चौबे जी की चौपाल
नेता है, तो समझो देशभक्त है !
आज चौबे जी कुछ खपा-खपा हैं। कई टन खपा। चुहुल के बीच चौपाल में चौबे जी ने कहा कि " राजनैतिक निजाम भी ससुरी सिनेमा की तरह ग्लैमरस हो गया है आजकल। किसी को कह दो कि तुम्हरा करेक्टर ढीला है तs ऊ अपना के सलमान खान बूझे लागत हैं। दबंग कहो तो फुलि के कुप्पा होई जात हैं। रावण कहो तो शाहरूख समझ के प्रसन्न होई जात हैं। अब ऊ ज़माना गया जब नेता लोगन के बार-बार देशभक्त होए के प्रमाण देवे के पडत रहे। सीता मईया की तरह प्रतीकात्मक तौर पर ही सही अग्नि परीक्षा देवे के पडत रहे। अब तो नेता का मतलब ही देशभक्त हो गया है भईया। वईसहीं जईसे दुष्ट कs मतलब वी.आई.पी. होत हैं नेता कs मतलब अपनेआप होई जात हैं देशभक्त। नेता हैं तो समझो देशभक्त हैं नेता नाही तो देशभक्त कईसा ? का कहें रामभरोसे चिदंबरम साहब को ही लो रजनीकांत टाईप मंत्री बने बैठे हैं,ऊ भी बिना मूंछ के । उनके मामले में कोर्ट तय नाही करत कि ऊ जेल कब जईहें बल्कि ऊ खुद और उनके आका तय करत हैं। "
"एकदम्म सही कहत हौ महाराज जवन नेता के भीतर आदमियत नाही होत ऊ नेता के डिमांड बहुत होत हैं ।जईसे करेला बगैर रस्सी के नीम के आगा-पीछा परिक्रमा करत-करत फुनगी पर विराजमान होई जात हैं वईसहीं खुरपेंचिया जी टाईप नेता करत हैं । सत्ता पक्ष के नेता में सांप कs गुण होत हैं आऊर विपक्ष के नेता में नेवला के गुण। दोनों में यदि मित्रता हो गई महाराज तो समझिये चहूँ ओर सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय....नेता-अफसर-ठेकेदार-बा बू के साथ-साथ परधान जी तक के खानदानी फुक्कड़पन ख़तम होई जात है। बाकी तो फिर ऊपर वाला सबका मालिक है हीं महाराज।" बोला राम भरोसे।
इतना सुनकर रमजानी मियाँ से रहा नही गया, अपनी लंबी दाढ़ी सहलाई और मुंह के पान पर हल्का सा चुना तेज़ करके फरमाया "कहाँ नेता गप्पू,कहाँ जनता पप्पू । न ेता विशिष्ट नही होंगे तो हममे-उनमें अंतर का रह जाएगा बरखुरदार। कहने का मतलब ई है कि नेता को नाही जनता को आदर्शवादी होना चाहिए। हवा खाईए ,पानी पीजिए, मस्त रहिए मियाँ । नेता-जनता में कुछ तो बुनियादी फर्क बनाए रखिए आप हवा खाईए उनको हवा में उड़ने दीजिए।आप कॉपरेटिव बैंक मा खाता खोलिए उनको स्विश बैंक जाने दीजिए। आप पेट खुजलाईए,उन्हें दाढ़ी खुजलाने दीजिए। इस असलियत को गाँठ बाँध लीजिए जनाब कि जनता खनिज है तो नेता खान है ।जनता जमीन है तो नेता आसमान है ।इस पर दुष्यंत साहब का एक शेर अर्ज़ है कि तुझे कसम है खुदी को बहुत हालाक न कर,तू इस मशीन का पुर्जा है, तू मशीन नही । का गलत कहत हईं गजोधर ?"
"अरे नाही रमजानी भैया, तू और गलत कबो नाही हो सकत" बोला गजोधर ।
मगर तिरजुगिया की माई से ना रहल गईल । कहली कि "रामाजानी मियाँ ई बताओ, कि जब हम्म मशीन का पुर्जा हैं मशीन नाही हैं, दो घूँट पानी पिए से पहिले हमार रूह काँप जात है ऊ देश मा लोकतंत्र का मतलब का है ?"
