जी हाँ ! लखनऊ के बारे में यह कहाबत मशहूर है , कि औरों से अलग है यहाँ का मिजाज़ -औरों से आगे है यहाँ की तहजीब । शायद दुनिया का एक मात्र ऐसा शहर है लखनऊ जिसकी पहचान मानवीय गुणों के आधार परहोती है , न कि उसके पुरातात्त्विक अवशेष अथवा ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के कारण । सच तो यह है कि यहाँ केवल इंसानों के ही अंदाज और मिजाज़ अलग नही होते , वल्कि जानवरों और पक्षिओं के भी .....!
कल मेरी बात हो रही थी दूरभाष पर मुंबई के एक ब्लोगर बसंत आर्य से । बातचीत के क्रम में उन्होंने बताया कि अज़कल बरसात के कारण मुंबई में मच्छरों का आतंक व्याप्त है .....मैंने कहा कि मेरे यहाँ तो ऐसा नही है ....बसंत आर्य चौंकते हुए बोले मैं मान ही नही सकता , बरसात में तो अमूमन हर शहरों में मच्छरों का प्रकोप होता है ? मैंने कहा हमारे यहाँ जाडे में होता है .......क्यूं है न कुछ अलग अंदाज़ हमारे शहर का ?
अब देखिये , इस शहर का एक छोरा गया इंगलैंड , भा गया आर्सनल को । समझे नहीं ? बात दर-असल यह है कि लखनऊ का एक नन्हा सा फ़ुटबॉलर अचानक इंगलैंड के विश्व विख्यात क्लब आर्सनल कि आँखों का तारा बन गया है । वह उस सोलह सदस्यीय भारतीय टीम का सदस्य है जो उतारी लन्दन में चल रहे आर्सनल इन्टरनेशनल फुटबौल फेस्टिवल में दुनिया भर के जुटाने वाली टीम से मुकावला करेंगे, नाम है मनोज तमांग ।क्यूं है न अलग अंदाज़ हमारे शहर का ?
मगर आज हम जिस बात की चर्चा करने के लिए इस ब्लॉग पोस्ट पर आए हैं , वह भी कुछ अलग है , मगर है मेरे शहर से जुडा हुआ । बात दर-असल यह है कि टी सी एस के सर्वेक्षण में जो तथ्य उजागर हुए हैं उसके मुताबिक आई टी के इस्तेमाल में भी लखनऊ के युवा औरों से आगे है। यहाँ के ५६ फीसदी विद्यार्थियों के घरों में पर्सनल कम्पूटर और १२ फीसदी के घरों में लैपटॉप है । वहीं मिनी मेट्रो का दर्जा रखने वाले अन्य शहरों में ५४ फीसदी विद्यार्थियों के घरों में पी सी हैं । लखनऊ में ६६ फीसदी घरों में इंटरनेट का इस्तेमाल होता है जबकि इस मामले में राष्ट्रिय औसत ५८ फीसदी है । मिनी मेट्रो में तो यह औसत ५० फीसदी ही है ।
टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज द्वारा वर्ष-२००८-०८ में कराये गए सर्वेक्षण के अनुसार लखनऊ के ७१ प्रतिशत विद्यार्थी रोजाना ३० मिनट से अधिक समय तक ऑनलाइन रहते हैं , जबकि में राष्ट्रीय औसत ६७ फीसदी है । लखनऊ के ४३ फीसदी विद्यार्थियों के पास आईपॉड है जबकि इस मामले में मिनी मेट्रो का औसत ४४ प्रतिशत है । यहाँ के ४४ फीसदी विद्यार्थियों के घरों में डिजिटल कैमरा है जबकि मिनी मेट्रो में यह औसत ३९ फीसदी ही है । लखनऊ के ७४ फीसदी विद्यार्थी मोबाईल फोन का इस्तेमाल करते हैं । यहाँ के ९३ फीसदी विद्यार्थी इटरनेट पर सोशल नेट्वर्किंग से वाकिफ हैं और ३७ फीसदी इसमें शिरकत भी करते हैं । क्यूं है नं औरों से आगे औरों से अलग हमारे लखनऊ के युवा ?
१५ अगस्त सन्निकट है , आज़ादी के इस पवित्र दिवस पर सरे लोग बात करते हैं वतन परस्ती की लेकिन आप को जानकर यह सुखद आश्चर्य होगा कि वतन परस्ती का हौसला भी दूसरों से ज्यादा है लखनऊ वासियों में । सर्वेक्षण के अनुसार लखनऊ के ६४ फीसदी विद्यार्थी पढाई के लिए विदेश जाना चाहते हैं जबकि राष्ट्रिय स्टार पर यह औसत ५८ फीसदी है, मगर सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यहाँ के ६० फीसदी विद्यार्थी विदेश में पढाई पूरी करने के बाद वापस भारत लौटकर काम करना चाहते हैं , जबकि इस मामले में राष्ट्रिय औसत ४९ फीसदी है । क्यूं है न ! औरों से आगे औरों से अलग यह लखनऊ मेरी जान ?

6 comments:

  1. मैं भी लखनऊ पर फिदा रहा हूँ -वहां रह चुका हूँ ! बिलकुल सही फरमाया आपने

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  2. अपने लखनऊ की बात जुदा है
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    'विज्ञान' पर पढ़िए: शैवाल ही भविष्य का ईंधन है!

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  3. बहुत सुन्दर लखनऊ के मिजाज और अंदाज कुछ अलग ही है.

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  4. निश्चित ही लखनऊ की शान जुदा है ।

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  5. आपका आलेख पढ कर अच्‍छा लगा .. एक बार लखनउ आने की इच्‍छा है .. पिछले वर्ष एक भाई के विवाह में आमंत्रण होने के बावजूद नहीं आ सकी !!

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