चौबे जी की चौपाल
फूलपुर में राहुल की सभा में दबंग के चुलबुल पांडे टाईप मंत्रियों के द्वारा शांतिपूर्वक विरोध करने वाले लड़कों की पिटाई की बात सुनि के रामभरोसे एकदम सेंटिमेंटल हो गया और मुड़ि पीटत सनकाह के जैसा चौबे जी के चौपाल में आ गया । चौबे जी से बोला कि – "महाराज चमचई की हद हो गई । आपन कृत्य से देश की कमर तोड़े से संतोष ना भईल मंत्री लोगन के तs चल अईलें उत्तर प्रदेश मा जनता के पीटे-पटके । माना कि अवोध लईकन सब ई कहके विरोध कईलें कि मंहगाई और भ्रष्टाचार से निजात काहे नाही दिलवाती है आपकी सरकार, तो युवराज केवल इतना कह देते कि क्यों पैर पर कुल्हाड़ी चलाने को कह रहे हो ? ये तो चुनावी मुद्दे हैं भला इससे कैसे निजात मिल सकता है ? उत्तर प्रदेश की जनता वेबकूफ थोड़े न है जे उनकी बतकही नही समझती। खैर युवराज तो अभी ४२ बरस के बच्चा हैं, जब साठा होईहें तब पाठा मारिहें, मगर तिवारी जी के का भईल रहे कि उतर गईलें पीटे-पटके ?"
देखो राम भरोसे पीटने-पटकने में जो मजा है ऊ चूमने में कहाँ ? राजनीति का पहिला पाठ है कि जनता का दिल-दिमाग-हाथ-पैर टूटे तो टूटे, मुद्दे नही टूटने चाहिए । जब इहे बात का अनुसरण किये हैं हमरे मंत्री जी,तो कवन गुनाह कर दिए ? ई अलग बात है कि सार्वजनिक रूप से पीटो-पटको तो इन्डियन पैनल कोड के तहत धारा ३२३ लगा देत है हमरी लोकल पुलिस , गाली दो तो ५०४ लगा देत है , मगर धारा बनाने वालों पर ससुरी कैसी धारा ? भाई देख, जे बनावत हएं ओही के बिगारे के अधिकार होत हैं नs ? हमरी सरकार के मंत्री क़ानून बानावत हएं तs बिगारिहें के,ऊहे बिगारिहें नs ? अब गैर जमानती वारंट जारी हो चाहे जमानती का फर्क पडत है ? नेता हैं कवनो अभिनेता नाही जे डर जयिहें । हमका बुझात है राम भरोसे कि बिना दस-बीस धारा लगे सही मायनों में कोई नेता नाही बन सकत । उनके खातिर पहचान कs सबसे बड़ा संकट उत्पन्न होई जात हैं । मन के भीतर अन्हरिया रहे तो रहे, मगर युवराज के सामने कोई करिया कपड़ा दिखाए ई बर्दास्त करे वाली बात ना है । धारा लगे तो लगे युवराज की नज़र मा इज्जत ना धोआये के चाहीं । अरे सार्वजनिक रूप से बिना अंजाम की परवाह किये बगैर पीटना-पटकना कवनो आसान काम है का ? हमको तो लगता है तिवारी जी,जतिन जी आऊर फलाना जी,चिलाना जी आदि-आदि जे भी जी शामिल रहे ऊ चटकन-पटकन जइसन सत्संग में, सबके -सब सोनिया चाची के विशेष इनाम के हकदार हैं ।“ चौबे जी ने कहा ।
एकदम्म सही कहत हौ चौबे जी, हम तोहरे बात कऽ समर्थन करत हईं ।एगो कहावत है कि बड़ जीव बतियवले, छोट जीव लतियवले। पहिले के ज़माना में बड जीव सवर्ण के कहल जात रहे और छोट जीव अवर्ण के । मगर ज़माना बदल गवा है महाराज । अब बड जीव का मतलब नेता होत है और छोट जीव का मतलब जनता । यानी कि ये भी बड़े,वे भी बड़े, छोटी बस जनता। ऐसे में जनता लातियावल ना जाई तो का पूजा पूजल जाई ? वैसे भी आजकल वेशर्मी बुरी आदत की श्रेणी मा नाही आवत सम्मान की श्रेणी मा आवत हैं । अगर वेशर्मी नाही तो नेता कैसा चौबे जी ? गुल्टेनवा ने कहा ।