हम्म तोके बतावत हईं चाची, इतना कहके बीच में कूद पडा गुलटेनवा । बोला "बात ई हs चाची कि एगो सार्थक शब्द बोले में हमरे नेता लोगन के घंटों प्रवचन करे के पडत हैं। अपने विशिष्ट और फेंक अंदाज़ मा उनके रोज जनता के शब्द-वाण से पंजा लडावे के पडत हैं। कभी जनता के लुहकारे वाला शब्द तो कभी कनैठी-गर्दनिया देवे वाला शब्द से उनके पाला पडत हैं तो कभी कारपोरेट घराने के मीठे-कुरकुरे और ताज़ा आसंगों वाले शब्द के आत्मसात करे के पडत हैं । कभी हमरे नेता जी ऊ शब्दन के गिलौरी बना के अपने मुंह मा दबा लेत हैं तो कबो कृपालु-श्रद्धालु जनता के ऊपर थूक देत हैं पीकदान समझके।हमरे ई महान नेता लोगन के खातिर सत्ता की सवारी उनके इन्हीं कुछ विग्रही और भड़काऊ शब्दों की सवारी है चाची । यही कारण है सत्ता रूपी भैंस भी उन्हीं के आगे पास खड़ी पगुराती है चाची । अब जेकरे भीतर इतना गुण होगा ऊ विशिष्ट तो होगा हीं । इसी मौजू पर अदम गोंडवी साहब का एक शेर हम भी सुनाए देते हैं, अदम साहब का कहना है कि जितने हरामखोर थे कुर्बो-जबार में,परधान बनके आ गए अगली कतार में ।"
एकदम्म ठीक कहत हौ गुलटेन, शुभानल्लाह !हमरे मन की बात ठोकी है हमरे ऊपर भैया गुलटेन । ईहे मौजू पर दुष्यंत साहेब का एक शेर और अर्ज है कि " हम इतिहास नही रच पाए इस पीड़ा में दहते हैं,अब जो धाराएं पकड़ेंगे इसी मुहाने आएंगे ...!" रमजानी मियाँ ने फरमाया ।
बाह-बाह क्या बात है रमजानी मियाँ ! एकदम्म सही कहे हो यानी सोलह आने सच बचवा । देश के साथ-साथ उत्तरप्रदेश की हालत किसी से छिपी नही है । हर मूलभूत जरूरत के मामले में हम्म पिछली पायदान पर हैं । हर हाथ को काम,हर पेट को रोटी,हर सिर को छत के अलावा प्रदेश मा बिजली,पानी और सड़क की व्यवस्था करना आसान काम नाही । इसे विक्सित राज्य की श्रेणी मा खडा करे में बहुत समय लागी बचवा । काहे कि जवन प्रदेश मा जनता से बढ़कर नेता खातिर आपन मूंछ हो ऊ प्रदेश मा हम्म आर्थिक क्रान्ति की उम्मीद कईसे कर सकत हईं ? इतना कहके चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया ।
रवीन्द्र प्रभात
आज के समय के परिपेक्ष्य में चौबे जी चौपाल बहुत जोरदार लगी....आभार
जवाब देंहटाएंहाथी प्रदेश है ये तो. यहां का राष्टीय चिन्ह हाथी है. यहां की जनता हाथी है, यहां का शासक हाथी है. यहां की सरकारी मशीनरी हाथी है. यहां के कान हाथी हैं... बाक़ियों का क्या है, उनका तो काम ही भौकते रहना है. प्रदेश अपनी चाल बदल दे क्या ?
जवाब देंहटाएंएगो सार्थक शब्द बोले में हमरे नेता लोगन के घंटों प्रवचन करे के पडत हैं। अपने विशिष्ट और फेंक अंदाज़ मा उनके रोज जनता के शब्द-वाण से पंजा लडावे के पडत हैं। कभी जनता के लुहकारे वाला शब्द तो कभी कनैठी-गर्दनिया देवे वाला शब्द से उनके पाला पडत हैं तो कभी कारपोरेट घराने के मीठे-कुरकुरे और ताज़ा आसंगों वाले शब्द के आत्मसात करे के पडत हैं । कभी हमरे नेता जी ऊ शब्दन के गिलौरी बना के अपने मुंह मा दबा लेत हैं तो कबो कृपालु-श्रद्धालु जनता के ऊपर थूक देत हैं पीकदान समझके।हमरे ई महान नेता लोगन के खातिर सत्ता की सवारी उनके इन्हीं कुछ विग्रही और भड़काऊ शब्दों की सवारी है चाची । यही कारण है सत्ता रूपी भैंस भी उन्हीं के आगे पास खड़ी पगुराती है चाची । अब जेकरे भीतर इतना गुण होगा ऊ विशिष्ट तो होगा हीं । इसी मौजू पर अदम गोंडवी साहब का एक शेर हम भी सुनाए देते हैं, अदम साहब का कहना है कि जितने हरामखोर थे कुर्बो-जबार में,परधान बनके आ गए अगली कतार में ।"
जवाब देंहटाएंसमसामयिक विषयों पर सुन्दर कटाक्ष !
बहुत जोरदार है चौबे जी की चौपाल !
जवाब देंहटाएंजो नेता है ,वही देशभक्त है और जो सरकार के साथ नहीं है वही भ्रष्ट है !
जवाब देंहटाएंजिसमे आदमियत बची वह नेता नहीं है , आम आदमी के मन में क्या छवि बन रही है नेताओं कि इन्हें फर्क ही कहाँ पड़ता है ...
जवाब देंहटाएंसटीक व्यंग्य !