हमारे पड़ोस में हैं एक शर्मा जी , पेशे से अध्यापक और वेहद सांस्कारिक व्यक्तित्व । पिछले रविबार को उन्होंने मुझे सपरिवार चाय पर बुलाया । मेरी श्रीमती जी ने कहा मैं तो नही जाऊंगी । मैंने पूछा आख़िर न जाने का क्या कारण है ? उन्होंने कहा हम जब भी उनके यहाँ जाते हैं बिना मतलब की परेशानियों में घिर जाते हैं । उनकी वेबजह परेशानियों में उलझो और आंखों में आंसू लिए घर लौट आओ , मेरी मानिये तो आप भी मत जाईये वहां । मैंने कहा भाग्यवान मैं तो जाऊंगा जरूर , क्योंकि किसी अनुरोध को टालना मेरे संस्कार का हिस्सा नही है । सो मैं अकेले ही चला आया शर्मा जी के पास । मेरे पहुंचते हीं शर्मा जी ने अभिवादन करते हुए कहा जी अहोभाग्य मेरा जो आप मेरे घर पधारे मगर भाभी जी दिखाई नहीं दे रहीं ? मैंने कहा जी वो कुछ अच्छा महसूस नहीं कर रही थी इसलिए नही आ सकीं ......!
कोई बात नही भाई साहब ! अच्छी हवा आ रही है , आईये बरामदे में बैठते हैं । फ़िर चाय की चुस्कियों के साथ शुरू हुयी बातचीत का सिलसिला और जैसे -जैसे यह सिलसिला परवान चढ़ता गया , मुझे मेरी श्रीमती जी की कही बातें आंखों के सामने तैरने लगी । हमलोग बातचीत में मशगूल थे कि अचानक उनका बड़ा सुपुत्र सिद्धार्थ अपने एक दोस्त के साथ घर में प्रविष्ट हुआ .....मैंने पूछा कैसे हो ? अच्छा हूँ अंकल ...!संक्षिप्त सा उत्तर देते हुए वह अपने कमरे में चला गया । उसके कमरे में जाते हीं फूट पड़े शर्मा जी , क्या बोलेगा ये ,कुछ भी अच्छा नही है भाई साहब । पहले तो बच्चों को बिगर कर रख दिया अभिषेक बच्चन और जौन इब्राहम ने दोस्ताना फ़िल्म बनाकर , फ़िर रही सही कसार निकल दी अदालत ने इस दोस्ती यारी को कानूनी जमा पहनाकर .....इतना सुनते ही मिसेज शर्मा आपे से बाहर हो गयीं और कहने लगीं - भाई साहब ! कैसा जमाना आ गया संस्कार भी तो कोई चीज होती है ....!
अब आप ही बताओ .....लड़के को लड़की न खोजनी पड़ेगी और न लड़की को लड़का,कैसा जमाना आ गया राम-राम !कोई भी मिल जाये चलेगा ...अगर भीड़ जाए प्रेम का टांका ....बताओ भैया क्या अब घर मेंमूंछों वाली बहुएं आएँगी ?कन्या क्या कन्या को जीजू जीजू बुलाएंगी? उन्मुक्त गगन के नीचे क्या अब लड़का लड़का को पटायेगा और लड़की लड़की को ? राम-राम कीडे पड़े उस जज के मुंह में जिसने यह फैसला दिया है .....तभी शर्मा जी ने कहा अजी शुभ -शुभ बोलो ....मैं तो उस दिन कि कल्पना करके कांप जाता हूँ जिस दिन परिवार का पूरा स्वरूप ही उलटा-पुल्टा हो जायेगा ......!
मैंने कहा शर्मा जी !हर सिक्के के दो पहलू होते हैं ...कुछ तो सुधार आयेंगे,ये नए बदलाव देश कोजनसँख्या विस्फोट से बचायेंगेशर्मा जी ने कहा- क्या खाक बचायेंगे ...अगली पीढी को मुंह दिखने लायक रहेंगे तब न बचायेंगे जनसंख्या विष्फोट से ।
हँसी-मजाक का यह माहौल अचानक गंभीर हो गया और मैंने एक अध्यापक की आँखों से भारतीय सभ्यता-संस्कृति में चरित्र के गिरते हुए ग्राफ को महसूस कर अन्दर ही अन्दर फूटता चला गया और टूटता चला गया थाप-दर-थाप अनहद ढोल की तरह ....!जब समलैंगिगता का क़ानून आया था तब शायद मैंने इन सब बातों पर गौर नही किया था मगर आज शर्मा जी की बातों से मुझे यह महसूस हुआ कि सचमुच हम दुश्चरित्र के गहरे कोहरे में प्रवेश कर गए हैं । यह दर्द अकेले शर्मा जी का नहीं हम सभी का है । शर्मा जी के यहाँ से लौटने के बाद रात में जैसे ही सोया और आँख लगी , मेरी आँखों के सामने प्रतिविंबितहुआ एक सपना ....उस सपने में एक अखबार ....उस अखबार में एक विज्ञापन और उस विज्ञापन में यह मजमून की शर्मा जी के यहाँ आनेवाली है मूंछों वाली बहू और बहूभोज में आमंत्रित है ....आप-हम और पूरा शहर !
वह सपना मन में उठे आवेग को बार-बार सुलाने का प्रयत्न करता रहा , पर दुर्भाग्य की न वह आवेग ही सो पाया रात भर और न मैं....!
मुंहदिखाई का नेग देने के लिए शेविंग किट या आफ्टरशेव ले लीजियेगा.
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जवाब देंहटाएंइब्तिदाए इश्क है रोता है क्या...आगे आगे देखिये होता है क्या...
जवाब देंहटाएंनीरज
मूंछों वाली ..बहूभोज में आप आमंत्रित हैं .
