिलों में, अपने ब्लॉग्स पर, अनेकों लेखों पर दी गई अपनी सशक्त टिप्पणियों के माध्यम से...
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि। ईश्वर उनके परिवार को इस असीम दुख को सहन करने के शक्ति प्रदान करे।
जवाब देंहटाएंडा० अमर कुमार जैसे विद्वान का जाना निस्संदेह हम सब के लिए एक अपूर्णीय क्षति है. ब्लॉग जगत के चमन से तो लगता है कोई हरा भरा सायादार दरख़्त ही कट गया हो. एक विनम्र श्रद्धांजली उस महान व्यक्तित्व को.
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि ड़ा. साहब को।
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंडाक्टर साहब ब्लॉग जगत में अपनी विशेष टिप्पणियों की वजह से हमेशा जाने जायेंगे ...
जवाब देंहटाएंहमारी विनम्र श्रधांजलि है उनको ...
डॉक्टर साहब को विनम्र श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंडॉ अमर कुमार अद्वितीय थे, सब कुछ जानने के बाद, भी उन्होंने आखिर तक हार नहीं मानी !
जवाब देंहटाएंआपका उनके साथ लगाव जानकार अच्छा लगा !
कुछ अपवादों को छोड़कर अक्सर हम लोग ध्यान से एक दूसरे को नहीं पढ़ते हैं , कमेन्ट कर अथवा पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होकर अपने मन में दूसरे का व्यक्तित्व निर्माण कर बैठे रहते हैं !
डॉ अमर कुमार के व्यक्तित्व के बारे में जितना कुछ उनके जाने के बाद पता चला, वह अविश्वसनीय है ! काश आज वे यह सब देखने के लिए हमारे बीच होते ....
काश हमने यह सब उनके सामने उन्हें कहा होता !
बहुत कुछ कसक रह गयी रविन्द्र भाई ! अच्छे इंसानों को समझने में अक्सर हम देर कर जाते हैं !
आप खुशकिस्मत थे कि आपको उनकी सामीप्यता मिली !
"मुझे पढ़ लो, हज़ार कोटेशन पर भारी पडूँगा" डॉ अमर की टिप्पणियाँ यकीनन कोटेशन जैसी हैं जिनसे बहुत सीखा है और भविष्य में और भी सीखा जा सकता है...उन्हें अश्रुपूर्ण श्रद्धाजंलि !
जवाब देंहटाएंसतीश जी,
जवाब देंहटाएंअमर कुमार जी की एक विशेषता यह भी थी कि वे सच बोलते थे और सच बोलने वाले लोगों की बड़ी कमी है हमारे समाज में ....द्विवेदी जी ने सही कहा है कि एक आलोचक मित्र के जाने से बड़ी क्षति और क्या हो सकती है ?
मेरा मानना है कि आलोचक से बड़ा मित्र कोई नहीं होता !
Bhagvan Dr Amar kumar ji ki atma ko shanti de .
जवाब देंहटाएंve beshak achchhe insan honge aapke shbdon se lagta hai kyu ki aaj yadi aap unko itne prem aur ader se yad kar rahe hain .
aapki ye baat bhi sach hai ki sach bolne walon ki kami hai pr mujhe lagta hai ki sach sunne walon ki bhi kami hai
me punah prarthna karungi ki bhagvan unke parivar ko ye dukh sahne ki shakti de
rachana
उन्हें मेरी और व्यंग्य यात्रा परिवार की विनम्र श्रद्धांजली
जवाब देंहटाएंनिश्चित ही डॉ अमर कुमार ब्लोगिंग के शिरोमणि थे ।
जवाब देंहटाएंउनके अकस्मात निधन से ब्लॉगजगत अनाथ सा हो गया है ।
उनकी टिप्पणियों का कोई जोड़ नहीं था ।
वे हमेशा हमारे दिल में रहेंगे ।
विनम्र श्रधांजलि ।
बहुत दुखद समाचार है, हिन्दी ब्लॉग जगत नें अपना हितैसी भाई को दिया.
जवाब देंहटाएंडॉ.अमर कुमार को विनम्र श्रद्धांजली.
हार्दिक श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंडॉ.अमर कुमार जी को विनम्र श्रद्धांजलि !
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि.....
जवाब देंहटाएंसच है उन जैसा जिन्दा दिल इंसान मिलना दुर्लभ है...मेरा उनसे फोन पर बात चीत का सिलसिला था जिसमें वो बोलते कम थे हँसते ज्यादा थे...एक अच्छे दोस्त के खो देने का दुःख क्या होता है कोई मुझसे पूछे...उन्हें मेरी श्रद्धांजलि...
जवाब देंहटाएंनीरज
दुखद पूर्ण है यह .हिंदी ब्लॉग जगत में उनकी कमी हमेशा खलेगी ..
जवाब देंहटाएंडा. अमर जी को श्रद्धांजलि....
जवाब देंहटाएंडॉ अमर कुमार जी को विनम्र श्रद्धांजलि !
जवाब देंहटाएंअमर कुमार जी के जाने का बहुत दुख है ...
जवाब देंहटाएंHi I really liked your blog.
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इस 'अंतरजाल' में ब्लॉगर तो बहुतेरे हैं पर आपसी रिश्ता औपचारिक-सा है.ज़्यादातर लोग केवल टीपने भर के लिए टीपते हैं पर डॉ.अमर कुमार ने इस टीपने की अपनी विशिष्ट शैली विकसित की और इसका सीधा मक़सद था कि एक-दूसरे से एक भावनात्मक रिश्ता कायम किया जाये.
जवाब देंहटाएंकुछ लोग उन्हें जीते जी नहीं जान पाए ,अब ज़रूर वो भी अपने को कोस रहे होंगे.
ऐसे लोग इस 'दुनिया' में गिने-चुने हैं.वे कभी भुलाये नहीं जा सकते !
डॉ. अमर कुमार जी को विनम्र श्रद्धांजलि .
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