हाथ  की   लकीरें । (गीत)




सरगोशी   कर    रही    है,   हाथ   की   लकीरें, 

लगता   है,   तुम     यहीँ  कहीँ    आसपास   हो..!

मुस्कुरा     रही    है,  मेरे   दिल   की   धड़कन,

कहती   है,   तुम    मेरे   बहुत   खास-खास   हो..!

(सरगोशी = कानाफूसी )


अंतरा-१.


अटक  गया था   हलक़ में, जुदाई  का  वो  सबब,

आस  है  अब  कि  शाद,   दिल  का  आवास   हो..!

लगता    है,   तुम     यहीँ  कहीँ   आसपास   हो..!


( हलक़= कंठ; शाद =भरापूरा )


अंतरा-२.


इतने  क़रीब   कभी  न  थे, जब  हम  क़रीब  थे,

फिर  क्यूँ   लगा  ऐसा,  तुम  अब भी   उदास  हो..!

लगता   है,   तुम    यहीँ   कहीँ   आसपास   हो..! 


अंतरा-३.


मसल  दो,  चाहो  तो  दिल  की  मुराद  को, पर, 

चुभेगा    दग़ा    जैसे,   कोई   अगम   फाँस   हो..!

लगता   है,   तुम     यहीँ  कहीँ   आसपास   हो..!


(अगम= समझ से परे । )


अंतरा-४.


अपत   होता   है   दिल,  जब   मिलता   हूँ   तुम्हें,

सुकून  इतना  है  कि, तुम  दिल के  लिबास  हो..!

लगता   है,   तुम     यहीँ  कहीँ    आसपास   हो..!

(अपत =वस्त्रहीन; लिबास= पोशाक)


मार्कण्ड दवे । दिनांकः ०६-०९-२०१२.

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MARKAND DAVE
http://mktvfilms.blogspot.com   (Hindi Articles)

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