सती-प्रथा, दासी-प्रथा, दहेज़-हत्या,..... और कन्या को गर्भ से ही हटा देने की प्रक्रिया .... समाज की सड़ी-गली मानसिकता है. आखिर समाज ने यह क्यूँ किया ! जबकि ईश्वर ने स्त्री को माँ का दर्जा देकर सृजन का मुख्य स्रोत बनाया. 

पति की मृत्यु के बाद उसे जीने का अधिकार नहीं था - क्यूँ ? कभी सोचा किसी ने ? क्योंकि स्त्री के प्रति समाज के आदर्श हमेशा ताक़ पर रहे, संभ्रांत कहे जानेवालों की लोलुपता स्त्री के लिए एक काल था. 
दासी-प्रथा में एक स्त्री मन को रिझानेवाली जिंदगी थी .... उसकी स्वीकृति अस्वीकृति से परे .
विधवा होने पर केश काट देना - ताकि आकर्षण की संभावनाएं कम हो जाएँ ......... पर आम पुरुष !!! उसको तो रात के अँधेरे में एक पागल भिखारन भी सुन्दर लगती है !
विधवा-विवाह, परित्यक्ता विवाह हुए - पर आज भी अधिकाँश लोग उसे हेय दृष्टि से ही देखते हैं - आखिर क्यूँ ? 
विधुर पुरुष के पुनर्विवाह पर तुरंत विचार किया जाता है - उसके बच्चों के लालन-पालन को लेकर या बच्चे नहीं हुए तो उसके खान-पान को लेकर ! पर एक स्त्री जो हर कदम पर असुरक्षित होती है, उसके लिए सिर्फ हिकारत भरे शब्द ! 
कन्या भ्रूण हत्या मजबूरी है !!!:( - (अपवाद होते हैं)

 सिसकियों ने
मेरा जीना दूभर कर दिया है 
माँ रेsssssssssssssss ............
मैं सो नहीं पाती 
आखों के आगे आती है वह लड़की 
जिसके चेहरे पर थी एक दो दिन में माँ बनने की ख़ुशी 
और लगातार होठों पर ये लफ्ज़ -
'कहीं बेटी ना हो ....!'
मैं कहती - क्या होगा बेटा हो या बेटी 
!!!

अंततः उसने बेरुखी से कहा -
आप तो कहेंगी ही 
आपको बेटा जो है ....'
मेरी उसकी उम्र में बहुत फर्क नहीं था 
पर मेरे होठों पर ममता भरी मुस्कान उभरी - बुद्धू ...
!!!

आज अपनी ज़िन्दगी जीकर 
माओं की फूटती सिसकियों में मैंने कन्या भ्रूण हत्या का मर्म जाना 
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
नहीं फर्क पड़ता शिक्षा से 
कमाने से 
लड़कियों के जन्म पर उपेक्षित स्वर सुनने को मिलते ही हैं 
उन्हें वंश मानना किसी को गवारा नहीं 
वे असुरक्षित थीं - हैं ....
ससुराल में किसके क़दमों के नीचे अंगारे होंगे 
किसके क़दमों के नीचे फूल - खुदा भी नहीं जानता 
.... रात का अँधेरा हो 
या भरी दोपहरी 
कब लड़की गुमनामी के घुटने में सर छुपा लेगी 
कोई नहीं जानता 
नहीं छुपाया तो प्रताड़ित शब्द 
रहने सहने के ऊपर तीखे व्यंग्य बाण 
जीते जी मार ही देते हैं 
तो गर्भ में ही कर देती है माँ उसे खत्म !!!
= नहीं देना चाहती उसे खुद सी ज़िन्दगी 
गुड़िया सी बेटी की ज़िन्दगी 
खैरात की साँसें बन जाएँ - माँ नहीं चाहती 
तो बुत बनी मान लेती है घरवालों की बात 
या खुद निर्णय ले लेती है 
.........
कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ़ बोलने से क्या होगा 
कन्या रहेगी बेघर ही 
या फिर करने लगेगी संहार 
......
आन्दोलन करने से पहले अपने विचारों में बदलाव लाओ 
जो सम्भव नहीं - 
तो खुद को विराम दो 
और सुनो उन सिसकियों को 
जिन्होंने इस जघन्य अपराध से 
आगे की हर दुह्संभावनाओं के मार्ग बंद कर दिए 
सीता जन्म लेकर धरती में जाये 
उससे पहले बेनाम कर दिया उन्हें गर्भ में ही 
....
आओ आज मन से उन माओं के आगे शीश झुकाएं 
एक पल का मौन उनके आँचल में रख जाएँ 
.................. :(


 रश्मि प्रभा 



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  अन्यथा 

क्योंकि घटना को घटने के लिये सिर्फ़ एक क्षण ही काफ़ी होता है …

एक प्रश्न
जो सबके दिल मे उठता है
जीवन तो सबने देखा
क्योंकि
सामने है ………
बेतरतीब पगडंडियों से गुजरता
एक मोड पर आकर 
अंधेरे में विलीन हो जाता है 
प्रश्न यहीं आकर सिर उठाता है
आखिर उस अंधेरे के पार क्या?
क्या है सिरे के दूसरी तरफ़
क्या है अंधेरे के दूसरी तरफ़
क्या है कोई उजला पक्ष
क्योकि सुना तो यही है
हर अंधेरे के बाद उजाला होता है
तो क्या है कोई शुक्ल पक्ष उस ओर भी
सिर्फ़ जीवन के बाद मृत्यु 
और मृत्यु के बाद जीवन
कह देने भर से तो नही माना जा सकता ना
जब तक कि 
इसी होश में 
उस पार का नज़ारा ना दिख जाये

क्योंकि
मरे पीछे स्वर्ग किसने देखा ………इसका तो कोई प्रमाण नहीं
तो फिर
जो है ……इसी जीवन में है
फिर चाहे खोज हो
या कोई अन्वेषण 
जो खोना है यहीं खोना है
और जो पाना है यहीं पाना है
वो भी पूरे होशो हवास के साथ
तभी तो सार्थकता है जीवन की
यही तो औचित्य है जीवन का
जो अनसुलझे रहस्य हैं जीवन के ब्रह्मांड के 
उन के पार जाया जाये 
और हर प्रश्न अनुत्तरित ना रह जाये 
मगर इसके लिये भी 
सुना है एक शिद्दत जरूरी होती है
एक ज़िद जरूरी होती है
एक चाहत जरूरी होती है
क्योंकि
खोजकर्ता तो बहुत हैं मगर 
जो शिद्दत से चाहे और पाये 
ऐसे विरले ही होते हैं 
हौसलों के पार एक आसमां और भी है
शायद ये उन्ही के लिये कहा गया है
बस अब जरूरत है तो सिर्फ़ इतनी
एक मोती समन्दर से छाँट लाने की
वैसे भी सतहों पर तो सिर्फ़ रेत ही रेत होती है
और मुझे जाना है उस गहराई में
जहाँ अस्तित्व की आहट नहीं होती
बस एक सुगबुगाहट होती है 
दूसरे जहान की
उस पार की
नीली रौशनी के उजास की 
मृत्यु………क्या दोगी वो मौका मुझे 
अस्तित्व के बाद एक और अस्तित्व खोजने का …………
क्या चाहना शुरु कर दूँ उसी शिद्दत से
क्योंकि
घटना को घटने के लिये सिर्फ़ एक क्षण ही काफ़ी होता है 
बशर्ते
किसी ने शिद्दत से उसे चाहा हो

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