जवाब देंहटाएंसच कहा ........... hamaara samaaj भी जाने कहाँ jaayega अगर ऐसी cheejon को khule आम maanyata milegi.......
जवाब देंहटाएंदुनिया का क्या स्वरुप होगा..विचारना भी दुष्कर है. सही मुद्दा उठाया आपने.
जवाब देंहटाएंहोली के एक राजस्थानी गीत में सुना था " मुछों वाली बिनणी के सागे नाचे रे " गीत में तो मर्द कलाकार औरत के कपड़ो में नाच रहा था लेकिन अब तो हकीकत में मुछों वाली बिनणीयां (बहुए) आया करेगी |
जवाब देंहटाएंलैंगिक आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव का स्थान आधुनिक नागरिक समाज में नहीं है ,
जवाब देंहटाएंपर लैंगिक मर्यादाओं के भी अपने तकाजे रहे हैं और इसका निर्वाह भी हर देशकाल में होता रहा है .
निजता की स्वतंत्रता हमें किस हद तक और किस रूप में अपने संवंधों और आचरणों को तय करने की इजाजत देती है ,यह सवाल पूछने और इस मुद्दे को बेमानी और गैर जरूरी ठहराने वालों के अपने-अपने तर्क हैं . मगर मेरी इस सन्दर्भ में स्पष्ट राय है की यह एक प्रकार की मानसिक बीमारी है और मानसिक बिमारी को कानूनी मान्यता देना गलत है . इससे सचमुच परिवार का स्वरूप ही बदल जायेगा !
मेरी राय में समलैंगिकता को कानूनी रूप देना पूरी तरह गलत है . भारतीय दंड संहिता की धरा -३७७ को हटाने की कोशिश का विरोध किया जाना चाहिए , बरना समाज का काफी बुरा हो सकता है .
जवाब देंहटाएंऐसे लोगों के लिए वर्त्तमान समय में कानून बानाने केबजाय पुनर्वास केंद्र खोलने की आवश्यकता है .
जवाब देंहटाएंभविष्य में परिवार और समाज का जो स्वरूप होगा उसकी कल्पना करके ही मन भयभीत हो उठता है। आपने बहुत मुद्दा उठाया!!
जवाब देंहटाएंभाई, "बाजार" देश को तरक्की की राह पर ले जा रहा है… बाप से उसकी बेटी के सामने पूछ रहे हैं कि "क्या आपने अपनी बेटी की उम्र की लड़की के साथ सेक्स किया है?"… तरक्की है भाई तरक्की… जय हो…
जवाब देंहटाएंक्या कहा जा सकता है इस बारे में । कहीं से एक तरह की राय तो सुन ही नही पाता है । कैसा होगा आगे का समाज और कैसे होगे उसे आगे बढ़ानेवाले । उसे तो अब राखी सावंत जैसे लोग ही बता सकते है । समलैगिकता ने तो हंगामा ही खड़ा कर दिया है । क्या कहा जाये । अब तो लगता है कि खुदा ही बचा सकते है ।
जवाब देंहटाएंधीरज जी,
जवाब देंहटाएंहम जिस देशकाल में रहते हैं , उसकी रचना भी हमारे हाथों ही होती है .
हम हीं नए मूल्यों का निर्माण करते हैं और हम हीं परंपरा और आधुनिकता के बीच से अपने आचरण को तय
करने वाले सरोकारों का चुनाव करते हैं .
स्वाभाविक रूप से इस सिलसिले में कई मानवीय चूकें शामिल है.
मेरे समझ से उन्हीं चूकों में से एक चूक है यह भी जिसे कानूनी जम पहनाया गया है.
समय इस कदर करवट ले रहा है की हमारी निजी और सार्वजनिक व्यवहार की गरिमा किसी पारंपरिक लिक की बजाय सीधे-सीधे बाजारवादी ताक़तों के हांथों तय हो रहे हैं . अब रैंप पर पैंट का बटन खोलना फैशन है और दोस्तों के बीच फूहड़ अश्लील मैसेज जोक का अदन-प्रदान सोशल नेटवर्किंग .
सुरेश जी ने ठीक ही कहा है की -बाजार" देश को तरक्की की राह पर ले जा रहा है… बाप से उसकी बेटी के सामने पूछ रहे हैं कि "क्या आपने अपनी बेटी की उम्र की लड़की के साथ सेक्स किया है?"
जिन न्यायालयों में लाखों -करोडों केस वर्षों से लंबित पड़े हैं , उन्होंने समलैंगिकों की याचिका को प्राथमिकता देकर उनके पक्ष में झटपट फैसला दे दिया . जिस अप्राकृतिक यौनाचार को मानव सभ्यता के आरंभ से पाप कहा गया है, अब उसे सभ्यता की प्रगति का लक्षण कहा जा रहा है ...! भाई ये तो हद हो गयी !
जवाब देंहटाएंसमलैंगिकता के सन्दर्भ में पूर्णिमा जी की बातों से पूरी तरह सहमत हुआ जा सकता है, क्योंकि समलैंगिकता की वकालत करने वाले और खुद को इस समुदाय का हिस्सा बताने वाले अपने पक्ष में जो बड़े-बड़े दाबे करते हैं उससे उनके प्रति सहानुभूति होती है पर उनके दावों की छानबीन से तसवीर के दूसरे रूख का पता चलता है .कम से कम भारतीय संस्कृति इस दृष्टिकोण को नहीं पचा सकती . खैर हम तो केवल राय ही प्रकट कर सकते हैं जो कुछ भी करना है समाज के रहनुमाओं को ही करना है ...!
जवाब देंहटाएंशर्माजी के घर ही क्यों ये समझ मे नही आया. एक शिक्षक की इतनी बडी त्रासदी
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