उ सब तो ठीके है गुलटेन भईया लेकिन कहीं ई देश के छोट जीव यानी शर्मीली जनता मिस्र और लीबिया के नाहिन वेशर्म हो गइल तो ? गजोधर कहले
जाये द गजोधर, एकर उत्तर देबे में हमरा के शर्म महसूस होत है,बोली तिरजुगिया की माई ।
इतना सुनकर रमजानी मियाँ झुंझलाया और अपनी लंबी दाढ़ी सहलाते हुए फरमाया कि बरखुरदार ई उत्तर प्रदेश है कवनो लाल बुझक्कर का देश नाही है । जनता के छोट जीव समझेवाला बड जीव यानी खुरपेंचिया जी टाईप नेता के शायद नाही मालूम कि जनता शब्द से आभास है ताक़त का, एकजुटता का । उस एकता का जे नाईंसाफी पर राज बदले में देर नाही करत । तख्तो-ताज बदल देत हैं पान मा चुना लगा के । माहौल बदल देत हैं झटके में । यहाँ तक कि नयी इबारत लिख देत हैं । उत्तरप्रदेश की जनता कबो केहू से कम नाही रही है । हमार इतिहास ई बात कs साक्षी है मियाँ ।कलयुग है तो जाहिर है उतने सत्यवादी हरिश्चंद्र पैदा ना होईहें जेतना अपराधी जन्म लिहें ।मगर इसका मतलब ये तो नही होना चाहिए कि वे वेशर्मी से सिर उठाये और हम्म शरमा जाएँ । मंत्री-संत्री के टोके के, रोके के, शांतिपूर्वक प्रदर्शन करे के भी हक नाही है का हमके ? क्या ये आज़ादी हमने हलवा-पूरी खाकर पायी थी ? नाही उस समय भी हम्म नंगे वदन भूखे पेट रहकर गोरों को यहाँ से विदा किये थे । जब हम्म अंग्रेजन के विदा कर सकत हईं तो का आपन राज्य मा अपना हाथ से तकदीर नाही लिख सकत ? मंहगाई से अभी चावल-दाल का भाव जनता के पता चलत हैं चुनाव के बाद नून-तेल का भाव जब खुरपेंचिया जी टाईप नेता के पता चली तब समझ मा आई सार्वजनिक सभा में जनता के लातियाबे का मतलब । फिर गंभीर होते हुए उसने अपने कत्थई दांतों पर चुना मारा और सलाहियत के साथ कहा कि लो, इसी मौजू पर दुष्यंत साहब ने अर्ज़ किया है कि - नज़रों में आ रहे हैं नज़ारे बहुत बुरे,होठों में आ रही है जुबान और भी खराब ।
विल्कुल सही कहत हौ रमजानी मियाँ, मगर ई सच्चाई के भी खारिज ना कएल जा सकत हैं कि आदमी थोड़े प्रयास के बाद नेता बन सकत है, मगर नेता लाख कोशिश कर ले आदमी नहीं बन सकत । आदमी की आँखों में पानी होत है , मगर नेता कीआँखों में पानी नहीं होत। आदमी गलती करने के बाद शर्म से झुक जात है , मगर नेता फर्श से अर्श पर पहुँच जात है। आदमी जागे के बखत जाग जात है, मगर नेता कुछ भी हो जाए पांच साल के बाद ही जागत है जब टिकट के जरूरत महसूस होत हैं ।आदमी खातिर स्व से उंचा चरित्र होत है,मगर नेता के चरित्र के ऊपर मैं हावी होत है ।आदमी रिश्तों में सराबोर होत है , नेताओं में केवल गठजोड़ होत है ।इहे हs विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की सच्चाई । इतना कहकर चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया।
रवीन्द्र प्रभात
जनसंदेश टाईम्स/२०.११.२०११