कान्हा - कान्हा ढूँढती , ताक- झाँक के आज ।
कौन बचाएगा यहाँ, पांचाली की लाज । ।
गिद्ध - गोमायु- बाज में, राम-नाम की होड़ ।
मरघट-मरघट घूमते, तोते आदमखोर । ।
कातिल - कातिल ढूंढ के , मुद्दई करे गुहार ।
मोल-तोल में व्यस्त हैं, मुंसिफ औ सरकार। ।
राग- भैरवी छेड़ गए, कैसा बे - आवाज़ ।
उछल-कूद कर मंच मिला ,बन बैठे कविराज । ।
घर- घर बांचे शायरी , शायर-संत - फ़कीर ।
भारत देश महान है , सब तुलसी सब मीर । ।
राजनीति के आंगने , परेशान भगवान ।
नेत- धरम सब छोड़ के , पंडित भयो महान । ।
हंस-हँस कहती धूप से , परबत-पीर-प्रमाद ।
बहकी - बहकी आंच दे , पिघला दे अवसाद । ।
यौवन की दहलीज पे, गणिका बांचे काम ।
बगूला- गिद्ध- गोमायु सब, साथ बिताये शाम । ।
मह- मह करती चांदनी , सूख गए जब पात ।
रात नुमाईश कर गयी , कैसे हँसे प्रभात । ।
नदी पियासी देख के , ना बरसे अब मेह ।
धड़कन की अनुगूंज से , बादल बना विदेह । ।
() रवीन्द्र प्रभात
ये दोहे नही आज की आवाज़ है जिसे केवल महसूस किया जा सकता है , आपने बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति दी है !
जवाब देंहटाएंbahut hi badhiya shabdo me piroyi badhiya rachana abhvyakti.
जवाब देंहटाएंरविंद्र प्रभात जी आपकी इस बेहतर काव्यात्मक कविता पर मेरे मन मेंे यह पंक्तियां आयी जो प्रस्तुत हैं।
जवाब देंहटाएंदीपक भारतदीप
..................................
जो है गिद्ध वही कहलाने लगे सिद्ध
नजरें ही जिनकी काली हैं
हीरे और पत्थर की नहीं पहचान
पर पारखी के नाम से प्रसिद्ध
लाज लुटने की फिक्र किसे है
यहां तो अपनी आबरु बेचने पर
आमादा है जमाना
नैतिकता बस एक नारा है
लगाने में अच्छा लगता है
पर जो चलता है वह बिचारा है
इंसान बस चाहता है
पैसा और पद
जिससे हो जाये प्रसिद्ध
.......................
बहुत सार्थक लिखा है मित्र।
जवाब देंहटाएंघर- घर बांचे शायरी , शायर-संत - फ़कीर ।
जवाब देंहटाएंभारत देश महान है , सब तुलसी सब मीर । ।
एक दम सटीक और भीतर तक सन्देश देते आपके ये दोहे हिन्दी ब्लाग सहित्य की धरोहर हुए जी.
एक से बढ़ कर एक लाजवाब दोहे...बेमिसाल..वाह वा...
जवाब देंहटाएंनीरज
आपके दोहे वाकई बहुत ही सुन्दर और सामयिक है , बधायीँ !
जवाब देंहटाएंbahut sundar...
जवाब देंहटाएंsahuvaad
अति सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे...अच्छा लगा पढ़ कर बधाई स्वीकारें और सदा अपनी लेखनी से अवगत करवाते रहें...
जवाब देंहटाएंसमय की हालत प्रस्तुत करती रचना /
जवाब देंहटाएंसभी दोहे एक से बढ़कर एक रत्न समान हैं.यथार्थ का एकदम सही चित्रण प्रस्तुत किया है आपने इस रचना के माध्यम से .आपका बहुत बहुत आभार. दोहे मन मुग्ध कर गए.
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