यद्यपि आज ब्लॉगोत्सव का उन्तीसवाँ दिन है, यानी एक दिन शेष है ब्लॉगोत्सव संपन्न होने में ....इसलिए रवीन्द्र प्रभात जी ने ब्लॉगोत्सव के अंतिम दिवस को एक विशेष दिवस में परिवर्तित करने का निर्णय लिया है . उनका कहना है कि वैसे तो उत्सव को आज विराम दिया जा रहा है, किन्तु उत्सव का एक दिन कुछ विशेष होना चाहिए, यानी विशेष होगा प्रसारण,विशेष होगी उद्घोषणाएँ, इस उत्सव में शामिल समस्त प्रतिभागियों के लिए होगा विशेष सन्देश आदि-आदि ....यह तिथि कौन सी होगी ये तो वही बताएँगे स्वतन्त्रता दिवस के बाद ....तो चलिए चलते हैं आज के अंतिम चरण की ओर :
पंख जो रखते हैं संजोकर , वे आकाश को छूने का , सूरज को पाने का मनोबल रखते हैं .... देखा मैंने अर्बुडा ब्लॉग पर लिखा 'मेरे पंख' , और लगा यह है मेरी तस्वीर . मुझे पाने के लिए , मेरे साथ चलने के लिए पंखों का होना ज़रूरी ही तो है - तो आइये एक लम्बी उड़ान भरें -
कसक
अपनी अतिव्यस्त सी होती हुई दिनचर्या में दिन ढलने के साथ साथ एक कसक भी पनपने लग रही थी। कलम कहीं आराम की आदि न बन जाये और कसक में कोशिश करने की आदत न रहे उससे पहले आपके साथ यह कविता बाँट लेती हूँ-
एक लम्हा चुरा लूँ
टिक टिक करती
घड़ी की सुइयों से.
संभाल लूँ
सूखे फूलों की तरह
किताब में...
ठंडी हवा और
पत्तों की सरसराहट में
चिड़ियों की अठखेलियाँ
सहेज लूँ...
आसमान से आती
सुलझी, सुनहरी किरणों को
आँखों में भर लूँ...
ताज़गी और रौशनी
भोर की।
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मेरी शाम
पत्तों पर खुरदरी
शाम जब गिरती है...
मैं चुपचाप
नदी किनारे पड़ी
रेत समेट लेती हूँ।
बौखलाई हुई
रात में
औंधे से आकाश में
उस खुशबू को
बिखेर देती हूँ।
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यादें
कई रंग रंगे
कई लिबास ओढ़े
यादें मिलती हैं
हवा के स्पर्श
और खुशबु के संग
संगीत में घुली हुई
उम्मीदों से भरी हुई।
पल- पल आतीं
पल-पल जातीं
गुज़रे पल की यादें।
arbuda
http://arbuda.blogspot.com/
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बहुत मुश्किल होता है किसी उत्सव को दो महीने तक क्रमवद्ध रूप से संचालित करना, जब रवीन्द्र जी ने यह प्रस्ताव मेरे समक्ष रखा तो मैं परेशान हो गयी, मैं कैसे कर पाऊंगी यह सोच-सोच कर काफी परेशान हुयीं,तब रवीन्द्र जी ने कहा कि आप कर सकती हैं यह मेरा विश्वास बोल रहा है ....इतना सुनकर मैंने भीतर ही भीतर महसूस किया कि यह कोई मुश्किल काम नहीं, मैं उत्सव को संचालित करूंगी . फिर तो हम आगे बढ़ते गए और कारवां बनता गया इसी के साथ आइये देते हैं उत्सव के उन्तीसवें दिन को पूर्ण विराम और मिलते हैं उत्सव के अंतिम दिन होने वाले विशेष कार्यक्रम में जिसकी सूचना आपको शीघ्र देंगे रवीन्द्र जी, अब मैं यानी रश्मि प्रभा आपसे इजाजत लेती हूँ ...शुभ विदा !
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आज के विशेष दिवस को आइये देते हैं विदा, लेकिन इन विशेष रचनाओं को बांचने के बाद ....
चन्द्रशेखर हाडा के कार्टून्स
चन्द्रशेखर हाडा http://currentcartoons.blogspot.com/ cartoonist एक निजी फर्म में असिस्टेंट मैनेजरी करते-करते फ्रिलांश कार्टूनिंग...
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यह सवाल आपसे इसलिए है कि अगर आप १८ वर्ष के हो गए हैं तो आप वोट देने का अधिकार पा चुके हैं….मगर...
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कविता मैं उस वक्त में लौटना चाहता हूं जब… मेरे लिए मासूमियत का मतलब, सिर्फ खुद का असल होना था… मेरे...
बहुत खूब, अच्छी अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति के साथ परिकल्पना उत्सव के सफल संचालन के लिये आदरणीय रश्मि जी एवं रवीन्द्र जी का बहुत-बहुत आभार एवं शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंअर्बुदा जी की क्षणिकाएं बेमिसाल हैं....
जवाब देंहटाएंउन्हें बधाई...
इस बेशकीमती सफल आयोजन पर परिकल्पना को सादर बधाई एवं आभार...
आभार निरंतर नित नई उंचाईयों को स्पर्श करती प्रस्तुतियों के लिए...
आभार ब्लॉग सागर का मंथन कर अनमोल साहित्यामृत का पान कराने के लिए...
सादर...
कल हलचल पर आपके पोस्ट की चर्चा है |कृपया अवश्य पधारें.....!!
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति कल के तेताला का आकर्षण बनी है
तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
अवगत कराइयेगा ।
http://tetalaa.blogspot.com/
बेहतरीन रहा यह उत्सव ...बधाई के पात्र है आप लोग ..शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत बढि़या ।
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी ये रहनाएं और उत्सव का एक-एक दिन, बधाईयाँ !
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार एवं शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंbahut khoob raha...........
जवाब देंहटाएंलाजवाब...बहुत ही अच्छी लगी मन को
जवाब देंहटाएंअर्बुदा की क़लम सक्रिय हुई और परिकल्पना का उत्सव सफलता की ओर बढ़ता..दोनो को बधाई और शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली काव्य को सम्मान , प्रतिष्ठा प्रस्तुतकर्ता माननीय रश्मि जी को ,उनके सराहनीय कृत्य ,संकलन , व संपादन को ,.......जीवन्तता को, समर्पण को ,सेवा को ......../
जवाब देंहटाएंरश्मि जी बहुत बहुत आभार। सभी को शुक्रिया। वेब पर इस तरह की गतिविधियाँ उत्साह बनाए रखती हैं और लिखने की प्रेरणा भी देती हैं। एक बार पुनः आभार।
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